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Friday 6 May 2022

517. साजन मेरे शातिर- आनंद चौधरी

एक तेज दिमाग अपराधी का जाल
साजन‌ मेरे शातिर- आनंद कुमार चौधरी

 
      प्रस्तुत उपन्यास की कहानी एक तेज तर्रार एक अपराधी की है जो अपराध तो करता है लेकिन कानून का फंदा किसी और के गले में डालने की योजना के साथ।
शातिर अपराधी द्वारा खेला गया वो खूनी खेल जिसने कानून के रक्षकों को चकराकर रख दिया।
National Garden- Mount Abu

       Hindi Pulp Fiction का वह समय जब उपन्यास साहित्य के मैदान में नये लेखक आ रहे थे और दूसरी तरफ मनोरंजन के साधन तीव्र गति से बदल रहे थे, इन बदलते मनोरंजन के साधनों के साथ ही उपन्यास का दौर भी सिमट रहा था। ऐसे समय में सन् 2008 में आनंद चौधरी जी का उपन्यास 'साजन मेरे शातिर' प्रकाशित हुआ। प्रकाशन के दीर्घ समय पश्चात उपन्यास पढने को मिला।
  और अब आनंद चौधरी एक लम्बे अंतराल पश्चात 'होस्टल हेरीटेज हत्याकाण्ड' (2022) उपन्यास के साथ पुनः लेखन में सक्रिय हुये हैं।
      'साजन मेरे शातिर'    उपन्यास की कहानी एक एक्सीडेंट से होता है, देखने में वह एक सामान्य एक्सीडेंट था जिसमें प्रसिद्ध व्यवसायी हरिमोहन भगत के भाई निरंजन भगत की मृत्यु हो जाती है। देखने में यह एक रोड़ एक्सीडेंट था, लेकिन मौके पर पहुंचे इंस्पेक्टर रमन भौंसलेकर का कहना था- पुलिस वाले को किसी भी घटना या असाधारण बात को हर ऐंगल से ठोक बजाकर सोच लेना चाहिये क्योंकि कभी-कभी ऐसा भी होता है कि ऊपर से छोटी-मोटी लगने वाली घटना भी अंदर से अपने आप में एक बड़ी घटना होती है। (पृष्ठ-12)        इसी रोड़ एक्सीडेंट को रमन भौंसलेकर मर्डर की दृष्टि से देखता है। और वह साबित भी कर देता है की साधारण सा लगने वाला यह एक्सीडेंट वास्तव में एक शातिर अपराधी द्वारा रचित मर्डर है। यहीं पुलिस के हाथ बिंदा लगता है, बिंदा एक खतरनाक अपराधी है। वह कोई छोटा-मोटा पॉकेटमार, जेबकतरा या उठाईगिरा नहीं है भैया, सुपारी किलर है। जिसके पास हत्या करने के ऐसे-ऐसे तरीके हैं कि कानून उसे कातिल साबित ही नहीं कर पाता। (पृष्ठ-12)
   लेकिन बिंदा तो मात्र एक मोहरा है, जो स्वयं जिस जाल में फंसा है उसे भी नहीं पता। और बिंदा ही क्यों और भी कुछ शातिर दिमाग उस शातिर अपराधी के उस अदृश्य जाल में फंस चुके हैं।
   कहानी का द्वितीय पक्ष व्यवसायी हरिमोहन भगत की पत्नी सोनाली से संबंधित है। सोनाली का कहना है कि उसे मारने की तीन बार कोशिश हो चुकी है, लेकिन संयोग से वह हर बार बच गयी है।
         इंस्पेक्टर रमन भौंसलेकर व सब इंस्पेक्टर सुभाष नायक ना मानना है कि निरंजन भगत का हत्यारा और सोनाली को मारने की कोशिश करने वाला एक ही व्यक्ति है। पर वह है कौन?
     दोनों कुछ तथ्यों के आधार पर दो व्यक्तियों तक पहुंचते हैं जिनसे में से एक अपना अपराध स्वीकार कर लेता है लेकिन दूसरे व्यक्ति की हत्या हो जाती है और वह भी इस ढंग से की वह मर्डर प्रतीत न हो और अगर वह मर्डर प्रतीत हो तो उसका अपराधी कोई और ही साबित हो।    
       सूरत की‌ महिधरपुरा पुलिस चौकी का इंस्पेक्टर रमन भौंसलेकर सब इंस्पेक्टर सुभाष नायक से कहता है- "मेरी अब तक की पन्द्रह साल की नौकरी का रिकाॅर्ड है कि ऐसा एक भी केस नहीं, जो मेरे जिम्मे आया और मैंने जिसके रहस्य की परतें नोच-नोच कर न फेंक दी हो। (पृष्ठ-46,47)
   लेकिन यहाँ तो मामला इतना जटिल था की कुछ समझ में भी नहीं आ रहा था। कुछ लोगों ने स्वीकार भी किया की हमने अपराध किया है। सबूत,तथ्य, सब उनके खिलाफ थे, पर रमन भौंसलेकर का मानना था कि कोई हमसे खेल खेल रहा है। कोई शातिर अपराधी है जो अपना फंदा किसी और के गले में डाल रहा है। - एक ऐसा शातिर दिमाग अपराधी जो कोई भी जुर्म करने से पहले उस जुर्म का शिकार बनाने के लिये किसी बलि के बकरे को पहले ही तलाश कर लेता था।
   और एक दिन इंस्पेक्टर रमन भौंसलेकर को कहना पड़ता है- " पहली बार नायक, पहली बार ऐसे विचित्र और अनोखे केस से मेरा पाला पड़ा है जो हमें इतना परेशान कर रहा है। दस- पन्द्रह दिन होने को आये, केस सुलझने की बजाये उलझता ही जा रहा है। (पृष्ठ-132)
   अब पुलिस को निरंजन भगत हत्याकाण्ड, सोनली के हमलवार को तलाश तो करना ही था साथ में इस शृंखला में हो रही अन्य हत्याओं की जांच भी करनी थी। साथ में उस खतरनाक अपराधी के जाल को भी तोड़ना था जिस में फंस कर हर व्यक्ति स्वयं को अपराधी मान लेता है। 
             आप के घर अगर दो वस्तुएँ एक जैसी हैं आप उसे लम्बे समय से प्रयोग में ले रहे हैं तो यह संभव नहीं की आप उनकी पहचान न कर सको चाहे दोनो में कितनी भी समानता क्यों न हो। उपन्यास में एक ऐसी ही समानता ना भ्रम बना रहता है। उस समानता का वर्णन उपन्यास के अंत में है और यही उपन्यास की कमजोर कड़ी है।
  उसके अतिरिक्त कहानी, प्रस्तुतीकरण अच्छा है। हां, उपन्यास में कहीं- कहीं यह भी झलकता है की उपन्यास में कुछ संशोधन होने चाहिए ताकी कहानी में कसावट बनी रहे।
       आनंद कुमार चौधरी द्वारा रचित 'साजन मेरे शातिर' एक मर्डर मिस्ट्री आधारित उपन्यास है। एक सामान्य रोड़ एक्सीडेंट से आरंभ इस उपन्यास में आगे कुछ कत्ल होते हैं और शातिर अपराधी हर अपराध को किसी और का अपराध साबित करने में सक्षम नजर आता है।  पुलिस भी हत्या की खोजबीन में चकरा जाती है, लेकिन अंत में वास्तविक अपराधी सामने आने पर सब चकित रह जाते हैं।
   उपन्यास का समापन अच्छा है, भावुक‌ और चकित करने वाला है।
उपन्यास -  साजन मेरे शातिर
लेखक -    आनंद चौधरी
प्रकाशन वर्ष- 2008
प्रकाशक - दुर्गा पॉकेट बुक्स
पृष्ठ-        240

