मोम का जहर- कुमार कश्यप
Crime fiction क्षेत्र में जासूसी उपन्यास लेखन में कुमार कश्यप नाम भी अग्रणी पंक्ति में रहा है। इनके अधिकांश उपन्यास जासूसी वर्ग की करामात पर आधारित होते थे, जिनमें कथानक कम और एक्शन अधिक होता था ।
प्रस्तुत उपन्यास 'मोम का जहर' भी जासूस मण्डली की हास्य, एक्शन, रोमांस पर ही आधारित है ।
इस उपन्यास के विषय में बात कहां से आरम्भ करें कुछ समझ में नहीं आ रहा। जहां से उपन्यास आरम्भ होता हैं वहां से, यां फिर जहाँ से कथानक आरम्भ होता है वहाँ से या फिर इस कहानी के प्रथम परिच्छेद से ।
चलो, हम पहले इस उपन्यास का कथानक ही बता देते हैं बाकी बातें बाद में।
एक युवा विद्रोही वैज्ञानिक है शंकर अली जो 'एंजिल टापू' पर रहता है। वही उसकी दुनिया है। इस टापू की आबादी बहुत कम है और अधिकांश यहाँ के लोग वैज्ञानिक ही हैं। कभी इस विरान टापू को शंकर अली ने ही आबाद किया था। लेकिन शंकर अली के दुश्मन उसकी प्रगति से अप्रसन्न हैं।
और एक दिन 'एंजिल द्वीप' का पानी जहर बनना आरम्भ हो जाता है और फिर एक-एक वहां के निवासी मरने लग जाते हैं। बहुत कोशिश के बाद भी शंकर अली इस समस्या का समाधान नहीं कर पाता और न ही अपने मित्रों (उपन्यास के जासूस) की कोई सहायता लेना चाहता है। लेकिन जब फादर विलियम कृष्ण (यह भी एक प्रसिद्ध पात्र है) को इस बात की जानकारी मिलती है तो वह जासूस वर्ग का आह्वान करता है और फिर जासूस वर्ग जा पहुंचता है एंजिल द्वीप ।
फादर विलियम कृष्ण के नेतृत्व में सब मिलकर इस समस्या का कारण ढूंढते हैं और समस्या का हल करते हैं, मुख्य खल पात्र को खत्म कर के।
यह तो था इस उपन्यास का कथानक, आपको पढकर लगेगा की इस उपन्यास में एंजिल द्वीप मुख्य होगा, जी नहीं । इस उपन्यास का 75% भाग अन्य घटनाओं से ही भरा हुआ है जिसका उपन्यास के मूल कथानक से किसी प्रकार का कोई लेना देना नहीं है। (अगर कोई संबंध निकल भी जाये तो उसे मात्र संयोग मानें।)
उपन्यास का आरम्भ (जी, उपन्यास का आरम्भ, न की प्रस्तुत कहानी का) जिन घटनाओं से होता है उसे पढकर मैं चौंक गया। ऐसा लगा जैसे किसी उपन्यास का 'क्लाईमैक्स' पढ रहे हैं। फिर सोचा हो सकता है 'मोम का जहर' का कोई पूर्व 'भाग' हो। लेकिन पांच पृष्ठ पढने के बाद सारा कथानक ही बदल गया । फिर सोचा हो सकता है यह कोई प्रयोग हो लेकिन जल्दी ही यह भ्रम भी टूट गया और फिर अनुमान लगाया की इस उपन्यास के आरम्भ में जो पांच पृष्ठ हैं वह गलती से यहाँ मुद्रित हो गये (ध्यान दें, गलती से बाइडिंग नहीं हुये, मुद्रित हुये हैं, टाइप (type) हुये हैं।) ।
क्योंकि छठें पृष्ठ के आरम्भ की पंक्तियाँ अलग कथानक की हैं और बाकी की पंक्तियाँ 'मोम का जहर' उपन्यास की हैं।
चलो, यह किस्सा तो खत्म हुआ और जैसे ही मैं आगे बढा तो कहानी अचानक से ही बदल गयी। फिर आगे पृष्ठ पलटे तो कहानी का तारतम्य आगे जुड़ पाया। मतलब बीच में कहानी के घटनाक्रम को दोहरा दिया गया, हालांकि पृष्ठ संख्या लगातार वही चलती रही।
