IAS की तैयारी करते युवाओं की संघर्ष दास्तान।
डार्क हाॅर्स -नीलोत्पल, उपन्यास, रोचक, पठनीय।
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नीलोत्पल मृणाल का उपन्यास डार्क हाॅर्स कहानी है दिल्ली के मुखर्जी नगर में IAS की तैयारी करने वाले उन युवाओं की जो एक स्वर्णिम भविष्य के निर्माण के लिए संघर्षपूर्ण जिंदगी जी रहें हैं।
यह उपन्यास मात्र कल्पनाओं की उपज नहीं है वरन लेखक के जीवन का यथार्थ अनुभव है। लेखक ने इस विषय पर लेखकीय में लिखा है- संभवतः जिस उम्र में आदमी के पास सबसे अधिक ऊर्जा रहती है, कुछ करने का पुरजोर उत्साह होता है और दुनिया को देखने -समझने की सबसे ज्यादा जिज्ञासा होती है, मैंने अपने जीवन का वह सबसे चमकदार दौर आईएएस की तैयारी के लिए मुखर्जीनगर में गुजार दिया।
अपने जीवन के इसी सत्य को लेखक नीलोत्पल मृणाल ने उपन्यास रूप में प्रस्तुत किया है।
उपन्यास का मुख्य पात्र है संतोष कुमार। लेकिन यह मात्र एक संतोष की कहानी नहीं है। संतोष तो एक माध्यम मात्र है, संतोष के साथ-साथ न जाने अन्य कितने और अभ्यर्थियों की कहानी है जो दिल्ली के मुखर्जी नगर में आईएएस की तैयारी करते हैं और इस दौरान वह कितनी बार जीते- मरते हैं। उनके और उनके माँ-बाप के क्या सपने हैं। इस इस उपन्यास में दर्ज हैं।
अपने जीवन के इसी सत्य को लेखक नीलोत्पल मृणाल ने उपन्यास रूप में प्रस्तुत किया है।
उपन्यास का मुख्य पात्र है संतोष कुमार। लेकिन यह मात्र एक संतोष की कहानी नहीं है। संतोष तो एक माध्यम मात्र है, संतोष के साथ-साथ न जाने अन्य कितने और अभ्यर्थियों की कहानी है जो दिल्ली के मुखर्जी नगर में आईएएस की तैयारी करते हैं और इस दौरान वह कितनी बार जीते- मरते हैं। उनके और उनके माँ-बाप के क्या सपने हैं। इस इस उपन्यास में दर्ज हैं।
यह उपन्यास अपने साथ अनेक कहानियाँ और घटनाएं समेटे हुए है। जहाँ कुछ कहानियाँ और घटनाएं हँसती है वहीं कुछ पाठक को रुलाती भी हैं। कुछ घटनाएं आईएएस की तैयारी के नाम पर मौज मस्ती करने वाले युवाओं की वहीं कुछ अपने स्वप्न साकार करने वाले संघर्षशील युवाओं के लिए प्रेरणा भी है।
बत्रा- मुखर्जी नगर की वह जगह जहाँ चाय के नाम पर सिविल सर्विस की तैयारी करने वालों की महफिल जमा होती है। जिसने जितने अधिक मेंस लिखे हों वह महफिल का सबसे खास व्यक्ति होता था। जिसने इंटरव्यू दे दिया वह अति-विशिष्ट की श्रेणी में आता था। (पृष्ठ -54) और बत्रा पर ऐसे -ऐसे धुरंधर जमा होते हैं जो सिगरेट के धुएँ से विश्व का नक्शा बना देते हैं।
कुछ नव युवा तैयारी के नाम पर मौजमस्ती करते हैं और इसे प्रगतिशीलता का नाम देते हैं। ऐसे युवाओं को गुरु विमलेंदू ने खूब फटकारा है।
