किस्सा खूनी इमारत का
खौफनाक इमारत- इब्ने सफी
इमरान सीरीज-01
इब्ने सफी साहब द्वारा लिखित 'खौफनाक इमारत' इमरान सीरीज का पहला उपन्यास है।
इमरान सूरत से ख़ब्ती नहीं लगता था। ख़ूबसूरत और दिलकश नौजवान था। उम्र सत्ताईस के लगभग रही होगी! सुघड़ और सफ़ाई-पसन्द था। तन्दुरुस्ती अच्छी और जिस्म कसरती था। अपने शहर की यूनिर्विसटी से एम.एस.सी. की डिग्री ले कर इंग्लैण्ड चला गया था और वहाँ से साइन्स में डॉक्टरेट ले कर वापस आया था। उसका बाप रहमान गुप्तचर विभाग में डायरेक्टर जनरल था। इंग्लैण्ड से वापसी पर उसके बाप ने कोशिश की थी कि उसे कोई अच्छा-सा ओहदा दिला दे, लेकिन इमरान ने परवा न की।
इमरान भी गुप्तचर विभाग में आ गया।
यह कहानी है एक खौफनाक इमारत की। एक ऐसी इमारत जो बंद है, जिसके विषय में बहुत सी अफवाहे फैली हुयी हैं।
इस इमारत की बनावट पुराने ढंग की थी। चारों तरफ़ सुर्ख़ रंग की लखौरी ईंटों की ऊँची-ऊँची दीवारें थीं और सामने एक बहुत बड़ा फाटक था जो ग़ालिबन सदर दरवाज़े के तौर पर इस्तेमाल किया जाता रहा होगा।
और एक समय आता है उस इमारत में एक के बाद एक कत्ल होने आरम्भ हो जाते हैं। इमारत और भी ज्यादा कुख्यात हो जाती है।- ‘यह इमारत पिछले पाँच बरसों से बन्द रही है। क्या ऐसी हालत में यहाँ एक लाश की मौजूदगी हैरत-अंगेज़ नहीं है।’
सबसे महत्वपूर्ण काम था इमारत के मालिक का पता लगाने का। - उसे यह भी तो मालूम करना था कि वह ख़ौफ़नाक इमारत दरअस्ल थी किसकी। अगर उसका मालिक गाँव वालों के लिए अजनबी था तो ज़ाहिर है कि उसने वह इमारत ख़ुद ही बनवायी होगी। क्योंकि इमारत बहुत पुराने ढंग पर बनी हुई थी। लिहाज़ा ऐसी सूरत में यही सोचा जा सकता था कि मौजूदा मालिक ने भी उसे किसी से ख़रीदा ही होगा।
-
- आखिर क्या रहस्य था इस इमारत का?
- आखिर वहाँ कत्ल होने क्यों आरम्भ हुये?
- सिलसिलेवार कत्ल क्यों हो रहे थे?
- क्या इमरान इन रहस्यों से पर्दा हटा पाया?
- कौन थे असली मुजरिम?
