एक ब्लैकमेलर और एक झूठी औरत
सुनील सीरीज-21
सुनील सीरीज-21
झूठी औरत- सुरेन्द्र मोहन पाठक
सुनील किसी ‘डैमसेल को डिस्ट्रेस’ में ना देख पाने की अपनी लाचारी से मजबूर था। लेकिन इस बार उस ‘डैमसेल’ - झूठी ‘डैमसेल’ ने उसकी ऐसी चक्करघिन्नी बनाई कि वो खुद ही ‘डिस्ट्रेस’ में आ गया। कला नाम की एक ऐसी खूबसूरत औरत की कहानी कदम-कदम पर झूठ बोलने की कला में खूब पारंगत थी। (किंडल से)'झूठी औरत' सुरेन्द्र मोहन पाठक जी द्वारा लिखित सुनील सीरीज का इक्कीसवां उपन्यास है। जो मूल रूप से एक अंग्रेजी उपन्यास का हिंदी रूपांतरण है। सुनील चक्रवर्ती एक प्रेस रिपोर्टर है, जो 'ब्लास्ट' नामक पत्र कर लिए काम करता है। वहीं राजनगर में 'तहकीकात' नामक एक और पत्र भी प्रकाशित होता है। जो पत्र के माध्यम से ब्लैकमेलिंग का कार्य करता है। इस पत्र का तथाकथित मालिक मायाराम है। सुनील इसी माया राम की हम हकीकत जानने के लिए सबरवाल बिल्डिंग में संचालित 'स्टार नाइट क्लब' जाता है। लेकिन यहाँ कुछ और ही कुछ घटित हो जाता है, जो सारे घटनाक्रम की रूपरेखा को बदल देता है। यहाँ स्टार नाइट क्लब के संचालक निरंजन और सुनील का सामन
-सामने होना एक रोचक घटनाक्रम है।
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“मेरा नाम कला है ।” - वह बोली ।
“अच्छा ।”
“मुझ पर एक मुश्किल आ पड़ी है और मैं तुम्हारी सहायता चाहती हूं ।”
“इसमें कोई हैरानी की बात नहीं है। आप जैसी महिलायें तभी मेरे पास तशरीफ लाती हैं जब उन पर कोई मुश्किल आ पड़ती है और वे मेरी सहायता चाहती हैं।”
कला एक मुसीबत में है और वह मुसीबत है ब्लैकमेलिंग की। कला सुनील के माध्यम से 'हकीकत' के ब्लैकमेलर मायाराम से निपटना चाहती है। और सुनील भी कला की मदद के लिए तैयार हो जाता है।
वहीं कला सुनील को 'हकीकत' की सत्यता बताती है।
“मायाराम ‘हकीकत’ का असली मालिक नहीं है । ‘हकीकत’ का असली मालिक कोई और है जो बड़ा प्रतिष्ठित और हर प्रकार के समर्थ व्यक्ति है और जो ‘हकीकत’ के प्रकाशन के मामले में बैकग्राउन्ड में रहना चाहता है। मायाराम तो केवल एक दिखावा है । हर काम असली मालिक के संकेत पर होता है। तुम मायाराम से ब्लैकमेलिंग की रकम तय करने जाओगे तो वह असली मालिक से ही पूछेगा कि ......... के बारे में समाचार न छपने की एवज में कितने रुपये मांगने चाहियें।”
देखने में यह साधारण सा केस था। ब्लैकमेलर को रुपये दो और किस्सा खत्म। पर नहीं, किस्सा तो यहीं से आरम्भ होता है। प्रथम तो यहीं की 'हकीकत' का वास्तविक मालिक जब नजर आता है तो सुनील की कल्पना से परे होता है। वहीं एक कत्ल के केस में सुनील हत्यारे के तौर पर संदिग्ध होता।
कहां तो वह कला की मदद करने निकला था और कहां वह स्वयं एक कल्त के केस में संदिग्ध होकर अपना घर बार छोड़ कर भाग निकलता है। ऐसी परिस्थितियों में सुनील का सदाबहार मित्र रमाकांत उसकी सहायता करता है।
वहीं कला की कलाकारी में सुनील इतना उलझ जाता है की वह समझ ही नहीं पाता की सत्य क्या है और असत्य क्या है? कौन कातिल है क्यों कत्ल किया उसने?
