Sunday, 4 April 2021

430. अभिज्ञान- नरेन्द्र कोहली

सुदामा और श्री कृष्ण मिलन कथा
अभिज्ञान- नरेन्द्र कोहली

भारतीय समाज में श्री सुदामा और श्री कृष्ण की मित्रता का उदाहरण खूब दिया जाता है। दोनों के मिलन को लेकर कुछ कहानियाँ भी प्रचलित हैं। और इन कहानियों में चमत्कार ज्यादा है। 
       नरेन्द्र कोहली द्वारा लिखित उपन्यास 'अभिज्ञान' पढा जो की सुदामा और श्री कृष्ण की मित्रता पर आधारित है, लेकिन इस में  चमत्कारिक घटनाएं नहीं है बल्कि समाज में व्याप्त उन घटनाओं को नया रूप देकर, सत्य के निकल दर्शाया गया है।
  ‌नरेन्द्र कोहली जी की यही विशेषता है कि उनकी रचनाओं में पौराणिक कहानियों को वैज्ञानिक रूप से प्रस्तुत किया है और यह सत्य के निकट प्रतीत भी होता है। 
- श्री कृष्ण के सोलह हजार रानियाँ की कहानी?
- सुदामा को श्री कृष्ण से मिलने पर  क्या मिला?
- युधिष्ठिर द्यूत (जुआ) में क्यों शामिल हुये?
- कृष्ण का गोपियों की मटकी फोड़ना?
- गोपियों और राधा का प्रसंग।

  आदि बहुत सी घटनाओं को नया रूप दिया गया है।
इसके अतिरिक्त कर्म, परिश्रम, फल आदि सिद्धांतों पर गहन चिंतन भी है।    उपन्यास का आरम्भ एक बाबा नामक पात्र से होता है जिसके साथ सुदामा चर्चा करते हैं, कर्म और उसके फल की।
  सुदामा जो की एक गरीब ब्राह्मण है लेकिन वह किसी के मांगना पसंद नहीं करता है। वहीं उसकी आर्थिक स्थिति बहुत दयनीय होती है।
  बाबा उसे समझाते हैं कि - प्रत्येक गृहस्थ को धन की आवश्यकता तो होती ही है।
   लेकिन सुदामा का अध्ययनशील जीवन ग्रंथ तो रच सकता है पर धन कमाने में सक्षम नहीं है।
   और एक दिन सुदामा अपने बचपन के‌ सहपाठी मित्र श्री कृष्ण से मिलने द्वारका नगरी जा पहुंचता है, हालांकि उसका उद्देश्य कुछ मांगना नहीं है। और श्री कृष्ण का कर्म सिद्धांत तो मांगने के पक्ष में भी नहीं है।
   हालांकि कहीं न कहीं सुदामा के मन में एक भाव उदय होता है कि कृष्ण उसकी आर्थिक मदद कर दें लेकिन स्वाभिमान सुदामा इस भाव को व्यक्त नहीं करते।
    उपन्यास का अधिकांश भाग सुदामा और श्री कृष्ण की विभिन्न विषयों पर चर्चा पर आधारित है।
  कुछ बचपन के प्रसंग, तात्कालिक सामाजिक परिस्थितियाँ, कौरव- पाण्डव घटनाक्रम और विशेष कर कर्म और फल का सिद्धांत आदि।
कर्म के सिद्धांत की व्याख्या देखें-
देखो! क्रिया-प्रतिक्रिया के वैज्ञानिक नियम में गेंद, दीवार और फेंकना—ये तीन उपकरण हैं। गेंद कीचड़ में मारी जायेगी तो वह लौटेगी तो नहीं ही, उल्टे हम पर कीचड़ के छींटे पड़ेंगे। ढूह में मारोगे तो न लौटेगी, न छींटे पड़ेंगे।” कृष्ण ने सुदामा को देखा, “वैसे ही यह देखना पड़ेगा कि जिस मनुष्य की भलाई की जा रही है, वह दीवार है, ढूह है या कीचड़ है। भलाई की प्रतिक्रिया भी उसी रूप में होगी।”

एक और उदाहरण देखें जो मनुष्य का सामाजिक महत्व प्रकट करता है-
     “सामान्यतः हमारा समाज उस व्यक्ति को बड़ा आदमी मानता है, जिसके पास धन हो; पर वास्तविक बड़ा आदमी वह नहीं होता।” सुदामा बोले, “बड़ा आदमी वह होता है, जो अपनी पशु-वृत्तियों को त्याग सके और अपनी साधना, त्याग तथा तपस्या से मानव जाति के कल्याण के लिए कोई मार्ग निकाल सके... । आदमी बड़ा न धन से होता है, न ज्ञान से, आदमी बड़ा होता है सदाचार से...।”

      मनुष्य का समाज के प्रति योगदान और उसके फल का चित्रण भी बहुत अच्छा है। मनुष्य सामाजिक कर्म नहीं करना चाहता पर समाज से चाहता बहुत कुछ है।
सामान्यतः लोग अपने वैयक्तिक कर्म में ही व्यस्त रहते हैं और अच्छा समाज तथा अच्छी व्यवस्था बनाने के लिए तनिक भी कार्य नहीं करते। इस प्रकार अपने सामाजिक अकर्म से, एक दुष्ट व्यवस्था बनाने में, प्रकारान्तर से सहायक होते हैं; और जब उस अकर्म का दण्ड उन्हें मिलता है तो उनकी समझ में नहीं आता कि ऐसा क्यों ही रहा है।”
- जो समाज राजनीतिक कर्म नहीं करता, अपने लिए अच्छी राजनीतिक व्यवस्था बनाने की ओर ध्यान नहीं देता, उसे उस अकर्म का फल मिलता है।

'अभिज्ञान' उपन्यास कहने को चाहे श्री कृष्य-सुदामा की मित्रता पर आधारित है लेकिन यह वास्तव में गीता के 'कर्म सिद्धांत' को रेखांकित करता है।
  गीता के कर्म सिद्धांत की बहुत सरल शब्दों में व्याख्या की गयी है जिसमें कहीं भी पाण्डित्य प्रदर्शन नहीं है।
उपन्यास- अभिज्ञान
लेखक- नरेन्द्र कोहली
फाॅर्मेट- ebook on kindle

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