बंद कमरे में खून
हेरिटेज होस्टल हत्याकाण्ड- आनंद चौधरी
हेरिटेज हॉस्टल के अन्दर से बंद एक कमरे में जिस अजीबोग़रीब तरीके से शीतल राजपूत की हत्या हुई थी , उस तरीके से हत्या कर पाना किसी आदमजात के लिये कतई मुमकिन नहीं था। वो हत्या कोई प्रेतलीला ही हो सकती थी।
नमस्कार पाठक मित्रो,
आपके समक्ष प्रस्तुत आनंद चौधरी के द्वितीय उपन्यास 'हेरिटेज होस्टल हत्याकांड' की समीक्षा। बिहार के निवासी आनंद चौधरी जी का सन् 2008 में उपन्यास आया था 'साजन मेरे शातिर' और अब सन् 2022 में एक लम्बे अंतराल पश्चात इनका उपन्यास 'हेरिटेज होस्टल हत्याकांड' प्रकाशित हुआ है। दोनों उपन्यास मर्डर मिस्ट्री हैं, लेकिन द्वितीय उपन्यास का कथानक एक अलग ही विषय के साथ प्रस्तुत किया गया है। और वह विषय है हाॅरर मर्डर मिस्ट्री। प्रस्तुत उपन्यास की कहानी का आरम्भ एक होस्टल में रहस्यमय तरीके से हुये वीभत्स हत्याकांड से होता है। होस्टल गर्ल शीतल राजपूत की बंद कमरे में वीभत्स ढंग से हत्या होती है, हत्यारा एक-एक अंग को काट-काट कर अलग रख देता है और सारे रक्त को चाट जाता है। लेकिन आश्चर्यजनक बात यह है कि कमरा अंदर से बंद है, कहीं कोई खिड़की तक खुली नहीं है। कोई सबूत, कोई आखिर हत्यारा कमरे में से बाहर कैसे निकला और उसने इतने नृशंस ढंग से हत्या क्यों की।
पुलिस अभी तक ये साबित नहीं कर पाई है कि इस केस से सबंधित सारी घटनायें कोई पिशाच-लीला थी, या किसी इंसान का काला कारनामा।
यह अनोखे हत्याकांड को 'राॅ' के हिस्से में आता है और 'राॅ' के चीफ पाठक साहब अपने सीनियर एजेंट सुनील को यह केस सौंपते हुये कहते हैं–"नोएडा सेक्टर 49 में हैरीटेज हॉस्टल के नाम से एक गर्ल्स हॉस्टल है। हॉस्टल का मालिक कुलभूषण यादव मेरे कॉलेज के जमाने का करीबी दोस्त है। हत्या उसी के हॉस्टल में हुई है। हॉस्टल के एक कमरे में शीतल राजपूत नाम की एक लड़की की हत्या हुई है। और जिस तरीके से हत्या हुई है, वो काम किसी इंसान का हो हीं नहीं सकता।"
पुलिस और 'राॅ' का चीफ तक इस हत्याकांड को किसी पिशाच या भूत प्रेत का कारनामा मानते हैं। लेकिन सुनील इस बात को नहीं मानता और 'हेरिटेज होस्टल हत्याकांड' की इन्वेस्टिगेशन पर निकलता है।
तीस वर्षीय सुनील राॅ का एजेंट होने से पूर्व प्राईवेट डिटेक्टिव एजेंसी 'ग्लोबल इन्वेस्टीगेशंस' का मालिक हुआ करता था। उसकी योग्यता को देखकर राॅ चीफ ने उसे राॅ में शामिल कर लिया। सुनील राॅ के कार्य के अतिरिक्त कुछ प्राइवेट स्तर पर भी केस देखता है।
शीतल राजपूत के मात्र दो ही संबंधी सामने आते हैं। एक उसकी माँ सुधा राजपूत और दूसरा उसका मंगेतर सुरेश पटनायक। सुनील की इंवेस्टीगेशन के दौरान इनमें से एक व्यक्ति फिर रहस्यमय ढंग से मृत पाया जाता है और एक के साथ कुछ अलौकिक घटनाएं घटित होती हैं।
उपन्यास में एक और पात्र प्रोफेसर किशनलाल चतुर्वेदी का आगमन होता है जो बताया है की आज से दस साल पूर्व ऐसी ही एक घटना मॉरिशस में घटित हो चुकी है।
सुनील के लिए यह केस अब और भी मुश्किल हो जाता है। लेकिन वह युवा इंस्पेक्टर शिवशंकर के सहयोग से अनंत: इस रहस्यमय कत्ल को केस को हल कर लेता है।
उपन्यास के कमजोर पक्ष की बात करें तो वह है इसका मुद्रण। उपन्यास में शाब्दिक गलतियों की संख्या बहुत ज्यादा है। लगता है लेखक महोदय ने इस तरफ बिलकुल भी ध्यान नहीं दिया।
- उपन्यास में हर जगह पूर्ण विराम (।) की जगह विस्मयादिबोधक(!) चिह्न है लगाया गया है।
- य्ये शब्द को उसने खासतौर से लंबा करते हुए य्ये कहा था !
