Sunday, 30 March 2025

लहू से लिख दो जय हिंद- रीमा भारती

बच्चे के दुश्मन कौन थे ?
लहू से लिख दो जयहिंद- रीमा भारती

उस युवती का रंग गोरा था।
खूब गोरा-किन्तु हल्की-सी सुर्खी लिए हुए।
ऐसा लगता था जैसे ताजे मक्खन भरे थाल के निकट से कोई होली खेलने के मूड में आया शैतान बच्चा गुलाल उड़ाता हुआ गुजर गया हो।
युवती की उम्र अधिक से अधिक चौबीस साल की थी। किन्तु उसके चेहरे की मासूमियत व बदन की कामनीयता उसे बीस वर्ष की दर्शा रही थी।
युवती की आंखें वीरान थीं इनमें सोचों के साये थे। उसकी आंखें उस चार वर्षीय गोल मटोल बच्चे को घूर रही थीं जो कि एक बड़ी-सी रंगीन बॉल के पीछे यूं दौड़ रहा था जैसे अब गिरा तब गिरा।
वह बॉल के निकट पहुंचता और झुककर बॉल पकड़ना चाहता। किन्तु बॉल उसके पांव की ठोकर पहले ही खा जाती और दूर चली जाती।
मनोहारी डूबी हुई थी। दृश्य था। केवल वही उस मनोहारी दृश्य में नहीं बल्कि रीमा भी एक बेंच पर बैठी दिलचस्पी से उस दृश्य को देख रही थी।

रीमा !
भारत की सर्वश्रेष्ठ किन्तु गुप्त जासूसी संस्था आई०एस०सी० की नम्बर वन एजेंट जो कि इन दिनों फ्री होने के कारण तफरीह के मूड में थी तथा अपने एक मित्र की प्रतीक्षा कर रही थी।


आज हम बात कर रहे हैं एक्शन उपन्यास लेखिका रीमा भारती जी के उपन्यास 'लहू से लिख दो जय हिंद' । प्रसिद्ध उपन्यासकार दिनेश ठाकुर (प्रदीप कुमार शर्मा) ने एक एक्शन गर्ल पात्र की रचना की थी, जिसना नाम था रीमा भारती। और बाद में इन्हीं दिनेश ठाकुर जी के ग्रुप से रीमा भारती नाम से एक लेखिका का पदार्पण होता है और उसके उपन्यासों की नायिका भी रीमा भारती होती है।
यहां आज हम लेखिका रीमा भारती जी के रवि पॉकेट बुक्स से प्रकाशित उपन्यास 'लहू से लिख दो जय हिंद' की बात कर रहे हैं।

Wednesday, 19 March 2025

शिलाओं पर लिखे शब्द- सुरेन्द्र मनन

एक फ़िल्मकार के संस्मरण
शिलाओं पर लिखे शब्द- सुरेन्द्र मनन

सुरेन्द्र मनन जी का नाम सब से पहले मैंने सारिका पत्रिका 'दिसम्बर 1985'  पढा था । उनकी प्रसिद्ध कहानी थी नंगे लोग । इस एक कहानी के बाद मैंने कभी सुरेन्द्र मनन जी को नहीं पढा । इस कहानी के लगभग बीस साल बाद सुरेन्द्र मनन जी की रचना 'शिलाओं पर लिखे शब्द'(एक फ़िल्मकार के संस्मरण) पढने को मिला । संस्मरण में जो ताजगी है, जो प्रवाह है जो तारतम्यता है वह इस रचना को पठने को प्रेरित करती है।


  'शिलाओं पर लिखे शब्द' बोधि प्रकाशन जयपुर के एक विशेष आयोजन 'बोधि पुस्तक पर्व' के पांचवें बंध के अंतर्गत प्रकाशित है। जो सन् 2020 में प्रकाशित हुआ और मैंने इस पांच साल बाद 2025 में पढा । यहीं से पता चला की सुरेन्द्र मनन जी एक अच्छे कहानीकार के साथ डाक्यूमेंट्री फिल्मकार भी हैं और प्रस्तुत रचना उनके इस संदर्भ में की गयी यात्राओं के अनुभवों का संकलन है।

