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Sunday, 25 July 2021

443. ब्लैकमेलर की हत्या- सुरेन्द्र मोहन पाठक

सुनील सीरीज का पांचवां उपन्यास
ब्लैकमेलर की हत्या- सुरेन्द्र मोहन पाठक, 1966
सुनील सीरीज-05

दीवानचन्द एक ऑटोमोबाइल कम्पनी का मैनेजर था जिसे अपनी काम के सिलसिले में अक्सर राजनगर से बाहर जाना पड़ता था। ऐसे ही एक टूर के बाद एक सुबह उसे चिट्ठी मिली जिसमें उस पर इल्जाम लगाया गया था कि अपने पिछले टूर के दौरान उसने एक मासूम लड़की की जिंदगी तबाह डाली थी और उसकी सारी कारगुजारियों का कच्चा चिट्ठा उसकी बीवी के सामने खोल देने की धमकी दी गयी थी। जबकि खुद दीवानचंद का दावा था कि उसने कुछ गलत नहीं किया था। (उपन्यास अंश) 

  ब्लैकमेलर की हत्या सुरेन्द्र मोहन पाठक जी द्वारा लिखा जाने वाला और सुनील सीरीज का पांचवा उपन्यास है। उपन्यास का कथानक एक ब्लैकमेलर की हत्या और संबंधित है। शक तो संबंधित सभी लोगों पर जाता है पर हत्यारा तो कोई एक ही था। बस उसे हत्यारे की तलाश पर आधारित है यह उपन्यास। उपन्यास में हालांकि यह मूल कथानक है लेकिन कहानी सिर्फ इतनी ही नहीं है और भी बहुत कुछ उपन्यास में रोचक और पठनीय है। 
   सुनील ब्लास्ट नामक पत्र का रिपोर्टर है। और उसे जासूसी का शौक है। दीवान चंद नामक व्यक्ति सुनील से मदद मांगने आता है क्योंकि उसे ब्लैकमेल किया जा रहा था।
“केवल इतना कि उसका नाम दीवानचन्द वर्मा है, वह एक आटो मोबाइल कम्पनी में मैनेजर है, विवाहित है, एक डेढ वर्ष का बच्चा भी है, पिछले दिनों कम्पनी के ही काम से विशालगढ गया था और वहां किसी मुसीबत में फंस गया था। उसी मुसीबत से बचने के लिए वह मेरी सहायता चाहता है और एवज में वह धन के मामले में कुछ भी करने के लिये तैयार है।”

      सुनील दीवान चंद की मदद करना स्वीकार करता है और ब्लैकमेलर का पता लगाने के लिए विशाल गढ जाता है, क्योंकि विशालगढ में ही वह सब कुछ हुआ था जिसकी वजह से दीवान चंद को ब्लैकमेल किया जा रहा था।

सुनील ने विशालगढ में कदम रखते ही काम शुरु कर दिया था।
विशालगढ में हाई सोसाइटी में सोनिया का नाम लगभग सभी जानते थे - इसलिए सुनील को उसका पता पा लेने में दिक्कत नहीं हुई। सोनिया जाफरी मेंशन की दूसरी मंजिल के एक फ्लैट में अकेली रहती थी। दीवानचन्द द्वारा प्राप्त जानकारी के अनुसार यही वह इमारत थी जहां उसने रहस्यमय ढंग से रात गुजारी थी

