Monday, 29 December 2025

699. उसने खून कर दिया- एच. इकबाल

 बंद कमरे में खून

उसने खून कर दिया- एच. इकबाल

लोकप्रिय उपन्यास साहित्य का एक समय वह था जब उपन्यास मासिक पत्रिकाओं में प्रकाशित होते थे ।‌ इनमें लगभग 120 पृष्ठ के उपन्यास होते थे और कहानी अधिकांश में मर्डर मिस्ट्री थी।
  एच. इकबाल अपने समय के प्रसिद्ध उर्दू उपन्यासकार रहे हैं और इनके उपन्यास हिंदी में अनुदित होते रहे हैं। प्रस्तुत उपन्यास एच. इकबाल साहब का मर्डर मिस्ट्री उपन्यास है।
कहानी है एक ऐसे व्यक्ति की जिसे एक हीरे के मार दिया जाता है और पुलिस का मानना है यह आत्महत्या है जबकि जासूसी कर्नल विनोद ने कहा- उसने खून कर दिया ।
अब यह खून किसने किया, यह हमें उपन्यास पढकर ही पता चलेगा।


            सड़क पर फर्राटे भरती लिंकन, ट्रैफिक के बीच से किसी नागिन की तरह लहराती चली जा रही थी। आज ट्रैफिक भी कुछ ज्यादा था । कर्नल विनोद की बार-बार घड़ी पर उठती नजर बता रही थी कि वह बड़ी जल्दी में है और शायद इसी कारण लिंकन इतनी गति से दौड़ रही है।
पन्द्रह मिनट बाद लिंकन एक कोठी के शानदार फाटक में प्रविष्ट हुई और पोर्टिको में जाकर रुक गई ।


          दालान में एक चालीस पैतालीस वर्ष का वृद्ध खड़ा था। काली शेरवानी और चूड़ीदार पाजामा पहने। दोनों को अपनी तरफ आता देख वो जरा आगे बढ़ आया और सभ्यता से जोश के साथ बोला ।
'हैलो कर्नल ।' मुस्कराया भी था वह -'मैं स्वप्न तो नहीं देख रहा कि कर्नल विनोद और मेरा ये झोंपड़ा।' इतना ही कह कर रुक गया वह ।
विनोद बस मुस्करा दिया। इसके बाद हमीद की ओर इशारा कर कहा
। (उपन्यास का प्रथम पृष्ठ, उसने खून कर दिया- एच. इकबाल)
     नमस्ते पाठक मित्रो,
यह था एच. इकबाल साहब के उपन्यास 'उसने खून कर दिया' का प्रथम पृष्ठ । अब हम उपन्यास के विषय में कुछ और चर्चा कर लेते हैं।
    डाक्टर सगीर, शाबीर अहमद और तनवीर तीन भाई थे। तीनों अलग-अलग रहते थे और जिनमें सतवीर अविवाहित था । सगीर साहब डाक्टर थे और शाबीर अहमद कंट्रक्शन का काम करते थे। तीनों भाई धन दौलत वाले थे।
     सतवीर के पास एक हीरा था जिसे इस्‍तेमाल तो कम ही करते थे। और एक दिन सतवीर की लाश उसके कमरे में मिली और कमरा अंदर से बंद था ।
लाश एक कमरे में मिली थी पुलिस वाले खुद ही दरवाजा तोडकर अन्दर घुसे थे । वहा लाश के पास कोई भी नही था । अब वो क्या कर सकते थे । ये बात उनके बूते की नहीं थी कि कातिल के फरार का रास्ता खोज सकत इसलिए बेचारों ने अपनी जान छुड़ाने के लिए कत्ल को आत्महत्या बता दिया ।
(उपन्यास अंश)
       अब पुलिस भी ऐसी स्थिति भी क्या कर सकती थी। द कमरे में खून को आत्महत्या ही कथा जा सकता है। ऐसे समय में खूफिया विभाग के कर्नल विनोद और कैप्टन हमीद ने प्रवेश करते हैं और यह घोषणा करते हैं - उसने खून कर दिया 
   लेकिन प्रश्न यह खड़ा होता है कि आखिर खून किसने कर दिया । और इसी प्रश्न का उत्तर ढूंढने के लिए विनोद-हमीद सक्रीय होते हैं।
    कहानी का आरम्भ इस बात से होता है की शहर में सतवीर के हीरे की नीलामी होने वाली है। विनोद का मानना है कि उस दिन हत्यारा तनवीर की हत्या करने में तो सफल हो गया लेकिन उसे वह हीरा नहीं मिला और आज वह हत्यारा हीरे के लिए नीलामी वाली जगह अवश्य आयेगा। और यहीं पर विनोद ने अपना जाल बिछाया था।
खैर, यह तो उपन्यास का प्रथम घटनाक्रम था और कहानी फिर यहीं से आगे बढती है और हमें पता चलता है की हीरा किसका था और हत्या किसकी हुयी ।
  कर्नल विनोद और हमीद बहुत कोशिश के पश्चात न तो नीलामी वाले दिन हमीद को धमकी देने वाले व्यक्ति का पता लगा सके और न हीं तनवीर के हत्यारे का । शक बहुत लोगों पर था पर शक यकीन में नहीं बदला, कोई ठोस सबूत नहीं मिले थे।
स्वयं विनोद को भी कहना पड़ा था-
ये केस तो दिमाग की चूलें हिला देने वाला था। सामने से तो हर आदमी कातिल नजर आता था मगर जरा गहरी नजर डालो तो सबके सब निर्दोष दिखाई पड़ते थे ।(उपन्यास अंश)
    जब सब निर्दोष दिखाई दे रहे हैं तो खून किसने किया ? यही कहानी का मूल बिंदू है। और एक दिन विनोद -हमीद एक जाल बिछाते हैं और उस जाल में जा फंसता है असली अपराधी ।
तो यही थी एक छोटे से उपन्यास की छोटी सी समीक्षा । उपन्यास की कहानी तात्कालिक समय के अनुसार अच्छी है। कहानी के केन्द्र में हीरा है। विनोद हमीद भी हत्या की बजाय हीरे को केन्द्र में रखकर कार्यवाही करते हैं। इसलिए वह हीरे की नीलामी , उसकी सुरक्षा आदि के लिए उपाय करते नजर आते हैं।
   उपन्यास में बहुत ही घटनाओं और प्रश्नों को कहीं स्पष्ट नहीं किया गया है सब पाठक के विवेक पर है वह कैसे समझता है। इसका एक कारण यह भी है की उस समय उपन्यास तय पृष्ठों में ही लिखा जाता था।
  निष्कर्ष में कह सकते हैं एच. इकबाल साहब का उपन्यास   'उसने खून कर दिया' एक मर्डर मिस्ट्री रचना है जिसे एक बार पढा जा सकता है। कहानी रोचक हपते हुये भी अपनी अस्पष्टता के चलते ज्यादा प्रभावित नहीं कर पाती। उपन्यास में 'बंद कमरे में खून' एक रोचक ट्विस्ट नजत आया था जिसे तुरंत ही कर्नल विनोद ने स्पष्ट कर दिया था।

उपन्यास- उसने खून कर दिया
लेखक-    एच. इकबाल
सन्-        1967
पृष्ठ -       107+
पत्रिका-   अनोखी दुनिया, मासिक
प्रकाशक- रूबी पब्लिकेशन, दिल्ली

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