Saturday 23 February 2019

172. जेल डायरी - शेर सिंह राणा

 एक शेर की साहसिक यात्रा।
जेल डायरी- शेरसिंह राणा
             शेर सिंह राणा का नाम सुनते ही दो तस्वीरें सामने आती हैं।   क्या आपने शेर सिंह राणा का नाम सुना है, अगर सुना है तो आपके दिमाग में एक सकारात्मक  तस्वीर उभरी होगी और साथ ही एक नकारात्मक तस्वीर भी। एक सिक्के के दो पक्ष की तरह शेर सिंह राणा का जीवन। जहां एक पक्ष पर सारे देश को गर्व है तो द्वितीय पक्ष पर रोष भी।
     लेकिन शेर सिंह राणा के बारे में एक बात तय है वह है आदमी बहादुर है। ऐसा बहादुर जो शेर की गुफा में जाकर शेर के दाँत तोड़ने की क्षमता रखता है। 
विश्व पुस्तक मेला- नई दिल्ली, 2018
     ‌पहली बार जब यह पता लगा की शेर सिंह राणा ने अपनी आत्मकथा लिखी है तब से मेरे मन में इस किताब को पढने की अदम्य इच्छा बलवती हो उठी। आत्मकथा का शीर्षक और शेर सिंह राणा को कारनामा ही इस किताब को पढने के लिए प्रेरित करता है।

          भारत के महान राजा पृथ्वी राज चौहान और मोहम्मद शहाबुद्दीन गौरी के मध्य हुये तराईन के युद्ध (सन् 1191 और 1192 ई.) को सभी ने पढा ही होगा। प्रथम युद्ध में हारने के बाद गौरी ने द्वितीय युद्ध में कुटिल नीति से युद्ध जीता और पृथ्वी राज चौहान को बंदी बना कर अपने देश गजनी ले गया।  पृथ्वी राज चौहान के एक परममित्र और कवि चंदबरदाई थे। चंदबरदाई ने  'पृथ्वी राज रासो' नामक प्रसिद्ध ग्रंथ की रचना की है। यह वीर रस का एक प्रसिद्ध ग्रंथ है।
                        गौरी ने गजनी ले जाकर पृथ्वी राज चौहान को बंदी बना लिया और चौहान की आँखे खत्म कर दी। पृथ्वी राज चौहान की एक विशेषता थी 'शब्दभेदी' बाण चलाने की। इसी विशेषता के चलते एक 'पद्य' के माध्यम से चंदबराई ने पृथ्वी राज चौहान को गजनी की स्थिति बता दी।
     चार बांस चौबीस गज, अंगुल अष्ट प्रमाण
       ता उपर सुल्तान है,मत चूको चौहान।।
                        चंदबराई के इस संकेत से पृथ्वी राज चौहान ने शब्द भेदी बाण से गौरी को खत्म कर दिया। दोनों मित्रों ने वहीं पर अपनी जीवन लीला भी समाप्त कर ली।
                        गजनी में इन‌ तीनों की समाधी है। गजनी में पृथ्वी राज चौहान‌ की समाधी को अपमानित किया जाता है। बस यही बात शेर सिंह राणा के मन में थी की इस समाधी को भारत लाना है और इस बहादुर व्यक्तित्व ने इस महान कार्य के लिए अपनी जान जोखिम में डाल दी।
                        एक केस के सिलसिले में शेर सिंह राणा को तिहाड़ जेल जाना पड़ा। लेकिन दिल में एक आग सुलग रही थी। वह आग थी पृथ्वी राज चौहान की अस्थियों को भारत लाने की।
                         यह आत्मकथा तिहाड़ से ही आरम्भ होती है।  तिहाड़ से होते हुए बांग्लादेश और वहाँ से काबुल, कांधार तक घूमती है। 

                      जेल डायरी राणा के अपने शब्दों में कही गयी उनकी अपनी कहानी है। इसकी शुरुआत तिहाड़ में फ़रारी के दिन से होती है और फिर राणा के बचपन से होती हुई उनके जीवन की बेहद दिलचस्प और रोमांचक दास्तान बयान करती है। (डायरी के अंतिम पृष्ठ से उद्धृत)
     
         इस आत्मकथात्मक डायरी को पढना रोचक है। कुछ दृश्य तो ऐसे हैं जहाँ साँस तक अटक जाती है। पल पल रोमांच से भरे खतरनाक सफर का जो इस रचना में वर्णन है वह पठनीय है। सिर्फ पठनीय ही नहीं नमन करने योग्य भी है।
              एक व्यक्ति अफगानिस्तान और वह भी तालिबानी आतंकवादियों के क्षेत्र में जाकर ऐसा कार्य करता है जिससे उसकी जान जा सकती है।
             
