कहानी ब्लैकमेलिंग की
घर का दुश्मन- प्रेम प्रकाश- दिसंबर-1966
हिंदी अपराध साहित्य में बहुसंख्यक कहानियाँ बिखरी पड़ी हैं, इनमें से कभी-कभार कुछ नया और अच्छा पढने को मिल जाता है। ऐसा ही एक एक छोटा सा उपन्यास पढने को मिला, जिसकी छोटी और सामान्य सी कहानी अच्छी लगी। इस उपन्यास का नाम है- घर का दुश्मन ।
नकहत पब्लिकेशन -इलाहाबाद का नाम विशेष रूप से इब्ने सफी साहब से संबंधित है। और उनके उपन्यासों का हिंदी अनुवाद करने के लिए जाने जाते हैं प्रेम प्रकाश जी। स्वयं प्रेम प्रकाश जी ने भी उपन्यास लिखे हैं। प्रस्तुत उपन्यास 'घर का दुश्मन' इन्हीं का ही है। उपन्यास का कथानक- उपन्यास की कहानी ब्लैकमेलिंग पर आधारित है। एक संगठित गिरोह का बाॅस अपने आदमियों से सुनियोजित तरीके से अलग- अलग शहरों में लोगों को फंसा कर ब्लैकमेल कर रूपया लेता है।
ऐसा ही एक केस यहाँ भी था। शहर में सरिता अपने दो साथियों के साथ व्यवसायी नागेश का ब्लैकमेल करने की कोशिश करती है। और नागेश जा मिलता है CID अधिकारी राजन से और उसे अपनी व्यथा बताता है।
राजन अपने साथी राम सिंह और हरीश के साथ मिलकर जाल बिछाता है और जा पहुंचता है दूर किसी शहर में बैठे वास्तविक अपराधी तक।
कहानी का आरम्भ होता है राम सिंह से।
आजकल राम सिंह की पाँचों अँगुलियाँ घी में थीं ।
विभाग की ओर से उसे एक महीने की छुट्टी मिली थी और पाँच सौ रुपए नकद भी मिले थे, मगर शर्त यह थी कि वह नगर ही में रहेगा, नगर से बाहर नहीं जा सकता । यह प्रतिबन्ध राम सिंह को बिल्कुल नहीं खला था, क्योंकि उसे जाना ही कहाँ था !
वह दिन भर अपने मकान में पड़ा रहता था और सन्ध्या होते ही बन संवर कर घर से बाहर निकल जाता था और रात में बारह एक बजे घर आता और लम्बी तान लेता । पैसे जेब में थे, काम कुछ भी नहीं था- बस खाना-तफरीह करना और सो जाना ।
आज भी वह कपड़े बदलकर जैसे ही बाहर जाने के लिये तैयार हुआ, किसी ने बाहर से जंजीर खटखटाई ।
"कौन है ?” उसने अन्दर ही से आवाज दी।
मगर उत्तर नहीं मिला - बल्कि जंजीर फिर खटखटाई गई !
"न जाने कहाँ से मरने चले आते हैं ।" वह मन ही मन बड़बड़ाता हुआ दरवाजे की ओर बढ़ा और जब दरवाजा खोला तो एक दम से झल्ला गया ।
हरीश सामने खड़ा मुस्कुरा रहा था ।( उपन्यास के प्रथम पृष्ठ से) और हरीश रामसिंह का सहकारी था। दोनों ही राजन के अधीन काम करते थे।
इन्हीं दिनों रामसिंह से सरिता नामक युवती दोस्ती का व्यवहार करती है और वहीं राजन हरीश को सुनीता की झानबीन पर लगाता है। क्योंकि राजन को किसी दूर शहर से CID से जानकारी मिली थी कि एक युवती उसके शहर में ब्लैकमेल का जाल बिछाने अपने साथियों के साथ उपस्थित है।
और देखिए सुनीता की किस्मत, सुनीता ने ब्लैकमेल करने के लिए जो माध्यम राम सिंह को चुना वह CID का ही आदमी था। हालांकि राम सिंह सुनीता की वास्तविकता से अनजान था।
वहीं राजन हर समय सरिता पर नजर रखता है और जब उसे व्यवसायी नागेश के माध्यम से ब्लैकमेल का केस मिलता है तो वह सक्रिय हो जाता है।
