प्रेम के विभिन्न रंगों का गुलदस्ता
रानी साहिबा- राम पुजारी
उपन्यास लेखक के बाद राम पुजारी जी ने कहानी लेखन में हाथ आज आजमाया है और इसमें वह सफल होते भी नजर आ रहे हैं। एक उपन्यास लेखक के लिए अपनी बात को कम शब्दों में कहना कुछ मुश्किल अवश्य होता होगा लेकिन एक सफल लेखक वही है जो कथ्य को उसी अनुरूप आकार दे जैसी कथा की मांग है।रानी साहिबा कथा संग्रह राम पुजारी जी की दस कहानियों को समेटे हुए है और सभी कहानियों की पृष्ठभूमि में प्यार की झलक स्पष्ट नजर आती है। सभी कहानियां लेखक के चरित्र की तरह है जिनमें बनावटीपन जरा भी नजर नहीं आता । 'रानी साहिबा' का प्रकाशन जनवरी 2024 में हुआ था और फरवरी में यह कथा संग्रह मेरे हाथ आया । इसकी पहली कहानी पढी जो अच्छी लगी । दूसरी कहानी पढने से पहले में अन्यत्र व्यस्त हो गया और कहानी पढने का समय न मिला जबकि राम पुजारी का निरंतर आग्रह था कि आप इसकी समीक्षा करें। पर कभी-कभी चाहकर भी समय नहीं निकल पाता और फिर 'रानी साहिबा' मेरी नजरों से यूं गायब हुये की ढूढे भी न मिले । इधर-उधर सब जगह तलाश किया पर....हाये री किस्मत...किसकी ?
फरवरी 2025 भी आया दिल्ली विश्व पुस्तक मेले में राम पुजारी जी से मुलाकात भी हुयी, रानी साहिबा पर चर्चा भी चली और मेरा आश्वासन भी चला की शीघ्र ही रानी साहिबा को पढा जायेगा।
दिन, सप्ताह और महीने बदले पर रानी साहिबा नजर न आये। और एक दिन अचानक 'रानी साहिबा' पर नजर पड़ी और मन प्रसन्न हो उठा । पर हाये री किस्मत... रानी साहिबा मिल कर ठीक वैसे ही निकल गये जैसे कहानी संग्रह की 'रानी साहिबा' दो दिन मिलकत फिर गायब हो जाती है। इस बार तो सेठ की तरह खूब तलाश पर... असफलता फिर भी सफलता में न बदली ।
इधर राम पुजारी जी भी ठीक 'सोनम' की तरह न जाने किस बात पर नाराज से हो गये। न कभी फोन न कभी मैसेज । इधर हम 'काले साये' की तरह तलाश रहे थे पर मिला कुछ नहीं ।
जब थक हार कर बैठ गये तब....
एक दिन बेटी अवनीत कौर ने ऊपर रखे एक कार्टून को नीचे उतारने की जिद्द की । उसे लगा उस कार्टून में खिलौने हैं। पर मुझे पता था उसमें छोटा-मोटा इलैक्ट्रॉनिक सामान है। पर जिद्द बच्चों की, आखिर पूरी हुयी।
कार्टून नीचे उतरा तो उसमें खिलौने नो नहीं थे पर दो चार 'मनोहर कहानिया', चार वेदप्रकाश शर्मा जी के उपन्यास और एक दो और किताबों के साथ रानी साहिबा आराम फरमा रही थी।
अब 2025 खत्म हो रहा है।
जनवरी 2024 में प्रकाशित 'रानी साहिबा' को दिसम्बर 2025 में पढकर सम्पन्न किया । और यह 'svnlibrary' ब्लॉग पर मेरे द्वारा समीक्षित 700 वीं रचना है। हालांकि किताबें पढने की संख्या तो अब संख्या से बाहर है, पर जिन पर लिखा उस उस क्रम में यह दिसंबर 2025 की अंतिम रचना है और ब्लॉग की 700 वीं रचना है ।
रानी साहिबा की प्रथम कहानी है 'ख्बावों की कश्ती' जो एक विधुर व्यक्ति घनश्याम की के अंश का प्रकट करती है। विधुर घनश्याम के घर जब नयी नौकरानी रोशनी आती है तो घनश्याम के सूने जीवन में भी एक रोशनी आती है।