फिर कहानी सही क्रम से आगे बढती गयी। यह सब तो खैर टेक्निकल गलती है ।
घटनाक्रम जिसका कहानी से संबंध ही नहीं-
'मोम का जहर' उपन्यास केन्द्रीय गुप्तचर विभाग के कार्यालय से होता है। जासूस बटलर और लंगूर चीपू अजीबोगरीब, रंग बिरंगे कपड़े पहन कर, अजीब सा डांस करते हुये, टेप बजाते हुये कार्यालय की ओर बढते हैं । कार्यालय में भर्ती नया कार्मिक दुखभंजन प्रसाद गुप्ता इस बात से खफा हो जाता है और बटलर से जा भिड़ता है और फिर चीफ ऑफ स्टाफ को भी खरी खोटी सुना देता है। इस बात से भड़क कर बटलर उसकी धुनाई कर देता है।
दुखभंजन प्रसाद गुप्ता अपने 'आका' मंत्री अटूट प्रसाद निडर तोड़फॊड़ विभाग को फोन करता है और फिर दोनों बटलर को मात देने की योजना बनाते हैं।
अंतर्राष्ट्रीय ठग अमरजीत - उपन्यास में एक और पात्र का प्रवेश होता है, जिसे अंतरराष्ट्रीय ठग की उपाधि मिली है, हालांकि इस उपन्यास में यह करता यह 'चोरी' है। और अन्य लेखकों ने जब-जब अमरजीत पर लिखा है, इसे अंतरराष्ट्रीय ठग कहा है, वहां-वहां इसे लम्पट और चोर ही दिखाया है।
यहां भी अमरजीत महोदय इस कुड़ी के पीछे लग जाते हैं और उसे पाने के काफी हथकण्डे इस्तेमाल करते हैं लेकिन हाथ कुछ नहीं लगता ।
वह लड़की एक अंतरराष्ट्रीय आर्केस्ट्रा ग्रुप की मुख्य कलाकार है और उसका संचालक जैकाल एक अत्यंत खतरनाक व्यक्ति है। हालांकि जैकाल एक अंतरराष्ट्रीय अपराधी भी है जो आर्केस्ट्रा की ओट में अपराध करता है।
यह आर्केस्ट्रा ग्रुप एक जलयान के द्वारा सफर करता हुआ आगे बढता है और उसी जलयान पर ठग अमरजीत भी होता है।
यहां एक हीरे को प्राप्त करने के लिए मारामारी होती है और अंत में उस हीरे के चक्कर में कई लोग मारे जाते हैं।
अब इस आर्केस्ट्रा का, हीरे का मुख्य मृतकों का मुख्य कहानी से कोई लेना-देना नहीं है। हालांकि यह जैकाल उपन्यास के मुख्य खल पात्र के पास ही जाता है और मजे की बात है वह खल पात्र जाते ही जैकाल को खत्म करने की कार्यवाही कर देता है।
ऐसे बटलर का किस्सा आगे बढता है और मंत्री अटूट प्रसाद और दुखभंजन शर्मा बटलर को खत्म करने दूसरे देश तक उसके पीछे आते हैं लेकिन यहाँ बटलर ही उनको खत्म कर देता है।
यहां भी मजे की बात यह है कि मंत्री और दुखभंजन का मुख्य कहानी से कोई लेना-देना ही नहीं ।
और भी ऐसे कुछ अर्थहीन घटनाक्रम उपन्यास में ऐसे भरे पड़े हैं मानो पाठक का सिरदर्द कर के मानेंगे।
और हां, आप फिर भी नहीं मानते तो आप यह उपन्यास पढ लीजिए ।
और बात तो रह ही गयी...इस उपन्यास में विक्रांत भी है।
एक बात अंत में...सुना है कुमार कश्यप जी अपने समय के चर्चित लेखक रहे हैं। उनके नाम से बहुसंख्यक नकली उपन्यास भी प्रकाशित हुये हैं।
अब यह उपन्यास स्वयं कुमार कश्यप जी द्वारा लिखा गया है या नहीं कुछ कहां नहीं जा सकता ।
उपन्यास के अंतिम आवरण पृष्ठ पर चित्र कुमार कश्यप जी का ही है।।
उपन्यास- मोम का जहर
लेखक- कुमार कश्यप
प्रकाशक- नूतन पॉकेट बुक्स, मेरठ
पृष्ठ- 192
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