दिल्ली के विज्ञान भवन में संत जांभोजी के विचारों के प्रचार हेतु एक अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन 18,19.03.2017 को हुआ था।
इस सम्मेलन में एक प्रतिभागी के रूप में में भी शामिल हुआ था। वहाँ से वापस आते वक्त बुराङी रोङ, दिल्ली से मैंने राजा पाॅकेट बुक्स से कुछ उपन्यास खरीदे थे।
वेदप्रकाश शर्मा का अंतिम उपन्यास ' छठी उंगली' संजय गुप्ता का हवेली के दुश्मन के अतिरिक्त टाइगर के पांच उपन्यास इच्छाधारी, जुर्म का चक्रव्यूह, इंसाफ में करुंगा गोलियों की बरसात, हस्ती मिटा दूंगा और अदालत मेरा क्या करेगी।
टाइगर के अन्य उपन्यासों की समीक्षा के बाद अब प्रस्तुत है 'अदालत मेरा क्या करेगी' उपन्यास की समीक्षा।
अदालत मेरा क्या करेगी- टाइगर
प्रस्तुत उपन्यास को हम दो भागों में विभक्त कर सकते हैं। प्रथम भाग वहाँ तक जब गौतम सरीन दुश्मन देश की कैद से मुक्त होकर वापस आता है और दूसरा भाग जब गौतम सरीन हरिपुर आता है।
अगर देखा जाये तो उपन्यास का प्रथम भाग बहुत ही बोरियत है। प्रत्येक पात्र लंबे-लंबे संवाद बोलता है, कई संवाद तो एक-एक पृष्ठ के हैं।
उपन्यास का दूसरा भाग ही उपन्यास को संभाल पाता है, गति देता है और उपन्यास को पढने लायक बनाता है।
हालांकि उपन्यास में इस प्रकार का कोई भाग का विभाजन नहीं है, पर कहानी को देखा जाये तब महसूस होता है की मध्यांतर से पूर्व मध्यांतर के पश्चात वाली कहानी में बहुत फर्क है, मानों दो अलग-अलग व्यक्तियों ने कहानी लिखी हो। अगर उपन्यास का प्रथम भाग न भी होता तो उपन्यास ज्यादा अच्छी बन सकती थी।
कहानी- सेठ शामनाथ चावला एक बिजनेस मैन है और उनकी सोच है की नौकरीपेशा व्यक्ति की कोई जिंदगी नहीं होती।
शामनाथ चावला की पुत्री गीता एक एयरफोर्स के जवान गौतम सरीन से प्यार करती है लेकिन शामनाथ चावला को एक पसंद नहीं की एक बिजनेस मैन की पुत्री एक ऐसे व्यक्ति से प्यार करे व शादी के सपने देखे जिसकी एक निश्चित तनख्वाह है। वो गौतम सरीन व गीता की शादी के लिए मना कर देते हैं।
दूसरी तरफ एक युद्ध के दौरान गौतम सरीन दुश्मन देश में कैद कर लिए जाते हैं और तीन साल बाद उनकी वापसी होती है। यहाँ तक अप उपन्यास का प्रथम भाग सकते हो।
अब बात करें उपन्यास के दूसरे भाग की।
वापसी पर पता चलता है की गीता की शादी हो गयी और गीता व उसका बाप एक बदतर जिंदगी जीने जो मजबूर हैं। कारण गीता का पति उन पर जुल्म करता है।
इस ज़ुल्म से बचाने के लिए गौतम आगे आते है व गीता और शामनाथ चावला को बचाता है।
अब पाठक स्वयं समझ सकता है की उपन्यास के प्रथम व द्वितीय भाग में कोई ज्यादा सामंजस्य नहीं है। प्रथम भाग जहाँ हद से ज्यादा बोरियत है तो वहीं द्वितीय भाग अति तीव्र गति से चलता है जो की पाठक को बाँधें रखने में पूर्णतः सक्षम है।
उपन्यास के संवाद-
उपन्यास के कुछ संवाद पठनीय है।
-"जहाँ रिश्ते होते हैं- भावनात्मक संबंध होते हैं- उनकी बातों का बुरा नहीं माना जाता।"- (पृष्ठ-10)
-"हल जीवन का प्रतीक है और बंदूक मौत का दूसरा नाम है।" (पृष्ठ-54)
-"जिंदगी बङी नायाब चीज हुआ करती है दोस्त- एक बार गुम हो जाए, फिर नहीं मिला करती।' (पृष्ठ-90)
-