Monday, 3 March 2025

गोल आँखें- दत्त भारती

एक प्रेम कहानी
गोल आँखें- दत्त भारती

रेस्टोरों की भीड़ घंटती जा रही थी। सिनेमा का शो शुरू होने वाला था-इसलिए लोग धीरे-धीरे रेस्टोरां खाली कर रहे थे। कोने की एक मेज पर एक पुरुष और एक लड़की बैठे बातचीत में मग्न थे ।
'ज्योति !' पुरुष की भारी आबाज उभरी- 'तुम चाहो तो अपने फैसले पर एक बार फिर विचार कर सकती हो ।'
'यादो ! मैं खूब समझती हूँ। मैं तुम्हारी भावनाओं का सम्मान करती हूँ।'
'फिर वही शब्द... सम्मान।' यादो ने जोर का ठहाका लगाया, 'यदि तुम इश्क शब्द का प्रयोग नहीं करतीं तो प्रेम या प्यार कह सकती हो ।'
'मैं जानती हूँ- मैं जानती हूँ- मैं तुम्हें बहुत पसन्द करती हूँ।' ज्योति ने कहा ।
'फिर वही धोखा-पसन्द - पसन्द- आदर- क्या मैं शो-केस में पड़ा हुआ सूट का कपड़ा हूं जो तुम्हें पसन्द आ गया है ?' यादो ने गुर्रा कर कहा ।
'क्या तुम्हें ये शब्द भी पसन्द नहीं ?'
'नहीं ।'
'ओह!' ज्योति ने गहरा साँस खींचा ।

यह अंश दत्त भारती जी द्वारा लिखित उपन्यास 'गोल आँखें' के प्रथम पृष्ठ से हैं । दत्त भारती जी का मेरे द्वारा पढा जाने वाला यह द्वितीय उपन्यास है।

Tuesday, 18 February 2025

622. मुरझाये फूल फिर खिले- ओमप्रकाश शर्मा

अंधविश्वास से टकराते एक युवक की कहानी
मुरझाये फूल फिर खिले- जनप्रिय लेखक ओमप्रकाश शर्मा

नई दिल्ली विश्व पुस्तक मेला- 2025 और यहाँ से खरीदी गयी किताबों में से दो किताबें जनप्रिय लेखक ओमप्रकाश शर्मा जी की हैं। एक 'पी कहां' और दूसरी 'मुरझाये फूल फिर खिले' । दोनों ही सामाजिक उपन्यास हैं, भावना प्रधान ।
'पी कहां' पढने के बाद 'मुरझाये फूल फिर खिले' पढना आरम्भ किया । यह उपन्यास अपने नाम को सार्थक करता हुआ एक भाव प्रधान उपन्यास है, जिसे पढते-पढते आँखें नम हो ही जाती हैं । समाज फैले अंधविश्वास को बहुत अच्छे से रेखांकित किया गया और उसका सामना भी जिस ढंग से किया गया है वह प्रशंसनीय है।

Monday, 17 February 2025

621. पी कहां- ओमप्रकाश शर्मा जनप्रिय

एक प्रेम कथा
पी कहां- जनप्रिय लेखक ओमप्रकाश शर्मा 

पुस्तक प्रेमियों के महाकुंभ 'नई दिल्ली विश्व पुस्तक मेला- 2025' में दो दिवस का भ्रमण हम चार साथियों ने किया और काफी संख्या में पुस्तकें भी लेकर आये । जहाँ मेरा यह तृतीय पुस्तक मेला था वहीं अन्य तीन साथी पहली बार ही आये थे, हालांकि इनमे से एक पुस्तक प्रेमी भी न था ।
गुरप्रीत सिंह, अंकित , सुनील भादू, राजेन्द्र कुमार, ओम सिहाग

पुस्तक समीक्षा से पहले थोड़ी सी बात पुस्तक मेले की । मैं गुरप्रीत सिंह अपने साथी ओम सिहाग (अध्यापक) अंकित (बैंककर्मी) और राजेन्द्र सहारण के साथ दो दिवस तक मेले में रहा । ओम सिहाग को साहित्य पढने में काफी रूचि है, वहीं अंकित को अंग्रेजी प्रेरणादायी पुस्तकें अच्छी लगती हैं और राजेन्द्र को बस साथ घूमना था, और घूमा भी । जहाँ राजेन्द्र और ओम मेरे ही गांव से हैं वहीं अंकित हरियाणा (ऐलनाबाद ) से है। हम चार साथियों के अतिरिक्त मेले में सुनील भादू (हरियाणा) और संदीप जुयाल (दिल्ली) का भी अच्छा साथ रहा ।