5 comments:

  1. काफी समय पहले पढ़ लिया था
    कांसेप्ट अच्छा है पर गलतियां भी है और प्रूफ रिडिंग की ढेरों कमियां है जिसके कारण पढ़ते समय बहुत ऊब होती थी

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  2. इस में शाब्दिक गलतियाँ तो नहीं थी। हाँ, लेखकीय गलतियाँ अवश्य थी।
    - गुरप्रीत सिंह

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  3. उपन्यास के प्रति उत्सुकता जगाता आलेख। कोशिश रहेगी कि जल्द ही पढ़ा जाए।

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  4. सर, रिप्रिंट के लिए नेशन प्रेस को दिया था, उन्होने बिगाड़ कर रख दी ! कोशिश करूंगा कि नये पाठकों हेतु फिर बढ़िया से रिप्रिंट हो ! समीक्षा के लिए धन्यवाद ..मेरी निरंतर यही भागीरथी कोशिश है कि मेरी उपन्यास एक से बढ़ कर एक हो ! जो आपके दिमाग को मनोरंजन की वो हैवी खुराक दे सके, जिसकी आशा आप हमसे रखते हैं !
    विनित,
    आनंद चौधरी
    6-05-2022

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  5. वाह बढ़िया जानकारी. इनका नया उपन्यास ज़रूर पढ़ेंगे 🌹👍

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