इन सब प्रश्नों के उत्तर तो इब्ने सफी साहब के उपन्यास 'खौफनाक इमारत' पढकर ही मिल सकते हैं।
उपन्यास में लेड़ी जहाँगीर और उसके पति का किरदार अच्छा है, हालांकि सर जहाँगीर का किरदार कम है।
एक जज साहब और उनकी पुत्री राबिया का भी अच्छा चित्रण मिलता है।
उपन्यास में इमरान की बहन सुरैया का भी चित्रण मिलता है।
एक महत्वपूर्ण पात्र अयाज भी है लेकिन उसका वर्णन अंत में ही आता है।
इमरान का साथी है फैयाज- काम इमरान करता था और अख़बारों में नाम फ़ैयाज़ का छपता था। यही वजह थी कि उसे इमरान का सब कुछ बर्दाश्त करना पड़ता था।
उपन्यास की कहानी एक रहस्य पर आधारित है। रहस्य वह रहस्य है इमारत और उसमें होने वाले सिलसिलेवार कत्ल। जब एक के बाद एक कत्ल होने आरम्भ होते हैं तो चारों तरफ इमारत के चर्चे होने आरम्भ हो जाते हैं। जहां लोग इमारत को भूतिया मानते हैं वहीं इमरान इसके मूल कारणों को खोजना चाहता है। लेकिन इमारत के अंदर उसे कुछ ऐसे सनसनीखेज रहस्य ज्ञात होते है की वह स्वयं आश्चर्यचकित रह जाता है।
अपने बल और बुद्धि कौशल के आधार पर इमरान कुछ ऐसे रहस्यों से पर्दा उठाता है की देश भी सन्न रह जाता है।
इमरान का यह प्रथम कारनामा वास्तव में बहुत रोचक है। लेकिन उपन्यास में कत्ल करने का जो तरीका है वह मुझे अजीब सा प्रतीत होता है। इब्ने सफी जी के 'फरीदी-हमीद' सीरीज में ऐसे कातिल अवश्य होते हैं।
इमरान एक तेज दिमाग व्यक्ति है लेकिन वह अपनी हास्य प्रवृत्ति के कारण अपना एक अलग मसखरे व्यक्ति का प्रभाव बना कर रखता है। उसकी हास्य प्रवृति उपन्यास में रोचकता बढाने का काम करती है।
एक उदाहरण देखें-
आधे घण्टे बाद वह टिप टॉप नाइट क्लब में दाख़िल हो रहा था, लेकिन दरवाज़े में क़दम रखते ही इंटेलिजेंस डिपार्टमेंट के एक डिप्टी डायरेक्टर से मुठभेड़ हो गयी जो उसके बाप का क्लासफ़ेलो भी रह चुका था।
‘ओहो! साहबज़ादे, तो तुम अब इधर भी दिखाई देने लगे हो?’
‘जी हाँ! अक्सर फ़्लाश खेलने के लिए चला आता हूँ।’ इमरान ने सिर झुका कर बड़ी आज्ञाकारिता से कहा।
‘फ़्लाश! तो क्या अब फ़्लाश भी?’
‘जी हाँ! कभी-कभी नशे में दिल चाहता है।’
‘ओह...तो शराब भी पीने लगे हो।’
‘वह क्या अर्ज़ करूँ...क़सम ले लीजिए जो कभी तन्हा पी हो। अक्सर शराबी तवाइफ़ें भी मिल जाती हैं जो पिलाये बग़ैर मानतीं नहीं...!’
‘लाहौल विला क़ूवत...तो तुम आजकल रहमान साहब का नाम उछाल रहे हो।’
‘अब आप ही फ़रमाइए!’ इमरान मायूसी से बोला। ‘जब कोई शरीफ़ लड़की न मिले तो क्या किया जाये...वैसे क़सम ले लीजिए। जब कोई मिल जाती है तो मैं तवाइफ़ों पर लानत भेज कर ख़ुदा का शुक्र अदा करता हूँ।'