- ये दारू पीना और सिगरेट उङाना कब से प्रगतिशीलता का पैमाना बन गया.....दारू और सिगरेट का खुलेआम पीना है ये कोई साहस नहीं बल्कि इसे उन्माद कहते हैं। (पृष्ठ-92)
और साहस क्या है- गुरु के शब्दों में
"हम में साहस है बालश्रम के विरुद्ध बोलने का । हम में साहस है दहेज प्रथा का विरोध करने का।.....हम में साहस...नारी मुक्ति...बाल विवाह...धर्म पर सवाल पूछने का। हम में साहस है सरकार की गलत नीतियों के विरुद्ध सङक पर उतर जाने का। हाँ, हममें ये साहस है। साहस इसे कहते हैं।" (पृष्ठ-92)
और साहस क्या है- गुरु के शब्दों में
"हम में साहस है बालश्रम के विरुद्ध बोलने का । हम में साहस है दहेज प्रथा का विरोध करने का।.....हम में साहस...नारी मुक्ति...बाल विवाह...धर्म पर सवाल पूछने का। हम में साहस है सरकार की गलत नीतियों के विरुद्ध सङक पर उतर जाने का। हाँ, हममें ये साहस है। साहस इसे कहते हैं।" (पृष्ठ-92)
मुखर्जी नगर में फैले कोचिंग सेंटर की वास्तविकता से भी परिचित करवाती है। ये कहानी मात्र मुखर्जी नगर की या आईएएस की तैयारी करने वाले युवाओं की नहीं, सभी जगह कुकरमुत्तो की तरह उगे कोचिंग सेंटर अभ्यर्थीयों के साथ मनमानी लूट करते हैं।
- पर ये तो मानना होगा कि यहाँ कुकरमुत्तों की तरह उगे कोचिंग में क्वालिटी नहीं है। कुछ को छोङकर बाकी खाली मायाजाल फैलाए हुए हैं गुरु।"- विमलेन्दू ने कहा। (पृष्ठ-65)
" हाँ, साला 2-3 साल तो ये समझने के लिए कोचिंग लेना होता है कि अब कौन सी कोचिंग में एडमिशन लेना अच्छा होगा।"- विमलेंदू ने कहा (पृष्ठ-65)
कोचिंग सेंटर की बदतमीजी भी उपन्यास में उजागर हुयी है। एडमिशन लेते वक्त उनका व्यवहार अलग होता है और शुल्क जमा करवा देने के बाद अलग
" देखिए हमारा काम होता है हर स्टूडेंट का बेवजह उत्साह बढाना समझे आप? वर्ना हम भी जानते हैं कि सौ में दस ही सलेक्ट होते हैं बाकी गधे ही होते हैं पर हमें सबको घोङा कहना पङता है...। (पृष्ठ-100)
- पर ये तो मानना होगा कि यहाँ कुकरमुत्तों की तरह उगे कोचिंग में क्वालिटी नहीं है। कुछ को छोङकर बाकी खाली मायाजाल फैलाए हुए हैं गुरु।"- विमलेन्दू ने कहा। (पृष्ठ-65)
" हाँ, साला 2-3 साल तो ये समझने के लिए कोचिंग लेना होता है कि अब कौन सी कोचिंग में एडमिशन लेना अच्छा होगा।"- विमलेंदू ने कहा (पृष्ठ-65)
कोचिंग सेंटर की बदतमीजी भी उपन्यास में उजागर हुयी है। एडमिशन लेते वक्त उनका व्यवहार अलग होता है और शुल्क जमा करवा देने के बाद अलग
" देखिए हमारा काम होता है हर स्टूडेंट का बेवजह उत्साह बढाना समझे आप? वर्ना हम भी जानते हैं कि सौ में दस ही सलेक्ट होते हैं बाकी गधे ही होते हैं पर हमें सबको घोङा कहना पङता है...। (पृष्ठ-100)
इन कोचिंग सेंटर की वास्तविक तो प्रफुल्ल बटोहिया, दुखमोचन और खगेंदर तूफानी जैसे सर से पता चलती है। ये सर ऐसे है कि वे बैल को भी यह आशा बँधवा देते थे कि 'तुम एक दिन दूध दोगे, बस अच्छे से चारा-बेसन खाओ'। (पृष्ठ- 106) और ऐसे ही हैं खगेंदर तूफानी।
