मार्मिक कथा संग्रह
रानियां रोती नहीं- लक्ष्मी शर्मा
बोधि प्रकाशन जयपुर द्वारा समय-समय पर पाठकों के लिए अल्प मूल्य में किताबों का संग्रह जारी किया जाता है । यह पुस्तक संस्कृति को बढावा देने में सराहनीय प्रयास है और ऐसे प्रयास होने भी चाहिए।
बोधि प्रकाशन द्वारा सन् 2010 में पहला सैट जारी किया गया था । प्रस्तुत पांचवां सैट सन् 2020 में आया था जिसमें कुल दस किताबें थी जिनका मूल्य मात्र सौ रुपये था। यह क्रम आगे भी जारी है।
पांचवें सैट की एक पुस्तक है 'रानियां नहीं रोती' और रचनाकार है लक्ष्मी शर्मा। इस संग्रह में कुल नौ कहानियाँ हैं।
इस संग्रह की प्रथम कहानी है 'रानियां नहीं रोती' । यह शीर्षक प्रभावित करने में सक्षम है। पाठक के मन में सहज ही यह प्रश्न उठता है रानियां क्यों नहीं रोती ?
रानियों की कहानियों को वर्तमान के साथ जोड़कर लेखिका महोदया ने स्त्री के दर्द को बहुत अच्छे से अभिव्यक्त किया है।
स्त्री का दर्द 'इला न देणी आपणी' कहानी में भी व्यक्त है, बस यहां थोडा परिवर्तन है। सौन्दर्य कैसे अभिशाप बन जाता है और जब स्त्री सौन्दर्यमयी होती है तो सबसे पहले उसके सौन्दर्य पर परिचितों की कुदृष्टि टिकती है।
अनुपम सौन्दर्य की धनी सुरसती के जीवन में जो घटित होता है उसके पीछे उसका सौन्दर्य की है लेकिन सुरसती 'इला न देणी आपणी' सिद्धांत को जब सार्थक करती है तो वह साहसी औरत के रूप में नजर आती है।
'अथ मोबाइल कथा' मुझे सबसे रोचक कहानी लगी। जहां बाकी कहानियों में अश्रु हैं वहीं 'अथ मोबाइल कथा' में भारतीय परिवेश में मोबाइल के आगमन की रोचक कहानी है।
कस्बा है, कस्बे में मंदिर है और मंदिर में है रामकेश और रामकेश के पास है मोबाइल ।
दरअसल रामकेश का मोबाइल रामकेश की जान है। बड़ा सा, महंगी कम्पनी वाला... अलार्म, घड़ी, केलकुलेटर, फोटो-वीडियो वाला महंगा स्मार्ट फोन ।(पृष्ठ-57)
लोग रामकेश से डरते भी हैं और उसे गालियां भी देते हैं पर रामकेश अपने मोबाइल में मस्त है।
"हरामी को बाप मोकळी माया छोड़ गयो है, बैठे-बैठे कू बातां करबा और मोबाइल खेलबा को ही काम है।" लोग रामकेश से चिढ़ते हैं, पीठ पीछे गालियां देते हैं, लेकिन उसके सामने सबके मुंह में कर्जे का जूता भरा रहता है, सो या तो चुप खींचकर रह जाते हैं या उसके मोबाइल की झूठी तारीफ करने लगते हैं।
कहानी में टविस्ट तब आता है जब सरपंच का भतीजा रामकेश से भी महंगा फोन ले आता है। और उसमें भी 'रंगीन फिल्में' ।
मोबाइल और रंगीन फिल्मों के लिए जो संघर्ष होता है वह रोचक और हास्यजनक है।
सन् 2018 में राजस्थान की तात्कालिक मुख्यमंत्री वंसुधरा राजे सिंधिया ने 'राजस्थान गौरव यात्रा' निकाली थी और उनके स्वागत के लिए विद्यालयों के विद्यार्थियों को सड़क के किनारे फूल लेकर खड़ा किया गया था । गर्मी चिलचिलाती धूप में बच्चे इंतजार में खड़े रहे और खड़े ही रह गये ।
