क्या यह संभव था?
बंद कमरे में खून- आरिफ माहरर्वी
बंद कमरे में खून- आरिफ माहरर्वी
सहसा बाजार में शोर मच गया। कई चीखें सुनाई दीं। लोग चीखते-चिल्लाते एक ओर को दौड़े। दुकानदार अपना अपना काम छोड़कर उसी शोर की ओर आकृष्ट हो गये। सड़क पर चलती स्त्रियाँ सुरक्षित स्थानों पर रुक गईं और भयभीत आँखों से उसी ओर देखने लगीं जहां आने जाने वालों की भीड़ इकट्ठी होती जा रही थी।
दोनों ओर का ट्रैफिक रुक गया। ट्रैफिक कांस्टेबल सीटियाँ
बजाता हुआ इधर-उधर भाग रहा था। (उपन्यास का प्रथम दृश्य)
बंद कमरे में खून आरिफ माहरर्वी |
जहाँ इन्होंने जासूसी उपन्यास आरिफ माहरर्वी के नाम से लिखे हैं वहीं सामाजिक उपन्यास राजवंश के नाम से लिखे हैं। इन्होंने कुछ फिल्मों के लिए कथा लेखन का भी काम किया है,जैसे मिथुन चक्रवर्ती की 'गन मास्टर'।
सन् 1971 में दिल्ली से जासूसी पंजा सीरीज के अन्तर्गत इनका उपन्यास 'बंद कमरे में खून' प्रकाशित हुआ था। ''सुनिये तो मालकिन।'' - नौकर हाँफता हुआ बोला-''हो सकता है आपको संदेह हो वह वह मालिक न हों, कोई और ऊपर से गिर पड़ा हो ? इस बिल्डिंग में और लोग भी तो रहते हैं।''
''अरे, अगर वह नहीं हैं फिर उन्होंने अन्दर से दरवाजा क्यों नहीं खोला ? रामू। कमला झूठ थोड़े ही बोलेगी। उसने अपनी खिड़की में से उन्हें गिरते देखा। हाय रामू मैं लुट गई मेरा सुहाग उजड़ गया स्वामी मेरे नाथ...?''
यह कहानी है प्रोफेसर वर्मा की जो एक दिन काॅलेज से लौटे, कमरा बंद किया और लोगों ने उन्हें खिड़की से नीचे गिरते देखा।
संयोग से उस समय जासूस कैसर हयात् निखट्टू उर्फ मार्शल क्यू भी वहीं एक दुकान पर उपस्थित थे।
सब इंस्पेक्टर सिंह और कैसर ने देखा की यह एक आत्महत्या का केस है और मृतक के हाथ में एक सुसाइड नोट भी है।
प्रोफेसर वर्मा ने बंद कमरे की खिड़की से कूद कर आत्महत्या की, सुसाइड नोट उनके हाथ में था। यह एक सीधा-सादा आत्महत्या का केस था। लेकिन सब इंस्पेक्टर सिंह और जासूस कैसर की अलग ही खिचड़ी पक रही थी।
"आप शायद यह साबित करना चाहते हैं कि केस आत्महत्या का नहीं।''
''ओह! हाँ, हमने शायद प्लान यही बनाया था।''
''आप ही ने.... हमने नहीं।''- सिंह मुस्कुराया।
''खैर, इसमें लाभ दोनों का है। आपकी पद्दोन्नति और मेरा धंधा।''
''किन्तु जहाँ प्रोफेसर की आत्महत्या के इतने प्रमाण सामने के हैं तो फिर इसे हम 'हत्या' का केस कैसे प्रमाणित कर सकते हैं ?''
कैसर एक जासूस था उसे आत्महत्या को हत्या में बदलना आता था और सिंह सब इंस्पेक्टर था वह किसी को भी हत्यारा साबित कर सकता था।
और फिर दोनों सक्रिय हो गये एक केस पर। सब इंस्पेक्टर सिंह को आत्महत्या के कारणों को तो खोजना ही था। पर जैसे-जैसे उनकी जाँच आगे बढी तो उनके सामने एक नहीं अनेक रहस्य प्रकट हो गये।
उपन्यास मुख्यतः एक आत्महत्या के केस से आरम्भ होता है। सब इंस्पेक्टर सिंह और जासूस कैसर इस केस का अन्वेषण करते हैं। दोनों एक-एक कर कुछ व्यक्तियों से बयान लेते हैं और कुछ खोजबीन भी करते हैं। इसी दौरान उनके सामने कुछ आश्चर्यजनक बाते सामने आती हैं जो यह इशारा करती हैं यह आत्महत्या नहीं हत्या का मामला है।
लेकिन इसके साथ यह प्रश्न भी सामने आता है की बंद कमरे में खून कैसे हो गया। इसी पहली को हल करते हैं जासूस कैसर हयात् और सब इंस्पेक्टर सिंह।
पात्र परिचय
कैसर - एक जासूस
इंस्पेक्टर सिंह- पुलिस इंस्पेक्टर
प्रोफेसर वर्मा- मृतक
शीला- प्रोफेसर वर्मा की पत्नी
कमला- प्रोफेसर वर्मा की पड़ोसी
गिरीश- प्रोफेसर वर्मा का शिष्य
अशोक - प्रोफेसर वर्मा का शिष्य
रामू- प्रोफेसर वर्मा का नौकर
रेखा- गिरीश की बहन
मैंने इसी तरह के कुछ और उपन्यास भी पढे हैं जिनमें बंद कमरे में खून दिखाया गया है, पर प्रत्येक उपन्यास मडं तरीका बिलकुल अलग है।
वेदप्रकाश शर्मा जी का 'सबसे बड़ी मर्डर मिस्ट्री', आनंद चौधरी जी का 'हेरिटेज होस्टल हत्याकांड', सुरेन्द्र मोहन पाठक जी का 'कानून का चैलेंज' आदि।
आरिफ माहरर्वी द्वारा लिखित 'बंद कमरे में खून' मर्डर मिस्ट्री आधारित उपन्यास है। एक खून वह भी बंद कमरे और थोड़े पात्रों के मध्य रचित यह उपन्यास मध्यम स्तर का है, जिसे एक बार पढा जा सकता है।
उपन्यास- बंद कमरे में खून
लेखक- आरिफ माहरर्वी
प्रकाशक- जासूसी पंजा सीरीज
सन् - 1971
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