Thursday 25 October 2018

148. बम ब्लास्ट- वेदप्रकाश कंबोज

वेदप्रकाश कंबोज जी ले साथ। 3.06.2018
न्यूट्रॉन बम का ब्लास्ट
वेदप्रकाश कंबोज उपन्यास जगत के एक वो सितारे हैं जिनकी लौ उस सुनहरे समय के समाप्त होने के बाद भी जगमगा रही है। उनके उपन्यास की चर्चा आज भी है।

      वेदप्रकाश कंबोज जी का मेरे द्वारा पढे जाना वाल शायद यह प्रथम उपन्यास है। अगर किशोरावस्था में कोई पढा भी होगा तो याद नहीं रहा। वह दौर भी ऐसा था जिसमें पढा तो खूब लेकिन आज स्मृति में नहीं।

3 जून 2018 को दिल्ली में कंबोज जी के आवास पर उनसे मिलना हुआ और उपन्यास संबंधी खूब चर्चाएँ भी चली।
         वेदप्रकाश कंबोज जी के कुछ उपन्यास घर पर उपलब्ध हैं, लेकिन पढने का समय न मिल पाया। अब आबू रोड़ के लेखक मित्र अमित श्रीवास्तव जी के पास कंबोज जी का उपन्यास 'बम ब्लास्ट' मिला तो पढने के किए ले आया।
      'बम ब्लास्ट' उपन्यास आज तक के सबसे विध्वंसक बम न्यूट्रॉन पर आधारित है। भारतीय जासूस विजय, अंतरराष्ट्रीय अपराधी अलफांसे, अफगानिस्तान के वैज्ञानिक ....बर्फीले तूफान में फंस जाते है। वह भी ऐसी परिस्थिति में जहाँ न्यूट्रॉन बम का विस्फोट होने वाला है।
           एम. एल. बिरजोई एक भारतीय वैज्ञानिक है जिसका प्लेन एक तूफान में घिर कर पड़ोसी देश जगरान के बर्फीले पहाड़ पर दुर्घटना ग्रस्त हो जाता है। एम. एल. बिरजोई के पास होता है एक न्यूट्रॉन बम।
          हमारा एक सैनिक प्लेन बिना इजाजत के दूसरे देश की सीमा में जाकर क्रैश हो गया....हमारे दुश्मन इस दुर्घटना का नाजायज़ फायदा उठाने की कोशिश करेंगे....।(पृष्ठ-34) 

       जगरान का कर्नल शहजाद जो भारत विरोध है। वह जगरान के राष्ट्रपति को हटाकर वहाँ का तानाशाह बनने के ख्वाब देखता है। कर्नल शहजाद जो तिल को ताड़ और राई का पहाड़ बनाने में माहिर है। वह इस प्लेन दुर्घटना का फायदा उठाना चाहता है।
"वह चाहे किसी भी मुल्क का प्लेन क्यों न हो....अगर वह हमारी सहरद में दाखिल होने के लिए हमारी इजाजत लेने की इजाजत महसूस नहीं करता तो वह यकीनी तौर पर हमारा दुश्मन है।" - (पृष्ठ-37)
शहजाद के बारे में जगरान के राष्ट्रपति भी कहते हैं- " जहां तक शहजाद का सवाल है तो मैं समझता हूँ वह पाकिस्तान परस्त नहीं बल्कि मौका परस्त है।" (पृष्ठ-147)

      जगरान एक देश है(काल्पनिक)। जगरान देश के एक तरफ भारत है, एक तरफ पाकिस्तान और एक सीमा अफगानिस्तान को छूती है।
अफगानिस्तान जहाँ तालिबान का आतंक है। तालिबानी आतंकवादियों के डर से लोग अपना घर बार छोड़ कर भाग रहें हैं।
अलफांसे एक अंतरराष्ट्रीय अपराधी जो कुछ अफगानिस्तान के वैज्ञानिकों को सुरक्षित तरीके भारत पहुंचाना चाहता है। लेकिन परिस्थितिवश वे सब जगरान पहुंच जाते हैं। सब शरणार्थी कर्नल शहजाद के जाल में फंस जाते हैं।
           इस उपन्यास का घटनाक्रम एक रात पर आधारित है। जो एक भारतीय प्लेन दुर्घटना से आरम्भ होता है। एक तरफ खतरनाक बर्फीला तूफान है, उस पर काली रात। प्लेन दुर्घटना के बाद एक और गुप्त अभियान चलाया जाता है। जगरान देश की इजाजत के बिना वह भी जगरान की धरती पर। न्यूट्रॉन बम को खत्म करने का। जगरान का कर्नल शहजाद इन परिस्थितियों का फायदा उठाकर जगरान के राष्ट्रपति को सत्ता से हटाकर स्वयं वहाँ अपनी सत्ता स्थापित कर‌ना चाहता है। राष्ट्रपति तहमास्य भारत समर्थक हैं तो कर्नल शहजाद भारत विरोधी।
        उपन्यास अंतरराष्ट्रीय संबंधों पर आधारित है। दो देश शांति से रहना तो चाहते हैं‌ लेकिन कुछ सत्ता के लालची इस शांति को भंग कर देते हैं।
भारत और जगरान की दोस्ती और शांति में शहजाद राह का रोड़ा बनता है।
           उपन्यास एक तेज रफ्तार थ्रिलर है। उपन्यास का घटनाक्रम और कलेवर ज्यादा विस्तृत नहीं है। इसलिए इसकी रफ्तार में तीव्रता बनी रहती है।
उपन्यास नायक विजय का किरदार उपन्यास के मध्यांतर भाग के पश्चात आता है‌ लेकिन वह अपनी दमदार उपस्थिति दर्ज करवाता है। जब सभी लोग परिस्थितियों से हार जाते हैं तब अकेला विजय परिस्थितियों से निपटता है और सफल भी होता है।
उपन्यास के दो पात्र, भारतीय सैनिक हरीश और जय सिंह का का किरदार बहुत अच्छा है। दोनों पात्रों का जो लेखन ने वर्णन किया है, उनका संघर्ष दिखाया है वह वास्तव में काबिल-ए- तारीफ है। एक भारतीय सैनिक अपनी जान की परवाह न करते हुए अपने कर्त्तव्य को पूरा करता है। "हे राम! ...दया करो...।" वह सर्वशक्तिमान से प्रार्थना करता हुआ बोला- "बस थोड़ी देर की जिंदगी और दे दो...ताकि मरने से पहले अपना फर्ज पूरा करता जाऊं...।" (पृष्ठ-112)

