ग्यारह हत्याओं की मिस्ट्री
देख लिया तेरा कानून- कर्नल रंजीत
ऐसे सफेदपोश लोगों की अजब-जब कहानी, जो शराफत, इन्सानियत, समाज सेवा का खूबसूरत चोला पहने हुए थे; लेकिन थे वे सिर तक अपराध में डूबे हुए, ढोंगी, मक्कार और घिनौने चेहरे ।
मुखौटेघारी ऐसे लोग, जो कहने को तो कानून के रखवाले थे; लेकिन वास्तव में थे कानून के भयानक दुश्मन ।
एक नौजवान जिसे अगले दिन फांसी दी जाने वाली थी जेल से फरार !
कड़ी सुरक्षा के बीच हथियारों और गोला-बारूद की चोरी, फांसी के फंदों में लटकाकर हत्याएं करने का अनोखा सनसनीखेज तरीका !
चीखते-पुकारते-कराहते बेगुनाह लोगों पर भी अत्याचार, और भी ढेरों रहस्य छिपे पड़े हैं कर्नल रंजीत के इस नये दमदार धमाके में ।
देख लिया तेरा कानून
भयानक सपना
"नहीं -ऽ ऽ ऽ ई ऽऽ ई..!"
एक हृदयवेधी चीख रात के सन्नाटे को चीरती हुई नैनी सेण्ट्रल जेल के वार्ड नम्बर तीन की छत और दीवारों से टकराकर गूंज उठी ।
उस दर्द-भरी चीख को सुनकर वार्ड के सोये कैदी जाग उठे और अपने चारों ओर छाए मलगजी अंधेरे में इधर-उधर देखने लगे ।
"क्या हुआ काका !" चीख सुनते ही मंगल की आंख सबसे पहले खुली थी। वह अपने बिस्तर से उठकर झपटता हुआ वार्ड के दरवाजे के सामने सोये लक्षमन सिंह के पास पहुंच गया था ।
लक्षमन सिंह के उत्तर न देने पर उसने दोनो हाथों से उनके कन्धे पकड़ लिए और उन्हें हिलाते हुए उसने फिर पूछा, "क्या बात है काका ! क्या कोई डरावना नपना देखा था तुमने ?"
लक्षमन सिंह का सारा शरीर पसीने में डूबा हुआ था । उनके हाथ-पांव इस तरह कांप रहे थे जैसे उन्हें जूड़ी चढ़ आई हो। उनकी बड़ी-बड़ी फटी हुई आंखें सलाखों के पार कहीं शून्य में टिकी हुई थीं।
मंगल की आवाज सुनकर वार्ड में सोये कैदी उठकर लक्षमन सिंह के पास आ गए थे। मंगल ने अपने सिरहाने रखें बड़े से गिलास में पानी उड़ेला और तीन-चार साथी कैदियों की सहायता से लक्षमन सिंह को बैठाकर गिलास उनके होंठों से लगा दिया। (उपन्यास के पृष्ठ से)
प्रस्तुत उपन्यास एक मर्डर मिस्ट्री रचना है और जिसमें कुल ग्यारह हत्याएं होती हैं। पहली हत्या होती है इलाहाबाद के प्रसिद्ध 'विजय पैलेस' में।