उपन्यास में कुछ बातें है जो कहानी की दृष्टि से थोङी अजीब लगती है।
- गीता का पति गीता व अपने ससुर पर अत्याचार करता है, वह भी तब, जब की सब प्रोपर्टी उसके नाम हो चुकी है और बाकी भी भविष्य में उसे मिलने वाली है। इस स्थिति में आदमी ऐसा करेगा थोङा अजीब सा लगता है।
- जब गौतम सरीन युद्ध पर जा रहा होता है तब गीता उससे मिलने आती है, वह भी रात को लेकिन क्यों मिलने आती है कोई कारण स्पष्ट नहीं होता, सिर्फ कुछ लंबे-लंबे संवादों के।
-उपन्यास के मध्यांतर के पुर्व व पश्चात वाले भाग में सामंजस्य नहीं बैठता।
शीर्षक-
जैसा की उपन्यास का शीर्षक है- अदालत मेरा क्या करेगी। वैसा उपन्यास में कुछ भी नहीं है। यहाँ तक की उपन्यास में न तो कोई अदालत का दृश्य है, न कोई जज न कोई वकील।
इस सम्मेलन में एक प्रतिभागी के रूप में में भी शामिल हुआ था। वहाँ से वापस आते वक्त बुराङी रोङ, दिल्ली से मैंने राजा पाॅकेट बुक्स से कुछ उपन्यास खरीदे थे।
वेदप्रकाश शर्मा का अंतिम उपन्यास ' छठी उंगली' संजय गुप्ता का हवेली के दुश्मन के अतिरिक्त टाइगर के पांच उपन्यास इच्छाधारी, जुर्म का चक्रव्यूह, इंसाफ में करुंगा गोलियों की बरसात, हस्ती मिटा दूंगा और अदालत मेरा क्या करेगी।
टाइगर के अन्य उपन्यासों की समीक्षा के बाद अब प्रस्तुत है 'अदालत मेरा क्या करेगी' उपन्यास की समीक्षा।
अदालत मेरा क्या करेगी- टाइगर
प्रस्तुत उपन्यास को हम दो भागों में विभक्त कर सकते हैं। प्रथम भाग वहाँ तक जब गौतम सरीन दुश्मन देश की कैद से मुक्त होकर वापस आता है और दूसरा भाग जब गौतम सरीन हरिपुर आता है।
अगर देखा जाये तो उपन्यास का प्रथम भाग बहुत ही बोरियत है। प्रत्येक पात्र लंबे-लंबे संवाद बोलता है, कई संवाद तो एक-एक पृष्ठ के हैं।
उपन्यास का दूसरा भाग ही उपन्यास को संभाल पाता है, गति देता है और उपन्यास को पढने लायक बनाता है।
हालांकि उपन्यास में इस प्रकार का कोई भाग का विभाजन नहीं है, पर कहानी को देखा जाये तब महसूस होता है की मध्यांतर से पूर्व मध्यांतर के पश्चात वाली कहानी में बहुत फर्क है, मानों दो अलग-अलग व्यक्तियों ने कहानी लिखी हो। अगर उपन्यास का प्रथम भाग न भी होता तो उपन्यास ज्यादा अच्छी बन सकती थी।
कहानी- सेठ शामनाथ चावला एक बिजनेस मैन है और उनकी सोच है की नौकरीपेशा व्यक्ति की कोई जिंदगी नहीं होती।
शामनाथ चावला की पुत्री गीता एक एयरफोर्स के जवान गौतम सरीन से प्यार करती है लेकिन शामनाथ चावला को एक पसंद नहीं की एक बिजनेस मैन की पुत्री एक ऐसे व्यक्ति से प्यार करे व शादी के सपने देखे जिसकी एक निश्चित तनख्वाह है। वो गौतम सरीन व गीता की शादी के लिए मना कर देते हैं।
दूसरी तरफ एक युद्ध के दौरान गौतम सरीन दुश्मन देश में कैद कर लिए जाते हैं और तीन साल बाद उनकी वापसी होती है। यहाँ तक अप उपन्यास का प्रथम भाग सकते हो।
अब बात करें उपन्यास के दूसरे भाग की।
वापसी पर पता चलता है की गीता की शादी हो गयी और गीता व उसका बाप एक बदतर जिंदगी जीने जो मजबूर हैं। कारण गीता का पति उन पर जुल्म करता है।
इस ज़ुल्म से बचाने के लिए गौतम आगे आते है व गीता और शामनाथ चावला को बचाता है।