खगेंदर तूफानी- खुद सात साल यहीं मुखर्जी नगर में आईएएस, पीपीएस सबकी तैयारी की थी पर न वहाँ सफल हुए न ही किसी विषय में कोई विशेषज्ञता ही हासिल कर पाए। हारकर 'लोकसेवक मेकर' नाम की कोचिंग खोली और उसके निदेशक बने। (पृष्ठ-104)
खगेंदर तूफानी- खुद सात साल यहीं मुखर्जी नगर में आईएएस, पीपीएस सबकी तैयारी की थी पर न वहाँ सफल हुए न ही किसी विषय में कोई विशेषज्ञता ही हासिल कर पाए। हारकर 'लोकसेवक मेकर' नाम की कोचिंग खोली और उसके निदेशक बने। (पृष्ठ-104)
कोचिंग के दौरान पनपने वाले अनेक किस्से पाठक को खूब रोमांचित करते हैं। जहाँ अच्छे यारों के यार मिलते हैं वहीं कुछ दिलफरेब भी। जहाँ दोस्ती है, प्यार है और बेवफाई भी है। यहाँ अक्सर कोचिंग में अपने बगल में बैठी लङकी में लङका पहले अपनी प्रेमिका देखता है, फिर दुल्हन देखता है, फिर एक अच्छा दोस्त देखता है और अंत में बहन पर आकर समझौता कर लेता है। (पृष्ठ-134) और ऐसा समझौता उपन्यास का एक पात्र भी करता है।
लेकिन कुछ अभ्यर्थी तो इससे भी दो कदम बढकर निकले- गोरे लाल के कमरे पर जैसे ही उसकी कुक आती, एक गाना तभी हमेशा मोबाइल पर बजता था, 'हम होंगे कामयाब, हम होंगे कामयाब, एक दिन।'
संवाद-
किसी भी कहानी के संवाद उसके उद्देश्य को स्थापित करने में महती भूमिका अदा करते हैं। इस उपन्यास के संवाद एक और जहाँ पात्र का चरित्र-चित्रण करने में सक्षम हैं वहीं कहानी को आगे बढाने में उपयोगी हैं।
किसी भी कहानी के संवाद उसके उद्देश्य को स्थापित करने में महती भूमिका अदा करते हैं। इस उपन्यास के संवाद एक और जहाँ पात्र का चरित्र-चित्रण करने में सक्षम हैं वहीं कहानी को आगे बढाने में उपयोगी हैं।
- अंग्रेजी जानने वाला वहाँ सियारों के बीच लकङबग्घे की तरह होता है। (पृष्ठ-61)
- बुढापा आदमी का अंतिम बचपन है। (पृष्ठ-115)
- लङको का मन वैसे ही साफ होता है जैसे नवंबर की दोपहर में आसमान होता है। (पृष्ठ- 134)
- सिविल सेवा की तैयारी करने वालों से ज्यादा भयंकर आशावादी मानव संसार में और कहीं मिलना मुश्किल था। (पृष्ठ-147)
- अंग्रेजी व्यापार की भाषा है, उर्दू प्यार की भाषा है और हिंदी व्यवहार की भाषा है। (पृष्ठ-95)
- बुढापा आदमी का अंतिम बचपन है। (पृष्ठ-115)
- लङको का मन वैसे ही साफ होता है जैसे नवंबर की दोपहर में आसमान होता है। (पृष्ठ- 134)
- सिविल सेवा की तैयारी करने वालों से ज्यादा भयंकर आशावादी मानव संसार में और कहीं मिलना मुश्किल था। (पृष्ठ-147)
- अंग्रेजी व्यापार की भाषा है, उर्दू प्यार की भाषा है और हिंदी व्यवहार की भाषा है। (पृष्ठ-95)
शीर्षक-
किसी भी वस्तु का शीर्षक ही उसके प्रथम विशेषता होता है।