राजन को पता था कि सरिता और उसके साथी मोहरा मात्र हैं, असली अपराधी कोई और है और उसी अपराधी तक पहुंचने के लिए राजन जाल बिछाता है।
उपन्यास का कथानक छोटा सा परंतु रोचक है। राजन का व्यवहार अपने कार्य अनुसार बहुत अच्छा है और वहीं हरीश का भी। लेकिन राम सिंह का व्यवहार CID के व्यक्ति का कम और एक कथित आशिका का ज्यादा नजर आता है। उस के घर से सुनीता का निकल जाना भी उसकी कार्य शैली पर प्रश्न चिह्न लगाता है।
उपन्यास में राजन जब बनर्जी को कुछ उपदेश देता है तो बनर्जी का व्यवहार पठनीय बन जाता है।
उदाहरण देखें-
"इतनी सावधानी !” बनर्जी हँसे ।
"सावधानी ही हमारी सफलता का कारण बनती है-" राजन ने कहा ।
- बनर्जी सोचने लगे कि कहीं यह फिर व्याख्यान न देने लगे, इसलिये जल्दी से बोल उठे ।
अपराध के विषय में राजन के विचार प्रासंगिक हैं।
देखें-
उपन्यास- घर का दुश्मन
लेखक- प्रेम प्रकाश
पत्रिका- रहस्य मासिक( दिसंबर-1966)
प्रकाशन- नकहत पब्लिजेशन
पृष्ठ- 110
घर का दुश्मन- प्रेम प्रकाश- दिसंबर-1966
हिंदी अपराध साहित्य में बहुसंख्यक कहानियाँ बिखरी पड़ी हैं, इनमें से कभी-कभार कुछ नया और अच्छा पढने को मिल जाता है। ऐसा ही एक एक छोटा सा उपन्यास पढने को मिला, जिसकी छोटी और सामान्य सी कहानी अच्छी लगी। इस उपन्यास का नाम है- घर का दुश्मन ।
नकहत पब्लिकेशन -इलाहाबाद का नाम विशेष रूप से इब्ने सफी साहब से संबंधित है। और उनके उपन्यासों का हिंदी अनुवाद करने के लिए जाने जाते हैं प्रेम प्रकाश जी। स्वयं प्रेम प्रकाश जी ने भी उपन्यास लिखे हैं। प्रस्तुत उपन्यास 'घर का दुश्मन' इन्हीं का ही है। उपन्यास का कथानक- उपन्यास की कहानी ब्लैकमेलिंग पर आधारित है। एक संगठित गिरोह का बाॅस अपने आदमियों से सुनियोजित तरीके से अलग- अलग शहरों में लोगों को फंसा कर ब्लैकमेल कर रूपया लेता है।
ऐसा ही एक केस यहाँ भी था। शहर में सरिता अपने दो साथियों के साथ व्यवसायी नागेश का ब्लैकमेल करने की कोशिश करती है। और नागेश जा मिलता है CID अधिकारी राजन से और उसे अपनी व्यथा बताता है।
राजन अपने साथी राम सिंह और हरीश के साथ मिलकर जाल बिछाता है और जा पहुंचता है दूर किसी शहर में बैठे वास्तविक अपराधी तक।
कहानी का आरम्भ होता है राम सिंह से।
आजकल राम सिंह की पाँचों अँगुलियाँ घी में थीं ।
विभाग की ओर से उसे एक महीने की छुट्टी मिली थी और पाँच सौ रुपए नकद भी मिले थे, मगर शर्त यह थी कि वह नगर ही में रहेगा, नगर से बाहर नहीं जा सकता । यह प्रतिबन्ध राम सिंह को बिल्कुल नहीं खला था, क्योंकि उसे जाना ही कहाँ था !
वह दिन भर अपने मकान में पड़ा रहता था और सन्ध्या होते ही बन संवर कर घर से बाहर निकल जाता था और रात में बारह एक बजे घर आता और लम्बी तान लेता । पैसे जेब में थे, काम कुछ भी नहीं था- बस खाना-तफरीह करना और सो जाना ।
आज भी वह कपड़े बदलकर जैसे ही बाहर जाने के लिये तैयार हुआ, किसी ने बाहर से जंजीर खटखटाई ।
"कौन है ?” उसने अन्दर ही से आवाज दी।
मगर उत्तर नहीं मिला - बल्कि जंजीर फिर खटखटाई गई !