यह कहानी पढते वक्त मुझे सूर्यकांत त्रिपाठी निराला की एक पंक्ति याद आ गयी। 'आकाश बदल कर आज बना मही ।'
इन्हीं पंक्तियों को एक अलग संदर्भ में सार्थक करती है यह कहानी । इसी कहानी से मिलती एक और रचना है 'प्यास की प्यास'। दोनों रचनाओं में दोनों मुख्य पात्र प्यार की तलाश में हैं।
प्यार वहीं है जहां मन को शांति है। और मन को शांति वहीं है जहां मन को कोई अपने जैसा लगता है। दोनों कहानियों में लेखक महोदय ने बहुत ही सुंदर ढंग से प्यार की परिभाषा गढी है।
संग्रह की द्वितीय कहानी है 'लोभ, मोह और माया ' यह इस संग्रह की सबसे अलग कहानी है। एक गरीब और बेबस परिवार में शराबी मुखिया कैसे अपने परिवार को आमदनी का माध्यम बनाता है। आदमी जब लोभ और मोह में गिरता है तो वह गिरता ही चला जाता है। उसके कदम लालच की राह से वापस नहीं मुड़ते।
यह कहानी एक वर्ग विशेष के जीवन का कटु यथार्थ प्रस्तुत करती है। मनुष्य की मजबरियां उसे ना चाहते हुये भी ऐसे रास्ते पर चलने के लिए मजबूर कर देती हैं जिसक परिणाम दुखद ही होता है।
'काला चोर' कहानी एक बुरे व्यक्ति के अच्छे आचरण की कहानी तो है ही है वहीं यह कहानी समाज के संभ्रांत कहे जाने वाले धन के लालची लोगों का परिचय भी करवाती है।
इस संग्रह की चौथी कहानी 'सिक्के बदल गये' उन लोगों को बेनकाब करती है जो समय के साथ बदल जाते हैं। यह कहानी है के एक गुरू के दो शिष्यों की । एक शिष्य अपनी सफलता के पश्चात अपने गुरु और मित्र को कभी विस्मृत नहीं करता और वहीं दूसरा शिष्य अपनी सफलता के मद में चूर अपने गुरु और मित्र तक को भूल जाता है।
यह कहानी मात्र कागज के पन्नों पर उतरी एक काल्पनिक कथा नहीं है। यह तो राम पुजारी की दृष्टि से गुजरी एक सत्य घटना है जिसे उन्होंने शब्दों और कल्पना के रंगों से सुसज्जित कर पाठकों तक पहुंचाया है।
पांचवीं कहानी के विषय में योगेश मित्तल जी के विचार पढें जो उन्होंने इस कहानी संग्रह की भूमिका में लिखें हैं।
कथा संग्रह की सबसे 'बोल्ड' और अनूठे विषय की कहानी है-'अधूरी हसरतों की सिलवटें।' यह कहानी जहाँ एक जवान के अपनी पत्नी से अटूट और असीम प्यार को दर्शाती है, वहीं प्यार की तलाश में भटकते प्रोफेसर के चरित्र की ऊंचाइयों का पैमाना भी प्रस्तुत करती है। लेखक राम पुजारी ने आखिरी एक लाइन में प्रोफेसर को बिस्तर में सिलवटें पैदा करने का जो भाव प्रस्तुत किया है, वह लेखक द्वारा बिना कुछ कहे, सब कुछ समझा देने के अनूठे शब्द सामर्थ्य का उत्कृष्ट उदाहरण है। ऐसा चित्रण बिना अश्लीलता के हरेक के लिए बहुत आसान नहीं होता।
दस कहानी और कुल पृष्ठ संख्या 168 है। सात कहानियां 84 पृष्ठों तक सिमट गयी हैं जिसमें 14 पृष्ठ तो परिचय, भूमिका के शामिल हैं। वहीं शेष तीन कहानियां 'ये प्रेम अति विचित्र', 'राम की प्रेमिका' और रानी साहिबा' आदि 83 पृष्ठों में है। यह तीनों कहानियों रोचक और विस्तृत तो है ही साथ में प्यार के विभिन्न रूपों को भी प्रस्तुत करती हैं।