उपन्यास का शीर्षक डार्क हाॅर्स क्यों है? हिंदी उपन्यास और अंग्रेजी शीर्षक। उपन्यास का शीर्षक चाहे जो भी हो पर इसका औचित्य उपन्यास के अंत में पता चलता है।
लेखक ने भी इस विषय पर लिखा है- एक बात उपन्यास के शीर्षक पर भी कहूँगा।........डार्क हाॅर्स के नाम के कथानक से संबंध की तो भूमिका में नहीं बताऊँगा इसके लिए तो आपको यह उपन्यास पढना होगा।
सच मानिए जैसे ही आप इस शीर्षक की सत्यता तक पहुंचेंगे आपको भी यह शीर्षक रोचक लगेगा।
किसी भी वस्तु का शीर्षक ही उसके प्रथम विशेषता होता है।
उपन्यास का शीर्षक डार्क हाॅर्स क्यों है? हिंदी उपन्यास और अंग्रेजी शीर्षक। उपन्यास का शीर्षक चाहे जो भी हो पर इसका औचित्य उपन्यास के अंत में पता चलता है।
लेखक ने भी इस विषय पर लिखा है- एक बात उपन्यास के शीर्षक पर भी कहूँगा।........डार्क हाॅर्स के नाम के कथानक से संबंध की तो भूमिका में नहीं बताऊँगा इसके लिए तो आपको यह उपन्यास पढना होगा।
सच मानिए जैसे ही आप इस शीर्षक की सत्यता तक पहुंचेंगे आपको भी यह शीर्षक रोचक लगेगा।
कमियां-
- उपन्यास में कई जगह अश्लील शब्दों का प्रयोग किया गया है। जो कि मेरी दृष्टि में उचित नहीं है। पाठक अच्छी कहानी के कारण पढता है न कि गाली पढने के लिए। इस उपन्यास पर लेखक को साहित्य अकादमी का पुरस्कार सिर्फ अच्छे कथानक के लिए मिला है अगर इसमें से कुछ अश्लील शब्दों को हटा दिया जाये तो उपन्यास पारिवारिक रूप से भी पठनीय है।
उम्मीद है इसका नया संस्करण जब भी आये तो उसमें से अश्लील शब्द न हों।
- मनोहर के चाचा का दिल्ली आगमन व उनका दिल्ली दर्शन विषय थोङा ज्यादा व अनावश्यक सा लगता है। हालांकि यह वर्णन भी रोचक है। क्योंकि स्वयं चाचा भी रोचक इंसान हैं।
एक उदाहरण देख लिजिएगा- लाल किले में जब चाचा को मनोहर ने खैनी खाने से मना किया तो चाचा ने भी गजब उत्तर दिया- "चलो जरा यहाँ खैनी खा लें, यादे रहेगा कि लाल किला में बैठ के खैनी खाए थे कबो।"- चाचा ने चहुँकते हुए कहा। (पृष्ठ-77)
- उपन्यास में कई जगह अश्लील शब्दों का प्रयोग किया गया है। जो कि मेरी दृष्टि में उचित नहीं है। पाठक अच्छी कहानी के कारण पढता है न कि गाली पढने के लिए। इस उपन्यास पर लेखक को साहित्य अकादमी का पुरस्कार सिर्फ अच्छे कथानक के लिए मिला है अगर इसमें से कुछ अश्लील शब्दों को हटा दिया जाये तो उपन्यास पारिवारिक रूप से भी पठनीय है।
उम्मीद है इसका नया संस्करण जब भी आये तो उसमें से अश्लील शब्द न हों।
- मनोहर के चाचा का दिल्ली आगमन व उनका दिल्ली दर्शन विषय थोङा ज्यादा व अनावश्यक सा लगता है। हालांकि यह वर्णन भी रोचक है। क्योंकि स्वयं चाचा भी रोचक इंसान हैं।
