अंतरराष्ट्रीय अपराधी जाबिर से फरीदी का मुकाबला।
नकली नाक- इब्ने सफी
नकली नाक- इब्ने सफी
एक उपन्यास दो शीर्षक से- 'नकली नाक' और 'नंगी लाश'
कल्पना और जानकारी के घोल से इब्ने सफ़ी ने अपने यादगार जासूसी उपन्यासों का लिबास तैयार किया। कई क़िस्से और किरदार तो चुनौती की तरह आये, मसलन जाबिर जो ‘चालबाज़ बूढ़ा’ के अन्त में फ़रीदी के हाथ से फिसल कर निकल भागा था। इसी जाबिर से ‘नक़ली नाक’ में हम दोबारा रू-ब-रू होते हैं। ‘नक़ली नाक’ बिला शक इब्ने सफ़ी के उन उपन्यासों में शामिल है जिसकी लोकप्रियता कभी कम नहीं होगी और वह आज भी आपको लुभायेगा। आज़मा कर देखिए। इन्स्पेक्टर फ़रीदी के पसन्दीदा मुहावरे में कहें तो न घोड़ा दूर, न मैदान। (ईबुक से)
'नकली नाक' इब्ने सफी साहब का जासूसी दुनिया सीरिज का आठवां उपन्यास है। यह उपन्यास एक कुख्यात अंतरराष्ट्रीय अपराधी जाबिर के कुकारनामों पर आधारित है। फरीदी को एक जाबिर के रामगढ में होने की सूचना मिलती है और वह हमीद के साथ रामगढ को निकल पड़ता है।
‘‘आख़िर आपको अचानक रामगढ़ की क्यों याद आ गयी?’’ हमीद बोला।
‘‘जाबिर...!’’
‘‘ओह... तो आप उसका पीछा नहीं छोड़ेंगे?’’
‘‘मैं क़सम खा चुका हूँ।’’
‘‘क्या आपको उसकी मौजूदगी की कोई पक्की ख़बर है?’’
‘‘नहीं...!’’
‘‘यानी...!’’
‘‘यहाँ कुछ क़िस्से ऐसे हुए हैं जिनकी बिना पर मैं सोचने पर मजबूर हुआ हूँ।’’
रामगढ के नवाबज़ादा शाकिर के रहस्यमय तरीके से मौत हो जाती है। - ‘‘रामगढ़ के नौजवान कबूतरबाज़ रईस की मौत इसी तरह हुई। वह कबूतर पकड़ने की कोशिश कर रहा था। इत्तफ़ाक़ से कबूतर का पंजा लग गया और एक घण्टे के अन्दर उसकी मौत हो गयी।"
फरीदी को लगता है इस तरह के रहस्यपूर्ण कारनामे सिर्फ जाबिर ही कर सकता है। जाबिर के पकड़ने के लिए फरीदी जाल बिछाता है लेकिन वह जाबिर के चालबाज दिमाग को भी जानता है इसलिए वह हमीद से कहता है- ‘‘हमीद मियाँ! मैंने ज़िन्दगी में कभी हार नहीं मानी... मगर मैं मानता हूँ कि मैं उसके सामने स्कूल का बच्चा हूँ... ग़ज़ब का दिमाग़ है ज़ालिम का।’’
लेकिन इस बार फरीदी का मुकाबला एक ऐसे शख्स से है जो अपनी कुख्यात चालबाजी के कारण जाना जाता है। कुख्यात अपराधी जाबिर ऐसी-ऐसी चाल खेलता है की सब हत्प्रभ रह जाते हैं। - मेरा मुक़ाबला ऐसे आदमी से है, जिसके काम करने के तरीक़े सबसे अलग हैं। वह ताबड़-तोड़ ऐसे हमले करता जाता है कि मुख़ालिफ़ को सोचने का मौक़ा ही न मिल सके।
एक संवाद फरीदी और उपन्यास के खल पात्र जाबिर का भी देख लीजिएगा। यह संवाद दोनों पात्रों की दृढ मानसिकता का परिचय देता है।
