उनका आखिरी गाना- राॅइन रागा, रिझ्झम रागा
'नई पीढी के फतांसी लेखकों में रागा बंधुओं का कोई सानी नहीं।- दीपक दुआ(प्रख्यात फिल्म निर्देशक)
जब मैंने पहली बार रागा बंधुओं को फेसबुक पर उनके चर्चित उपन्यास 'पानी की दुनिया' के साथ देखा तो तभी से इनके उपन्यास पढने की इच्छा जागृत हो गयी। 'पानी की दुनिया' इनका एक चर्चित फतांसी उपन्यास है।
उनका आखिरी गाना- रागा बंधु |
जैसा की सुना था रागा बंधुओं के उपन्यास फतांसी होते हैं, वहीं 'उनका आखिरी गाना' पढकर जाना यह फंतासी मात्र कोरी कल्पना ही नहीं मानवीय संवेदना का अनूठा चित्रण भी है।
'उनका आखिरी गाना' मनुष्य के स्वार्थ, भौतिकता और वृक्षों पर आधारित एक रोचक लघु उपन्यास है। मनुष्य अपने स्वार्थ के लिए वृक्षों का संहार कर रहा है, उनके दुख-दर्द को वह समझने की कोशिश नहीं करता। प्रसिद्ध वैज्ञानिक जगदीश चक्र बोस ने तो यह भी स्थापित किया था की पेड़-पौधों में भी संवदेना होती है, उन्हें भी दुख-दर्द का अहसास होता है।
कहानी में कुछ पेड़ हैं और स्वार्थ लिप्सा में संलग्न मनुष्य भी। लेकिन कहानी के मूल पात्र पेड़ ही हैं। जहां कभी पहले जंगल होता था, वहाँ नयी बसी कालोनी के कारण एक-एक पेड़ काटे जा रहे हैं। बूढा बरगद है, अशोक, जामुन, बबूल, नीम और एक पियानो और कूलर भी है। लेकिन विज्ञान को सर्वस्व मान चुका मनुष्य इन पेड़-पौधों की बात कहां सुनता। जयपुर जैसे महानगर की एक नव निर्मित कॉलोनी में ये पेड़ एक-एक कर मनुष्य के स्वार्थ की भेंट चढते जाते हैं। और दिन तय हो जाता है, जब इनको काटने वाले आने वाले थे। पेड़ों, जानवरों, कूलर, पियानो ने तय किया वे उस दिन अपनी जिंदगी का आखिरी गाना गायेंगे, ताकी उनके दर्द को मनुष्य महसूस कर सके।
क्या वे सब अपना आखिरी गाना गा पाये?
उपन्यास में पेड़ों का हास्य और दर्द बहुत मार्मिक ढंग से चित्रित किया गया है। पेड़ों की बातें, उनकी भावनाएं प्रभावित करने में सक्षम है।
बाबू अशोक का पेड़ है। उसे यूँ ही बाबू नहीं कहते थे-घर में उसकी खूब कद्र होती थी।
वैसे बाबू रंगीला था, जो अक्सर सोचता था-"काश में इंसान होता। यह लड़की मेरी बाहों में होती।"
पेड़ मनुष्य से कुछ नहीं लेते पर वह मनुष्य को अपना सर्वस्व अपर्ण कर देते हैं, पर फिर भी मनुष्य प्राणदायक पेड़ों का दुश्मन है।
पेड़ चिल्लाते रह जाते हैं, पर उनका दुख कोई नहीं समझता- "काका....बाबू बचाओ मुझे। मैं जीना चाहता हूँ। मेरी बहुत सी ख्वाहिशें हैं, मैं उन्हें पूरी होते देखना चाहता हूँ। मेहरबानी कर के मुझे बचा लो...।- छूट्टू नामक जामुन का पेड़ गुहार लगाता रहा, पर उसकी आवाज किसे ने नहीं सुनी।
छूट्टू की करुण गुहार संवेदनशील पाठकों की आँखों में आँसू ले आती है।
यह लघु उपन्यास पेड़ों की एक विचित्र दुनिया की यात्रा करवाता है। उनके जीवन की यह यात्रा बहुत मार्मिक है। पेड़-पौधों का जीवन भी मनुष्य की तरह ही है। उनकी भी इच्छाएं हैं, भावनाएं हैं। पर पता नहीं मनुष्य इनको कब समझ पायेगा।
लेखक- राॅइन रागा, रिझ्झम रागा
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उपन्यास रोचक लग रहा है। आजकल मेरा भी लघु-उपन्यास पढ़ने पर जोर है। जल्द ही इसे पढ़ता हूँ।
ReplyDeleteरागा बंधुओं के फतांसी उपन्यास रोचक हैं।
Deleteइतनी प्यारी समीक्षा करने के लिए गुरप्रीत सिंह जी का ह्रदय से आभार।
ReplyDeleteएक मार्मिक रचना के लिए आपका हार्दिक धन्यवाद।
Delete- गुरप्रीत सिंह