Thursday 12 January 2023

552. वतन के रखवाले- अजिंक्य शर्मा

एक छपरी मर्डर मिस्ट्री

वतन के रखवाले- अजिंक्य शर्मा

अजीबोगरीब हालातों में एक-के-बाद-एक कत्ल के मामलों में फंसते जा रहे युवक की कहानी
एक मर्डर मिस्ट्री...जो पूरी फ़िल्मी है
अजिंक्य शर्मा द्वारा रचित पहली मर्डर मिस्ट्री, जिसे लेखक ने 'कॉमेडी' की केटेगिरी में भी शामिल किया है
कॉमेडी और मर्डर मिस्ट्री का मजेदार संगम, जैसा आपने कम ही उपन्यासों में पढ़ा होगा।



  नमस्कार।
 आज बात करते हैं उपन्यासकार अजिंक्य शर्मा जी के उपन्यास 'वतन के रखवाले' उपन्यास की। अजिंक्य शर्मा वही जो ब्रजेश शर्मा के नाम से उपन्यास लिखते रहे हैं‌। फिर बंदे को लगा 'यार, खुद का नाम भी तो सामने आना चाहिए, तो बंदे ने 'निमिष' और 'वतन के रखवाले' अपने वास्तविक नाम से लिखे। हाँ, ध्यान दीजियेगा- ब्रजेश शर्मा नाम भी लेखक महोदय का ही है, इस नाम से लिखे गये उपन्यास वास्तविक हैं।
   बहुत हो गया, अब बात करे नये उपन्यास की। चलो बात कर ही लेते हैं। 'वतन के रखवाले' एक हास्य मर्डर मिस्ट्री है। अब आओ सोच रहे होंगे हास्य मर्डर मिस्ट्री क्या है। जब सब कुछ हम ही बता देंगे तो उपन्यास कौन पढेगा। इसलिए उपन्यास पढें, आनंद लीजिए।
आबिद रिजवी साहब का कहना है- ''उपन्यास मनोरंजन के लिए लिखे जाते हैं। उनमें भारी भाषा न हो, उलझाव वाली कहानी न हो। बस कहानी मनोरंजक रूप में  प्रस्तुत की जाये।''
   आबिद रिजवी साहब की परिभाषा पर उक्त उपन्यास पूर्णतः खरा उतरता है क्योंकि उपन्यास में एक सरल कहानी है जो हास्य के साथ प्रस्तुत की गयी है।
  उपन्यास का मुख्य पात्र अक्षय है। अक्षय एक 26 वर्षीय हंसमुख और मस्तमौला नौजवान था। वो इतने मिलनसार और धाराप्रवाह ढंग से बात करता था कि कई बार वो कुछ बुरी लगने वाली बात भी कह देता था तो सामने वाला उसे दिल पर नहीं लेता था।
रिया अक्षय की प्रेयसी है और प्रेयसी का भाई यश, जो कि एक पुलिस इंस्पेक्टर है।  
एक दिन अक्षय Auto में बैठकर, नकली पुलिस इंस्पेक्टर बनकर अपनी प्रेयसी रिया से मिलने जाता है पर किराये को लेकर अक्षय का Auto ड्राइवर से झगड़ा हो जाता है।

"गरीब का पैसा मारे हो साहब।’’-सुनील ने भी ऑटो से सिर निकालकर पीछे की ओर देखते हुए उसकी ओर हाथ हिलाते हुए कहा-''आज की रात आपकी मजे की रात नहीं, जूते खाने की रात होगी।..."

  सच में वह रात अक्षय के लिए भयावह साबित हुयी और रिया के साथ गर्ल्स हाॅस्टल पहुंचा अक्षय एक कत्ल के केस में फंस गया।
    रितिका, रोजी और रमोला तीन सहेलियाँ थी, तीनों पहेलियाँ थी। जिसमें से एक पहेली, Sorry सहेली का कत्ल हो गया।
  यहाँ उपन्यास में एक और पात्र का प्रवेश होता है, वह पात्र है गोगा। उसका नाम गोगा था और वो विशंभर सेठ के दांये-बांये में से कोई एक हाथ था। अंडरवर्ल्ड के लोगों में ये आम तौर पर कहा जाता था कि विशंभर सेठ खुद भी नहीं जानता था कि गोगा उसके दांये-बांये में से कौन-सा हाथ था।
     कत्ल के केस में उलझा अक्षय अपने मित्र, प्रिय मित्र चंदन के साथ मिलकर केस को हल करने की कोशिश करता है और वह गोगा के गोरखजाल में उलझ जाता है। मार खा, पिटपिटा कर अक्षय वापस आ जाता है।
  लेकिन वह एक बार फिर रिया के साथ एक और कल्त के केस में उलझ जाता है।
   
