Saturday 14 July 2018

128. बस्तर पाति- पत्रिका,मई 2018

बस्तर पाति- त्रैमासिक पत्रिका, संयुक्त अंक।
छतीसगढ से प्रकाशित होने वाली त्रैमासिक पत्रिका 'बस्तर पाति' का यह एक संयुक्त अंक है। इसमें अंक संख्या 14,15,16 अर्थात सितंबर 2017 से मई 2018 तक को एक अंक में प्रस्तुत किया गया।
            यह पत्रिका किसी न किसी एक साहित्यकार पर केन्द्रित होती है और इसका प्रस्तुत अंक साहित्यकार हरिहर वैष्णव पर केन्द्रित है। इसके साथ-साथ यह अंक संपादकों की रचनाओं पर केन्द्रित अंक है।

इस अंक में हरिहर वैष्णव का एक साक्षात्कार दिया गया है। लेकिन साक्षात्कारकर्ता पत्रिका संपादक सनत जी कोई विशेष महत्व के प्रश्न नहीं कर पाये। हालांकि यह साक्षात्कार पृष्ठ संख्या 12से 18 तक विस्तृत है लेकिन कोई प्रश्न मुझे विशेष न लगे।
कुछ प्रश्न देखें।
- सामाजिक असंतुलन के लिए लेखक जिम्मेदार होता है या फिर संपादक?
- साहित्यकार को कम से कम कितनी पत्रिकाओं का सदस्य होना चाहिए?
- पत्रिका कैसे बेचें? कैसे प्रकाशक अपनी पत्रिका का खर्च निकाले?
       ऐसे और भी कई प्रश्न हैं लेकिन हरिहर वैष्णव जी ने सभी प्रश्नों के अच्छे उत्तर दिये हैं। हरिहर वैष्णव जी की कुछ पंक्तियाँ दर्शनीय है।
- मेरी समझ में‌ प्रगतिशीलता यानी समाज में व्याप्त गंधाती रूढियों को तोड़ने की सोच है।
- प्रकाशित साहित्य खरीद और पढ कर भी साहित्य सेवा की जा सकती है।
      इस अंक में कई कहानियाँ है। प्रथम कहानी हरिहर वैष्णव जी की 'तकाबी' है जो प्रशासन में फैले भ्रष्टाचार पर प्रहार करती है की कैसे एक गरीब आदमी को लूटा जाता है।
        डी. सूर्यप्रकाश राव की कहानी 'अंकुर' एक मार्मिक प्रेम कथा है, जो काफी रोचक है। वही एक और कहानी है 'लाल अंगूठी'  जिसके लेखक का कहीं कोई नाम नहीं दिया गया सिर्फ अंत में 'बस्तर पाति फीचर्स' लिखा है। यह कहानी हमारे अंधविश्वास पर गहरी चोट करती है। आदमी चाहे कितना भी शिक्षित क्यों न हो, लेकिन कहीं न कहीं अंधविश्वास से ग्रसित अवश्य होता है। कहानी का पात्र हरिवंश ताऊ भी इसी प्रकार का एक पात्र है।
    पत्रिका में दो शोध आलेख भी हैं। एक तो लेखिका का मधु जैन का 'जैन मुनि, संतकवि, आचार्य श्री विद्यासागर की रचनाओं के संदर्भ में......।'
     इस शोध आलेख का कोई स्पष्ट शीर्षक नजर नहीं आता। शोध आलेख अच्छा और विचारणीय है।  शिक्षा प्रणाली में बहुत अच्छा लिखा है।
आलेख की कुछ पंक्तियाँ दृष्टव्य है।
- शिक्षा जीवन का वह पवित्र संस्कार है, जो हमको मानवतावादी सिद्धान्तों पर चलना सीखाता है।"(पृष्ठ-51)
- शिक्षा मनुष्य के व्यवव संस्कार को परिमार्जित करने वाली ऐसी अंतःक्रिया है जिसमें हित का सर्जन व अहित का विसर्जन होता है।
- आदर्श सभ्यता एवं संस्कृति शिक्षा का सौन्दर्य है।
इस शोध आलेख में शिक्षा के तीनों पक्ष ज्ञान, क्रिया और भाव तीनों को समझाया गया है।
1. ज्ञानात्मक पक्ष- भाषा, गणित, विज्ञान, सामाजिक अध्ययन, अर्थशास्त्र, वाणिज्य और अध्यात्म।
2. भावात्मक पक्ष- साहित्य, दर्शन, नीतिशास्त्र, धर्मशास्त्र, संगीत, ललितकला, संस्कृति।
3. क्रियात्मक पक्ष- सहगामी क्रियाएँ, शिल्पकला, शारीरिक शिक्षा, चरित्र निर्माण।
आशारानी पटनायक का शोध आलेख का शीर्षक है- 'स्त्री विमर्श- परम्परा और नवीन आयाम'।
    इस आलेख में समाज में स्त्री वर्ग की भूमिका को बहुत अच्छे तरीके से प्रस्तुत किया है। लेखिका महोदया कहती है " महिलाओं ने अपने कर्तव्य, कर्मठता और सृजनशीलता के माध्यम से राष्ट्र निर्माण और विकास में अपना अभूतपूर्व योगदान दिया है।" (पृष्ठ-55)
  इस पत्रिका का एक विशेष आकर्षण है, वह है 'नकारखाने की तूती' नामक स्तम्भ। प्रतिदिन बहुत से ऐसे घटनाक्रम देखते हैं जो समाज के लिए घातक है लेकिन हम उन पर बोल नहीं पाते। ऐसे विचारों को इस स्तम्भ में स्थान दिया गया है।
    प्रस्तुत अंक में इस स्तम्भ के अन्तर्गत 'शिक्षा को नौकरी से किसने जोड़ा' शीर्षक से एक अच्छा आलेख दिया गया है।
         वर्तमान में शिक्षा का उद्देश्य मात्र नौकरी तक सिमित होकर रह गया, शिक्षा अपने मूल मनुष्य का  सर्वागींण विकास से दूर हो गयी।
इसके अतिरिक्त इस अंक में साहित्यिक जगत के समाचार, पुस्तक समीक्षा जैसे कई रोचक स्तम्भ हैं।
पत्रिका पठनीय है।
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पत्रिका- बस्तर पाति
अंक- 14,15,16, सितंबर 2017, मई -2018( संयुक्त अंक)
संपादक- सनत कुमार जैन
संपादकीय कार्यालय
बस्तर पाति
सन्मति इलैक्ट्रिकल्स,
सन्मति गली, दुर्गा चौक के पास।
जगदलपुर, जिला- बस्तर,
छत्तीसगढ़- 494001
Email- paati.bastar@gmail.com
Mob.- 9425507942

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