अब पाठक स्वयं समझ सकता है की उपन्यास के प्रथम व द्वितीय भाग में कोई ज्यादा सामंजस्य नहीं है। प्रथम भाग जहाँ हद से ज्यादा बोरियत है तो वहीं द्वितीय भाग अति तीव्र गति से चलता है जो की पाठक को बाँधें रखने में पूर्णतः सक्षम है।
उपन्यास के संवाद-
उपन्यास के कुछ संवाद पठनीय है।
-"जहाँ रिश्ते होते हैं- भावनात्मक संबंध होते हैं- उनकी बातों का बुरा नहीं माना जाता।"- (पृष्ठ-10)
-"हल जीवन का प्रतीक है और बंदूक मौत का दूसरा नाम है।" (पृष्ठ-54)
-"जिंदगी बङी नायाब चीज हुआ करती है दोस्त- एक बार गुम हो जाए, फिर नहीं मिला करती।' (पृष्ठ-90)
-
उपन्यास में कुछ बातें है जो कहानी की दृष्टि से थोङी अजीब लगती है।
- गीता का पति गीता व अपने ससुर पर अत्याचार करता है, वह भी तब, जब की सब प्रोपर्टी उसके नाम हो चुकी है और बाकी भी भविष्य में उसे मिलने वाली है। इस स्थिति में आदमी ऐसा करेगा थोङा अजीब सा लगता है।
- जब गौतम सरीन युद्ध पर जा रहा होता है तब गीता उससे मिलने आती है, वह भी रात को लेकिन क्यों मिलने आती है कोई कारण स्पष्ट नहीं होता, सिर्फ कुछ लंबे-लंबे संवादों के।
-उपन्यास के मध्यांतर के पुर्व व पश्चात वाले भाग में सामंजस्य नहीं बैठता।
शीर्षक-
जैसा की उपन्यास का शीर्षक है- अदालत मेरा क्या करेगी। वैसा उपन्यास में कुछ भी नहीं है। यहाँ तक की उपन्यास में न तो कोई अदालत का दृश्य है, न कोई जज न कोई वकील।
जहाँ मध्यांतर से पुर्व उपन्यास पूर्णतः सामाजिक है वहीं बाद में शुद्ध थ्रिलर।
अगर उपन्यास के प्रथम भाग में लंबे-लंबे संवादों को काट कर छोटा कर दिया जाये और द्वितीय भाग पर ध्यान दिया जाये तो उपन्यास एक बार पढा का सकता है।
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उपन्यास- अदालत मेरा क्या करेगी
लेखक- टाइगर
प्रकाशक- राजा पाॅकेट बुक्स
पृष्ठ- 240
मूल्य- 20₹
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इन दिनों मैंने टाइगर को इंटरनेट पर खूब सर्च किया पर इनके उपन्यासों के बारे में कोई भी जानकारी उपलब्ध नहीं।
पर एक साइट पर इनके बारे में बहुत कुछ मिला।
इनका परिचय, असली नाम आदि।
टाइगर की अन्य जानकारी के लिए यहाँ क्लिक करें।
टाइगर की साइट
अगर उपन्यास के प्रथम भाग में लंबे-लंबे संवादों को काट कर छोटा कर दिया जाये और द्वितीय भाग पर ध्यान दिया जाये तो उपन्यास एक बार पढा का सकता है।
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उपन्यास- अदालत मेरा क्या करेगी
लेखक- टाइगर
प्रकाशक- राजा पाॅकेट बुक्स
पृष्ठ- 240
मूल्य- 20₹
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इन दिनों मैंने टाइगर को इंटरनेट पर खूब सर्च किया पर इनके उपन्यासों के बारे में कोई भी जानकारी उपलब्ध नहीं।
पर एक साइट पर इनके बारे में बहुत कुछ मिला।
इनका परिचय, असली नाम आदि।
टाइगर की अन्य जानकारी के लिए यहाँ क्लिक करें।
टाइगर की साइट
ऐसा मेरे साथ कई बार हुआ है कि एक लेखक की कृति पढ़ते हुए लगता है जैसे उसके लिखने का तरीका पिछली वाली से एकदम जुदा है. एक उपन्यास में ऐसा फर्क महसूस करना मेरे लिए नया अनुभव है. लेकिन ऐसा हो भी सकता है.
ReplyDeleteकिताब के ऊपर लिखा लेख अच्छा है.