  राजस्थान से एक बुर्जग पाठक हैं, उनकी इच्छा पर जनप्रिय ओमप्रकाश शर्मा जी के दो उपन्यास 'पी कहां' और ' मुरझाये फूल फिर खिले' तथा एक उपन्यास कमलेश्वर का 'काली आंधी' लिया था। हालांकि बुजुर्ग महोदय दत्त भारती के अच्छे प्रशंसक हैं लेकिन दत्त भारती जी के इच्छित उपन्यास मेले में नहीं मिले ।

अब बात करते हैं प्रस्तुत उपन्यास 'पी कहां' की ।
कौन जाने पावस ऋतु में 'पी कहां' पुकारने वाले पपीहे की व्यथा क्या होती है।
कौन जाने... और कैसे जाने !
सागर वह जो अपनी गहराई सदा छुपाये रखे। दीपक वह जो जले... तिल तिल जलने पर भी जिसके उर अन्तर में अंधेरा रहे।
अपना अपना भाग्य ही तो है।
पपीहा वह जो पावस में, तब जबकि सूर्य के प्रकाश को दल बादल उमड़-घुमड़ कर अंधकार में बदल दे... पुकारे... 'पी कहां'।

Saturday, 11 January 2025

मौत के साये में- आरिफ मारहर्वी

कैसर हयात निखट्टू का कारनामा
मौत के साये में- आरिफ मारहर्वी

सर सिन्हा की आँखों में सहसा मौत नाचने लगी ।
आगे टेढ़ी-मेढ़ी और ढलवान सड़क थी। लगभग बारह मील तक तो सड़क की दाईं ओर ऊंची पहाड़ी चट्टानें और बाईं ओर खाईयाँ ही थीं। वैसे भाव नगर की सड़क पर अच्छा-खासा ट्रैफिक रहता था । राजकीय परिवहन की बसें चलती थीं प्राईवेट कारें और टैक्सियाँ भी गुजरती थीं, ट्रक भी आते जाते थे ।
सर सिन्हा ने अपनी समस्त शक्ति ब्रेकों पर लगा दी किंतु बेकार, कार की गति किसी तरह भी साठ और सत्तर मील प्रति घंटे से कम न हो सकी, इसके विपरीत कार की गति में बढ़ोतरी होती गई । सर सिन्हा की पूरी देह पसीने से तर हो गई और दिल की धड़कनें कनपटियों पर धमक पैदा करने लगीं। उनका मानसिक संतुलन अभी बिगड़ा न था अन्यथा पहला मोड़ काटते समय ही गाड़ी सीधी गार में चली जाती ।
(मौत के साये में - आरिफ मारहर्वी, उपन्यास का प्रथम पृष्ठ)
आज हम बात कर रहे हैं आरिफ मारहर्वी साहब के उपन्यास 'मौत के साये' की जो अक्टूबर 1971 में 'जासूसी पंजा' पत्रिका में प्रकाशित हुआ था । यह C.I.D. ऑफिसर कैसर हयात निखट्टू का उपन्यास है, जो एक केस को हल करता है और उसके साथ देते हैं उसके साथी राना और सोजी ।

Tuesday, 31 December 2024

615. मोम का जहर- कुमार कश्यप

कहानी खत्म होते एंजिल द्वीप की
मोम का जहर- कुमार कश्यप
- विक्रांत, बटलर, अमरजीत, शंकर अली, फादर विलियम कृष्ण

Crime fiction क्षेत्र में जासूसी उपन्यास लेखन में कुमार कश्यप नाम भी अग्रणी पंक्ति में रहा है। इनके अधिकांश उपन्यास जासूसी वर्ग की करामात पर आधारित होते थे, जिनमें कथानक कम और एक्शन अधिक होता था ।
प्रस्तुत उपन्यास 'मोम का जहर' भी जासूस मण्डली की हास्य, एक्शन, रोमांस पर ही आधारित है‌ ।
इस उपन्यास के विषय में बात कहां से आरम्भ करें कुछ समझ में नहीं आ रहा। जहां से उपन्यास आरम्भ होता हैं वहां से, यां फिर जहाँ से कथानक आरम्भ होता है वहाँ से या फिर इस कहानी के प्रथम परिच्छेद से ।
चलो, हम पहले इस उपन्यास का कथानक ही बता देते हैं बाकी बातें बाद में।
एक युवा विद्रोही वैज्ञानिक है शंकर अली जो 'एंजिल टापू' पर रहता है। वही उसकी दुनिया है। इस टापू की आबादी बहुत कम है और अधिकांश यहाँ के लोग वैज्ञानिक ही हैं। कभी इस विरान टापू को शंकर अली ने ही आबाद किया था। लेकिन शंकर अली के दुश्मन उसकी प्रगति से अप्रसन्न हैं।

