Sunday, 26 October 2025

नृशंसक - अनिल सलूजा

मुम्बई की किन्नर से बलराज गोगिया की टक्कर
 नृशंसक - अनिल सलूजा
बलराज गोगिया सीरीज

अपने यार की टांग लगवाने के लिए बलराज गोगिया साठ लाख रुपये और सुनीता- राघव के साथ जा पहुंचा मुम्बई । मगर यहाँ हंगामा पहले से ही उसका इंतजार कर रहा था ।

"डिंग...यं...ग.....।" कालबैल बजी।
एक ईजी चेयर पर बैठे हुकूमत शाह ने किचन की तरफ देखते हुए आवाज लगाई-
"ओ वेखीं ओये (ओ देखना ओये) गुड्डू-कौन आया वे।"
कहते हुए उसने अपने बगल में रखी बैसाखी उठाकर अपनी कटी हुई और साबुत टांग के मध्य रख ली।
तभी किचन में से गुड्डू निकला।
गुड्डू करीब तेईस-चौबीस साल का व्यक्ति था। मगर वह न आदमियों में था-न औरतों में।
चेहरे से ही वह छक्का नजर आ रहा था। ऊपर से उसने जनाना कपड़े पहन रखे थे।
सिर को हल्का सा झटका दे-अपनी चाल में लोच लाते हुए वह अपनी बाईं बांह को कोहनी से मोड़कर हाथ को लटकाये हुकूमत शाह के पास से निकला और दरवाजे की तरफ बढ़ गया।
मेन डोर खोलकर वह कम्पाउंड में आया और ड्राईव-वे पर खड़ी सफेद स्कोर्पियो के पास से होते हुए मेन गेट के पास पहुँचा और कुण्डा खोलकर गेट को इतना ही खोला कि वह अपनी गर्दन बाहर निकाल सके।
सामने बलराज गोगिया राघव को उठाये खड़ा था। उसके बराबर में सुनीता खड़ी थी जिसने कंधे पर एयर बैग उठा रखा था। और वैसा ही एक बैग बलराज गोगिया ने भी उठा रखा था। तीनों के मत्यों पर माता की लाल चुनरी बंधी हुई थी। (प्रथम पृष्ठ)

नमस्ते पाठक मित्रो,
एक बार हम फिर प्रस्तुत है लेकर अनिल सलूजा जी के साठ लाख शृंखला का उपन्यास 'नृशंसक' । नृशंसक शब्द का अर्थ होता है निर्दयी/ बेरहम इत्यादि । और वो किन्नर थी- मगर इस कदर बेरहम थी कि बेरहमी भी उससे पनाह मांगती थी और जब उसका टकराव बलराज गोगिया से हुआ....
   हमने साठ लाख  शृंखला के पिछले उपन्यास 'राघव की वापसी' में पढा था कि 'हारा हुआ जुआरी' केस में अच्छी रकम एकत्र कर बलराज गोगिया जम्मू पहुंचता और वहां के डाॅन को खत्म करता है । यह कहानी उपन्यास 'राघव की वापसी' में पढ सकते हैं। जम्मू से माता के दर्शनार्थ जाते और वहां से सीधे पहुंचते हैं मुम्बई हुकूमत शाह के पास । हुकूमत शाह, सुनीता और राघव की टांग कटने के विषय में उपन्यास त्रयी 'काला खून', 'मौत की बाहों में', और 'पैट्रोल बम' में पढ सकते हैं।

