Friday, 15 November 2024

608. शिकारी का शिकार- वेदप्रकाश काम्बोज

गिलबर्ट सीरीज का प्रथम उपन्यास
शिकारी का शिकार- वेदप्रकाश काम्बोज

ब्लैक ब्वॉय विजय की आवाज पहचान कर बोला-"ओह सर आप, कहिए शिकार का क्या हाल हैं ?"
"शिकार का तो शिकार हो गया चीफ ।" विजय बोलाः- वह भी मैंने नहीं किया बल्कि कोई और कर गया है ।"
"क्या मतलब ?"
और प्रत्युत्तर में विजय ने संक्षेप में उसे रेस्तराँ में हुई पूरी घटना सुना दी ।

    लोकप्रिय उपन्यास साहित्य के स्तम्भ श्री वेदप्रकाश काम्बोज जी अब इस दुनिया में नहीं रहे, उनका निधन 06.11.2024 को हो गया पर उनके द्वारा रचित साहित्य हमेशा अमर रहेगा। उन्होंने उपन्यास साहित्य को 'विजय-रघुनाथ' जैसे सदाबाहर पात्र दिये हैं, जिनके लिये पाठकवर्ग उनका हमेशा आभार व्यक्त करता रहेगा । वेदप्रकाश काम्बोज द्वारा रचित साहित्य में आनंद और थ्रिलर का अनोखा मिश्रण है।
वेदप्रकाश काम्बोज जी
   इन दिनों मैंने काम्बोज जी का उपन्यास 'शिकारी का शिकार' पढा जो की 'विजय-रघुनाथ और गिलबर्ट सीरीज' का उपन्यास है, या कहे की यह गिलबर्ट का प्रथम उपन्यास है, गिलबर्ट के कारनामों की भूमिका मात्र है।
  खुफिया विभाग के तेजतर्रार जासूस विजय को सूचना मिलती है की एक अंतरराष्ट्रीय अपराधी भारत में दिखाई दिया है। विजय उस पर नजर रखता है और एक दिन एक रेस्तरां में विजय की उपस्थिति में दो अज्ञात व्यक्ति उस अंतरराष्ट्रीय अपराधी की हत्या कर देते हैं। अंतरराष्ट्रीय अपराधी खुद शिकारी था पर यहाँ तो वह खुद शिकार हो गया ।
   इस कत्ल की खोजबीन का कार्य खूफिया पुलिस विभाग के SP रघुनाथ को मिलता है और उसके साथ विभाग तीन नव कार्मिक कुंदन कबाड़ी, तातारी और मदारी होते हैं।
   हत्या में प्रयुक्त हरे रंग की कार का संबंध युनाइटेड कारपोरेशन से मिलता है और विभाग के सदस्य इस खोजबीन को आगे बढाने का कार्य करते हैं और यही कार्य विजय भी अपने स्तर पर करता है।
वहीं एक जानकारी और भी सामने आती है और वह जानकारी यह है कि मृतक के पास एक लड़की भी आती थी । अब तातारी, मदारी और कबाड़ी इस अज्ञात लड़की की खोज में निकलते हैं।
   फिर धीरे-धीरे घटनाक्रम आगे बढते जाते हैं और एक के साथ एक कड़ी मिलती जाती है । और फिर अपराधीवर्ग इन कड़ियों को नष्ट करने का प्रयास किया जाता है ।
   बस, कहानी यहीं तक ही बाकी आप स्वयं पढे तो ज्यादा आनंद आयेगा । कहानी सामान्य लेकिन धाराप्रवाह, गतिशील है जो अपने साथ बांधने में सक्षम है। कहीं भी अतिरिक्त उलझाव नहीं है ।
  उपन्यास के अंत में एक विशेष पात्र सामने आता है और वह पात्र है गिलबर्ट । हालांकि गिलबर्ट का चरित्र अभी उपन्यास में उभर नहीं पाया वैसे भी इसे हमें गिलबर्ट की भूमिका मात्र कह सकते हैं। गिलबर्ट के विषय में जानने के‌ लिए गिलबर्ट शृंखला के अन्य उपन्यास पढने होंगे ।
  वैसे भी गिलबर्ट स्वयं के विषय में कहता है।
"अभी मैं इतना प्रसिद्ध आदमी नहीं हूँ कि तुम मुझे नाम से पहचान जाओ । लेकिन एक वक्त आने वाला है जब सारी दुनिया मेरे नाम के गिर्द घूमेगी।"
   उपन्यास में विजय के किरदार के अतिरिक्त खूफिया विभाग के तातारी, मदारी और कबाड़ी के किरदार काफी रोचक तरीके से पेश किये गये हैं जो उपन्यास में हास्य पैदा करते हैं।
कथाकार प्रकाशन से प्रकाशन की सूची
यह उपन्यास स्वयं वेदप्रकाश काम्बोज जी के प्रकाशन 'कथाकार' से प्रकाशित हुआ था ।
  अगर आप वेदप्रकाश काम्बोज, विजय के प्रशंसक हैं तो यह उपन्यास आपको पसंद आयेगा।
उपन्यास - शिकारी का शिकार
लेखक -   वेदप्रकाश काम्बोज
प्रकाशक-   कथाकार प्रकाशन, दिल्ली
पृष्ठ-          130
 


No comments:

Post a Comment

लहू और मिट्टी- कर्नल रंजीत

खत्म हो रहे जंगलों की रहस्य गाथा लहू और मिट्टी- कर्नल रंजीत "यह कौन हैं ?" डोरा ने लाश की तरफ इशारा करके पूछा । "मेरे पिता,...