प्रिय को समर्पित कविताएं
इरा टाक का नाम पहली बार कब सुना यह तो याद नहीं लेकिन इतना याद जरूर है की इरा जी का पहली बार नाम 'राजस्थान पत्रिका' समाचार पत्र में ही पढा था।
इरा जी अच्छी लेखिका के साथ-साथ एक अच्छे चित्रकार भी हैं। चित्र और कविता दोनों ही अपनी भावनाओं को व्यक्त करने का अच्छा माध्यम है जिसमें इरा टाक जी सफल रहे हैं।
'मेरे प्रिय' कविता संग्रह में छोटी -छोटी कविताओं का संग्रह है, लगभग पांच से दस पंक्तियों की ये कविताएं मर्मस्पर्शी हैं। सभी कविताएँ 'मेरे प्रिय' को संबोधित है।
एक कविता कहीं
गुम हो गी।
सम्भाल न सके तुम
मेरे प्रिय।
इस 'प्रिय' को समर्पित इन कविताओं में आपसी प्रेम, समर्पण, उपालंभ और नाराजगी है। लेकिन उस नाराजगी में भी प्रेम है जो इस रिश्ते को और भी ज्यादा परिपक्व करता है।
कई बार लगता है भूला दूँ
मैं तुम्हें
जैसे हम कभी मिले ही नहीं हों
पर ऐसा कर नहीं पाती
मेरी हर खुशी और दुख
की वजह बन गए हो
मेरे प्रिय।
पुस्तक की भूमिका में प्रभात रंजन लिखते हैं- 'इरा टाक की कविताओं में 'मैं' से 'तुम' तक की यात्रा है। मैं से तुम तक की इस यात्रा के बीच निजी और सार्वजनिक का वह द्वंद्व है जो कविता का सबसे बड़ा निकष है।'
इस संग्रह की कविताएं चाहें आकर में छोटी हैं लेकिन भावना के स्तर पर इनका विस्तार बहुत है। कविताएं अपने परिवेश की सी महसूस होती हैं। जिनके साथ सहज ही संबंध स्थापित हो जाता है।
लेखिका संपर्क-
ब्लॉग- www.eratak.blogspot.in
FB पेज- www.fb.com/merepriye
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पुस्तक- मेरे प्रिय (कविता संग्रह)
लेखिका- इरा टाक
प्रकाशक- बोधि प्रकाशन
ISBN- 978-93-83878-30-7
पृष्ठ - 104
मूल्य - 70₹
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