       तालिबनियों के गढ़ में अपने देश के प्रिय पूर्वज सम्राट पृथ्वीराज चौहान की समाधि को वापस अफ़ग़ानिस्तान से भारत लाने के लिए जा रहा हूँ और आप जानते हैं कि मैं वहाँ से ज़िन्दा वापस आऊँगा इसकी कोई गारण्टी नहीं है।
         क्या उसके कार्य को लोग समझे पायेंगे....इसीलिए शेर सिंह राणा ने सबूत के तौर पर विडियो रिकार्डिंग भी की।
               अगले दिन मैंने और शाहीन भाई ने ढाका की एक दुकान से ही सोनी का हैण्डीकैम, विडियो कैमरा ख़रीदा, जिसकी ज़रूरत अफ़ग़ानिस्तान में मुझे समाधि को खोदते समय उसकी रिकॉर्डिग के लिए चाहिये थी, क्योंकि मैं जानता था कि हमारे देश में ज़्यादा जनसंख्या ऐसी है जो ख़ुद तो देश और समाज के लिए कुछ कर नहीं सकते लेकिन दूसरों के द्वारा किए गये देश भक्ति के कार्यों में कमियाँ ज़रूर निकाल देते हैं। अगर मैं समाधि खोदते समय वहाँ की रिकार्डिग कैमरे से न करूँ तो कोई भी यक़ीन नहीं करता कि मैं अफ़ग़ानिस्तान गया और वहाँ से समाधि लाया।
          शेरसिंह का अफगानिस्तान में पृथ्वी राज चौहान की समाधि ढूंढना भी कोई सरल काम न था। वे निरंतर एक जगह से दूसरी जगह भटकते रहे स्वयं को एक मुस्लिन व्यक्ति के रूप में पेश करते रहे। बहुत सी जगह लोगों को उन पर जासूस का शक  भी होता रहा और कई जगह जान जोखिम में भी डाल दी लेकिन बहादुर आदमी हर जगह, हर मुसीबत से टक्कर लेकर सुरक्षित निकला।
         समाधि ढूढते कई और समाधियाँ तो मिल गयी लेकिन जिसकी खोज थी वह न मिली। स्वयं शेरसिंह भी निराश हो गये। लेकिन जब समाधि मिली तो वह बहुत दुर्गम जगह पर मिली।
     
         लेकिन आप देयक गाँव में नहीं जा सकते हैं, क्योंकि वह तालिबानियों का गाँव है और जिस जगह पर यह गाँव है वो पूरा इलाक़ा तालिबानियों का गढ़ है।
      लेकिन बहादुर आदमी वहाँ भी जा घुसा। इस डायरी का यहाँ से जो अत्यंत रोचक और रोंगटे खड़े करने वाला सफर आरम्भ होता है वह शेरसिंह के कद को और भी बड़ा कर देता है।
       एक जगह तो तालिबानी आतंकवादी शेरसिंह राणा को घेर लेते हैं और नमाज सुनाने को बोलते हैं ताकी तय कर सके यह व्यक्ति मुस्लिम है।
          मैं जब यह अध्याय पढ रहा था तो मेरा सांस रुकने के स्तर पर था। जहाँ तय था एक छोटी सी चूक जान ले सकती है।
          इस रचना में इस यात्रा वृतांत के अलावा भी छोटी छोटी और बहुत सी रोचक बाते हैं जो पठनीय है।
  