एक उदाहरण देख लिजिएगा- लाल किले में जब चाचा को मनोहर ने खैनी खाने से मना किया तो चाचा ने भी गजब उत्तर दिया- "चलो जरा यहाँ खैनी खा लें, यादे रहेगा कि लाल किला में बैठ के खैनी खाए थे कबो।"- चाचा ने चहुँकते हुए कहा। (पृष्ठ-77)
निष्कर्ष-
मेरी दृष्टि में यह एक ऐसा उपन्यास है जिसे सभी उम्र वर्ग को पढना चाहिए। यह उपन्यास मात्र मनोरंजन नहीं है बल्कि संघर्षरत जीवन जीने वाले लोगों की जीवंत दास्तान है। एक ऐसी दास्तान जो कहीं आपको रुलाती है तो कभी हँसाती है।
मैं जब इस उपन्यास को पढ रहा था तो स्वयं पात्रों के साथ जी रहा था। स्वयं को मुखर्जी नगर में पाया। कभी-कभी तो संतोष, गुरु, रायसाहब, विमलेंदू मनोहर, विदिशा और पायल के बारे में सोचने लगा था।
उपन्यास बहुत ही रोचक है अवश्य पढें।
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मेरी दृष्टि में यह एक ऐसा उपन्यास है जिसे सभी उम्र वर्ग को पढना चाहिए। यह उपन्यास मात्र मनोरंजन नहीं है बल्कि संघर्षरत जीवन जीने वाले लोगों की जीवंत दास्तान है। एक ऐसी दास्तान जो कहीं आपको रुलाती है तो कभी हँसाती है।
मैं जब इस उपन्यास को पढ रहा था तो स्वयं पात्रों के साथ जी रहा था। स्वयं को मुखर्जी नगर में पाया। कभी-कभी तो संतोष, गुरु, रायसाहब, विमलेंदू मनोहर, विदिशा और पायल के बारे में सोचने लगा था।
उपन्यास बहुत ही रोचक है अवश्य पढें।
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बेहद दिलचस्प उपन्यास। अपने पहले ही उपन्यास में निलोत्पलने बड़ा साहस दिखाते हुए बेबाकी से यथार्थ की तलछट को कुरेदते हुए एक ऐसी दुनिया का सच लिखा है, जिस पर पहले कभी इतना नहीं लिखा गया. ये भोगे गए यथार्थ का दस्तावेज है. एक ऐसी रोचक और बौद्धिक दुनिया की गर्म भट्टी का सच लिखा है, जिसमें कई लोग तप के सोना हो जाते हैं तो कई जल कर खाक. 'डार्क हॉर्स' अंधेरे रास्ते से होकर उजाले तक का सफर है. नीलोत्पल की भाषा में रवानगी है, व्यंग में धार है, संवादों में संवेदना के गहरे उतार-चढ़ाव हैं. किस्सागोई का अपना अलग अंदाज है, जो पाठक को पढ़ने के लिए मजबूर करता है. 'डार्क हॉर्स' के रूप में शानदार शुरुआत के साथ भविष्य के एक बड़े लेखक के रूप में देख रहीं हूं. नीलोत्पल को बहुत सारी शुभकामनाएं।
- सुप्रसिद्ध साहित्यकार श्रीमती चित्रा मृद्गुल
- सुप्रसिद्ध साहित्यकार श्रीमती चित्रा मृद्गुल
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उपन्यास- हार्क हाॅर्स
ISBN-
लेखक- नीलोत्पल मृणाल
प्रकाशक- हिंद युग्म
www.hindyugam.com
पृष्ठ- 174
मूल्य-175₹
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उपन्यास निम्न लिंक से मंगवा सकते हैं।
एमेजन- डार्क हाॅर्स
उपन्यास- हार्क हाॅर्स
ISBN-
लेखक- नीलोत्पल मृणाल
प्रकाशक- हिंद युग्म
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