...लेकिन जाबिर, याद रखो कि तुम ज़्यादा दिनों तक लोगों को धोखा नहीं दे सकते। एक फ़रीदी मर सकता है, लेकिन यह न भूलो कि हज़ारों फ़रीदी पैदा हो सकते हैं।’’ फ़रीदी बोला।
‘‘मुझे परवाह नहीं... मैं अपने रास्ते में आने वाले लोगों को पत्थर के एक मामूली टुकड़े की तरह अपनी ठोकर से हटा देता हूँ।’’
उपन्यास में पठनीय है की जाबिर और फरीदी का मुकाबला क्या रंग लाया। आखिर कैसे नवाबजादे शाकिर की मृत्यु हो गयी और कहानी में कबूतरों का क्या योगदान रहा।
उपन्यास में कुछ बातें मुझे सही नहीं लगी।
- जैसे एक डाकू नाम राहुल है। राहुल नाम डाकू का अहसास नहीं करवाता।
‘‘.....जो हिन्दुस्तान के मशहूर डाकू राहुल को मुर्दा या ज़िन्दा लायेगा।"
- जाबिर अपने मुँह के अंदर आवाज बदलने वाली थैली रखता है।
यह थैली देखते हो। मैं इसे निकाल लूँ तो मेरी आवाज़ सुनते ही तुम बेहोश हो जाओ... इसमें एक गोली छोड़ो... आवाज़ टाइट होगी... दो... औसत... तीन... नर्म... चार... टाइट ज़नाना... पाँच... सुरीली ज़नाना आवाज़... समझे।
- और अंत में इब्ने सफी साहब के उपन्यासों में लगभग प्रमुख किरदार भेस बदलने में इतने दक्ष होते हैं की कोई पहचान नहीं सकता।
-
विशेष कथन-
एक जासूस को हर वक़्त मरने के लिए तैयार रहना चाहिए।’’
इब्ने सफी साहब की एक विशेषता यह भी है की उनके उपन्यासों के सामान्य पात्र भी अकसर दूसरे उपन्यासों में घूमते दिखाई दे जाते हैं। ऐसा इस उपन्यास में भी होता है। कुछ पात्र उपस्थित हैं तो कुछ का वर्णन है।
- कार से नवाब रशीदुज़्ज़माँ और ग़ज़ाला उतर रहे थे। (फरीदी और लियोनार्ड) गजाला खानम
- न मालूम बेचारी शहनाज़ का क्या हाल है।’’ हमीद ने एक ठण्डी साँस ले कर कहा। (औरतफरोश का हत्यारा)
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उपन्यास में पात्रों की सख्या काफी है और उस पर एक सामान नाम के कारण पहचान में समस्या भी आती है।
‘‘लेफ़्टिनेंट बाक़िर... ओ.बी.ई.।’’, लड़का जाकिर, जाबिर, नवाबजादा शाकिर सब नाम एक जैसे लगते हैं। इसके अलावा जज सिद्दीक अहमद,नवाब रशीदुज़्ज़माँ
गजाला खानम, फरीदी, हमीद, माथुर साहब, कुँवर ज़फ़र अली ख़ाँ और भी कुछ गौण पात्र हैं। उपन्यास में 'एक- दो' जगह कुछ और पात्रों के नाम आते हैं पर उनके विषय में कुछ पता नहीं चलता या ये हो सकता है वह मुद्रण की गलती से नाम गलत छप गये हो। जैसे-
अख्तर, रेहाना, तारिक
उपन्यास में कबूतरों का वर्णन भी मिलता है। मेरा स्वयं का शौक रहा है कबूतर बाजी। यह पहली देखने को मिला है की किसी उपन्यास में कबूतरों की नस्ल का वर्णन उपलब्ध है।
यह चाँदना है, यह जोगी बीर, यह ग़फूरी, यह लठमाया गिरबाज़...’’ जाबिर ने अलग-अलग कबूतरों की तरफ़ इशारा किया। यह अफ़्रीकी ‘शीराज़ी’, यह कमरी....
