और इस तरह मारे गये छोटे नवाब जी
नवाब मर्डर केस- राज भारती
नवाब स्टील रौलिंग कम्पनी के मालिक के बड़े नवाब साहब के शाहबजादे छोटे नवाब फारुख शेख साहब जरा रंगीन मिजाज आदमी थॆ। अपनी कम्पनी की लड़कियों को बहला-फुसला कर अपने फार्म हाउस ले जाना, उनके साथ मनमर्जी या जबरदस्ती के साथ अपनी विषय पूर्ति करना उनका शौक था। काम मनमर्जि से हो गया तो ठीक नहीं तो छोटे नवाब साहब जबर्दस्ती कर ही लेते थे।
इसी के कामों के चलते एक दिन अपने फार्म हाउस पर छोटे नवाब साहब मरे हुये पाये गये। उनकी पीठ पर किसी ने खंजर ठक दिया था।
अब विषय यह था कि छोटे नवाब साहब का कत्ल किसने किया और क्यों किया?
खैर, क्यों किया यह तो बहुत जल्दी पता चल गया था पत किसने किया यह पता उपन्यास के अंत में चलता है।
नवाब स्टील कम्पनी की एक कर्मचारी आरती तलवार प्रसिद्ध वकील अभय वर्मा से मिलती है। और वकील अभय वर्मा को बताती है की रात नवाब स्टील कम्पनी के मालिक बड़े नवाब का पुत्र फारूख शेख उसे धोखे से फार्म हाउस ले गया और उसके साथ गलत हरकत करने की कोशिश की, वासना का अंधा खेल खेलना चाहा पर वह किसी तरह वहाँ से बच कर निकल आयी।
आरती तलवार ने अपनी कहानी खत्म की! उसकी आपबीत को कलमबद्ध करती बाला ने नोटबुक से निगाहें हटा; अपने चीफ अभय वर्मा की तरफ देखा । वह अभय के चेहरे से किसी प्रकार की प्रतिक्रिया का अनुमान नहीं लगा पाई।
अभय वर्मा की भावहीन आँखें आरती तलवार के चेहरे पर टिकी हुई थी यह आभास होते कि आरती तलवार को अब और कुछ नहीं कहना है, उसी ने पूछा, - "हूं! और आप क्या करना चाहती है. मिस तलवार?
'मैं...मैं उसे दिखा देना चाहती हूं कि औरत अपने बाॅस की जायदाद नहीं होती।' (पृष्ठ-28)
अभय वर्मा ने सहायक के लिए डिटेक्टिव राजन को बुलाया, राजन का उसी भवन में आॅफिस था और अभय वर्मा अक्सर उनकी मदद लेते हैं।
अभय वर्मा से आरती तलवार का किस्सा सुनने के बाद नेशनल डिटेक्टिव एजेंसी के डिटेक्टिव ने एक विस्फोट कर दिया- " छोटे नवाब...फारुख शेख को कल रात कत्ल कर दिया गया है...।"(पृष्ठ-34)
अब सभी की नजरें आरती तलवार पर जा टिकी और आरती तलवार का कहना था वह रात फारूक शेख की कार लेकर वहाँ से भाग आयी थी और उसने वह कार फारूक शेख के अपार्टमेंट के आगे No parking में खड़ी की और अपने फ्लैट पर पहुँच गयी थी।
तो फिर फारूख शेख का कत्ल किसने कर दिया?
