Friday 8 March 2019

176. दिल्ली दरबार- सत्य व्यास

एक उच्छृंखल सी प्रेम कथा
दिल्ली दरबार- सत्य व्यास, उपन्यास ।

             सत्य व्यास कम समय में काफी चर्चित लेखक हो गये हैं। इनकी रचनाएँ वर्तमान पाठक वर्ग में खूब चर्चा पा रही हैं। सत्य व्यास जी की जो भाषा शैली है वह सहज ही पाठक को प्रभावित करती है। शब्दों को इतने सहजता से काम में‌ लेते हैं की गंभीर विषय भी सरल हो उठता है।
सत्य व्यास जी की मैंने तीनों उपन्यास 'बनारस टाॅकिज', 'दिल्ली दरबार' और 'चौरासी' पढे हैं। तीनों में एक बात सामान्य है वह है कथा लेखक द्वारा न कही जाकर प्रथम पुरुष में कही गयी है।
      'दिल्ली दरबार' उपन्यास में भी कथा नायक का मित्र मोहित द्वारा कही गयी एक प्रेम कथा है।
       प्यार की सबसे खूबसूरत बात उसके साथ आने वाली परेशानियाँ हैं, अड़ंगे हैं, मुश्किलें, मुसीबतें हैं। सब परेशानियाँ कमोबेश एक होते हुए भी प्रेम कहानियों में अलग-अलग आती हैं और यही किसी भी कहानी को अलहदा अनुभव देती हैं।
             दिल्ली दरबार की इस प्रेम कथा में भी बहुत सी परेशानियां हैं। परिधि की अलग कथा, महिका की एक अलग प्रेम कथा है और दोनों के बीच में है प्रेम को मात्र वासना समझने वाला कथानायक राहुल मिश्रा। इस प्रेम के परिणाम क्या रहे।
          प्रेम के कारण नहीं होते; परिणाम होते हैं पर प्रेम में परिणाम की चिंता तब तक नहीं होती जब तक देर न हो जाए। पंछी घर के छतों, मेट्रो की सीढ़ियों, कॉलेज के खुले मैदानों में या फिर पार्क के पेड़ों के गिर्द अपनी जिंदगी के नीड़ बनाने के सपने में खोए रहते हैं और परिणाम अपनी परिणति की ओर मंद गति से चलता जाता है। यह परिणति सुखद होगी या दुखद या कि फिर दुखद परिणति का सुखद परिणाम या फिर इसका भी उल्टा होगा यह महज इस बात पर निर्भर होता है कि प्रेम का परिमाण कितना है। है भी या नहीं।


           'दिल्ली दरबार' कहानी है दो दोस्तों की, दो दोस्त जो झारखण्ड के एक शहर से दिल्ली में पढने आते हैं। जहाँ एक और पात्र शामिल होता है मकाल मालिक बटुक शर्मा और शर्मा जी की लड़की परिधि भी है।
           यहीं से कहानी में घुमाव आता है। राहुल को परिधि से प्रेम होता है, लेकिन यह मात्र जिस्मानी प्रेम है जैसा की बाद में राहुल को महिका से भी होता है। लेकिन सफल कौनसा होता है यह पठनीय है।
      हाल परिधि का भी सुन लीजिएगा- बाल इतने सीधे मानो इस्त्री किए हों। कपड़े इतने बरहम मानो घर में इस्त्री ही न हो। चेहरा इतना गोल मानो नाक के केंद्र से त्रिज्या ली गई हो। चेहरे पर भाव इतने तिरछे मानो किसी बेशऊर ने कूची पकड़ी हो। होंठ इतने भरे हुए कि थिरकन तक महसूस हो जाए और आँखें इतनी खाली कि सागर समा जाए। (परिधि का वर्णन)

उपन्यास में दो दोस्तों की दोस्ती, प्रेम प्रकरण, नौकरी के लिए संघर्ष, मकान मालिक से बहस जैसे कुछ प्रसंग मिलेंगे।


        कहानी में हल्की श्रेणी का भरपूर हास्य है, यह मात्र हास्य है कोई व्यंग्य नहीं है। हास्य भी वह जो किसी की परिस्थितियों या उसके व्यवहार से उपजा निम्न स्तर का हास्य है।
         
       कुछ रोचक कथन उपन्यास की रोचकता को बढावा देते हैं, जैसे- 
“तुम्हारे जैसी ही औरतें होती हैं जो शादी की बात चलते ही नींबू चाटने लगती हैं।"
"प्रेम के कारण नहीं होते परिणाम होते हैं”
“बांधकर रखना भी तो कोई प्यार नहीं हुआ न”
जिंदगी एयर होस्टेज हो गई है, जिसमें बिना चाहे मुस्कुराना पड़ता है”
"प्रेम, पानी और प्रयास की अपनी ही जिद होती है और अपना ही रास्ता।”


निष्कर्ष- 
           प्रस्तुत उपन्यास 'दिल्ली दरबार' एक फिल्मी कहानी की तरह है। जहां प्रेम, दोस्ती, विश्वास और प्रेम विवाह है।
दो दोस्तों की दोस्ती और प्रेम की यह रोचक कथा पठनीय है। 

उपन्यास- दिल्ली दरबार
लेखक-   सत्य व्यास
प्रकाशक- हिन्द युग्म



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