Wednesday, 27 October 2021

469. दिमाग की हत्या- सजल कुशवाहा

एक थ्रिलर उपन्यास
दिमाग की हत्या- सजल कुशवाहा
कुशवाहा कांत का भतीजा
Hindi Pulp Fiction में पचास के दशक में‌ कुशवाहा कांत जी का नाम सर्वाधिक चर्चित रहा है। जहाँ एक तरफ कुशवाहा कांत जी ने रोमांस धारा के उपन्यास लिखे वहीं लाल रेखा जैसा प्रसिद्ध क्रांतिकारी उपन्यास लिख कर वे अमर हो गये।
    कुशवाहा कांत जी के परिवार के अन्य सदस्य भी उपन्यास लेखन में सक्रिय रहे। कुशवाहा कांत जी की पत्नी रानी कुशवाहा के नाम से भी कुछ उपन्यास प्रकाशित हुये। कुशवाहा कांत जी के भाई जयंत कुशवाहा ने भी उपन्यास लिखे और फिर जयंत कुशवाहा के पुत्र सजल कुशवाहा ने भी उपन्यास लेखन में अपनी प्रतिभा दिखायी। 
      सजल कुशवाहा जी ने सामाजिक और जासूसी दोनों तरह के उपन्यास लिखे हैं। मैंने काफी समय पूर्व सजल कुशवाहा जी का उपन्यास 'मेरी हुई औरत' पढा था। लम्बे समय पश्चात उनका उपन्यास 'दिमाग की हत्या' पढा।
    अब चर्चा करते हैं उपन्यास 'दिमाग की हत्या' की। 
इकबाल सिंह वाहिया, रिटायर्ड पुलिस सुपरिटेन्डेट कभी  क्रिमिनल इन्वेस्टिगेशन डिपार्टमेंट में हुआ करते थे। और अब प्राइवेट स्तर पर गुप्तचर कार्य में रुचि रखते हैं। और एक दिन जब मिस्टर वाहिया अपने घर में बैठ थे तभी एक लड़की उनसे मिलने आयी।
   
"मैं आपसे मिलना चाहती थी मिस्टर वाहिया।...... कुछ लोग मेरा पीछा कर रहे हैं। इससे पहले की वे लोग मुझे पकड़ कर ले जाये मैं आपको अपनी दुखद कहानी सुना देना चाहती हूँ। मुझे आपकी सहायता की जरूरत है" (पृष्ठ-08)
      इकबाल सिंह वाहिया ने उसे आश्वस्त किया की वह यहाँ सुरक्षित है और अपनी व्यथा बता सकती है। उस डरी- सहमी लड़की ने आगे बताया-  "मेरा नाम अर्चना ठाकुर है।"- अन्तोगत्वा उसका कण्ठ फूटा,-"मेरे पिता की मृत्यु उस समय हो गयी थी जब मैं छोटी सी बच्ची थी। अपनी वसीयत में उन्होंने जायदाद की देखभाल के लिए अपने सालीसीटर को ट्रस्टी नियुक्त किया था जो उनके मित्र भी थे।...."
    और यहीं से अर्चना ठाकुर के जीवन में अँधेरा छाने लगा। परिवार और सोलिस्टर के संबंध बदले, कुछ सदस्य पृथ्वी से आकाशवासी हो गये और सोलिस्टर के पद पर नये सदस्य आ गये।
       अब सबकी नजर अर्चना ठाकुर की दौलत पर थी और इसके लिए आवश्यक था एक ऐसा खेल खेला जाये की अर्चना ठाकुर की जायदाद का फायदा कोई और उठा सके। और इसलिये अर्चना ठाकुर राह का काँटा नजर आने लगी।
      और अब अर्चना ठाकुर डाॅक्टर राव के मेंटल हाॅस्पिटल से भाग कर इकबाल सिंह वाहिया के पास सुरक्षा और मदद के लिये आयी थी।
     इकबाल सिंह वाहिया ने उसे विश्वास दिलाया की वह उसकी मदद करेगा और इस षड्यंत्र के पीछे जो लोग हैं उनकी खबर भी लेगा।
    वाहिया ने अपने असिस्टेंट अजय देव शाही को अर्चना ठाकुर की सुरक्षा पर नियुक्त किया।
   