614. घर का दुश्मन- प्रेम प्रकाश

कहानी ब्लैकमेलिंग की
घर का दुश्मन- प्रेम प्रकाश- 
दिसंबर-1966
हिंदी अपराध साहित्य में बहुसंख्यक कहानियाँ बिखरी पड़ी हैं, इनमें से कभी-कभार कुछ नया और अच्छा पढने को मिल जाता है। ऐसा ही एक एक छोटा सा उपन्यास पढने को मिला, जिसकी छोटी और सामान्य सी कहानी अच्छी लगी। इस उपन्यास का नाम है- घर का दुश्मन ।
नकहत पब्लिकेशन -इलाहाबाद का नाम विशेष रूप से इब्ने सफी साहब से संबंधित है। और उनके उपन्यासों का हिंदी अनुवाद करने के लिए जाने जाते हैं प्रेम प्रकाश जी।  स्वयं प्रेम प्रकाश जी ने भी उपन्यास लिखे हैं। प्रस्तुत उपन्यास 'घर का दुश्मन' इन्हीं का ही है।
उपन्यास का कथानक- उपन्यास की कहानी ब्लैकमेलिंग पर आधारित है। एक संगठित गिरोह का बाॅस अपने आदमियों से सुनियोजित तरीके से अलग- अलग शहरों में लोगों को फंसा कर ब्लैकमेल कर रूपया लेता है।

Sunday, 29 December 2024

613. लाश गिरेगी वाईपर की- गोपाल शर्मा

कहानी 'राॅ' के सर्वश्रेष्ठ जासूस की
लाश गिरेगी वाईपर की- गोपाल शर्मा

नमस्ते मित्रो,
आज हम यहां चर्चा करने जा रहे हैं पवन पॉकेट बुक्स के अंतर्गत प्रकाशित छद्म लेखक गोपाल शर्मा जी के उपन्यास 'लाश गिरेगी वाईपर की। '
वाईपर सीरीज का प्रथम उपन्यास का नाम 'वाईपर' था। मैंने पढा तो था पर यहां उसकी समीक्षा न लिख पाया। अब इसी शृंखला का उपन्यास 'लाश गिरेगी वाईपर की' पढा तो समीक्षा लिखने का विचार भी मन में आया तो एक छोटी सी , अव्यवस्थित सी समीक्षा इसलिए लिख दी की अन्य पाठक इस लेखक और पात्र के विषय में जान सकें।

हालांकि मेरा प्रयास यही रहता है जो भी पुस्तक पढी जाये,उस पर एक विस्तृत टिप्पणी/ समीक्षा लिखी जाये पर ऐसा संभव नहीं हो पाता और इस साल (2024)में तो पढा भी बहुत कम है और लिखने के मामले में उस से भी बहुत पीछे रहा हूँ।
  कभी-कभी किसी महत्वपूर्ण पुस्तक पर न लिखने का अफसोस भी रहता है। जैसे- कैच फोर (कंवल शर्मा), चक्क पीरा दा जस्सा (बलवंत सिंह), राक्षस (नीतिश सिन्हा) जैसे और भी रचनाएँ पढी पर उन पर कुछ भी न लिख सका।
चलो, भविष्य में यथासंभव कोशिश रहेगी जो पढा जाये, उस पर लिखा जाये।
अब हम बात करते हैं प्रस्तुत उपन्यास की । इस उपन्यास का घटनाक्रम शिवालिक द्वीप से संबंधित है।
"क्या तुमने शिवालिक द्वीप का नाम सुना है?" भरत ने गला साफ करने के बाद पूछा।

लहू से लिख दो जय हिंद- रीमा भारती

बच्चे के दुश्मन कौन थे ? लहू से लिख दो जयहिंद- रीमा भारती उस युवती का रंग गोरा था। खूब गोरा-किन्तु हल्की-सी सुर्खी लिए हुए। ऐसा लगता था ज...