यहाँ प्रथम 'ये' आना था और द्वितीय 'य्ये। और अंत में विस्मयादिबोधक चिह्न की जगह पूर्ण विराम।
- वो भारी सी तलवार देखने भर से ही किसी पूराने बाबा-आदम के जमाने की तलवार लग रही थी !
उक्त वाक्य में देखें 'पुराने' को 'पूराने' लिखा है और वाक्य के अंत में विस्मयादिबोधक चिह्न लगा है।
यहाँ जब 'बाबा आदम' लिख दिया तो पुराने लिखने की कोई आवश्यकता नहीं रह जाती।
उपन्यास में बंद दरवाजे का चित्रण है लेकिन यह कहीं स्पष्ट नहीं की दरवाजा एक पट का था या दो पट का।
- उपन्यास में कहीं तो गिरीश और शीतल को शादीशुदा बताता है तो कहीं मंगेतर।
- उपन्यास में सुनील है, पाठक साहब हैं और अमेरिकन गाड़ी भी। यह ठीक वैसे ही प्रतीत होता है जैसे 'गब्बर' नाम लेते ही शोले फिल्म याद आती है, 'लहना सिंह' कहते ही चन्द्रधर शर्मा गुलेरी जी की कहानी 'उसने कहा था'।
आनंद चौधरी द्वारा लिखित ' होस्टल हेरिटेज हत्याकांड' एक पठनीय मर्डर मिस्ट्री उपन्यास है। जिसकी कहानी एक बेहद अनोखे ढंग से हुये कत्ल से आरम्भ होती है। कत्ल भी इस ढंग से की वह भूतप्रेत का कारनामा नजर आता है। लेकिन डिटेक्टिव सुनील इंस्पेक्टर शिवशंकर के सहयोग से जब इस केस पर कार्य करता है तो उसे यकीन नहीं होता की वर्तमान समय में भूत प्रेत जैसे घटना हो सकती हैं, हालांकि सुनील को कोई सबूत भी नहीं मिलता जिसके आधार पर वह इसे इंसान द्वारा किया गया कत्ल कह सके।
जैसे -जैसे उपन्यास आगे बढता है तो कुछ और भी रहस्यमयी घटनाएं घटित होती हैं। जैसे प्रोफेसर पर जानलेवा हमला, एक व्यक्ति के साथ अलौकिक घटनाएं और कत्ल आदि।
उपन्यास का क्लासमैक्स मुझे कमजोर लगा क्योंकि उपन्यास का आरम्भ जितने प्रभावशाली ढंग से होता है उसका अंत उतना तार्किक और प्रभावशाली नहीं है, हालांकि हम उसे निरर्थक नहीं मान सकते। यह लेखक की कल्पना है वह उपन्यास का समापन कैसे करता है। हाँ, उपन्यास के क्लाइमैक्स आपको चौंकाते हैं। ध्यान रखे 'चौंकाते' हैं। जहाँ लगता है उपन्यास खत्म हो गया वहीं से कुछ पृष्ठ आगे उपन्यास में नये ट्विस्ट आते हैं जो काफी रोचक और तार्किक हैं।
उपन्यास- हेरिटेज होस्टल हत्याकांड
लेखक - आनंद चौधरी
प्रकाशन - kindle on EBook
लेखक संपर्क - omkarengineering.1525@gmail.com
हेरिटेज होस्टल हत्याकाण्ड- आनंद चौधरी
हेरिटेज हॉस्टल के अन्दर से बंद एक कमरे में जिस अजीबोग़रीब तरीके से शीतल राजपूत की हत्या हुई थी , उस तरीके से हत्या कर पाना किसी आदमजात के लिये कतई मुमकिन नहीं था। वो हत्या कोई प्रेतलीला ही हो सकती थी।
नमस्कार पाठक मित्रो,