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‘इमरान, तुम आदमी कब बनोगे?’ फ़ैयाज़ एक सोफ़े में गिरता हुआ बोला।
‘आदमी बनने में मुझे कोई फ़ायदा नज़र नहीं आता...अलबत्ता मैं थानेदार बनना ज़रूर पसन्द करूँगा।’
'मरता वही है जो काम शुरू करता है। यह हम शुरू ही से देखते रहे हैं।’
निष्कर्ष-
इमरान सीरिज का प्रथम उपन्यास काफी रोचक और दिलचस्प है। बस कातिल का तरीका थोड़ा अजीब सा लगता है। बाकी मनोरंजन की दृष्टि से उपन्यास पठनीय है।
उपन्यास- खौफनाक इमारत
लेखक- इब्ने सफी
प्रकाशक- हार्पर काॅलिंस
इमराम सीरीज-01
खौफनाक इमारत- इब्ने सफी
इमरान सीरीज-01
इब्ने सफी साहब द्वारा लिखित 'खौफनाक इमारत' इमरान सीरीज का पहला उपन्यास है।
इमरान सूरत से ख़ब्ती नहीं लगता था। ख़ूबसूरत और दिलकश नौजवान था। उम्र सत्ताईस के लगभग रही होगी! सुघड़ और सफ़ाई-पसन्द था। तन्दुरुस्ती अच्छी और जिस्म कसरती था। अपने शहर की यूनिर्विसटी से एम.एस.सी. की डिग्री ले कर इंग्लैण्ड चला गया था और वहाँ से साइन्स में डॉक्टरेट ले कर वापस आया था। उसका बाप रहमान गुप्तचर विभाग में डायरेक्टर जनरल था। इंग्लैण्ड से वापसी पर उसके बाप ने कोशिश की थी कि उसे कोई अच्छा-सा ओहदा दिला दे, लेकिन इमरान ने परवा न की।
इमरान भी गुप्तचर विभाग में आ गया।
यह कहानी है एक खौफनाक इमारत की। एक ऐसी इमारत जो बंद है, जिसके विषय में बहुत सी अफवाहे फैली हुयी हैं।
इस इमारत की बनावट पुराने ढंग की थी। चारों तरफ़ सुर्ख़ रंग की लखौरी ईंटों की ऊँची-ऊँची दीवारें थीं और सामने एक बहुत बड़ा फाटक था जो ग़ालिबन सदर दरवाज़े के तौर पर इस्तेमाल किया जाता रहा होगा।
और एक समय आता है उस इमारत में एक के बाद एक कत्ल होने आरम्भ हो जाते हैं। इमारत और भी ज्यादा कुख्यात हो जाती है।- ‘यह इमारत पिछले पाँच बरसों से बन्द रही है। क्या ऐसी हालत में यहाँ एक लाश की मौजूदगी हैरत-अंगेज़ नहीं है।’
सबसे महत्वपूर्ण काम था इमारत के मालिक का पता लगाने का। - उसे यह भी तो मालूम करना था कि वह ख़ौफ़नाक इमारत दरअस्ल थी किसकी। अगर उसका मालिक गाँव वालों के लिए अजनबी था तो ज़ाहिर है कि उसने वह इमारत ख़ुद ही बनवायी होगी। क्योंकि इमारत बहुत पुराने ढंग पर बनी हुई थी। लिहाज़ा ऐसी सूरत में यही सोचा जा सकता था कि मौजूदा मालिक ने भी उसे किसी से ख़रीदा ही होगा।
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- आखिर क्या रहस्य था इस इमारत का?
- आखिर वहाँ कत्ल होने क्यों आरम्भ हुये?
- सिलसिलेवार कत्ल क्यों हो रहे थे?
- क्या इमरान इन रहस्यों से पर्दा हटा पाया?
- कौन थे असली मुजरिम?