संवाद-
उपन्यास किसी भी कहानी में उसकी विशेषता होते हैं। संवाद कहानी और पात्र दोनों को परिभाषित करने में सक्षम होते हैं। इस उपन्यास में कुछ संवाद पठनीय हैं।
अगर आदमी को सही ढंग से जीवन गुजारना है तो कभी-कभी उसे विपरीत काम भी करते रहना चाहिए।(पृष्ठ-73)
"पाॅलिटिक्स एक ऐसा अजीबो-गरीब खेल है जिसमें वक्त की जरूरत के मुताबिक न चाहते हुए भी आस्तीन के साँप पालने पड़ते हैं।(पृष्ठ-148)

उपन्यास में कुछ जगह कुछ बाते सही नजर नहीं आती। अंधेरी रात में बर्फीले तूफान में, बर्फ के पहाड़ पर अलफांसे और रजिया को चढने में बहुत मुश्किल होती है, उसका उपन्यास में वर्णन भी है, लेकिन वृद्ध प्रोफेसर आलमी और पन्द्रह वर्षीय नातिन रूबी को कहीं कोई समस्या नहीं आती।
कर्नल शहजाद पहाड़ पर आगमन ऐसे करते रहता है जैसे कोई मैदानी भाग में घूम रहा हो।
पूरे उपन्यास में लेखक इस विषय पर थोड़ा सा और ध्यान देता तो शायद यह गलती न होती।

निष्कर्ष-
उपन्यास रोचक और पठनीय है। आदि से अंत तक रोचकरा बनी रहती है। एक तरफ विजय-अलफांसे जैसे लोग हैं तो वहीं कर्नल शहजाद जैसे लोग है जो वक्त का फायदा उठाते हैं।
यह उपन्यास अंतरराष्ट्रीय संबंधों को भी चर्चा करता है।

उपन्यास के प्रमुख पात्र
भारतीय प्रधान मंत्री
कैलाश साहनी- प्रधानमंत्री का सहायक
विजय- भारतीय जासूस
एम. एल. बिरजोई- एक भारतीय वैज्ञानिक
डाॅक्टर बृजेश गांधी- बिरजोई का साथी
जनरल चौधरी- थल सेनाध्यक्ष
सिंह- एयरमार्शल- वायु सेनाध्यक्ष
जय सिंह और हरीश - भारतीय कमाण्डोज

जगरान देश के पात्र
कर्नल शहजाद- जगरान का कर्नल
महमूद- कार ड्राइवर
कैप्टन जुबेर
तहमास्य- जगरान देश का राष्ट्रपति
मंसूर
नासिर- 81
बशीर- कैप्टन
रजिया
आलमी- शरणार्थी
जफर- शरणार्थी
डाक्टर जमील- शरणार्थी
खालिदा- शरणार्थी
जफर- शरणार्थी
रूबी- आलमी की नातिन
शब्बीर, तनवीर ,फय्याज- कर्नल शहजाद के भाई

ईश्वरी प्रसाद-
रामप्रताप- पायलेट
बालकिशन- राम प्रताप का साथी
मीर जाफर - आतंकवादी
ताहिर- मीर जाफर का साथी
सायारा- एक सामान्य महिला
कृष्ण स्वामी अय्यर- चेन्नई पुलिस चीफ
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उपन्यास- बम ब्लास्ट
लेखक- वेदप्रकाश कंबोज
प्रकाशक- सूर्या पॉकेट बुक्स- मेरठ
पृष्ठ-239

1 comment:

  1. उपन्यास रोचक लग रहा है। आपका लेख पढ़ने की इच्छा को मन में जगाता है।

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