अब आगे की कहानी..... नृशंसक - अनिल सलूजा

माता के दर्शन करने के पश्चात बलराज गोगिया अपने साथी सुनीता और राघव के साथ मुम्बई में हुकूमत शाह के दरवाजे पर दस्तक देता है।
हुकूमत शाह की कभी मुम्बई में हुकूमत थी । आज चाहे उसकी हुकूमत नहीं पर उसका सिक्का आज भी चलता है। अपने तीन पुत्र, पुत्री, दामाद और स्वयं के एक हाथ- एक पैर खो कर भी हुकूमत शाह जिंदादिल है। वह अपने पुत्र वीरुशाह और दो साथी राजाराम और जयपाल के साथ एक अच्छा रेस्टोरेंट चला रहा है और शांति की जिंदगी जीता है।
    मुम्बई के डाक्टर कुलकर्णी ने राघव की कटी टांग साठ लाख में अमेरिका के डाक्टर से लगवाने की बात कही थी और अब बलराज गोगिया साठ लाख की रकम के साथ मुम्बई में उपस्थित था ।
       गुड्डू एक किन्नर था । पर पहले ऐसा न था वह तो किन्नर शबाना के आदमियों ने उसे जबरन किन्नर बना दिया । और जान बचाकर भागा गुड्डू हुकूमत शाह के यहाँ शरण पाता है।
    जब बलराज गोगिया मुम्बई पहुंचा तो छह माह से विदेश गयी किन्नर शबाना भी वापस लौट आती है। -थी तो वो नृशंसक । रहम तो उसमें था ही नहीं-वो तो. बेरहमी की भी हदों को पार कर जाने वाली किन्नर थी  ।(115)
वह आते ही अपने आदमियों को गुड्डू को खोजने में सक्रिय करती है।
    वहीं एक कहानी और चलती है वह है पुलिस ऑफिसर राजकुमार राठौर और एक सेठ के मध्य । दोनो हरामी हैं और दोनों एक ही लड़की को जबरदस्ती पाना चाहते हैं। सेठ इस काम के लिए किन्नर शबाना की मदद लेता है क्योंकि शबाना का मुख्य कार्य जिस्मफरोशी करवाना और बेचना है । शबाना सेठ का पक्ष लेती है
यहीं से पुलिस ऑफिसर राजकुमार और शबाना की अनबन आरम्भ हो जाती है। 
उसकी यह मजाल?" वह गुर्राया- "हरामजादी यह भी भूल गई कि पुलिस के आशीर्वाद के बिना वह कुछ भी नहीं? मैंने हरामजादी की इज्जत रखी और मुन्ना के कहने पर मीना को उठाने का ख्याल यह सोच कर टाल दिया कि चलो-दो दिन बाद सही-आयेगी तो वो मेरी झोली में ही-मगर वो हरामजादी तो पैसे के आगे झुक गई। यह मेरा ही नहीं पूरे महकमें का अपमान माना जायेगा-और राठौर इस अपमान को कभी बर्दाश्त नहीं करेगा।"
उसके शब्द सुनकर गब्बन के चेहरे पर घबराहट फैल गई। "व....यह अ....आप क्या कह रहे हैं सर।" वह हड़बड़ाते हुए बोला।
"म....माफी चाहूंगा सर.... अ.... आप शबाना की ताकत को. नहीं जानते । अ.... अगर आपने उससे लड़ाई की तो अ....आप अकेले ही उससे लड़ेंगे। कोई बड़े से बड़ा अफसर भी आपको अपने साथ खड़ा नहीं मिलेगा। शबाना आज की तारीख में मुम्बई की सबसे बड़ी ताकत है।"
(50
    गब्बर बहुत कोशिश करता है राजकुमार राठौर को समझाने की क्योंकि शबाना के उच्च संपर्क हैं, वह पुलिस के उच्चाधिकारियों से लेकर नेताओं तक सांठगांठ रखती है, सबको तन-धन से खुश रखती है। लेकिन राजकुमार राठौर के लिए शबाना का निर्णय अत्यंत अपमानजनक था तभी तो वह अपने अपमान को विभाग तक मान लेता है और गब्बन से कहता है- बहुत जिद्दी हूँ मैं-बहुत ही जिद्दी। अपनी जिद पूरी करने के लिये मैं किसी भी हद तक जाने को तैयार हो जाता हूँ। तब मैं अंजाम की परवाह नहीं करता-जो करना होता है.... कर डालता हूँ।"(51)
    कहानी का तीसरा पक्ष संबंधित है इंस्पेक्टर शिंदे से । इंस्पेक्टर शिंदे भी बलराज गोगिया का प्रशंसक है और पिछले केस में शिंदे ने ही राघव की टांग में गोली मारी थी। शिंदे की कर्तव्यपरायणता का प्रशंसक बलराज गोगिया भी है । शिंदे अपनी ईमानदारी के चलते शबाना और राजकुमार राठौर वाले केस में मोहरा बन जाता है।
  इधर बलराज गोगिया की अनुपस्थिति में शबाना के आदमी हुकूमत शाह को जल्लील कर उससे गुड्डू को ले जाते हैं।
शबाना की नजर में हुकूमत शाह की हुकूमत खत्म हो चुकी है और उसे निशाना बनाना आसान है, लेकिन हुकूमत शाह की बात भी सुनिये- "शेर अपाहिज हो जाये तो घास खाना शुरू नहीं कर देता।" वह फुफकारा- "वो तब भी मांस ही खाता है। है। हुकूमत शाह पहले भी शेर था और अब भी शेर है-और मरते वक्त भी शेर ही रहेगा। मेरी पनाह में आने वाले के लिये मैं अपना सब कुछ गंवा सकता हूँ-मगर शरणार्थी को आंच भी नहीं आने दूंगा मैं। (90)
इतना कुछ होने के बाद भी हुकूमत शाह बलराज गोगिया को इसलिए कुछ नहीं बताता कहीं उसका ध्यान राघव के आप्रेशन से न भटक जाये।
    अब शिंदे, राजकुमार राठौर और हुकूमत शाह को एक ऐसे आदमी की तलाश थी जो उनके बदले को शबाना से ले सके।