प्रस्तुत संग्रह की कहानी 'अहा ! जिंदगी ' पढते वक्त उक्त घटनाक्रम याद आ गया । 'अहा ! जिंदगी' का घटनाक्रम भी कुछ ऐसा है जहां काॅलेज में एक नेता जी को पधारना है और हमारे यहां की परम्परा अनुसार नेता जी समय पर नहीं आते और उस दौरान सांस्कृतिक कार्यक्रम वाले बच्चों को संभालना कितना मुश्किल काम है।
ऐसे विषयों पर हिंदी में कहानियाँ न के बराबर है । लेखिका महोदय का यह प्रयास सराहनीय है और नेताओं तक यह कहानी पहुंचनी चाहिए।
बच्चों की बात चली है तो दो और कहानियाँ भी पठनीय है। दोनों बच्चों के इर्दगिर्द घूमती है, हालांकि दोनों की पृष्ठभूमि अलग-अलग है।
'प्रगल्भा' कहानी एक ऐसी बच्ची की है जो दिखने में शांत लेकिन अपनी प्रतिभा के बल पर वह सब ना मन मोह लेती है।
लेकिन बीच में कुछ ऐसे कथन है जो बालिकाओं के लिए लिखना उचित नहीं लगता।
'अगला नाम विशाखा देवनानी का है, जिसे लड़के व्हिस्की के नाम से बुलाते हैं। सेक्सी बदन और हेप अदाओं की मालिक विशाखा का रवैया लड़कियों को 'एटीट्यूड' और लड़कों को 'हॉट' लगता है।
कहानी 'परित्यक्त' अंग्रेजी शब्दावली से कुछ ज्यादा ही भरी हुयी, शायद यह शहरी क्षेत्र की कहानी है ।
परित्यक्त एक ऐसे लड़के की मार्मिक रचना है जिसे यह पता चलता है की वह एक गोद ली हुयी संतान है। यह रहस्य जानने के पश्चात् उसकी प्रतिक्रिया को कहानी में स्थान दिया गया है। लेकिन वह सब आक्रोश है, गुस्सा है और एक विरक्ति सी है।
इस संग्रह की द्वितीय कहानी 'पूस की एक और रात' काफी मार्मिक रचना है। यह ठण्ड से ठिठरते मात्र लड़कों की कहानी नहीं बल्कि हमारे समाज में व्याप्त गहरे भेदभाव को प्रकट करती हैं। वहीं मीडिया का चेहरा भी यह कहानी उजागर करती है।
इसके अतिरिक्त 'विषकन्या' और 'मोनालिसा की आँखें' भी अच्छी कहानियाँ है।
कुल मिलाकर इन कहानियों में रोता-हंसता, टूटता-जुड़ता आम इनसान है जो कहीं मैं हूं तो कहीं आप हैं, कहीं मोनालिजा है तो कहीं बावड़ी की चुड़ैल है। बाकी तो आप स्वयं पढ़ें और निर्णय लें कि क्या है और क्या होना चाहिए था।
पुस्तक- रानियां रोती नहीं (कहानी संग्रह)
बोधि प्रकाशन द्वारा सन् 2010 में पहला सैट जारी किया गया था । प्रस्तुत पांचवां सैट सन् 2020 में आया था जिसमें कुल दस किताबें थी जिनका मूल्य मात्र सौ रुपये था। यह क्रम आगे भी जारी है।
पांचवें सैट की एक पुस्तक है 'रानियां नहीं रोती' और रचनाकार है लक्ष्मी शर्मा। इस संग्रह में कुल नौ कहानियाँ हैं।
इस संग्रह की प्रथम कहानी है 'रानियां नहीं रोती' । यह शीर्षक प्रभावित करने में सक्षम है। पाठक के मन में सहज ही यह प्रश्न उठता है रानियां क्यों नहीं रोती ?