आपके समक्ष प्रस्तुत आनंद चौधरी के द्वितीय उपन्यास 'हेरिटेज होस्टल हत्याकांड' की समीक्षा। बिहार के निवासी आनंद चौधरी जी का सन् 2008 में उपन्यास आया था 'साजन मेरे शातिर' और अब सन् 2022 में एक लम्बे अंतराल पश्चात इनका उपन्यास 'हेरिटेज होस्टल हत्याकांड' प्रकाशित हुआ है। दोनों उपन्यास मर्डर मिस्ट्री हैं, लेकिन द्वितीय उपन्यास का कथानक एक अलग ही विषय के साथ प्रस्तुत किया गया है। और वह विषय है हाॅरर मर्डर मिस्ट्री। प्रस्तुत उपन्यास की कहानी का आरम्भ एक होस्टल में रहस्यमय तरीके से हुये वीभत्स हत्याकांड से होता है। होस्टल गर्ल शीतल राजपूत की बंद कमरे में वीभत्स ढंग से हत्या होती है, हत्यारा एक-एक अंग को काट-काट कर अलग रख देता है और सारे रक्त को चाट जाता है। लेकिन आश्चर्यजनक बात यह है कि कमरा अंदर से बंद है, कहीं कोई खिड़की तक खुली नहीं है। कोई सबूत, कोई आखिर हत्यारा कमरे में से बाहर कैसे निकला और उसने इतने नृशंस ढंग से हत्या क्यों की।
पुलिस अभी तक ये साबित नहीं कर पाई है कि इस केस से सबंधित सारी घटनायें कोई पिशाच-लीला थी, या किसी इंसान का काला कारनामा।
यह अनोखे हत्याकांड को 'राॅ' के हिस्से में आता है और 'राॅ' के चीफ पाठक साहब अपने सीनियर एजेंट सुनील को यह केस सौंपते हुये कहते हैं–"नोएडा सेक्टर 49 में हैरीटेज हॉस्टल के नाम से एक गर्ल्स हॉस्टल है। हॉस्टल का मालिक कुलभूषण यादव मेरे कॉलेज के जमाने का करीबी दोस्त है। हत्या उसी के हॉस्टल में हुई है। हॉस्टल के एक कमरे में शीतल राजपूत नाम की एक लड़की की हत्या हुई है। और जिस तरीके से हत्या हुई है, वो काम किसी इंसान का हो हीं नहीं सकता।"
पुलिस और 'राॅ' का चीफ तक इस हत्याकांड को किसी पिशाच या भूत प्रेत का कारनामा मानते हैं। लेकिन सुनील इस बात को नहीं मानता और 'हेरिटेज होस्टल हत्याकांड' की इन्वेस्टिगेशन पर निकलता है।
तीस वर्षीय सुनील राॅ का एजेंट होने से पूर्व प्राईवेट डिटेक्टिव एजेंसी 'ग्लोबल इन्वेस्टीगेशंस' का मालिक हुआ करता था। उसकी योग्यता को देखकर राॅ चीफ ने उसे राॅ में शामिल कर लिया। सुनील राॅ के कार्य के अतिरिक्त कुछ प्राइवेट स्तर पर भी केस देखता है।
शीतल राजपूत के मात्र दो ही संबंधी सामने आते हैं। एक उसकी माँ सुधा राजपूत और दूसरा उसका मंगेतर सुरेश पटनायक। सुनील की इंवेस्टीगेशन के दौरान इनमें से एक व्यक्ति फिर रहस्यमय ढंग से मृत पाया जाता है और एक के साथ कुछ अलौकिक घटनाएं घटित होती हैं।
उपन्यास में एक और पात्र प्रोफेसर किशनलाल चतुर्वेदी का आगमन होता है जो बताया है की आज से दस साल पूर्व ऐसी ही एक घटना मॉरिशस में घटित हो चुकी है।
सुनील के लिए यह केस अब और भी मुश्किल हो जाता है। लेकिन वह युवा इंस्पेक्टर शिवशंकर के सहयोग से अनंत: इस रहस्यमय कत्ल को केस को हल कर लेता है।
उपन्यास के कमजोर पक्ष की बात करें तो वह है इसका मुद्रण। उपन्यास में शाब्दिक गलतियों की संख्या बहुत ज्यादा है। लगता है लेखक महोदय ने इस तरफ बिलकुल भी ध्यान नहीं दिया।
- उपन्यास में हर जगह पूर्ण विराम (।) की जगह विस्मयादिबोधक(!) चिह्न है लगाया गया है।
- य्ये शब्द को उसने खासतौर से लंबा करते हुए य्ये कहा था !