"न जाने कहाँ से मरने चले आते हैं ।" वह मन ही मन बड़बड़ाता हुआ दरवाजे की ओर बढ़ा और जब दरवाजा खोला तो एक दम से झल्ला गया ।
हरीश सामने खड़ा मुस्कुरा रहा था ।( उपन्यास के प्रथम पृष्ठ से) और हरीश रामसिंह का सहकारी था। दोनों ही राजन के अधीन काम करते थे।
इन्हीं दिनों रामसिंह से सरिता नामक युवती दोस्ती का व्यवहार करती है और वहीं राजन हरीश को सुनीता की झानबीन पर लगाता है। क्योंकि राजन को किसी दूर शहर से CID से जानकारी मिली थी कि एक युवती उसके शहर में ब्लैकमेल का जाल बिछाने अपने साथियों के साथ उपस्थित है।
और देखिए सुनीता की किस्मत, सुनीता ने ब्लैकमेल करने के लिए जो माध्यम राम सिंह को चुना वह CID का ही आदमी था। हालांकि राम सिंह सुनीता की वास्तविकता से अनजान था।
वहीं राजन हर समय सरिता पर नजर रखता है और जब उसे व्यवसायी नागेश के माध्यम से ब्लैकमेल का केस मिलता है तो वह सक्रिय हो जाता है।
राजन को पता था कि सरिता और उसके साथी मोहरा मात्र हैं, असली अपराधी कोई और है और उसी अपराधी तक पहुंचने के लिए राजन जाल बिछाता है।
उपन्यास का कथानक छोटा सा परंतु रोचक है। राजन का व्यवहार अपने कार्य अनुसार बहुत अच्छा है और वहीं हरीश का भी। लेकिन राम सिंह का व्यवहार CID के व्यक्ति का कम और एक कथित आशिका का ज्यादा नजर आता है। उस के घर से सुनीता का निकल जाना भी उसकी कार्य शैली पर प्रश्न चिह्न लगाता है।
उपन्यास में राजन जब बनर्जी को कुछ उपदेश देता है तो बनर्जी का व्यवहार पठनीय बन जाता है।
उदाहरण देखें-
"इतनी सावधानी !” बनर्जी हँसे ।
"सावधानी ही हमारी सफलता का कारण बनती है-" राजन ने कहा ।
- बनर्जी सोचने लगे कि कहीं यह फिर व्याख्यान न देने लगे, इसलिये जल्दी से बोल उठे ।
अपराध के विषय में राजन के विचार प्रासंगिक हैं।
देखें-
अगर आप ही के समान हम समस्त कानून के रक्षकों का विचार हो जाये तो हमारा काम बहुत आसान हो जाये और शायद किसी को जुर्म करने का साहस भी न हो सके ।”अपराध के विषय में राजन के और विचार भी पढें-“मैं आपके इस विचार से सहमत नहीं हूँ-" राजन ने कहा - “जुर्म हमेशा से होते चले आये हैं और होते रहेगे। हाँ इतना अवश्य हुआ है किसी युग में कम हुये है और किसी में अधिक-और हर युग में जुर्म की नवैयत बदली रही है, जुर्म की प्रणाली बदलती रही है-साधन बदलते रहे हैं और साथ ही साथ दण्ड भी बदलते रहे हैं।"
एक अपराधी और कानून के एक रक्षक के विचारों में कितना अन्तर या कितनी समानता होती है हाँ दोनों की कार्य प्रणालियाँ हर हाल में भिन्न होती है और यही भिन्नता टकराव का कारण बनती है और जब टकराव होता है तो उसका परिणाम भी निकलता है-हार या जीत ।उपन्यास पृष्ठ के आधार पर चाहे छोटा है पर कहानी के स्तर पर काफी रोचक है। बिना किसी अनावश्यक प्रसंग, उलझाव के एक सामान्य सी कहानी पढने में ज्यादा आनंद आता है ।
उपन्यास- घर का दुश्मन
लेखक- प्रेम प्रकाश
पत्रिका- रहस्य मासिक( दिसंबर-1966)
प्रकाशन- नकहत पब्लिजेशन
पृष्ठ- 110
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