मुअनजोदड़ो नाम सुनते ही आँखों के समक्ष एक तस्वीर उभरती है, एक प्राचीन और सुव्यवस्थित शहर की। इस तस्वीर के साथ एक कसक भी उठती है वह कसक है की यह शहर क्यों, कैसे जमीन में दफन हो गया। कहां गये इस प्राचीन सभ्यता के लोग। लेकिन उत्तर आज तक न मिल सके।
सिंधु घाटी सभ्यता के विषय में स्कूल, काॅलेज से ही पढते आये हैं। जितना इस सभ्यता को जाना उतनी ही इच्छा और प्रबल हो उठी।
अगर आपको सिंधु घाटी सभ्यता को समझना है तो ओम थानवी जी द्वारा लिखी गयी पुस्तक 'मुअनजोदडो' बहुत उपयोगी है। यह पुस्तक न तो इतिहास की है ना साहित्य की। यह तो साहित्य और इतिहास का मिश्रण कर उसे एक कलात्मक रूप प्रदान करती है। इस यात्रा वृतांत के माध्यम से मुअनजोदड़ो का जो कलात्मक शैली में चित्रण यहाँ किया गया है वह एक अनोखी अनुभूति देता है, एक ऐसी अनुभूति जिसमें आपको अहसास होगा की आप स्वयं मुअनजोदङो की गलियों में घूम रहे हो।
मुअनजोदड़ो अर्थात् मुर्दों का टीला। रांघेग राघव ने भी इस विषय पर एक उपन्यास लिखा है 'मुर्दों का टीला'।
यह एक संस्मरणात्मक यात्रा वृतांत है। जनसत्ता अखबार के संपादन ओम थानवी का। इस यात्रा वृतांत या मुअनजोदड़ों वर्णन की विशेषता है की यह वर्णन जीवंत है, और इस जीवन को पाठक भी महसूस करता है।
मुझे प्रतियोगिता परीक्षा की तैयारी के दौरान इस वृतांत को पढने का अवसर मिला, हालांकि वह इस पुस्तक का कुछ अंश ही था, लेकिन उसने जो मन पर प्रभाव छोड़ा वह प्रभाव ही इस पुस्तक को पढने को प्रेरित करने के लिए काफी था। अब यह पुस्तक 'राजकीय आदर्श माध्यमिक विद्यालय-माउंट आबू' में मिला तो पढने बैठ गया।
ओम थानवी की भाषा शैली ही इतनी अच्छी है की वह मन पर एक अमिट प्रभाव छोडती है।
पाकिस्तान में स्थित एक प्राचीन नगर है मुअनजोदड़ो जो वक्त के साथ खत्म हो गया। उस पर न जाने कितनी मिट्टी की परतें बिछ गयी। वक्त के साथ मुअनजोदड़ो अपना अस्तित्व गया बैठा तो अपने समय का एक महानगर गायब हो गया।
मिट्टी के नीचे एक शहर दब गया, क्यों और कैसे यह प्रश्न आज भी अनुतरित है। इस शहर पर मिट्टी के टीले स्थापित हो गये। अब शहर न रहा वहाँ मिट्टी के टीले थे। उन्हीं टीलों पर बौद्ध धर्म के मठ स्थापित हो गये। वक्त फिर बदला और वह बौद्ध मठ भी खत्म हो गये। यहाँ एक बौद्ध स्तूप भी था।
एक पुरातत्त्वज्ञ यहाँ आये। सन् 1922 जब राखालदास बद्योपाध्याय यहाँ आए, तब वे इसी स्तूप की खोजबीन करना चाहते थे। ....धीरे-धीरे यह खोज विशेषज्ञों को सिंधु घाटी सभ्यता की देहरी पर ले आयी। (पृष्ठ-50)
लेकिन खुदाई ले दौरान उनको एहसास हुआ की इन बौद्ध मठों/ स्तूप के नीचे भी कुछ और है। इस तरह एक स्तूप की खोज से वे विश्व की प्राचीन सभ्यता तक पहुंचे। यहाँ स्थित बौद्ध स्तूप को नागर भारत का सबसे पुराना लेंड स्केप कहा जाता है। (पृष्ठ-51)
इस खोज से भारत की गणना भी एक प्राचीन सभ्यता वाले देश के रूप में होने लगी। मुअनजोदडो ही था जिसने सबसे पहले भारत के इतिहास को पुरातत्त्व का वैज्ञानिक आधार प्रदान किया।(पृष्ठ-38)
मुअनजोदड़ो एक विशाल और विकसित सभ्यता थी। इसकी सभ्यता की संस्कृति की झलक वहाँ से प्राप्त अवशेषों से भी होती है। यहाँ का नगर, गलियाँ, नालियाँ आदि एक तय पैमाने के अनुसार निर्मित है। वर्तमान में हमारे पास चाहे जितनी सुविधा है लेकिन हम कोई व्यवस्थित शहर नहीं बसा सके लेकिन मुअनजोदड़ो की उस समय की व्यवस्था वर्तमान चंडीगढ़ शहर से मिलती है। क्या चंडीगढ़ की प्रेरणा वहीं से आयी है। कोई घर सङक पर नहीं खुलता, उनके प्रवेश द्वार अंदर गलियों में है। (पृष्ठ-61)
