Saturday, 16 January 2021

413. डबल क्राॅस- प्रकाश भारती

प्रकाश भारती का प्रथम उपन्यास
डबल क्रॉस- प्रकाश भारती, थ्रिलर

           लोकप्रिय जासूसी उपन्यास साहित्य में अनेक लेखक हुये हैं, जिन्होंने इस साहित्य को समृद्ध किया है। लेकिन अधिकांश लेखक एक अघोषित परम्परा से आगे नहीं बढ पाये। लेकिन कुछ ऐसे लेखक भी हुये जिन्होंने नये कीर्तिमान स्थापित जिये। ऐसा ही एक नाम है प्रकाश भारती।
   प्रकाश भारती जी ने लोकप्रिय उपन्यास में अपने लेखन का पदार्पण थ्रिलर उपन्यास से किया। इनके उपन्यास काल्पनिक होते हुये भी वास्तविकता के करीब होते थे। उपन्यास में स्थापित नायक कहीं से भी अमानवीय कार्य करते नजर नहीं आते। 
डबल क्राॅस- प्रकाश भारती, प्रथम उपन्यास
            डबल क्राॅस- प्रकाश भारती, प्रथम उपन्यास
   प्रकाश भारती जी का प्रथम उपन्यास 'डबल क्रॉस' पढा जो मुझे वास्तव में बहुत रूचिकर लगा।
यह कहानी अकस्मात मिले धन की। उस धन की जिसे पाने की जिसने भी कोशिश की वह जान से हाथ धो बैठा। और संयोग से यह धन एक युवा पहलवान को मिला और फिर कहानी में हैरत कर देने वाले घटनाक्रम आते चले गये।    उपन्यास साहित्य में धन-दौलत को लेकर बहुत से उपन्यास लिखे गये हैं, जिनमें विशेषकर कर डकैती और उसके बाद धोखाधड़ी पर आधारित हैं। लेकिन प्रस्तुत उपन्यास इस परम्परागत घटनाओं से अलग है, हालांकि बाद में इस से मिलते-जुलते घटनाक्रम जैसे और भी बहुत से उपन्यास बाजार में आये।
   सरफराज खान काले धंधे का बादशाह था लेकिन उसके कुछ साथी उसके साथ डबल क्रॉस करना चाहते थे। सरफराज का कहना था- हमारे धंधे का असूल है कि राजदार और डबल क्रॉस करने वाले को कभी जिंदा न छोड़ना।
    लेकिन हराम के रूपये को कोई नहीं छोड़ना चाहता, चाहे उसके लिए जान क्यों न चली जाये। इसलिए तो सरफराज के साथी उसके साथ डबल क्रॉस करने का मानस बना बैठे। और डबल क्रॉस के बाद दौलत गायब।

चौबीस वर्षीय जस्सी छह फुटा कडियल जवान पट्ठा था। गोरा-चिट्टा रंग, चेहरा-मोहरा खूबसूरत और व्यक्तित्व आकर्षक। वह पंजाब के फगवाड़ा जिले का रहने वाला था। छह साल पहले इंटरमीडिएट करने के बाद रोजगार की तलाश में दिल्ली आया था। (पृष्ठ-22,23) और वह पैसे के मामले में... लापरवाह था। (पृष्ठ-23)   जस्सी दिल का साफ और शरीर का पहलवान था। दिल्ली में मित्र मनमोहन की सहायता से वह कई दंगल जीत चुका था। किस्मत ने एक बार उसका दरवाजा खटखटाया और अकस्मात वह एक ऐसी दौलत को हाथ लगा बैठा जिसके पीछे कई कत्ल हो चुके थे।
     लेकिन सरफराज जैसा व्यक्ति अपनी दौलत को यूं ही गवा देने वाला न था। वह भी हाथ धोकर अपनी दौलत की खोज में निकल लिया।
    लेकिन वाह री दौलत... जहाँ भी कई हर किसी के दिल में डबल क्रॉस का विचार भर ही देती थी।
  वह चाहे मालिक- नौकर हो, दोस्त-दोस्त हो या फिर कोई प्रेमी- प्रेयसी। लेकिन इस दौलत के लिए डबल क्रॉस करने वालो के लिए सरफराज ने एक ही रास्ता तय कर रखा था और वह रास्ता था मौत का।
सरफराज खान देखने में खानदानी रईस मालूम होता था। ऊंचा कद, बलिष्ठ शरीर, खूब गोरा, खूबसूरत रौबीला चेहरा और बेहद आकर्षक व्यक्तित्व। (पृष्ठ-43) लेकिन उतना ही कमीना, दो नंबर के धंधे का मालिक, मौत का व्यापारी।
जस्सी पहलवान का मन विचलित था, वह तय ना कर पाया की इस अकस्मात मिले धन का क्या करे। वह मनमोहन के साथ कोई प्लान बनाना चाहता था और मनमोहन रीटा की प्यारी भरी दुनिया में व्यस्त था।
- जस्सी को पता नहीं यह दौलत किस की है।
- मनमोहन उसे वह दौलत वापस नहीं करने देना चाहता था।
- सरफराज को पता नहीं की वह दौलत किस के पास है।
- रीटा साथ रह कर भी नहीं जानती की दौलत का सच क्या है?
और वह दौलत, मौत बन कर सबके साथ घूम रही है।
 क्या सरफराज जैसा धनी व्यक्ति सिर्फ उस दौलत के लिए इतना व्यग्र था, उसी के लिए कत्ल कर रहा था या कहानी कुछ और थी? 
    दिल, दोस्ती और दौलत पर आधारित यह उपन्यास एक अनोखी और दिलचस्प कहानी लिये हुये है। जो डबल क्रॉस करते वाले अनोखे पात्रों से सुसज्जित है। लेकिन कुछ साफ दिल भी थे जिनके लिए दौलत से महत्वपूर्ण जिंदगी थी। उनको पता था, सरफराज से बच गये तो दौलत तो और भी मिल जायेगी पर जिंदगी न मिलेगी दोबारा।
  
अंत में उपन्यास का यादगार संवाद-
औरत पर हाथ उठाना अपने आप में आदमी की गिरावट, कमजोरी और हार का सबूत है। (पृष्ठ-160)

'डबल क्रॉस' एक बेहतरीन थ्रिलर है जो भरपूर मनोरंजन करने में सक्षम है। कहानी आदि से अंत तक कसावट लिये और तेज रफ्तार है जो एक बैठक में पढने में विवश कर सकती है।
उपन्यास- डबल क्रॉस
लेखक-    प्रकाश भारती
प्रकाशक- साधना पॉकेट बुक्स, दिल्ली 

2 comments:

  1. उपन्यास रोचक लग रहा है। प्रकाश भारती के कुछ उपन्यास आजकल किंडल पर मिल रहे हैं। अगर यह भी उनमें से एक रहा तो पढ़ने की कोशिश रहेगी। आभार।

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    1. हां, आजकल वे अपने उपन्यास किंडल पर एक प्रकाशन के माध्यम से प्रकाशित करवा रहे हैं।

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