दूसरे व्यक्तित्व की कहानी, मर्डर से थ्रिलर तक।
दूसरा चेहरा- अजिंक्य शर्मा
दूसरा चेहरा- अजिंक्य शर्मा
लोकप्रिय जासूसी साहित्य में वर्तमान समय नयी ऊर्जा का समय है। क्योंकि इस समय जो कहानियाँ आ रही हैं वे व्यस्थित और कसावट लिये तो हैं ही, साथ-साथ में अजिंक्य शर्मा जैसे प्रतिशाली लेखक हैं जो मर्डर मिस्ट्री जैसे परम्परा कथानक में जो प्रयोग प्रस्तुत कर रहे हैं वे साहित्य में अमिट हैं।
'दूसरा चेहरा' अजिंक्य शर्मा जी का चतुर्थ उपन्यास है। जिसमें में तीन मर्डर मिस्ट्री है और एक हाॅरर उपन्यास है। प्रस्तुत उपन्यास भी मर्डर मिस्ट्री कम थ्रिलर है। उपन्यास का कथानक राजस्थान की राजधानी जयपुर के डाॅन राज प्रताप शाडिण्य के भाई पवन शालिण्य के मर्डर पर आधारित है।
पवन शांडिल्य एक होटल के कमरे में मृत पाया गया और उसके कत्ल का आरोप उसकी मित्र रिमझिम गरेवाल पर आया। जो वहीं एक कमरे में बेहोश पायी गयी।
रिमझिमके हितैशी वकील अंकल का मानना है कि वह निर्दोष है। उसे निर्दोष साबित करने के लिए प्राइवेट डिटेक्टिव अविनाश भारद्वाज को बुलाया। - उसका नाम अविनाश भारद्वाज था, वो दिल्ली के सबसे प्रसिद्ध प्राइवेट डिटेक्टिव्स में से एक था, मयूर विहार में 'क्राइम इन्वैस्टिगेशंस’ के नाम से उसका ऑफिस था और कम समय में ही अपने पेशे में उसने अपनी खूब धाक जमा ली थी।(उपन्यास अंश)
जयपुर पहुंचने पर अविनाश को जो कहानी सुनने को मिली वह यूं थी- पुलिस का मानना है कि शांडिल्य रिमझिम के साथ जोर-जबर्दस्ती करने की कोशिश कर रहा था। उसी दौरान रिमझिम के हाथ में चाकू आ गया, जिससे उसने शांडिल्य पर वार कर दिया, घायल शांडिल्य मदद की उम्मीद में किसी तरह बाहर के कमरे तक पहुंचा लेकिन वहां से आगे नहीं जा पाया और वहीं उसकी मौत हो गयी। अब पुलिस और डाॅन राजप्रताप शाडिल्य को रिमझिम गरेवाल की तलाश है। और रिमझिम कहां है यह किसी को भी पता नहीं।
राज प्रताप सिण्डीकेट जैसे कुख्यात अपराधी संस्था का जयपुर का प्रमुख है। और उसका साथी 'सोमानी' एक कुख्यात हत्यारा है जो सिण्डीकेट की 'ब्लैक स्क्वायड' नामक शाखा का प्रमुख है।- एक छ: फीट ऊंचे भारी डील-डौल वाले शख्स ने कमरे में प्रवेश किया। उसके चेहरे पर रौबदार मूंछे थीं। उसकी बड़ी-बड़ी आंखें लाल-लाल हो रहीं थीं और वो सूरत से ही काफी खतरनाक दिख रहा था। राज प्रताप शाण्डिल्य।
दोनों का खौफ इस कदर है कि डिटेक्टिव अविनाश भारद्वाज भी उसका एक 'ट्रेलर' देखने के बाद दहशत मानता है। क्योंकि उसे जब होटल की ग्यारहवीं मंजिल से नीचे लटका दिया गया और एक चेतावनी जारी की- ''राज प्रताप शांडिल्य तुझे 48 घंटे का समय देता है। 48 घंटों के अंदर तुझे कहीं से भी उस लड़की को मेरे पास लेकर आना है। अगर तू ले आया-जो कि अगर तुझे अपनी जान प्यारी होगी तो तू ले ही आयेगा-तो मैं तुझे 50 लाख रूपए दूंगा। और बिग बोनस के रूप में तू इस धरती पर 30-40 साल और सांसें ले पाएगा। लेकिन अगर 48 घंटे के अंदर तू लड़की को मेरे पास लेकर नहीं आया तो ये जो अभी तेरे साथ हुआ है, इसे ट्रेलर समझना। असली फिल्म में तुझे तब दिखाऊंगा। बोल, ऑफर मंजूर है?”