यहाँ प्रथम 'ये' आना था और द्वितीय 'य्ये। और अंत में विस्मयादिबोधक चिह्न की जगह पूर्ण विराम।
- वो भारी सी तलवार देखने भर से ही किसी पूराने बाबा-आदम के जमाने की तलवार लग रही थी !
उक्त वाक्य में देखें 'पुराने' को 'पूराने' लिखा है और वाक्य के अंत में विस्मयादिबोधक चिह्न लगा है।
यहाँ जब 'बाबा आदम' लिख दिया तो पुराने लिखने की कोई आवश्यकता नहीं रह जाती।
उपन्यास में बंद दरवाजे का चित्रण है लेकिन यह कहीं स्पष्ट नहीं की दरवाजा एक पट का था या दो पट का।
- उपन्यास में कहीं तो गिरीश और शीतल को शादीशुदा बताता है तो कहीं मंगेतर।
- उपन्यास में सुनील है, पाठक साहब हैं और अमेरिकन गाड़ी भी। यह ठीक वैसे ही प्रतीत होता है जैसे 'गब्बर' नाम लेते ही शोले फिल्म याद आती है, 'लहना सिंह' कहते ही चन्द्रधर शर्मा गुलेरी जी की कहानी 'उसने कहा था'।
आनंद चौधरी द्वारा लिखित ' होस्टल हेरिटेज हत्याकांड' एक पठनीय मर्डर मिस्ट्री उपन्यास है। जिसकी कहानी एक बेहद अनोखे ढंग से हुये कत्ल से आरम्भ होती है। कत्ल भी इस ढंग से की वह भूतप्रेत का कारनामा नजर आता है। लेकिन डिटेक्टिव सुनील इंस्पेक्टर शिवशंकर के सहयोग से जब इस केस पर कार्य करता है तो उसे यकीन नहीं होता की वर्तमान समय में भूत प्रेत जैसे घटना हो सकती हैं, हालांकि सुनील को कोई सबूत भी नहीं मिलता जिसके आधार पर वह इसे इंसान द्वारा किया गया कत्ल कह सके।
जैसे -जैसे उपन्यास आगे बढता है तो कुछ और भी रहस्यमयी घटनाएं घटित होती हैं। जैसे प्रोफेसर पर जानलेवा हमला, एक व्यक्ति के साथ अलौकिक घटनाएं और कत्ल आदि।
उपन्यास का क्लासमैक्स मुझे कमजोर लगा क्योंकि उपन्यास का आरम्भ जितने प्रभावशाली ढंग से होता है उसका अंत उतना तार्किक और प्रभावशाली नहीं है, हालांकि हम उसे निरर्थक नहीं मान सकते। यह लेखक की कल्पना है वह उपन्यास का समापन कैसे करता है। हाँ, उपन्यास के क्लाइमैक्स आपको चौंकाते हैं। ध्यान रखे 'चौंकाते' हैं। जहाँ लगता है उपन्यास खत्म हो गया वहीं से कुछ पृष्ठ आगे उपन्यास में नये ट्विस्ट आते हैं जो काफी रोचक और तार्किक हैं।
उपन्यास- हेरिटेज होस्टल हत्याकांड
लेखक - आनंद चौधरी
प्रकाशन - kindle on EBook
लेखक संपर्क - omkarengineering.1525@gmail.com
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