"मर गया।’’-अक्षय कार में बैठते हुए बोला-''इस बार पक्का मर गया।’’ 
''कौन मर गया?’’ 
''तेरा आशिक मर गया। और कौन मर गया? अरे, तू कौन से जन्म का बदला ले रही है मुझसे? क्यों बार-बार मुझे ऐसी जगहों पर भेज देती है, जहां लड़कियों की लाशें पड़ी होतीं हैं।"
   दो कत्ल के केस, गोगा और विशंभर सेठ का खतरनाक जाल और जिसमें उलझे हुये हैं उपन्यास नायक अक्षय कुमार। 
 अब कौन खेल खिलाड़ी का खेलता है और कौन मोहरा बनता है। यह तो अक्षय और सुनील ही अंत में सुलझाते हैं और यश प्राप्त करते हैं।
  यह तो थी उपन्यास की मर्डर मिस्ट्री कथा। उपन्यास में हास्य का मिश्रण बहुत रोचक है। उपन्यास साहित्य में टाइगर (JK Verma द्वारा लिखित ही) जे उपन्यासों में हास्य रस मिलता था। लेकिन यहाँ तो लेखक महोदय ने मर्डर मिस्ट्री में पूरा हास्य ही मिला दिया।
उपन्यास में गोगा और विशंभर सेठ का प्रथम दृश्य मुझे बहुत रोचक और हास्यजनक लगा।
''विशंभर सेठ।’’-फिर उसने कहा-''ड्रग्स की खेप वरसोवा के गोदाम में उतर चुकी है।’’ 
''एक तो मुझे आज तक यही समझ नहीं आया’’-विशंभर सेठ बड़बड़ाया-''कि ये ड्रग्स की खेप हमेशा वरसोवा के गोदाम में ही क्यों उतरती है?’’
  इसके अतिरिक्त और भी बहुत से दृश्य, संवाद है जो उपन्यास में हास्य पैदा करते हैं।
उपन्यास का शीर्षक - बात करें उपन्यास के शीर्षक की तो हम शेक्सपियर के कहे अनुसार चर्चा करते हैं।
शेक्सपियर ने कहा था-'नाम में क्या रखा है'
  'वतन के रखवाले' उपन्यास का प्रकाशन पूर्व एक घोषित नाम था -'एक छपरी मर्डर मिस्ट्री'। एक नया और प्रयोगशील नाम था।
   उपन्यास पूर्णतः फिल्म कथा जैसा है। जिसमें दो नायक अक्षय और सुनील कत्ल के केस को हल करते हैं। उपन्यास में पुलिस है, हीरोइन है, बस एक गीत की कमी है। शायद संशोधन में वह भी पूरी हो जाये। 
उपन्यास के विषय में सब अच्छा-अच्छा ही लिखा है। अब जो अच्छा नहीं वह हो जाये। उपन्यास का अंत( अंत वाला अंत नहीं) जल्दी-जल्दी दर्शाया गया है और मर्डर मिस्ट्री थोड़ी और कसावट वाली हो सकती थी।
 बिलकुल सरल और सहज शब्दावली में लिखा गया प्रस्तुत उपन्यास बहुत रोचक और हास्यप्रद है। उपन्यास पढें और मनोरंजन की दुनिया में खो जाये।


उपन्यास- वतन के रखवाले

लेखक-    अजिंक्य शर्मा

उपन्यास लिंक- वतन के रखवाले- अजिंक्य शर्मा
ब्रजेश शर्मा संबंधित अन्य लिंक

2 comments:

  1. उपन्यास के प्रति उत्सुकता जगाती प्रतिक्रिया। जल्द ही पढ़ने की कोशिश रहेगी।

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  2. Wah maza aa gya bhai ab novel padhna hi hoga

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