फरीदी के साथी हमीद का उपन्यास में किरदार एक हास्य व्यक्ति का है।
‘‘शाबाश मेरे शेर...!’’ फ़रीदी मुस्कुरा कर बोला। ‘‘तुम्हें राह पर लाने के लिए हमेशा एक औरत की ज़रूरत पड़ती है।’’
‘‘जी हाँ, मेरी पैदाइश के सिलसिले में भी एक औरत की ज़रूरत पड़ी थी।’’ हमीद जल कर बोला।
निष्कर्ष-
एक अपराधी की खोज पर आधारित उपन्यास में बहुत कुछ रोचक है पर उपन्यास में छोटी-छोटी अदृश्य सी कमियां उपन्यास के प्रभाव को सीमित कर देती हैं। फिर भी उपन्यास छोटे कलेवर के अनुसार पढा जा सकता है।
उपन्यास- नकली नाक
लेखक- इब्ने सफी
प्रकाशक- हार्पर काॅलिंस
कल्पना और जानकारी के घोल से इब्ने सफ़ी ने अपने यादगार जासूसी उपन्यासों का लिबास तैयार किया। कई क़िस्से और किरदार तो चुनौती की तरह आये, मसलन जाबिर जो ‘चालबाज़ बूढ़ा’ के अन्त में फ़रीदी के हाथ से फिसल कर निकल भागा था। इसी जाबिर से ‘नक़ली नाक’ में हम दोबारा रू-ब-रू होते हैं। ‘नक़ली नाक’ बिला शक इब्ने सफ़ी के उन उपन्यासों में शामिल है जिसकी लोकप्रियता कभी कम नहीं होगी और वह आज भी आपको लुभायेगा। आज़मा कर देखिए। इन्स्पेक्टर फ़रीदी के पसन्दीदा मुहावरे में कहें तो न घोड़ा दूर, न मैदान। (ईबुक से)
'नकली नाक' इब्ने सफी साहब का जासूसी दुनिया सीरिज का आठवां उपन्यास है। यह उपन्यास एक कुख्यात अंतरराष्ट्रीय अपराधी जाबिर के कुकारनामों पर आधारित है। फरीदी को एक जाबिर के रामगढ में होने की सूचना मिलती है और वह हमीद के साथ रामगढ को निकल पड़ता है।
‘‘आख़िर आपको अचानक रामगढ़ की क्यों याद आ गयी?’’ हमीद बोला।
‘‘जाबिर...!’’
‘‘ओह... तो आप उसका पीछा नहीं छोड़ेंगे?’’
‘‘मैं क़सम खा चुका हूँ।’’
‘‘क्या आपको उसकी मौजूदगी की कोई पक्की ख़बर है?’’
‘‘नहीं...!’’
‘‘यानी...!’’
‘‘यहाँ कुछ क़िस्से ऐसे हुए हैं जिनकी बिना पर मैं सोचने पर मजबूर हुआ हूँ।’’
रामगढ के नवाबज़ादा शाकिर के रहस्यमय तरीके से मौत हो जाती है। - ‘‘रामगढ़ के नौजवान कबूतरबाज़ रईस की मौत इसी तरह हुई। वह कबूतर पकड़ने की कोशिश कर रहा था। इत्तफ़ाक़ से कबूतर का पंजा लग गया और एक घण्टे के अन्दर उसकी मौत हो गयी।"
फरीदी को लगता है इस तरह के रहस्यपूर्ण कारनामे सिर्फ जाबिर ही कर सकता है। जाबिर के पकड़ने के लिए फरीदी जाल बिछाता है लेकिन वह जाबिर के चालबाज दिमाग को भी जानता है इसलिए वह हमीद से कहता है- ‘‘हमीद मियाँ! मैंने ज़िन्दगी में कभी हार नहीं मानी... मगर मैं मानता हूँ कि मैं उसके सामने स्कूल का बच्चा हूँ... ग़ज़ब का दिमाग़ है ज़ालिम का।’’
लेकिन इस बार फरीदी का मुकाबला एक ऐसे शख्स से है जो अपनी कुख्यात चालबाजी के कारण जाना जाता है। कुख्यात अपराधी जाबिर ऐसी-ऐसी चाल खेलता है की सब हत्प्रभ रह जाते हैं। - मेरा मुक़ाबला ऐसे आदमी से है, जिसके काम करने के तरीक़े सबसे अलग हैं। वह ताबड़-तोड़ ऐसे हमले करता जाता है कि मुख़ालिफ़ को सोचने का मौक़ा ही न मिल सके।
एक संवाद फरीदी और उपन्यास के खल पात्र जाबिर का भी देख लीजिएगा। यह संवाद दोनों पात्रों की दृढ मानसिकता का परिचय देता है।
...लेकिन जाबिर, याद रखो कि तुम ज़्यादा दिनों तक लोगों को धोखा नहीं दे सकते। एक फ़रीदी मर सकता है, लेकिन यह न भूलो कि हज़ारों फ़रीदी पैदा हो सकते हैं।’’ फ़रीदी बोला।