यहाँ बहुत कुछ अदभुत मिला। यहाँ से लगभग सात सौ के करीब कुएं मिले। एक तरफ यह सभ्यता सिंधु नदी के किनारे बसी थी दूसरी तरफ सात सौ के करीब कुएं, यह रहस्य समझ में नहीं आया। विद्वान इरफान हबीब कहते हैं -"सिंधु घाटी सभ्यता संसार में पहली ज्ञात संस्कृति है, जो कुएँ खोद कर भू-जल तक पहुंची। (पृष्ठ-63)
सिर्फ कुएं ही नहीं और भी बहुत कुछ यहाँ से मिला। याजक नरेश, नर्तकी मूर्ति........... यहाँ से प्राप्त एक नर्तकी की मूर्ति के विषय में पुरातत्त्वज्ञ मार्टिन वीलर ने कहा है- "मुझे नहीं लगता कि संसार में इसके जोङ की कोई दूसरी चीज होगी। (पृष्ठ-43)
ओम थानवी साहब ने इस संस्मरणात्मक यात्रा वृतांत को जिस भाषा शैली लिखा है वह पाठक को अनुभूति करवा देती है जैसे पाठक स्वयं उसी प्राचीन महानगर नें खड़ा है। उसकी गलियां में घूम रहा है। वहाँ के घरों को, वहाँ की सभ्यता और संस्कृति को महसूस कर रहा है। मुअनजोदड़ो की खूबी यह है कि इस आदिम शहर की सड़को और गलियों में आप आज भी घूम-फिर हैं। यहां की सभ्यता और संस्कृति का सामान चाहे अजायबघरों की शोभा बढ़ा रहा हो, शहर जहां था अब भी वहीं है। आप इसकी किसी भी दीवार पर पीठ टिका कर सुस्ता सकते हैं। वह कोई खण्डहर क्यों न हो, किसी घर की देहरी पर पाँव रख कर सहसा सहम जा सकते हैं, जैसे भीतर अब भी काई रहता हो। रसोई की खिड़की पर खड़े होकर उसकी गंध महसूस कर सकते हैं। (पृष्ठ-49,50)
इस सभ्यता की खुदाई तो काफी समय तक चलती रही लेकिन इसकी प्राचीनता का आंकलन काफी समय बाद हो सका। मुअनजोदड़ो के खण्डहर 1924 में दुनियां के सामने आए। इनकी खुदाई का श्रेय जाॅन मार्शल को दिया जाता है। (पृष्ठ-44) और उसके बाद तो काफी पुरातत्ववेता यहाँ खुदाई करते रहे। जैसे, डीआर भण्डारकर -1911, दयाराम साहनी- 1917, राखालदास बनर्जी- 1922-23, माधोस्वरुप वत्स, काशीनाथ दीक्षित आदि।
समय के साथ मुअनजोदड़ो की खुदाई बंद हो गयी। लेकिन कुछ प्रश्न आज भी अधूरे हैं जिनका उत्तर किसी भी विद्वान के पास नहीं। यह अधूरापन कब खत्म होगा यह तो भविष्य ही तय करेगा लेकिन जब भी इन अधूरे प्रश्नों के उत्तर मिलेंगे तब सिंधु घाटी सभ्यता प्राचीन इतिहास पर ....
1. यह सभ्यता खत्म कैसे हो गयी?
2. इस शहर का वास्तविक नाम क्या था?
3. आखिर कहां और क्यों चले गये एक विकसित सभ्यता के लोग?
4. इस सभ्यता की लिपि आज तक पढी नहीं गयी।
ओम थानवी का यात्रा वृतांत 'मुअनजोदड़ो' बहुत ही रोचक है। पाठक को यह प्राचीन सभ्यता के शहर मुअनजोदड़ो का भ्रमण करवाने में सक्षम है। अगर सहृदय पाठक है तो ओम थावनी जी भावों को जगाने वाली इस शैली में खो जायेगा।
किताब आवरण चित्र मुअनजोदड़ो से प्राप्त मिट्टी का मुखौटा है।
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पुस्तक- मुअनजोदड़ो (यात्रा वृतांत)
लेखक- ओम थानवी
प्रकाशक- वाणी प्रकाशन
पृष्ठ-118
मूल्य- 200₹
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किताब का लिंक- वाणी प्रकाशन
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अतिरिक्त तथ्य किताब से...
- पाकिस्तान में सबसे ज्यादा हिंदू- कोई पच्चीस लाख- सिंध में रहते हैं। (पृष्ठ-23)
- मुस्लिम राज सबसे पहले सिंध में स्थापित हुआ।(पृष्ठ-23)
सन् 711 में सिंध शासक दाहर पर मोहम्मद बिन कासिम ने हमला किया।
- पुरातत्त्व को इतिहास का रोशनदान कहा जाता है। (पृष्ठ38)
- झूले लाल जी के गीत 'दमा दम मस्त कलंदर' में आया 'सेवण' शब्द सिंध की एक जगह का नाम है।
रोचक किताब है। मैंने काफी पहले खरीद ली थी क्योंकि इसका विचार काफी रोचक लगा था। जल्द ही पढ़ता हूँ।
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