Friday, 20 March 2020

278. वीणा- यज्ञदत्त शर्मा

वीणा और विनोद की प्रेम कथा   

वीणा- यज्ञदत्त शर्मा, उपन्यास


      वीणा मधुर-मधुर बजती चल 
     नूतन संस्कृति का हो प्रसार,
     जिसका नूतन मानव उदार
     बन, कर जीवन के मुक्त द्वार
     भर ले उर में सबका दुलार
     वीणा सुधर-सुधर चलती चल
     वीणा मधुर-मधुर बजती चल।।


यह गीत गाती है गायिका वीणा। शहर की प्रसिद्ध गायिका वीणा के मधुर कंठ की ख्याति दिल्ली के संगीत-प्रेमियों में प्रतिष्ठा प्राप्त कर चुकी थी। उसके स्वर का चमत्कार पुष्प की सुगन्धित के समान संगीत-प्रेमियों के हृदयों में भर गया था। (पृष्ठ-5)
        शहर के प्रतिष्ठित वणिक का पुत्र विनोद इसी वीणा से प्रेम करता है। लेकिन विनोद के पिता इस प्रेम से खुश नहीं है वे विनोद को कहते हैं- " तू अच्छी तरह से समझ ले कि वह वेश्या की लड़की वीणा मेरी पुत्र-वधू बनकर इस घर में प्रवेश नहीं कर सकती।"(पृष्ठ-23)
लेकिन विनोद सब बंधन तोड़ कर वीणा के पास ही आना चाहता है- "मैं समझ नहीं पाया कि मैं कोठी की पक्की दीवार से टकरा कर लौट आया या तुम्हारे अंदर ही कोई आकर्षण शक्ति है जिसने मुझे खींच लिया।" (पृष्ठ-25)
        यही डर वीणा के मन में भी है- "विनोद, तुम मेरे जीवन में विनोद बनकर आये हो। कहीं किसी दिन थक कर रुदन का कारण न बन जाना।" (पृष्ठ-27)
        विनोद और वीणा एक नये समाज का निर्माण करना चाहते हैं- नये समाज की नींव डालना सरल कार्य नहीं है। इसे खोदने का प्रयास करने पर हमारी कुदालों के नीचे अनेकों पाषाण आयेंगे, अनेकों चट्टानें आयेंगी, जिनसे टकरा-टकरा कर कभी-कभी हमारी कुदालें चलती-चलती बंद हो जायेंगी।" (पृष्ठ-26)
- क्या विनोद- वीणा मिल पाये?
- क्या विनोद- वीणा अपने नये समाज का निर्माण कर पाये?
- क्या हश्र हुआ इस प्रेम कहानी का?
यह तो यज्ञदत्त शर्मा का उपन्यास 'वीणा' पढकर ही जाना जा सकता है।



        कोराना वायरस (COVID-19) के चलते विद्यालय में बच्चों का अवकाश है और मार्च माह में चल रही बाॅर्ड परीक्षाएँ भी अब तो स्थगित कर दी गयी हैं। अध्यापकवर्ग को नियमानुसार विद्यालय आना है। सारा दिन विद्यालय में बैठे रहने से अच्छा है की कुछ पढ लिया जाये तो प्रथम दिवस पर विद्यालय पुस्तकालय से यज्ञदत्त शर्मा जी का उपन्यास 'वीणा' उठाया। छोटा सा उपन्यास एक बैठक में पढा जा सकता है।
         'वीणा' उपन्यास की कहानी एक वेश्या और गायिका की पुत्री 'वीणा' पर आधारित है। वीणा संगीत को समर्पित युवती है। "संगीत मेरी साधना है, प्रदर्शन की वस्तु नहीं।"-वीणा(पृष्ठ-16)। वीणा के संपर्क में विनोद आता है और यहीं से एक प्रेम कथा आरम्भ होती है। लेकिन विनोद का परिवार से प्रेम से खुश नहीं है। दिवाकर एक रेडियो गायक है जो वीणा को एक गायिका के तौर पर पसंद करता है और उसे विनोद-वीणा का प्रेम पसंद नहीं। वह विनोद से कहता है- कहां वह वेश्या की लड़की और कहां तुम्हारा ब्राह्मण परिवार। उसने एक दम चाँद को छू लेने का नहीं पकड़ लेने का प्रयास किया है। " -दिवाकर (पृष्ठ-103)
         इस कहानी के मुख्य पात्र वीणा और विनोद हैं। इसके अतिरिक्त विनोद के पिताजी और वीणा- विनोद का मित्र दिवाकर है। जहां विनोद के पिताजी इस प्रेम से नाराज हैं वहीं दिवाकर भी चाहता है की किसी तरह 'वीणा-विनोद' के प्रेम का अंत हो और वीणा उसे मिले, इसके लिए वह प्रयास भी करता है।
उपन्यास बहुत सी सामान्य से घटनाक्रम पर आधारित है। कहीं किसी पात्र को विशेष नहीं उभारा गया। अतिरिक्त प्रयास के अभी उपन्यास में कुछ ट्विस्ट पैदा किये जा सकते थे।

उपन्यास की कुछ रोचक पंक्तियाँ जो मुझे अच्छी लगी। यहाँ प्रस्तुत है।
"मैं विरासत की चीजों पर विश्वास नहीं करता वीणा। मैं तो जीवन के संघर्ष और प्रेम से किसी वस्तु को प्राप्त करने का पक्षपाती हूँ।" (पृष्ठ-10)
"दुनियां का हर व्यक्ति हर वस्तु को पृथक-पृथक दृष्टि से देखता है। हर व्यक्ति कि दृष्टि पृथक -पृथक होती है और फिर अनुमान भी पृथक ही होता है।" (पृष्ठ-11)
"विश्वास मानव जीवन की सबसे बड़ी उपलब्धि है।" (पृष्ठ-27)
उपन्यास पृष्ठ
          यह छोटा सा उपन्यास एक सामान्य सी कथा पर आधारित है। उपन्यास में कुछ विशेष नहीं है। कहीं कुछ चौंकाने वाला, नया या प्रभावशाली मोड़ नहीं है। जैसा पाठक को आरम्भ में अनुमान होता है उसी आधार पर चलता-चलता यह उपन्यास अपने गंतव्य तक पहुंचता है।
साधारण कहानी के साथ बस एक बार पढ सकते हैं, न पढे तो भी चलेगा।

उपन्यास- वीणा
लेखक-    यज्ञदत्त शर्मा
प्रकाशक- अशोक पॉकेट बुक्स, रूपनगर, दिल्ली
पृष्ठ-        103
संस्करण-अक्टूबर, 1960

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