   "आदमी को जब कोई भी रास्ता नजर नहीं आता तो वह ऐसे मसीहा को ढूंढने लगता है जो उसे मुश्किलों से निजात दिलाये । (135)
   और मुम्बई में इस वक्त एक ऐसा मसीहा उपस्थित था और वह था बलराज गोगिया । और जब तीनों तरफ से बलराज गोगिया को शबाना के कारनामे पता चलते हैं और तीनों तरफ उस से मदद मांगी जाती है तो वह नृशंसक शबाना के खिलाफ मैदान में उतरता है। और मुम्बई में चलता है बलराज गोगिया और किन्नर शबाना के मध्य खूनी खेल । जहां एक तरफ बलराज गोगिया के लेकिथ मात्र एक इंस्पेक्टर शिंदे है वहीं किन्नर शबाना के साथ पुलिस, नेता और बदमाश लोग हैं। 
शबाना का चरित्र देखें-   
"बड़े-बड़े लीडर-बड़े-बड़े सेठ उसकी चौखट पर माथा टेकते हैं। कहने को तो यहाँ लोकतन्त्र है-लेकिन यहाँ हुकूमत शबाना की चलती है। बस यूं समझ लो कि उसके आगे पुलिस भी बेबस हो जाती है।"(106)
        लेकिन बलराज गोगिया को पुलिस से कोई लेना देना न था वह स्वयं जुर्म की दुनिया का महारथी था जो इस दलदल से दूर रहना चाहता था पर किस्मत हर बार उसे जुर्म की दलदल में खींच लाती थी । बलराज गोगिया के लिए शबाना जैसी नृशंसक किन्नर से टकराना कोई बड़ी बात न थी वह तो दिल्ली के बड़े- बड़े डाॅन को खत्म कर चुका था और बलराज गोगिया ने भी नृशंसक किन्नर शबाना को चेतावनी दी-तू तो वो हीजड़ी है जिसने दूसरों का खून बहा कर दौलत इकट्ठी की है। हमेशा दूसरों को दुःख दिया है। तेरी बद्दुआ किसे लगेगी? तू तो खुद एक बदुआ है।" (...)
    इस घटनाक्रम में हमें राघव को नहीं भूलना चाहिए क्योंकि बलराज गोगिया राघव के लिए ही मुम्बई आया था और वह डॉक्टर कुलकर्णी के हास्पिटल में एक अमेरिकी डॉक्टर से इलाजा करवा रहा है और गजब तो यह है घायल राजकुमार राठौर भी उसी हॉस्पिटल में भर्ती है। और घायल राजकुमार के पास पुलिसकर्मियों का आना-जाना तो स्वाभाविक ही था ।
  चलों सारे घटनाक्रम में यह अच्छा हुआ की राघव की टग जुड़ गयी और वह अपने साथी बलराज और सुनीता के साथ एक नये सफर पर निकल गया ।
नये सफर के विषय में जानने के लिए पढें- मास्टर माइण्ड
उपन्यास में वैसे तो ज्यादा महत्वपूर्ण संवाद नहीं है फिर भी एक जगह वर्तमान भौतिक युग में प्यार पर लेखक ने विचारणीय बात लिखी है-
"क्या हो गया है लोगों को!" वह मन ही मन बड़बड़ाई-"प्यार का कैसा रूप हो गया है अब ! पहले प्यार आँखों से हो कर दिल में बसता था- मगर अब- अब तो प्यार वहाँ से शुरू होता है-जहाँ से शादी शुरू होती है। प्यार तो एक मजाक बन कर रह गया है आज कल । इधर आँख लड़ी-उधर कपड़े उतरे और प्यार शुरू।"
चरित्र चित्रण-
बलराज गोगिया:- उपन्यास का मुख्य पात्र बलराज गोगिया है जो मुम्बई अपने मित्र राघव का इलाज करवाने आया है और यहां की नृशंसक किन्नर शबाना से उसकी टक्कर होती है।
उपन्यास में राघव और सुनीता का किरदार गौण है।
किन्नर शबाना:- यह एक बदमाश पात्र है जो नशे का, जिस्मफरोशी और निम्नस्तर के कार्य करती है।
     शबाना के पास गु़ण्डों की एक सेना है औरवह उन्हीं में दम उछलती है। वह स्वयं भी ताकतवर शरीर की मालिक है और अपने मातहतों को कार्य पर खुश होने पर अपने शरीर इस्तेमाल का लालच देती है।
   वह अपने विरोधी का लिंग तक काट देती है। जैसे भगवान पावते का ।
  किन्नर शबाना प्रत्येक बात पर 'क्या बोली मैं?' कहती है।
हुकूमत शाह:- हुकूमत शाह कभी मुम्बई का डाॅन था और एक अन्य डाॅन थापर से चलते संघर्ष में वह अपना एक हाथ-पैर और परिवार खो चुका है। वहां उसकी मदद बलराज गोगिया और इंस्पेक्टर शिंदे करते हैं। (उपन्यास 'काला खून', 'मौत की बाहों में', और 'पैट्रोल बम)
  प्रस्तुत उपन्यास में गुड्डू नामक एक शख्स के चलते शबाना और हुकूमत शाह की टक्कर होती है फिर बलराज गोगिया उसकी मदद के लिए आगे आता है।
राघव और हुकूमत शाह का संवाद देखे और जाने हुकूमत शाह का चरित्र-
"बाहर जा के पूछ पुतरा कि हुकूमत शाह कैसा गुण्डा है। तैनू आपे ही पता चल जायेगा कि मैं कैसी गुण्डागर्दी का खा रहा हूँ। अण्डरवर्ल्ड में मेरा पुराना दबदबा है। उसी नाम की बदौलत खा रहा हूँ। मैंने किसी गरीब को नहीं सताया-किसी से नाजायज नहीं की-कोई भी जरूरतमंद यहाँ आता है तो खाली नहीं जाता। लोगों के दिलों में मेरा डर नहीं बल्कि इज्जत है। समझा...।"
राघव हौले से मुस्कुरा पड़ा- "लगता है आप पर भी बलराज का रंग चढ़ गया है।"