लेकिन अंत में सुनील यह पता लगा ही लेता है की असली कातिल कौन था, और कत्ल क्यों किया गया। और सुनील द्वारा कातिल को खोजना बहुत रोचक है। जहाँ एक बार लगता है उपन्यास की कहानी खत्म हो गयी वहीं से एक नया अध्याय सामने आ जाता है।
“मेरा नाम कला है ।” - वह बोली ।
“अच्छा ।”
“मुझ पर एक मुश्किल आ पड़ी है और मैं तुम्हारी सहायता चाहती हूं ।”
“इसमें कोई हैरानी की बात नहीं है। आप जैसी महिलायें तभी मेरे पास तशरीफ लाती हैं जब उन पर कोई मुश्किल आ पड़ती है और वे मेरी सहायता चाहती हैं।”
कला एक मुसीबत में है और वह मुसीबत है ब्लैकमेलिंग की। कला सुनील के माध्यम से 'हकीकत' के ब्लैकमेलर मायाराम से निपटना चाहती है। और सुनील भी कला की मदद के लिए तैयार हो जाता है।
वहीं कला सुनील को 'हकीकत' की सत्यता बताती है।
“मायाराम ‘हकीकत’ का असली मालिक नहीं है । ‘हकीकत’ का असली मालिक कोई और है जो बड़ा प्रतिष्ठित और हर प्रकार के समर्थ व्यक्ति है और जो ‘हकीकत’ के प्रकाशन के मामले में बैकग्राउन्ड में रहना चाहता है। मायाराम तो केवल एक दिखावा है । हर काम असली मालिक के संकेत पर होता है। तुम मायाराम से ब्लैकमेलिंग की रकम तय करने जाओगे तो वह असली मालिक से ही पूछेगा कि ......... के बारे में समाचार न छपने की एवज में कितने रुपये मांगने चाहियें।”
देखने में यह साधारण सा केस था। ब्लैकमेलर को रुपये दो और किस्सा खत्म। पर नहीं, किस्सा तो यहीं से आरम्भ होता है। प्रथम तो यहीं की 'हकीकत' का वास्तविक मालिक जब नजर आता है तो सुनील की कल्पना से परे होता है। वहीं एक कत्ल के केस में सुनील हत्यारे के तौर पर संदिग्ध होता।
कहां तो वह कला की मदद करने निकला था और कहां वह स्वयं एक कल्त के केस में संदिग्ध होकर अपना घर बार छोड़ कर भाग निकलता है। ऐसी परिस्थितियों में सुनील का सदाबहार मित्र रमाकांत उसकी सहायता करता है।
वहीं कला की कलाकारी में सुनील इतना उलझ जाता है की वह समझ ही नहीं पाता की सत्य क्या है और असत्य क्या है? कौन कातिल है क्यों कत्ल किया उसने?
