Sunday, 24 September 2017

63. आखिरी केस- टाइगर

मोनिका पण्डित के पास रात के साढे तीन बजे एक आदमी आया जिसने कत्ल नहीं किया था, लेकिन फिर भी उसे झूठे कत्ल के इल्जाम में फंसाया गया। उसने अपनी सारी कहानी मोनिका पण्डित को सुनाई तो मोनिका पण्डित ने कसम खाई कि वह बाइज्जत बरी करवाएगी और अगर वह नहीं करवा सकी तो ये उसका होगा.....
                       आखिरी केस
प्यार, बेवफाई, दोस्ती, नफरत और इन्वेस्टीगेशन की एक ऐसी अनूठी दास्तान जिसे आप एक बार पढनें बैठेंगे तो जब तक आप कातिल कर बारे में न जान लेंगे आप इस उपन्यास को छोङेंगे नहीं। ( उपन्यास के अंदर के शीर्षक पृष्ठ से)
यह मोनिका पण्डित सीरीज का पांचवा उपन्यास है। 

Nakki lake- Mount Abu
कहानी-


             एडवोकेट मोनिका पण्डित एक ऐसे शख्स का केस हाथ में लेती है जिसमें कातिल के घर से घर से उस शख्स की लाश बरामद होती है जिसे कातिल ने किडनैप करके फिरौती की रकम उसके बाप से मांगी थी। और तो और पुलिस को फिरौती की रकम भी कातिल के घर से बरामद हो जाती है। कातिल चीख-चीख कर खुद के निर्दोष होने की दुहाई देता है, लेकिन किसी को उसकी बात पर यकीन नहीं होता।
  एडवोकेट मोनिका पण्डित जब उसकी कहानी गौर से सुनती है, तब उसे उसकी बेगुनाही का यकीन हो जाता है और फिर वो उसे बेगुनाह साबित करने के लिए सिर पर कफन बांध कर इन्वेस्टिगेशन शुरु कर देती है।
कुछ लोग तो इसे मोनिका पण्डित का आखिरी के मान लेते हैं और मोनिका पण्डित भी स्वीकार करती है अगर वह इस केस को हल न कर सकी तो यह उसका आखिरी केस होगा।

इस कहानी का दूसरा पहलु यो भी है:- करोड़पति सेठ कृष्णकांत की बेटी वन्या अपनी सौतेली माँ से मिलकर स्वयं के नकली अपहरण का नाटक रचती हैं और सेठ कृष्णकांत से चार करोङ की फिरौती मांगती हैं।
इस सारे खेल में उनका सहयोग करता है सजायाफ्ता देहली टाइम्स का पत्रकार शेखर और इसी अपहरण के दौरान इनमें से एक का कत्ल हो जाता है और मुजरिम करार दिया जाता है शेखर को।

- क्या मोनिका पण्डित इस केस को हल कर पायी?
- क्या मोनिका पण्डित ने वकालत छोङ दी?
- स्वयं को निर्दोष बताने वाला शेखर सही था या झूठा?
- क्या था हत्या का रहस्य?
- कैसे पहुंची शेखर के घर लाश व अपहरण की रकम?
- वन्या व अंतरा ने क्यों रची साजिश?
  ऐसे एक नहीं अनेक उलझे प्रश्नों के उत्तर टाइगर (JK VERMA) के उपन्यास आखिरी केस पढने पर ही मिलेंगे।
  
  प्रस्तुत उपन्यास बहुत ही तेज रफ्तार का है, उपन्यास की घटनाएं इस प्रकार घटती हैं की पाठक पृष्ठ दर पृष्ठ उपन्यास में खोता चला जाता है। क्योंकि घटनाओं का क्रम ही इस प्रकार का है की पाठक हत्प्रभ सा रह जाता है। और उपन्यास का क्लाइमैक्स तो पाठक की सोच के बहुत विपरीत है।
     उपन्यास पठनीय है, यह एक उलझी मर्डर मिस्ट्री है। एक ऐसी मर्डर मिस्ट्री जिसमें जिसमें एक हद तक स्वयं मृतक का भी योगदान था। लेकिन तथाकथित हत्यारा, मददगार व स्वयं मृतका भी नहीं जानती थी की इस खेल का परिणाम क्या निकलेगा।

   टाइगर का प्रस्तुत उपन्यास ' आखिरी केस' एक अच्छा व पठनीय उपन्यास है, जो पाठक को निराश नहीं करेगा।
  टाइगर के इसी उपन्यास को आधार बनाकर कंवल शर्मा ने उपन्यास लिखा 'सैकण्ड चांस'। दोनों उपन्यासों की कहानी का आधार एक है, पात्र वही है पर नाम बदले हैं। लेकिन कंवल शर्मा की कहानी का क्लाइमैक्स बहुत ही अलग है।
अगर पाठक को टाइगर के उपन्यास आखिरी केस में  कहीं कुछ कमियाँ नजर आती है तो उसे कंवल शर्मा का सैकण्ड चांस उपन्यास पढना चाहिए।
दोनों उपन्यासों को पढना भी रोचक रहेगा।
 
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उपन्यास- आखिरी केस।
लेखक- टाइगर
ISBN- 978-93-80871-22-6
         - 9 789380  871219
प्रकाशक- राजा पॉकेट बुक्स- दिल्ली
पृष्ठ- 288
मूल्य- 50₹

1 comment:

  1. मोनिका पंडित नाम सुनकर पाठक के मन में केशव पंडित का ख्याल जरूर आएगा। उपन्यास रोचक लग रहा है। सेकंड चांस मेरे पास है लेकिन उसके विषय में कहा जाता है कि उसकी प्रेरणा कँवल जी ने पाठक साहब के उपन्यास से ली थी। नाम अभी मुझे याद नहीं आ रहा। खैर, इसकी कहानी भी मिलती जुलती है ये जानकर अच्छा लगा। पढ़ने की इच्छा है मन में। दखिये कब तक पढ़ना होता है।

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