'ये प्रेम अति विचित्र' कहानी युवा हृदयों की कहानी है । जिनके प्यार पर पहरे हैं, बंदिशे है और प्रेमी हृदयों मिलन के अति उत्कंठा । संघर्षों से घिरा हुआ यह प्यार न जाने कितने ताने, मार और अपमान सहने के पश्चात परवान चढता है।
जैसा की कहानी का शीर्षक है वैसा ही इसका अंत भी । पाठक भी इस कहानी के अंत पर चुप सा है। क्या लेखक ने जो कहा पाठक वही समझ रहा है या जो पाठक समझ रहा है वही अंत है या फिर कहानी का कोई अंत है ही नहीं । एक प्रश्न चिह्न इस कहानी के साथ लगा है, ठीक वैसा ही प्रश्न चिह्न जैसा कहानी की नायिका ने छोड़ा है ।
लेखक राम पुजारी जी कोमल और सहृदय व्यक्तित्व के स्वामी हैं। इसलिए वह 'गुनाहों के देवता' के देवता का समापन बदलने का व्याकुल हो उठते हैं । यही व्याकुलता उनकी कहानियों में है, यही प्रेम उनकी कहानियों में है। वह उपन्यास 'दामिनी' और 'लव जिहाद' में व्यवस्था बदलने को व्याकुल दिखाई देते हैं।
प्रेम में विदग्ध हृदय जब जलता है तो पाठक भी साथ में जलता है। ठीक 'राम की प्रेमिका' के दो पात्र सुबोध और अतुल की तरह । कहानी विस्तृत है उतना विस्तृत राम का दर्द भी है।
क्या यह भी 'सिक्के बदल गये' की तरह एक सत्य घटना है या फिर मात्र काल्पनिक रचना । यह कहना तो संभव नहीं है पर कथा पाठक को सम्मोहित करने में सक्षम अवश्य है। कहानी का अंत पाठक की आंखें नम कर देता है। यही लेखकी सफलता है।
इस संग्रह की अंतिम और दसवीं कहानी है 'रानी साहिबा' । एक युवती के जीवन में आये विभिन्न उतार -चढाव की यह कहानी रेखाचित्र के ज्यादा नजदीक होते हुये भी अतिशय विस्तार के मुख्य पात्र का ज्यादा विस्तार करती नजर नहीं आती।
'रानी साहिबा' की रानी जीवन के विभिन्न रंगों को देखती है और साथ में पाठक भी । कहानी चटक रंगों के साथ मनोरंजन से परिपूर्ण है।
राम पुजारी जी का कथा संग्रह 'रानी साहिबा' जिसे मैं 'प्रेम कहानियों' का संग्रह कहना पसंद करता हूँ। इस संग्रह की अधिकांश कहानियां प्रेम कहानियाँ है और प्रेम के अलग-अलग पक्षों का अच्छा वर्णन करती हैं।
राम पुजारी जी को एक अच्छे कहानी संग्रह के लिए हार्दिक धन्यवाद।
पुस्तक- रानी साहिबा (कहानी संग्रह)
लेखक- राम पुजारी
पृष्ठ- 168
प्रकाशक- नीलम जासूस कार्यालय दिल्ली
मूल्य- 200₹
राम पुजारी जी की अन्य रचनाओं की समीक्षाअमेजन लिंक - रानी साहिबा

Good Book- Good Review,
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ReplyDeleteपठनीय कहानियों का संग्रह है यह। मैंने पढ़ तो लिया था लेकिन उस समय व्यक्तिगत कामों में ऐसा उलझ गया कि लिखने का समय नहीं लग पाया। अब दोबारा पढ़ना पड़ेगा. वापस लिखने के लिए। पुस्तक के प्रति उत्सुकता जगाता आलेख।
ReplyDeleteमन मरा माया मरी मरि मरि गया शरीर ।
ReplyDeleteआशा तृष्णा न मरी कह गए दास कबीर।।
राम पुजारी जी की कहानियां इसी भावना के इर्द-गिर्द घूमती हैं
राम पुजारी जी के साथ साथ आपका भी प्रयास सराहनीय है।
Acha kahani sangreh
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