लेकिन अंत में सुनील यह पता लगा ही लेता है की असली कातिल कौन था, और कत्ल क्यों किया गया। और सुनील द्वारा कातिल को खोजना बहुत रोचक है। जहाँ एक बार लगता है उपन्यास की कहानी खत्म हो गयी वहीं से एक नया अध्याय सामने आ जाता है।
उपन्यास के कुछ पात्रों के विषय में चर्चा-
उपन्यास में मायाराम का किरदार रोचक है, वह अंतिम परिस्थितियों तक में हार स्वीकार नहीं करता। वह स्वयं को निडर दिखाने का खूब प्रयास करता है। वहीं कला की कलाकारी, और कला के पति आनंदप्रकाश चावला के भतीजे अरविन्द का किरदार भी महत्वपूर्ण और रोचक है।
सुनील के उपन्यासों में इंस्पेक्टर प्रभुदयाल का किरदार विशेष होता है, पर प्रस्तुत उपन्यास में प्रभुदयाल का किरदार कम है और इंस्पेक्टर जगन्नाथ का किरदार विशेष है।
- स्टार नाइट क्लब और निरंजन के बारे में विस्तृत जानकारी के लिये पढिये उपन्यास ‘खतरनाक ब्लैकमेलर।
- सुनील सीरीज के ब्लैकमेलिंग आधारित उपन्यास
- ब्लैकमेलर की हत्या
- शैतान की मौत
- खतरनाक ब्लैकमेलर
- झूठी औरत
'झूठी औरत' उपन्यास मूलतः Erle Stanley Gardner द्वारा रचित 'The Case of the velvet claws' (1933) का भारतीयकरण है। कुछ पात्रों के नाम और लिंग परिवर्तित कर दिये गये हैं।
सुरेन्द्र मोहन पाठक जी द्वारा रचित 'झूठी औरत' की कहानी एक ब्लैकमेल के किस्से आरम्भ होती है, और शीघ्र ही यह एक हत्या में परिवर्तित हो जाती है। उस हत्यारे को ढूंढने का कार्य सुनील करता है।
उपन्यास की कहानी रोचक और सजावट लिये हुये है। आदि से अंत तक पूर्णतः मनोरंजक और पठनीय रचना है।
उपन्यास- झूठी औरत
लेखक - सुरेन्द्र मोहन पाठक
प्रकाशन- 1968
सुनील सीरीज- 21
मूल उपन्यास - The Case of the velvet claws - Erle Stanley Gardner -1933
उपन्यास में मायाराम का किरदार रोचक है, वह अंतिम परिस्थितियों तक में हार स्वीकार नहीं करता। वह स्वयं को निडर दिखाने का खूब प्रयास करता है। वहीं कला की कलाकारी, और कला के पति आनंदप्रकाश चावला के भतीजे अरविन्द का किरदार भी महत्वपूर्ण और रोचक है।
सुनील के उपन्यासों में इंस्पेक्टर प्रभुदयाल का किरदार विशेष होता है, पर प्रस्तुत उपन्यास में प्रभुदयाल का किरदार कम है और इंस्पेक्टर जगन्नाथ का किरदार विशेष है।
- स्टार नाइट क्लब और निरंजन के बारे में विस्तृत जानकारी के लिये पढिये उपन्यास ‘खतरनाक ब्लैकमेलर।
- सुनील सीरीज के ब्लैकमेलिंग आधारित उपन्यास
- ब्लैकमेलर की हत्या
- शैतान की मौत
- खतरनाक ब्लैकमेलर
- झूठी औरत
'झूठी औरत' उपन्यास मूलतः Erle Stanley Gardner द्वारा रचित 'The Case of the velvet claws' (1933) का भारतीयकरण है। कुछ पात्रों के नाम और लिंग परिवर्तित कर दिये गये हैं।
सुरेन्द्र मोहन पाठक जी द्वारा रचित 'झूठी औरत' की कहानी एक ब्लैकमेल के किस्से आरम्भ होती है, और शीघ्र ही यह एक हत्या में परिवर्तित हो जाती है। उस हत्यारे को ढूंढने का कार्य सुनील करता है।
उपन्यास की कहानी रोचक और सजावट लिये हुये है। आदि से अंत तक पूर्णतः मनोरंजक और पठनीय रचना है।
उपन्यास- झूठी औरत
लेखक - सुरेन्द्र मोहन पाठक
प्रकाशन- 1968
सुनील सीरीज- 21
मूल उपन्यास - The Case of the velvet claws - Erle Stanley Gardner -1933
Shandar
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