‘‘मुझे परवाह नहीं... मैं अपने रास्ते में आने वाले लोगों को पत्थर के एक मामूली टुकड़े की तरह अपनी ठोकर से हटा देता हूँ।’’
उपन्यास में पठनीय है की जाबिर और फरीदी का मुकाबला क्या रंग लाया। आखिर कैसे नवाबजादे शाकिर की मृत्यु हो गयी और कहानी में कबूतरों का क्या योगदान रहा।
उपन्यास में कुछ बातें मुझे सही नहीं लगी।
- जैसे एक डाकू नाम राहुल है। राहुल नाम डाकू का अहसास नहीं करवाता।
‘‘.....जो हिन्दुस्तान के मशहूर डाकू राहुल को मुर्दा या ज़िन्दा लायेगा।"
- जाबिर अपने मुँह के अंदर आवाज बदलने वाली थैली रखता है।
यह थैली देखते हो। मैं इसे निकाल लूँ तो मेरी आवाज़ सुनते ही तुम बेहोश हो जाओ... इसमें एक गोली छोड़ो... आवाज़ टाइट होगी... दो... औसत... तीन... नर्म... चार... टाइट ज़नाना... पाँच... सुरीली ज़नाना आवाज़... समझे।
- और अंत में इब्ने सफी साहब के उपन्यासों में लगभग प्रमुख किरदार भेस बदलने में इतने दक्ष होते हैं की कोई पहचान नहीं सकता।
-
विशेष कथन-
एक जासूस को हर वक़्त मरने के लिए तैयार रहना चाहिए।’’
इब्ने सफी साहब की एक विशेषता यह भी है की उनके उपन्यासों के सामान्य पात्र भी अकसर दूसरे उपन्यासों में घूमते दिखाई दे जाते हैं। ऐसा इस उपन्यास में भी होता है। कुछ पात्र उपस्थित हैं तो कुछ का वर्णन है।
- कार से नवाब रशीदुज़्ज़माँ और ग़ज़ाला उतर रहे थे। (फरीदी और लियोनार्ड) गजाला खानम
- न मालूम बेचारी शहनाज़ का क्या हाल है।’’ हमीद ने एक ठण्डी साँस ले कर कहा। (औरतफरोश का हत्यारा)
---
उपन्यास में पात्रों की सख्या काफी है और उस पर एक सामान नाम के कारण पहचान में समस्या भी आती है।
‘‘लेफ़्टिनेंट बाक़िर... ओ.बी.ई.।’’, लड़का जाकिर, जाबिर, नवाबजादा शाकिर सब नाम एक जैसे लगते हैं। इसके अलावा जज सिद्दीक अहमद,नवाब रशीदुज़्ज़माँ
गजाला खानम, फरीदी, हमीद, माथुर साहब, कुँवर ज़फ़र अली ख़ाँ और भी कुछ गौण पात्र हैं। उपन्यास में 'एक- दो' जगह कुछ और पात्रों के नाम आते हैं पर उनके विषय में कुछ पता नहीं चलता या ये हो सकता है वह मुद्रण की गलती से नाम गलत छप गये हो। जैसे-
अख्तर, रेहाना, तारिक
उपन्यास में कबूतरों का वर्णन भी मिलता है। मेरा स्वयं का शौक रहा है कबूतर बाजी। यह पहली देखने को मिला है की किसी उपन्यास में कबूतरों की नस्ल का वर्णन उपलब्ध है।
यह चाँदना है, यह जोगी बीर, यह ग़फूरी, यह लठमाया गिरबाज़...’’ जाबिर ने अलग-अलग कबूतरों की तरफ़ इशारा किया। यह अफ़्रीकी ‘शीराज़ी’, यह कमरी....
फरीदी के साथी हमीद का उपन्यास में किरदार एक हास्य व्यक्ति का है।
‘‘शाबाश मेरे शेर...!’’ फ़रीदी मुस्कुरा कर बोला। ‘‘तुम्हें राह पर लाने के लिए हमेशा एक औरत की ज़रूरत पड़ती है।’’
‘‘जी हाँ, मेरी पैदाइश के सिलसिले में भी एक औरत की ज़रूरत पड़ी थी।’’ हमीद जल कर बोला।
निष्कर्ष-
एक अपराधी की खोज पर आधारित उपन्यास में बहुत कुछ रोचक है पर उपन्यास में छोटी-छोटी अदृश्य सी कमियां उपन्यास के प्रभाव को सीमित कर देती हैं। फिर भी उपन्यास छोटे कलेवर के अनुसार पढा जा सकता है।
उपन्यास- नकली नाक
लेखक- इब्ने सफी
प्रकाशक- हार्पर काॅलिंस
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