पुलिस विभाग की तरफ से इस केस में कदम रखते हैं इंस्पेक्टर कदम। जो शीघ्र ही यह पता लगा लेते हैं की हत्या की रात कोई युवती वहाँ थी। वह कुछ गवाह भी ढूंढ लेते हैं और कुछ सबूत भी। (उपन्यास में सबूत के लिए शहादत शब्द प्रयोग में लाया गया है।
शीघ्र ही मामला कोर्ट में जस्टिस दयाल के समक्ष पहुंच जाता है। जहाँ सरकारी वकील बख्शी और आरती तलवार के वकील अभय वर्मा में तर्क-विर्तक होते हैं।
उपन्यास यहाँ से पूर्णत कोर्ट रूम ड्रामे मेम बदल जाता है। एक तरफ पुलिस और सरकारी वकील हैं तो दूसरी तरफ अभय वर्मा, सेक्रेटरी बाला और डिटेक्टिव राजन हैं। हालांकि कन्फर्म सबूत किसे के हाथ भी नहीं लगते की इस कत्ल के पीछे हाथ किसका है। एक-दो गवाह सामने अवश्य आते हैं जो यह कहते हैं कि हमने फारूख शेख के साथ एक लड़की को देखा था। पर अभय वर्मा के जाल में फंस कर वह यह कन्फर्म नहीं बता पाते की वह लड़की आरती तलवार है या मीरा वासवानी।
मीरा वासवानी वर्तमान में माॅडल है और उस से पूर्व वह नवाब स्टील कम्पनी में कार्यरत थी। छोटे नवाब की खास थी और आरती तलवार की परम मित्र। आरती तलवार को नवाब स्टील कम्पनी में नौकरी मीरा वासवानी के कहने पर ही मिली थी। दोनों में कुछ हद तक चेहरे की साम्यता है।
वहीं उपन्यास के दो और महत्वपूर्ण पात्र हैं अनु बत्रा और ज्योतिस्वरूप। दोनों ही नवाब स्टील कम्पनी के कर्मचारी हैं।
इस तरह अभय वर्मा के सामने कुछ लोगों की लिस्ट तैयार होती है जिनका संबंध नबाव फारूख शेख और उस दिन की घटना से होता है। अभय वर्मा एक-एक व्यक्ति, गवाह और घटनास्थल का निरीक्षण करता हुआ आगे बढता है। हालांकि साथ-साथ में वह इस केस पर अदालत में भी कार्यवाही करता नजर आता है। स्वयं जज महोदय भी यही चाहते हैं की केस का अन्वेषण अच्छे से हो ताकि कोई निर्दोष कानून के जाल में न फंस जाये।
अपने अन्वेषण, तथ्यों, गवाह, घटनास्थल और साथियों के सहयोग से अंततः अभय वर्मा सत्य के नजदीक पहुँच ही जाते हैं।
और इस तरह 'नवाब मर्डर केस' हल हो जाता है।
राजभारती जी द्वारा लिखित प्रस्तुत उपन्यास एक रोचक और पठनीय रचना है। उपन्यास का आरम्भ काफी प्रभावशाली है। फिर एक कत्ल और उसके बाद केस की जांच भी पाठक को प्रभावित करती है। वकील अभय वर्मा का गवाह को दिग्भ्रमित करने वाला तरीका भी बहुत रोचक लगता है।
उपन्यास का ज्यादा भाग कोर्ट में दर्शाया गया है और वहाँ की कार्यप्रणाली भी काफी रोचक है। जज मात्र श्रोता ही नहीं है वह अपनी राय, वकील को दिशा निर्देश भी देते नजर आते हैं।
एक बात और,छोटे नवाब साहब को अपनी दौलत और बाॅस होने का जो अहम् था वह अहम् उस व्यक्ति ने उतार दिया जिस के विषय में छोटे नवाब सोच भी नहीं सकते थे। एक हवस का पुजारी, दौलत का घमण्ड करने वाला आखिर मारा ही गया।
अगर पूरे उपन्यास में कुछ नकारात्मक है तो वह है कहानी का विस्तार। उपन्यास 287 पृष्ठों में फैला है। इसे कुछ संक्षिप्त तेज रफ्तार बनाया जा सकता था।
डायमंड पॉकेट से प्रकाशित होने वाला यह राजभारती जी का 33वां उपन्यास था।
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