       लेकिन दीवान चंद के बाद अब सोनिया का भी यही कहना है की उसने दीवान चंद के साथ कोई आपत्तिजनक रात नहीं गुजारी।
      सुनील के लिए यह परेशानी है की तस्वीर में दर्शायी गयी औरत का चेहरा स्पष्ट नहीं था। और सोनिया और दीवान चंद का कहना है की उन्होंने एक साथ कोई आपत्तिजनक रात नहीं गुजारी, हालांकि दोनों का यह भी कहना है की दीवान चंद रात यहीं गुजारी थी।
तो फिर यह ब्लैकमेलिंग का क्या चक्कर था?
और यह ब्लैकमेलर कौन था?
     सोनिया को आधार बना कर सुनील कुछ और संदिग्ध लोगों तक पहुंचता है। अपने स्तर पर कुछ जानकारियां एकत्र करता है। लेकिन इसी घटनाक्रम में सुनील के हाथ कुछ महत्वपूर्ण जानकारियाँ लगती है। और उसे एक व्यक्ति पर शक भी होता है। लेकिन जिस पर शक होता है एक दिन वह भी विशालगढ से दूर एक अन्य शहर में होटल के कमरे में मृत पाया जाता है।
     आखिर उस व्यक्ति का हत्यारा कौन था?
ब्लैकमेलिंग के साथ-साथ सुनील को अब एक हत्यारे की भी तलाश है।
    और उपन्या का अंत हत्यारे की तलाश के साथ होता है। और अपने बुद्धि चातुर्य से सुनील एक ब्लैकमेल की हत्या के रहस्य को सुलझा लेता है।
     
पाठक जी के उपन्यासों में कुछ दृश्य बेहद समानता रखते हैं, जो लगभग उपन्यासों में, विशेष कर मर्डर मिस्ट्री उपन्यासों में दृष्टिगत होते हैं। उन्हीं में से एक दृश्य यहाँ देखें
- लेकिन द्वार अच्छी तरह बन्द न हुआ । द्वार और चौखट में एक झिरी बाकी रह गई लेकिन सोनिया ने उसे बन्द करने की चेष्टा नहीं की।
     ऐसा दृश्य पाठक जी के बहुत से उपन्यासों में मिल जाता है।

सुरेन्द्र मोहन पाठक जी की एक विशेषता है और वह विशेषता है उनके उपन्यासों में आयी कुछ विशेष पंक्तियाँ। हालांकि यह पंक्तियाँ उनके एक अन्य पात्र सुधीए के उपन्यास में विशेष तौर पर मिलती हैं, लेकिन इस उपन्यास में भी कुछ रोचक कथन/पंक्तियाँ पढनीय है।
- शराब और औरत दो ऐसी चीजें हैं जो इन्सान की अक्ल पर पर्दा डाल देती हैं ।
- नारी के जीवन की पूर्णता ही इसी में है कि किसी एक पुरुष में अपना विलय कर दे।

    अक्सर सुनील के उपन्यासों में सुनील और प्रमिला की नोकझोंक चलती रहती है। क्योंकि सुनील अक्सर अपनी कार्य शैली के चलते कहीं न कहीं कोई न कोई पंगा ले बैठता है। इसी से प्रमिला उसे लगती-प्रमिला विश्वासपूर्ण स्वर में बोली - “यह केस में अपनी गर्दन फंसवाये बिना मानता ही नहीं। यह हमेशा कोई न कोई ऐसा काम कर देता है जिससे पुलिस इसी पर सन्देह करने लगती है । किसी दिन इसी आंखमिचौली के चक्कर में यह फांसी के तख्ते पर पहुंच जाएगा।”

   पहली बार इस उपन्यास में प्रमिला सुनील के साथ सक्रिय नजर आती है। वह इस केस के सिलसिले में सुनील के लिए एक्शन फाइट करती भी नजर आती है। हालांकि यह फाइट छोटी सी और एक महिला के साथ है। अन्य उपन्यासों में प्रमिला का ऐसा किरदार नजर नहीं आता, हालांकि बाद के सुनील सीरीज के उपन्यासों में प्रमिला भी नजर नहीं आती।

उपन्यास का कथानक अच्छा है पर समापन में वह अपनी वास्तविकता से दूर होता नजर आता है। अंत में सुनील द्वारा हत्या और बच्चे के विषय में एक काल्पनिक थ्योरी तैयार करना और फिर उस थ्योरी का सत्य साबित हो जाना उपन्यास की वास्तविकता को कमजोर बनाता है। उपन्यास के समापन के अतिरिक्त उपन्यास रोचक है।

प्रस्तुत मर्डर मिस्ट्री आधारित एक रोचक और रहस्य से परिपूर्ण उपन्यास है।

उपन्यास- ब्लैकमेलर की हत्या
लेखक-     सुरेन्द्र मोहन पाठक
प्रकाशन- 1966
सुनील सीरीज- 05

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