    कश्मीर के विषय पर शेरसिंह राणा ने बहुत अच्छा लिखा है।
         कश्मीर का मसला यह है कि वहाँ के महाराज हरिसिंह ने अपने आपको दूसरे राजा-महाराजाओं और सुलतानों-नवाबों की तरह भारत में मिलाया था, इसलिए वह भारतीय हिस्सा है। अगर कश्मीर के लिए भी कोई बोलता है कि वहाँ पर मुसलमान नहीं चाहते कि वे भारत में रहें तो मेरा कहना है कि एक हज़ार साल पहले यहाँ के हिन्दू भी नहीं चाहते थे कि मुहम्मद ग़ोरी भारत पर राज करे।
       ‌‌गाजी कौन होता है और शहीद कौन होता है। मुस्लिम संस्कृति में इसके क्या अर्थ हैं। यह जिज्ञासा शेर सिंह राणा को भी थी और उसका उत्तर भी मिला।
           वह (गौरी)  ग़ाज़ी और शहीद है और उसके जन्म और मरने की तारीख़ भी लिखी थी। मैंने उनसे जब यह पूछा कि ये ग़ाज़ी और शहीद क्यों कहलाये तो उन्होंने मुझे बताया कि ये गाज़ी इसलिए हैं, क्योंकि इन्होंने कई लाख क़ाफिरों को मौत के घाट उतारा था और जो भी क़ाफिरों को मारता है, वह ग़ाज़ी ही कहलाता है। शहीद इसलिए है, क्योंकि इसकी हत्या एक क़ाफिर के हाथों ही हुई थी।
        अफगानिस्तान जो कभी एक हिन्दू क्षेत्र था। अफगानिस्तान में आज भी हिन्दू और सिख धार्मिक स्थल मिल जायेंगे। शेरसिंह राणा जी लिखते हैं। पुराने ग़ज़नी शहर में पहुँच गया जहाँ दान शहीद मन्दिर और तीरथ नाथ जी का मन्दिर था।
           वहाँ मुझे एक हिन्दू परिवार मिला जो उन मन्दिरों की सेवादारी के लिए वहाँ रहता था। इस सेवादार का नाम मिलापचन्द था, जो अपने परिवार के साथ यहाँ रहता था और बहुत ही सज्जन आदमी था। मैंने मन्दिरों में दर्शन किये तो उसने मुझे यह भी बताया ऊपर पहाड़ों पर भैरोनाथ जी का मन्दिर भी है, लेकिन 15 साल से वहाँ जाना बन्द है। इसके बाद मिलापचन्द मुझे पास में ही एक गुरुद्वारे में भी ले गये। मुझे वहाँ दो लोग मिले, जो वहाँ सेवादारी के लिए थे। इनके नाम सरदार गुरुइन्द्रसिंह तथा सरदार कुलदीप सिंह थे। मैंने गुरुद्वारे में भी मत्था टेका और उन दोनों सेवादारों से काफ़ी देर बात की और दोनों ही जगह प्रसाद भी खाया। इन सभी जगहों की वीडियो रिकॉर्डिग भी मैंने अपनी याद के लिए कर ली।
      शेरसिंह राणा ने सभी जगह से कुछ न कुछ सामग्री एकत्र की ताकी पहचान के तौर भारत में दिखा सकें।
     मुहम्मद शहाबुद्दीन ग़ोरी और उसके बड़े भाई गयासुद्दीन ग़ोरी के वालिद मुहम्मद बहाउद्दीन सोम की मज़ार थी।
      मैं वहाँ से 1-1 निशानी यह दिखाने के लिए ले कर आया कि जब हम यह निशानियाँ उन मज़ारों से उठा सकते हैं तो ऐसे ही चुपचाप अगर चाहें तो उन मज़ारों को तोड़ भी सकते हैं, लेकिन मेरी भारतीय सभ्यता ऐसी नहीं है कि हम किसी की मज़ार को तोड़ें या उन्हें किसी तरह का नुक़सान पहुँचायें। ये निशानियाँ तो उन लोगों को लिए चेतावनी है जो लोग हमारे महान सम्राट पृथ्वीराज चौहान की समाधि पर जूते-चप्पल मार कर हमारे हिन्दुस्तान की बेइज़्ज़ती करना चाहते हैं।
      शेर सिंह राणा ने यह सब क्यों किया? यह प्रश्न सभी पाठकों के मन में उठता है इसका उत्तर शेर सिंह राणा ने दिया है। वे सिर्फ भारतीय सम्राट पृथ्वी राज चौहान की अस्थियाँ ही लाते हैं। अन्य किसी भी समाधि/मजार को क्षतिग्रस्त नहीं करते, उनका एक साथी ऐसी कोशिश करता है तो वे उसे मना कर देते हैं।
            हमारा मक़सद सिर्फ अपने भारतीय पूर्वज की क़ब्र को खोद कर वहाँ से उनकी अस्थियाँ निकालना है। मैंने कहा कि वैसे भी किसी मरे हुए की क़ब्र को तोड़ कर उसका अपमान करना हमारी भारतीय सभ्यता नहीं है।
        ‌‌‌शेरसिंह राणा जिस‌ने अपने नाम को सार्थक किया। यह सब उसके अच्छे संस्कारों का परिणाम है। शेरसिंह ने हमेशा अपने नाम के अनुसार जीवन जिया है, क्योंकि वह बहादुर है।
    बहादुर आदमी की बस यही पहचान है कि वह अपने सामने किसी पर ज़ुल्म नहीं होने देता और जब आपने मेरा नाम ही शेर सिंह रखा है तो मुझे तो बहादुरी दिखानी ही पड़ेगी, वरना सब लोग मेरा मज़ाक उड़ायेंगे।
      और शेरसिंह ने ऐसी बहादुरी दिखाई की देश दंग रह गया।
         शेर सिंह राणा की यह आत्मकथात्मक डायरी एक शेर दिल व्यक्ति की कहानी है। जिसने देश के स्वाभिमान के लिए अपनी जान जोखिम में डाल दी। साहित्यिक दृष्टि से हो सकता है डायरी अच्छी न हो लेकिन एक सामान्य पाठक को रुचिकर लगेगी।
       इस रचना में कहीं-कहीं अतिशय वर्णन है जो कथा के प्रवाह को धीमा करता है। संशोधन की बहुत ज्यादा आवश्यकता है।‌ हार्पर जैसे उच्च कोटि के प्रकाशन ने भी कहीं इसमें संशोधन की आवश्यकता पता नहीं क्यों महसूस नहीं की। यां इसे इस दृष्टि से देख सकते हैं जैसा शेर सिंह राणा ने लिखा वैसा का वैसा ही प्रकाशित किया है।
        पठनीय रचना है, अवश्य पढें।
आत्मकथा- जेल डायरी (तिहाड़ से काबुल कंधार तक)
लेखक-       शेर सिंह राणा
प्रकाशक-   हार्पर काॅलिंस
पृष्ठ- ‌  ‌‌‌‌        308 
निम्न लिंक से आप डायरी अंश पढ सकते हैं।
शेर सिंह राणा

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