इंस्पेक्टर शिंदे:- हुकूमत शाह के अलावा इंस्पेक्टर शिंदे वह व्यक्ति है जो बलराज गोगिया से किन्नर शबामा के विरुद्ध मदद मांगता है।
"जिस दिन इंस्पैक्टर शिन्दे ने यह वर्दी पहनी थी-उसी दिन मैंने इस वर्दी को अपना कफन मान लिया था। मौत को तो हर वक्त अपने जिस्म पर डाल कर रहता हूँ-फिर उससे डरूंगा क्यों? डरने वाले आप जैसे आफीसर होते हैं-जो चांदी के चंद सिक्कों की खनक सुन कर ही उस कसम को भूल जाते हैं जो वर्दी पहनते वक्त खाते हैं। मगर शिन्दे की गर्जना सिक्कों की उस खनक से कई गुणा तेज है सर ।"(111)
ACP राजकुमार राठौर:- यह स्वयं एक भ्रष्ट और नीच व्यक्ति है लेकिन अहम के चलते इसकी टक्कर शबाना से होती है और यह भी बलराज गोगिया से मदद मांगता है।
उपन्यास के पात्र-
बलराज गोगिया- उपन्यास नायक
राघव- बलराज गोगिया का मित्र
सुनीता- बलराज गोगिया की पत्नी
हुकुमत शाह - मुम्बई का भूतपूर्व डाॅन
वीरुशाह - हुकूमत शाह का पुत्र
राजाराम - हुकूमत शाह का सहयोगी
जयपाल - हुकूमत शाह का सहयोगी
गुड्डू     - हुकूमत शाह का शरणार्थी
इंस्पेक्टर शिंदे - इंस्पेक्टर, बलराज गोगिया का मित्र
राजकुमार राठौड़- ACP
म्हात्रे -      DCP
शबाना -   किन्नर, उपन्यास का मुख्य खलपात्र
लल्लन, पुत्तन, कलवा, गोरिया - शबाना के आदमी
मीना-    एक पात्र
जानकी- मीना की माँ
मीना की सहेली
सहेली का मित्र
भगवान पावते- गुड्डू का बाप
कुलकर्णी- डाक्टर
शौकत- शरणदाता     
प्रस्तुत उपन्यास 'नृशंसक' एक बेहरम किन्नर से बलराज गोगिया की खूनी टक्कर की दास्तान है। उपन्यास रोचक और पठनीय है।
उपन्यास- नृशंसक
लेखक-   अनिल सलूजा
पृष्ठ-      
प्रकाशक- रवि पॉकेट बुक्स मेरठ

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फंदा ।। बारूद की आंधी ।। मुझे मौत चाहिए ।। राघव की वापसी ।। मास्टर माइंड ।।
अन्य- कृष्ण बना कंस ।। आदमखोर


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