रानियों की कहानियों को वर्तमान के साथ जोड़कर लेखिका महोदया ने स्त्री के दर्द को बहुत अच्छे से अभिव्यक्त किया है।
स्त्री का दर्द 'इला न देणी आपणी' कहानी में भी व्यक्त है, बस यहां थोडा परिवर्तन है। सौन्दर्य कैसे अभिशाप बन जाता है और जब स्त्री सौन्दर्यमयी होती है तो सबसे पहले उसके सौन्दर्य पर परिचितों की कुदृष्टि टिकती है।
अनुपम सौन्दर्य की धनी सुरसती के जीवन में जो घटित होता है उसके पीछे उसका सौन्दर्य की है लेकिन सुरसती 'इला न देणी आपणी' सिद्धांत को जब सार्थक करती है तो वह साहसी औरत के रूप में नजर आती है।
'अथ मोबाइल कथा' मुझे सबसे रोचक कहानी लगी। जहां बाकी कहानियों में अश्रु हैं वहीं 'अथ मोबाइल कथा' में भारतीय परिवेश में मोबाइल के आगमन की रोचक कहानी है।
कस्बा है, कस्बे में मंदिर है और मंदिर में है रामकेश और रामकेश के पास है मोबाइल ।
दरअसल रामकेश का मोबाइल रामकेश की जान है। बड़ा सा, महंगी कम्पनी वाला... अलार्म, घड़ी, केलकुलेटर, फोटो-वीडियो वाला महंगा स्मार्ट फोन ।(पृष्ठ-57)
लोग रामकेश से डरते भी हैं और उसे गालियां भी देते हैं पर रामकेश अपने मोबाइल में मस्त है।
"हरामी को बाप मोकळी माया छोड़ गयो है, बैठे-बैठे कू बातां करबा और मोबाइल खेलबा को ही काम है।" लोग रामकेश से चिढ़ते हैं, पीठ पीछे गालियां देते हैं, लेकिन उसके सामने सबके मुंह में कर्जे का जूता भरा रहता है, सो या तो चुप खींचकर रह जाते हैं या उसके मोबाइल की झूठी तारीफ करने लगते हैं।
कहानी में टविस्ट तब आता है जब सरपंच का भतीजा रामकेश से भी महंगा फोन ले आता है। और उसमें भी 'रंगीन फिल्में' ।
मोबाइल और रंगीन फिल्मों के लिए जो संघर्ष होता है वह रोचक और हास्यजनक है।
सन् 2018 में राजस्थान की तात्कालिक मुख्यमंत्री वंसुधरा राजे सिंधिया ने 'राजस्थान गौरव यात्रा' निकाली थी और उनके स्वागत के लिए विद्यालयों के विद्यार्थियों को सड़क के किनारे फूल लेकर खड़ा किया गया था । गर्मी चिलचिलाती धूप में बच्चे इंतजार में खड़े रहे और खड़े ही रह गये ।
प्रस्तुत संग्रह की कहानी 'अहा ! जिंदगी ' पढते वक्त उक्त घटनाक्रम याद आ गया । 'अहा ! जिंदगी' का घटनाक्रम भी कुछ ऐसा है जहां काॅलेज में एक नेता जी को पधारना है और हमारे यहां की परम्परा अनुसार नेता जी समय पर नहीं आते और उस दौरान सांस्कृतिक कार्यक्रम वाले बच्चों को संभालना कितना मुश्किल काम है।
ऐसे विषयों पर हिंदी में कहानियाँ न के बराबर है । लेखिका महोदय का यह प्रयास सराहनीय है और नेताओं तक यह कहानी पहुंचनी चाहिए।
बच्चों की बात चली है तो दो और कहानियाँ भी पठनीय है। दोनों बच्चों के इर्दगिर्द घूमती है, हालांकि दोनों की पृष्ठभूमि अलग-अलग है।
'प्रगल्भा' कहानी एक ऐसी बच्ची की है जो दिखने में शांत लेकिन अपनी प्रतिभा के बल पर वह सब ना मन मोह लेती है।
लेकिन बीच में कुछ ऐसे कथन है जो बालिकाओं के लिए लिखना उचित नहीं लगता।
'अगला नाम विशाखा देवनानी का है, जिसे लड़के व्हिस्की के नाम से बुलाते हैं। सेक्सी बदन और हेप अदाओं की मालिक विशाखा का रवैया लड़कियों को 'एटीट्यूड' और लड़कों को 'हॉट' लगता है।
कहानी 'परित्यक्त' अंग्रेजी शब्दावली से कुछ ज्यादा ही भरी हुयी, शायद यह शहरी क्षेत्र की कहानी है ।
परित्यक्त एक ऐसे लड़के की मार्मिक रचना है जिसे यह पता चलता है की वह एक गोद ली हुयी संतान है। यह रहस्य जानने के पश्चात् उसकी प्रतिक्रिया को कहानी में स्थान दिया गया है। लेकिन वह सब आक्रोश है, गुस्सा है और एक विरक्ति सी है।
इस संग्रह की द्वितीय कहानी 'पूस की एक और रात' काफी मार्मिक रचना है। यह ठण्ड से ठिठरते मात्र लड़कों की कहानी नहीं बल्कि हमारे समाज में व्याप्त गहरे भेदभाव को प्रकट करती हैं। वहीं मीडिया का चेहरा भी यह कहानी उजागर करती है।
इसके अतिरिक्त 'विषकन्या' और 'मोनालिसा की आँखें' भी अच्छी कहानियाँ है।
कुल मिलाकर इन कहानियों में रोता-हंसता, टूटता-जुड़ता आम इनसान है जो कहीं मैं हूं तो कहीं आप हैं, कहीं मोनालिजा है तो कहीं बावड़ी की चुड़ैल है। बाकी तो आप स्वयं पढ़ें और निर्णय लें कि क्या है और क्या होना चाहिए था।
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