Wednesday 23 January 2019

168. कत्ल की पहेली- संतोष पाठक

एक उलझी हुयी मर्डर मिस्ट्री
कत्ल की पहेली-संतोष पाठक, मर्डर मिस्ट्री, रोचक, पठनीय।

         संतोष पाठक एक जासूसी उपन्यासकार हैं। पहली बार इनका उपन्यास 'कत्ल की पहेली' पढने को मिला। लेखक प्रथम पंक्ति से जो प्रभाव पाठक पर पैदा करता है वह अंतिम पंक्ति तक यथावत रहता है।
            कहानी दिलचस्प और पूर्णत: मनोरंजन है। उपन्यास एक मर्डर मिस्ट्री है। 
            उपन्यास का आरम्भ प्राइवेट जासूस विक्रांत गोखले से होता है।
  22 जनवरी 2018
 रात के दस बजने को थे।
     साहिल भगत शहर का नामी बिजनैस मैन है जो एक दिन अपनी पत्नी सोनाली भगत के कत्ल के इल्जाम में गिरफ्तार हो जाता है। पुलिस के पास गवाह और सबूत सब थे। वे तो विक्रांत गोखले को भी कहते हैं।
           ".... कत्ल का चश्मदीद गवाह है हमारे पास! आलाएकत्ल पर उसकी उंगलियों के निशान मौजूद हैं। ऊपर से रिवाल्वर उसकी खुद की मिल्कियत है। अब मैं तुम्हारा ही सवाल दोहराता हूं, तुम बोलो उम्मीद है उसके बेगुनाह निकल आने की।”
        लेकिन साहिल भगत का कहना है वहाँ कोई तीसरा शख्स भी था।
“और वो तीसरा शख्स था कौन?”
“पता कर, यही तो तेरा काम है। मुझे बेगुनाह साबित करके दिखा और अपनी मोटी फीस कमा।”(पृष्ठ-31)
    विक्रांत गोखले जब इस तीसरे शख्स की तलाश में निकलता है तो उसके सामने कत्ल दर कत्ल होते जाते हैं।
- सोनाली भगत का कत्ल किसने किया?
- साहिल भगत कत्ल के इल्जाम में कैसे फंसा?
- साहिल भगत के अनुसार वह तीसरा शख्स कौन था?
- क्या विक्रांत गोखले अपने उद्देश्य में सफल हो पाया?
         ऐसे एक नहीं अनेक सवाल हैं, जिनका उत्तर तो संतोष पाठक के उपन्यास 'कत्ल की पहेली' को पढकर ही मिल सकते हैं।
           उपन्यास एक तेज रफ्तार मर्डर मिस्ट्री है। घटनाक्रम बहुत तेज गति से चलता है, पाठक को कहीं से भी बोरियत महसूस नहीं होती।       
      उपन्यास मूलतः एक कत्ल से आरम्भ होता है और जैसे जैसे आगे बढता है वैसे वैसे इसमें अनेक रोचक प्रसंग जुड़ते चले जाते हैं। पाठक के सामने भी एक चुनौती होती है की आखिर कातिल कौन है?
                    प्राइवेट जासूस विक्रांत गोखले का किरदार दमदार है और उसके साथ वकील नीलम का किरदार अच्छा है।
           लेखक ने उपन्यास के नायक को सुरेन्द्र मोहन पाठक के एक नायक 'सुधीर कोहली' के स्तर का बनाने की कोशिश की है और लेखक सफल भी रहा। जब लेखक स्वयं इतना अच्छा लिख सकता है तो पता नहीं क्यों किसी की नकल कर रहा है।  भविष्य जब भी विक्रांत गोखले की चर्चा होगी तो इस पर एक इल्जाम तय होगा की यह सुधीर कोहली की नकल है। लेखक इस में अभी सुधार कर सकता है।
           उपन्यास में सुरेन्द्र मोहन पाठक की तर्क पर महिलावर्ग का चरित्र निम्नस्तर का दिखाने की कोशिश की गयी है। क्या एक लेखक का नैतिक दायित्व नहीं बनता वह इस तरह का व्यभिचार न पैदा करे।
           दो उदाहरण देखें  
- कुछ लड़कियां बहन जी होती हैं और ताउम्र वही बनी रहना चाहती हैं।(पृष्ठ-54)
- “सुधर जा वरना किसी दिन मुझे रेप केस में जेल जाना पड़ेगा।"(पृष्ठ-)
 क्या किसी लड़की का सादापन में रहना गलत है। दूसरे उदाहरण में लेखक बिलकुल अपनी निकृष्टता का परिचय दे रहा है।
    एक जगह तो मात्र वर्ष वर्ष की लड़की का अश्लील उदाहरण देता है। सिर्फ एक बार स्वच्छ मानसिकता से सोचिएगा 15 वर्ष की एक मासूम बच्ची, स्कूल जाने वाली बच्ची के प्रति क्या दर्शा रहे हो।
       हद होती है।
निष्कर्ष
           प्रस्तुत उपन्यास एक मर्डर मिस्ट्री है। एक उलझी हुयी मर्डर मिस्ट्री। पाठक को आदि से अंत तक जबरदस्त मनोरंजन उपलब्ध है। कहीं से पाठक को निराशा नहीं ‌मिलेगी।
             उपन्यास पठनीय है, अगर उपलब्ध हो तो पढें।
उपन्यास- कत्ल की पहेली
लेखक-    संतोष पाठक
प्रकाशक- सूरज पॉकेट बुक्स, मुंबई



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