इन सब प्रश्नों के उत्तर तो इब्ने सफी साहब के उपन्यास 'खौफनाक इमारत' पढकर ही मिल सकते हैं।
उपन्यास में लेड़ी जहाँगीर और उसके पति का किरदार अच्छा है, हालांकि सर जहाँगीर का किरदार कम है।
एक जज साहब और उनकी पुत्री राबिया का भी अच्छा चित्रण मिलता है।
उपन्यास में इमरान की बहन सुरैया का भी चित्रण मिलता है।
एक महत्वपूर्ण पात्र अयाज भी है लेकिन उसका वर्णन अंत में ही आता है।
इमरान का साथी है फैयाज- काम इमरान करता था और अख़बारों में नाम फ़ैयाज़ का छपता था। यही वजह थी कि उसे इमरान का सब कुछ बर्दाश्त करना पड़ता था।
उपन्यास की कहानी एक रहस्य पर आधारित है। रहस्य वह रहस्य है इमारत और उसमें होने वाले सिलसिलेवार कत्ल। जब एक के बाद एक कत्ल होने आरम्भ होते हैं तो चारों तरफ इमारत के चर्चे होने आरम्भ हो जाते हैं। जहां लोग इमारत को भूतिया मानते हैं वहीं इमरान इसके मूल कारणों को खोजना चाहता है। लेकिन इमारत के अंदर उसे कुछ ऐसे सनसनीखेज रहस्य ज्ञात होते है की वह स्वयं आश्चर्यचकित रह जाता है।
अपने बल और बुद्धि कौशल के आधार पर इमरान कुछ ऐसे रहस्यों से पर्दा उठाता है की देश भी सन्न रह जाता है।
इमरान का यह प्रथम कारनामा वास्तव में बहुत रोचक है। लेकिन उपन्यास में कत्ल करने का जो तरीका है वह मुझे अजीब सा प्रतीत होता है। इब्ने सफी जी के 'फरीदी-हमीद' सीरीज में ऐसे कातिल अवश्य होते हैं।
इमरान एक तेज दिमाग व्यक्ति है लेकिन वह अपनी हास्य प्रवृत्ति के कारण अपना एक अलग मसखरे व्यक्ति का प्रभाव बना कर रखता है। उसकी हास्य प्रवृति उपन्यास में रोचकता बढाने का काम करती है।
एक उदाहरण देखें-
आधे घण्टे बाद वह टिप टॉप नाइट क्लब में दाख़िल हो रहा था, लेकिन दरवाज़े में क़दम रखते ही इंटेलिजेंस डिपार्टमेंट के एक डिप्टी डायरेक्टर से मुठभेड़ हो गयी जो उसके बाप का क्लासफ़ेलो भी रह चुका था।
‘ओहो! साहबज़ादे, तो तुम अब इधर भी दिखाई देने लगे हो?’
‘जी हाँ! अक्सर फ़्लाश खेलने के लिए चला आता हूँ।’ इमरान ने सिर झुका कर बड़ी आज्ञाकारिता से कहा।
‘फ़्लाश! तो क्या अब फ़्लाश भी?’
‘जी हाँ! कभी-कभी नशे में दिल चाहता है।’
‘ओह...तो शराब भी पीने लगे हो।’
‘वह क्या अर्ज़ करूँ...क़सम ले लीजिए जो कभी तन्हा पी हो। अक्सर शराबी तवाइफ़ें भी मिल जाती हैं जो पिलाये बग़ैर मानतीं नहीं...!’
‘लाहौल विला क़ूवत...तो तुम आजकल रहमान साहब का नाम उछाल रहे हो।’
‘अब आप ही फ़रमाइए!’ इमरान मायूसी से बोला। ‘जब कोई शरीफ़ लड़की न मिले तो क्या किया जाये...वैसे क़सम ले लीजिए। जब कोई मिल जाती है तो मैं तवाइफ़ों पर लानत भेज कर ख़ुदा का शुक्र अदा करता हूँ।'
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‘इमरान, तुम आदमी कब बनोगे?’ फ़ैयाज़ एक सोफ़े में गिरता हुआ बोला।
‘आदमी बनने में मुझे कोई फ़ायदा नज़र नहीं आता...अलबत्ता मैं थानेदार बनना ज़रूर पसन्द करूँगा।’
'मरता वही है जो काम शुरू करता है। यह हम शुरू ही से देखते रहे हैं।’
निष्कर्ष-
इमरान सीरिज का प्रथम उपन्यास काफी रोचक और दिलचस्प है। बस कातिल का तरीका थोड़ा अजीब सा लगता है। बाकी मनोरंजन की दृष्टि से उपन्यास पठनीय है।
उपन्यास- खौफनाक इमारत
लेखक- इब्ने सफी
प्रकाशक- हार्पर काॅलिंस
इमराम सीरीज-01
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