Thursday, 28 December 2017

87. खामोश, मौत आती है!- कर्नल रंजीत

.                    मौत का अनोखा खेल
खामोश, मौत आती है- कर्नल रंजीत, थ्रिलर, रोमांच।    

         मेजर बलवंत का कारनामा।
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          दिल्ली शहर में एक के बाद एक खूबसूरत लङकियों का अपहरण होता है। बहुत कोशिश के पश्चात भी पुलिस किसी नतीजे पर नहीं पहुँच पाती। तब दिल्ली शहर में आये मेजर बलवंत की मुलाकात पुलिस इंस्पेक्टर रंजीत से होती है। इस तरह मेजर बलवंत इस अपहरण के केस से जुङ जाता है।  इसी दौरान एक फोटो स्टुडियो पर काम करने वाले मथुरा दास का कत्ल हो जाता है। इस कत्ल के पश्चात मेजर बलवंत और उसकी टीम एक -एक कङी जोङती जाती है और जा पहुंचती है असली अपराधी तक।

 जासूसी उपन्यास लेखन के सरताज कर्नल रंजीत की अनोखी कलम से हैरतअंगेज कारनामों से भरा एक और अनोखा कारनामा- खामोश, मौत आती है।

- कैसी थी वह मौत, जो बिना किसी आहट के चुपचाप चली आती थी? क्या सचमुच मौत थी वह या मौत से भी बढकर कुछ और?
- राजधानी में खूबसूरत लङकियों का एक के बाद एक अपहरण होने लगता है और फिर उनके मंगेतर या प्रेमी भी गायब होने लगते हैं, क्या तालमेल था दोनों तरह के अपहरण में?
- खूबसूरत जवानियों को तबाह करने का घिनौना और भयानक खेल। कौन था वह सफेदपोश भेङिया, जो मासूम युवक-युवतियों को जीते जी मौत भेंट देता था।
- भावनाओं की ब्लैकमेलिंग का अजीबोगरीब तरीका जिसे शातिर बदमाश की बुद्धि ही खोज सकती थी।
- सनसनी और रहस्य-रोमांच का जबरदस्त तूफान जो मन -मस्तिष्क को हिलाकर रख देता है।
    भारत की सर्वप्रथम पाॅकेट बुक्स हिंद पॉकेट बुक्स की प्रस्तुति कर्नल रंजीत का उपन्यास - खामोश, मौत आती है।

        उपन्यास का आरम्भ जितना अच्छा होता है उसके बाद यह उपन्यास इतना अच्छा रह नहीं पाता। कहीं- कहीं तो लगता है पता नहीं कहानी कहां जा रही है। उपन्यास को आवश्यक से ज़्यादा घूमाने के चक्कर में लेखक मूल कहानी से भटका सा लगता है। और इसी भटकाव के चक्कर में कहानी का आनंद खत्म हो जाता है।
      पाठक जहाँ प्रारंभ में शहर में हो रहे खूबसूरत लङकियों के अपहरण को जानने को  बेचैन है, तभी वहाँ मथुरादास के कत्ल का किस्सा आरम्भ हो जाता है। अभी यह किस्सा पूरा नहीं हो पाता की नकली नोटों की चर्चा चल निकलती है। और नकली नोटों का किस्सा पूरा सिरे नहीं चढता की शहर में कुछ युवाओं के अपहरण के घटना घटित हो जाती है। पाठक अभी इनसे से निपट नहीं पाता की उपन्यास खत्म भी हो जाता है।
    उपन्यास को अच्छा बनाया जा सकता था पर लेखक ज्यादा नाटकीय घटनाओं के चक्कर में उपन्यास की मूल कहानी के साथ न्याय नहीं कर पाया।
उपन्यास के अंत में जिसे अपराधी दिखाया गया वह भी कोई दमादार नहीं लगा।
   
        मनोरंजन के लिए इस उपन्यास को एक बार तो पढा जा सकता है।

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उपन्यास- खामोश, मौत आती है।
लेखक- कर्नल रंजीत
प्रकाशक- हिंद पॉकेट बुक्स
पृष्ठ-
मूल्य- 06(तात्कालिक)

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