प्यार, दोस्ती और दौलत
मदभरे नयना- कुशवाहा कांत
मदभरे नयना- कुशवाहा कांत
- उसकी आँखें थी ही इतनी खूबसूरत की हर कोई उसक दीवाना हो उठता था।
- उसकी आँखें हरिण सी चंचल थी।
- उसके 'मदभरे नयना' हर किसी को मदहोश करने में सक्षम थे।
इन्हीं मदभरे नयनों का शिकार हो गया बसरा के शहंशाह का भाई शहजादा शकीर।
"तुम्हारा नाम क्या है बानू?"- पूछा शहजादे ने।
" मेरा नाम लेकर क्या करोगे तुम।"
"दिल के कोने में बिठाऊंगा...."-शहजादा बोला।
यह थी प्रेम कथा शहजादे शकीर और लैली की।
लेकिन महोब्बत करनी जितनी आसान है उसे मंजिल तक लेकर जाना उतना ही मुश्किल है। और यहाँ तो मुश्किलें दोनों तरफ थी।
लैली के भाई को अमीरों से नफरत थी। वह कहता है- "मैं हमेशा अमीरों को नफरत की निगाह से देखता आ रहा हूँ... खुदा न करे कि किसी अमीर को कभी हमदर्दी और मुहब्बत की नजर से देखना पड़े....।"- बोला सादिक।
दूसरी तरफ शहंशाह एक कबीले की लड़की को अपने महल में नहीं देखना चाहते थे।
- सादिक को अमीर लोगों से नफरत क्यों थी?
- क्या शहंशाह इस प्यार को स्वीकार कर पाये?
'मदभरे नयना' एक प्रेमकथा है। एक शहजादे और एक गरीब लड़की के प्रेम की कहानी। लेकिन दोनों की अपनी-अपनी परेशानियां है और अपनी-अपनी इच्छाएं हैं। लेकिन दोनों के साथ-साथ निस्वार्थ मित्र भी उपस्थित हैं जो हर मुसीबत में साथ हैं। लेकिन परिस्थितियों हर जगह एक जैसी नहीं रहती, परिस्थितियाँ बदलती हैं और सब कुछ बदल जाता है।
उपन्यास में पात्रों का व्यवहार और कुछ घटनाएं बहुत अच्छी हैं जो उपन्यास में रोमांच पैदा करती हैं।
एक अच्छा दोस्त-
उपन्यास में शहजादे शकीर के मित्र अजीम का किरदार बहुत अच्छा है। एक सच्चे मित्र के कर्तव्य का निर्वाह किया है। वह सच्चा मित्र, बहादुर व्यक्ति और हास्य व्यक्तित्व का स्वामी है।
चाहे जैसी भी परिस्थितियाँ हो, शहजादे का जैसा भी व्यवहार हो लेकिन अजीम हर जगह एक कर्तव्यनिष्ठ मित्र की तरह उपस्थित है।
-अपनी मित्रता के निर्वाह के लिए जिंदा रहेगा और अपने मित्र के लिए बड़ा से बड़ा त्याग करके दिखा देगा। (पृष्ठ-88)
अजीम का हास्य दृश्य भी देख लें।
- अजीम अपने घोड़े पर जा चढा।
शहजादा और लैली दूसरे घोड़े पर सवार थे।
......
"अपने घोड़ों पर तुम्हे रहम नहीं आता?"
"क्यों...? इसमें रहम की क्या बात है?"- आश्चर्य में भरकर शहजादे ने पूछा।
" एक जानवर पर दो-दो जानवर लदे हुए हो...क्या हालत हो रही होगी बेचारे की।"-अजीम ने कहा। (पृष्ठ-103)
बगदाद का बादशाह-
बसरा और बगदाद में दुश्मनी है, लेकिन दोनों बादशाहों का उपन्यास में जो प्रथम दृश्य रचा गया है, वह हास्य और रोमांच वाला है।
उपन्यास में शहजादे और लैली का प्यार पठनीय है, अजीम और अब्दुला जैसे पात्रों की दोस्ती के लिए सर्वस्व वार देने का जज्बा पठनीय है।
प्यार, दोस्ती और धन और संदेह आदि का मिश्रण कर रचा गया यह उपन्यास प्रेम के स्थापित प्रतिमानों को नये आयाम देता है। दोस्ती की नीव को और मजबूत बनाता है और यह भी सिद्ध करता है की प्रेम के समक्ष धन का कोई महत्व नहीं है।
सिसकते अरमानों की यह रोचक दास्तान पठनीय है।
उपन्यास- मदभरे नयना
लेखक- कुशवाहा कांत
प्रकाशक- सुबोध पॉकेट बुक्स, दिल्ली
पृष्ठ- 239
बहुत खूब जब हाथ में आएगा उपन्यास तो जरूर पढूंगा
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