वाहिया के सामने अब दो काम थे एक तो डाॅक्टर दामोदर राव के हाॅस्पिटल को देखना और दूसरा सोलिस्टर की जाँच करना।
सोलिस्टर से संबंधित उसे कोई विशेष जानकारी नहीं मिली तब वाहिया ने दूसरी बार अस्पताल का चक्कर लगाया।
डाॅक्टर राव का  प्राइवेट मेंटल हाॅस्पिटल महिला कर्मचारियों के लिए वास्तव में एक जेल खाना।.......एक तो अस्पताल बना ही सुनसान जगह पर था जहाँ शाम होते ही सन्नाटा भायँ-भायँ करने लगता था, दूसरे पागल औरतों और मर्दों की बेतहाशा चीखें रात में वातावरण को और भी भयावह बना देती थी।
        और यहाँ वाहिया ने कुछ ऐसा देखा जो उसके लिए जान का खतरा बन गया।
         अब वाहिया साहब गायब हैं, और अजय उनको ढूंढता है। अजय के साथ विशेष प्रशिक्षण कुत्ता टाइगर भी है लेकिन वह वाहिया का पता नहीं लगा पाते कि आखिर वाहिया साहब कहां गायब और क्यों गायब हो गये।
   यहाँ अस्पताल का वर्णन और कार्यशैली बहुत घृणित है।‌ कहने को यहाँ मेंटल लोग हैं लेकिन उन लोगों को यहाँ लाने का मकसद बहुत ही घृणित है। और वहाँ के कर्मचारी विशेष कर मसूद अली तो पागल औरतों के साथ संबंध स्थापित करता है। हालांकि एक मात्र महिला कर्मचारी अन्ना इसका विरोध करती है पर डाक्टर राव का विशेष मसूद अली फिर भी अपनी हरकतें बंद नहीं करता।
     डाॅक्टर दामोदर राव भी कहने को डाॅक्टर है लेकिन वह भी पूरा शैतान है। वह लोगों के 'दिमाग की हत्या' करता है। लोगों को पागल बनता है और उन‌ पर अपना एक्सपेरिमंट भी करता है। और उसकी हार्दिक इच्छा है इकबाल सिंह वाहिया पर अपने प्रयोग करने की।
       यह एक थ्रिलर उपन्यास है इसलिये कहानी में कोई घुमाव नहीं है। हां यह जिज्ञासा निरंतर बनी रहती है कि आगे क्या होगा और लेखक महोदय ने इस जिज्ञासा को अंत तक जीवित रखा है और विशेष कर अंत में तो यह जिज्ञासा और भी प्रबल हो जाती है।
        
उपन्यास में एक संस्था का वर्णन है जो इकबाल सिंह वाहिया द्वारा निर्मित है। कोई भी मुसीबत का मारा व्यक्ति '00' डायल कर के गुप्त रूप से इस संस्था से मदद प्राप्त कर सकता है।
इसी संस्था का मैंने पहले भी किसी और उपन्यास में वर्णन पढा है बस वहाँ इसके निर्माता का नाम अलग था।
उपन्यास में कुछ प्रश्न बस प्रश्न ही रह गये उनके उत्तर न मिल पाये। शायद लेखक महोदय इस बात को भूल गये की कुछ प्रश्न अभी बाकी हैं, उन्होंने खलपात्र के अंत के साथ उपन्यास का अंत भी लिख दिया।
   वैसे देखा जाये तो इस उपन्यास का यह अंत उपन्यास कथा के अनुरूप नहीं है, हालांकि खलपात्र डाॅक्टर का अंत सही है, पर उपन्यास का नहीं।
     सजल कुशवाहा का मैंने यह दूसरा उपन्यास पढा है। इनके कथानक रोचक होते हैं। कहानी में कसावट और तीव्र गति प्रभावित करती है। पर उपन्यासों में कुछ कमियां भी दृष्टिगत होती हैं, जिन पर ध्यान दिया जाना आवश्यक है।
    प्रस्तुत उपन्यास में इकबाल सिंह वाहिया एक जासूसी है और अजय देव शाही उसका सहायक है। वहीं उपन्यास 'मेरी हुयी औरत' में अजय देवशाही ही मुख्य जासूस होता है। जैसा की उपन्यास का शीर्षक है 'दिमाग की हत्या' तो उपन्यास इस शीर्षक को सार्थक करता है।‌
   प्रस्तुत उपन्यास भी रोचक और एक अलग कथानक पर आधारित पठनीय रचना है।
उपन्यास-   दिमाग की हत्या
लेखक -    सजल कुशवाहा
प्रकाशन-   चिनगारी प्रकाशन, वाराणसी
पृष्ठ   ‌‌‌-       134

  अन्य समीक्षा
मरी हुई औरत - सजल कुशवाहा
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4 comments:

  1. में जयंत कुशवाहाजी के उपन्यासों का हमेशा से मुरीद रहा हु। उनके भतीजे सजल कुशवाहाजी का यह उपन्यास काफी समय ढूंढने के बाद पढ़ने को मिला।कुछ कमियों के बावजूद यह उपन्यास बहुत रोचक और पठनीय लगा।विशेषकर डॉक्टर का पात्र बहुत ही प्रभावित करता है। इनके लिखे अन्य उपन्यास भी अवश्य पढ़ना चाहूंगा।

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    1. हाँ, डाॅक्टर का किरदार गजब है।।
      उपन्यास का समापन किसी और ढंग से होना चाहिए था।।

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  2. मैने इनके अभी तक एक भी उपन्यास नही पढ़े हैं। जब भी कभी इनके उपन्यास मिले जरूर पढ़ना चाहूंगा।।

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  3. यह उपन्यास मेरे पास भी मौजूद है। लेख ने उपन्यास के प्रति रुचि जागृत कर दी है। जल्द ही उपन्यास पढ़ने की कोशिश रहेगी।

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