साहित्य समर्था- एक साहित्यिक पत्रिका
प्रथम अंक, अगस्त-सितंबर-2017
जयपुर से प्रकाशित होने वाली साहित्यिक पत्रिका साहित्य समर्था का प्रथम अंक प्राप्त हुआ।
प्रस्तुत अंक कथाकार डाॅ. बानो सरताज को समर्पित है। इसलिए इस अंक में अधिकांश रचनाएँ बानो सरताज की ही हैं और आवरण पृष्ठ का चित्र भी बानो सरताज का है। यह एक अच्छा व सराहनीय प्रयास है। इस अंक में बानो सरताज की कहानी, कविता, लेखन यात्रा, व्यंग्य- हास्य, आलेख आदि पाठक को पढने को मिलेंगे।
संपादिका महोदया लिखती हैं। "समर्था का प्रस्तुत अंक वरिष्ठ साहित्य डाॅ. बानो सरताज काजी को समर्पित है। बहुआयामी लेखन की धनी डाॅ. बानो सरताज का समृद्ध लेखन संसार एवं समाजसेवी व्यक्तित्व प्रशंसनीय है।" (पृष्ठ- 03)
इसके अलावा भी अन्य बहुत से रचनाकरों को स्थान दिया गया है।
बानो सरताज की कहानी 'दस्तक' में कई रंग देखने को मिलेंगे। कहानी में रोचकता और रहस्य भी है और अंत पूर्णतः मार्मिक। इनकी अन्य कहानियाँ भी रोचक हैं लेकिन इनके व्यंग्य भी दिये गये हैं वह मुझे न तो व्यंग्य लगे न ही हास्य।
मालती जोशी की कहानी 'मन धुआं-धुआं' पढना भी बहुत अच्छा अनुभव कराती है। मुकुट सक्सेना की 'अस्तित्व-बोध', डाॅ. पूनम गुजराती की 'मेहंदी' , चन्द्रकांता की 'एक लङकी शिल्पी'
लघुकथा में नरेन्द्र कुमार गौङ की लघुकथा 'भ्रष्टाचार' यह दर्शाने में सफल रही है की हम स्वयं भ्रष्ट होकर अपना दोष न देखकर दूसरों को दोष देते हैं।
लघुकथा में किशन लाल शर्मा की 'हक', पूर्णिमा मित्रा की ' आस के दिये' भी अच्छी हैं।
सबसे अलग हटकर प्रस्तुति है जर्मनी की युट्टा आॅस्टिन का साक्षात्कार। यह साक्षात्कार लिया है आभा सिंह ने।
युट्टा आॅस्टिन जर्मन महिला है। विवाह पश्चात अपने पति के देश इंग्लैंड में कोल चैस्टर नामक स्थान पर रहती है। वे कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय कोल चैस्टर में यूरोपीय भाषाओं की व्याख्याता है, साथ ही साथ हिंदी की विदूषी है और अध्यापन भी करती है। (पृष्ठ -58)
हिंदी भाषा के प्रति प्रेम विषय पर वे कहती है- "हिंदी इतनी सुंदर और बढिया भाषा लगी कि उसे सीखने लगी और भारत के बारे में पढने लगी।" (पृष्ठ- 58)
इस अंक की काव्य रचनाएँ भी बहुत सराहनीय है।
डाॅ. नरेन्द्र शर्मा 'कुसुम' राष्ट्र ध्वज क लिए लिखते हैं।
- तू हमारे देश की पहचान है,
कोटि कंठों से उमङता गान है,
तीन रंगों में फहराता व्योम में
एकता की तू सुरीली तान है। (पृष्ठ-33)
स्त्री वर्ग को लेकर लिखी गयी रचनाएँ भी अच्छी हैं। डाॅ. अंजु दुआ 'जैमिनी' की कविता ' स्त्री, मात्र देह' में स्त्री की स्वतंत्रता का वर्णन करती है।
स्त्री चारदीवारी से निकल
बढी खुली हवा में
कुछ पाना है- सब कुछ पाना है। (पृष्ठ- 37)
डाॅ. पद्मजा शर्मा की रचना 'लङकी' भी स्त्री वर्ग की बात करती है।
जितना सरल है कह देना लङकी
हकीकत में उतना ही कठिन है होना लङकी
जितने पल जीती है उससे कहीं ज्यादा पल मरती है लङकी। (पृष्ठ- 37)
संगीता गुप्ता की कविता 'माँ', मीरा सलभ की 'गम ही फलते रहे', डाॅ अमिता दुबे की 'ऐसा मन करता है', डाॅ संगीता सक्सेना की ' राखी', आदि काव्य रचनाएँ भी पठनीय है। शिवानी शर्मा की 'स्त्री', सत्यदेव संतिवेन्द्र की 'प्रश्न सहेजे चेहरे, सुकीर्ति भटनागर की कविता 'बस एक पल' भी सराहनीय रचनाएँ हैं।
मधु प्रमोद अपनी कविता 'हम सी ना बेटियाँ होती' में कहती हैं- ये हवाएं हैं
एक जगह रह नहीं सकती
ये ऋचाएं हैं
कभी खुलकर नहीं कहती। (पृष्ठ-46)
इनके अतिरिक्त इस अंक में साहित्यिक चर्चा और पुस्तक समीक्षा भी दी गयी है।
साहित्य समर्था का प्रस्तुत अंक वास्तव में बहुत अच्छा है। संपादिका नीलिमा टिक्कू जी धन्यवाद की पात्रा है जिन्होंने इस कठिन कार्य को अंजाम दिया है।
इस पत्रिका की एक और विशेषता है वह है इसका मजबूत संपादन पक्ष तथा उच्च स्तर के कागज पर मुद्रण। यह दोनों विशेषताएँ पत्रिका को और ज्यादा मजबूती प्रदान करती है।
पूर्णतः सफेद पृष्ठों पर अंकित काले -काले अक्षर मन मोह लेते हैं।
पत्रिका का प्रथम अंक पठनीय है।
पुनश्च: उन सभी रचनाकारों और संपादन मण्डल का धन्यवाद जिनके अथक प्रयास से साहित्य समर्था का प्रथम अंक साहित्य जगत में आया।
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पत्रिका- साहित्य समर्था (त्रैमासिक)
संपादिका- नीलिमा टिक्कू
अंक- जुलाई- सितंबर, 2017 ( वर्ष-1, अंक-01)
पृष्ठ-
मूल्य- एक अंक- 50₹, वार्षिक- 200₹
संपर्क-
ई-311, लालकोठी स्कीम, जयपुर- 302015
दूरभाष- 0141-2741803, 2742027
Email- sahityasamartha@gmail.com
- neelima.tikku16@gmail.com
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