मोरिस सिमाश्को के उपन्यास मरुस्थल की समीक्षा
कमिसार सवीत्स्की सोच में डूबा हुआ जुगनुओं से जगमगाते रेगिस्तान को ताक रहा था। लाल सेना का यह खास फौजी दस्ता आठ दिन-रातों तक रेतीले मैदानों और चलते-फिरते बालू को लाँघता हुआ शत्रुओं के गिरोह का पीछा करता रहा था। आज रात को उस गिरोह के बचे-बचाये लोग एक पुरानी गढी में जा छिपे थे। खास दस्ते ने पौ फटने के समय जब गढी पर हमला किया तो बहुत ठण्डी अफगानी हवा तन्न को सुन्न किये दे रही थी। गढी में दाखिला होने पर उन्हें केवल चले हुए कारतूसों की खाली नलियाँ और कुछ लाशें दिखाई दीं। हत्यारे शमुर्दखान की लाश इसमें नहीं थी। सफेद गार्ड का बासमाच(जमींदार) अपने सहायक, राजनीतिक पुलिस के अफसर दूदनिकोव के साथ गायब हो गया था। हर टिले, हर सूखी झाङी को खोजा गया पर कहीं भी कोई सुराग नहीं मिला। मरुस्थली हवा के सम गति से बहनेवाले झोंकों ने बहुत जल्द ही खाली कारतूसों और लाशों को ढँक दिया.....
सन् 1917 के समय को आधार बना कर मोरिस सिमाश्को द्वारा काल मरुस्थल पर लिखा गया उपन्यास 'मरुस्थल' बहुत रोचक है।
उपन्यास में एक तरफ है चारी हसन जैसा एक सीधा-साधा नौजवान और दूसरी तरफ है शमुर्दखान जैसा अत्याचारी
और है चारों तरफ फैला विस्तार मरुस्थल ।
चारी हसन जैसा मासूम नौजवान आखिर क्यों विद्रोह पर उतर आता है।
"अल्लाह ने सभी सभी कुछ हमारी जिंदगी के लिए बनाया है। धरती, पानी और हवा तो सभी जानवरों के लिए जरूरी है। वह आदमी सबसे बङा गुनाह करता है, जो दूसरे से खुदा की ये नेमतें छीनना चाहता।"
यही बात चारी हसन को एक बगावत के लिए मजबूर कर देती है।
काले मरुस्थल के बीच बसा है एक छोटा सा गाँव। जहाँ के किसान लोग बङी मुश्किल से अपना जीवन-यापन करते हैं। इसी गाँव का एक अमीर आदमी इल्यासखान लोगों की मजबूरी का फायदा उठाकर लोगों के पानी पर अपना कब्जा जमा लेता है, लोगों की जमीन हथिया लेता है और उनको मजदूर बनाकर रखता है।
इसी चाल का शिकार होता है चारी का परिवार और किशोरावस्था में ही चारी इल्यासखान की भेङे चराने लग जाता है। अपना पानी व जमीन गवा देने के बाद तक भी चारी का परिवार इल्यासखान का मजदूर बन कर अपना जीवन यापन करता है। लेकिन इल्यासखान के शैतान पुत्र चारी हसन के पूरे परिवार को मौत के घाट उतार देते हैं।
"इस व्यक्ति के हाथ-पैर बँधे हुए थे। चारी ने चमङे के फीते काटे और लाश को सीधा किया। उसके बूढे बाप हसन की फोङ डाली गयी लहुलुहान आँखें नीले आकाश को ताकती दिखायी दी।"
बस यहीं से नौजवान चारी के दिल में बदले की बदले की आग पैदा हो गयी। मरुस्थल का नियम है खून का बदला खून।
रूसी सेना के लाल जवान मरुस्थल मे शत्रु लोगों के सर्वनाश को निकले हैं। तब उनसे टकराता है तुर्कमानी नौजवान चारी हसन और रूसी सेना उसे अपने सैनिक दस्ते में शामिल कर लेती हैं।
चारों तरफ शमुर्दखान का आतंक है। वह लाल सेना पर हमला भी करता है, पर स्वयं लाल सेना से बच कर भाग जाता है।
लेकिन कब तक भागता.............।
शैतान का अंत तय है।
विशेष- उपन्यास में काले मरुस्थल का जीवंत वर्णन किया गया है। एक-एक दृश्य पाठक के हृदय में उतरता जाता है। मरुस्थल के सामान्य नियमों का वर्णन भी इस लघु उपन्यास में मिलता है।
उपन्यास में वर्णन है मरुस्थल में गरीबी से जूझते लोगों का और उन पर अत्याचार करते शैतान अत्याचारी लूटेरों का।
अगर पाठक रूसी सेना, मरुस्थल के शत्रुओं, वहाँ के लोगों के जीवन की झलक देखना चाहता है तो यह एक अच्छा उपन्यास है।
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उपन्यास के कुल पाँच अध्याय है।
इसका हिंदी में प्रथम प्रकाशन सन् 2017जनवरी में हुआ है।
उपन्यास- मरुस्थल (Marusthal)
लेखक- मोरिस शिमाश्को(Moris Simashco)
पृष्ठ- 128.
मूल्य- 40₹
)
प्रकाशन- गार्गी प्रकाशन-दिल्ली।
Email- gargiprakashan15@gmail.com
लेखक परिचय
मारिस सिमाश्को का जन्म 1924 में हुआ था। सन् 1940 में वे सैनिक बन शत्रु से जूझते रहे।
कजाखस्तान के अल्मा-अता विश्वविद्यालय से पत्राचार से पत्रकारिता की द्वारा पढाई की और पत्रकारिता के क्षेत्र में अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर चर्चित रहे।
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