कहानी पर चर्चा यहीं तक। बाकी आप उपन्यास पढें और देखे की क्या घटित होता है और किस तीव्र गति से घटित होता है।
अविनाश भारद्वाज जो जहाँ एक तरफ रिमझिम गरेवाल को खोजना है वहीं उसे असली कातिल का पता भी लगाना है। तभी वह डाॅन राजप्रताप शाण्डिल्य के कहर से बच पायेगा।
अब डिटेक्टिव यह काम कैसे करता है, कैसे असली अपराधी तक पहुंचता है, किन-किन परेशानियों से गुजरता है। और हाँ,...वह किन-किन आश्चर्यचकित घटनाओं का सामना करता है, यह पढना तो और भी रोचक है।
क्योंकि उसे कुछ ऐसे 'बियांका कारनामें' देखने को मिलते हैं जिसकी वह कल्पना तक नहीं कर सका था।
उपन्यास में जो दहशत के दृश्य हैं और जो एक्शन के दृश्य वह सिहरन से पैदा करते हैं। कुछ घटनाएं कल्पना से भी आगे की हैं। स्वयं अविनाश भारद्वाज भी नहीं सोच सकता की ऐसा कुछ घटित हो सकता है।
विशेष कर रिमझिम गरेवाल और बियांका के दृश्य। चाहे उपन्यास एक काल्पनिक कथा है लेकिन कल्पना भी अद्भुत है।
जैसे मैंने ऊपर जिक्र किया की अजिंक्य शर्मा जी उपन्यास प्रयोग लिये होते हैं यहाँ भी एक प्रयोग है, जैसा की वे अपने गत उपन्यास में दिखा चुके हैं। यहाँ भी एक एक ऐसा पात्र है और वह है- बियांका।
एक अद्भुत पात्र, अविस्मरणीय पात्र।
अजिंक्य शर्मा जी के उपन्यासों में एक पात्र साइको मिल ही जाता है। लेकिन यह पात्र कोई सनकी पात्र नहीं होता। यहाँ भी एक पात्र है जो अपनी अदभुत शक्तियों से पाठक को प्रभावित करने में सक्षम है।
डीआईडी?”
''डिस्सोसिएटिव आईडेंटिटी डिसऑर्डर। जिसमें आदमी कभी-कभी खुद की पहचान भूलकर अपने-आप को कोई जुदा शख्सियत समझने लगता है। कभी-कभी कोई और ही बन जाता है। जिसे आम बोलचाल में मल्टीपल पर्सनालिटी डिसऑर्डर भी कहते हैं।"
एक और विशेषता मिलती है इनके उपन्यासों में और वह है घटनाक्रम को वर्तमान से जोड़ना। अगर आपने इनका उपन्यास 'काला साया' पढा है तो उसमें कोरोना के समय का वर्णन है जब एयरपोर्ट आदि पर 'स्क्रीनिंग' की जाती थी।
प्रस्तुत उपन्यास में लोकडाउन की चर्चा है।
टीवी पर लॉकडाउन की घोषणा हो रही थी। '
''21 दिन तक जो जहां हैं, वहीं रहें...।"
'दूसरा चेहरा' एक ऐसे व्यक्ति की कहानी है जिसके दो चेहरे हैं। एक शांत- मासूम और दूसरा इतना रोष का। कहानी चाहे मर्डर मिस्ट्री से आरम्भ होती है लेकिन यह थ्रिऔर एक्शन सधन्यवाद।।
अगर आप कुछ अलग हटकर पढना चाहते हैं तो यह उपन्यास अवश्य पढें।
धन्यवाद।।
उपन्यास- दूसरा चेहरा
लेखक- अजिंक्य शर्मा
फाॅर्मेट- ebook in kindle
उपन्यास क्रम- 04
प्राइवेट डिटेक्टिव अर्जुन भारद्वाज सीरीज
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अब दो और उपन्यासों की बात कर ली जाये।
संतोष पाठक जी का उपन्यास 'माया मिली न राम' में भी पुलिस अधिकारी को एक डाॅन की तरफ से ऐसी ही एक धमकी मिलती है। या तो एक हफ्ते में मेरे बेटे के कातिल को ढूंढ जा फिर तू सजा भुगतने को तैयार हो जाया।
- दूसरा उपन्यास है नरेन्द्र नागपाल जी का 'काली' जिसमें डबल पर्सनैलिटी का चक्कर दिखाया गया है। पर उसमें कहानी 'रक्त' के माध्यम से आगे बढती है।
अगर आप को उक्त तीनों उपन्यास मिले तो अवश्य पढें। तीनों के कथानक अलग-अलग हैं, बस कुछ तथ्यों की समानता है। तीनों रोचक उपन्यास हैं।
- दूसरा चेहरा- अजिंक्य शर्मा
- माया मिली न राम- संतोष पाठक
- काली - नरेन्द्र नागपाल
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अब दो और उपन्यासों की बात कर ली जाये।
संतोष पाठक जी का उपन्यास 'माया मिली न राम' में भी पुलिस अधिकारी को एक डाॅन की तरफ से ऐसी ही एक धमकी मिलती है। या तो एक हफ्ते में मेरे बेटे के कातिल को ढूंढ जा फिर तू सजा भुगतने को तैयार हो जाया।
- दूसरा उपन्यास है नरेन्द्र नागपाल जी का 'काली' जिसमें डबल पर्सनैलिटी का चक्कर दिखाया गया है। पर उसमें कहानी 'रक्त' के माध्यम से आगे बढती है।
अगर आप को उक्त तीनों उपन्यास मिले तो अवश्य पढें। तीनों के कथानक अलग-अलग हैं, बस कुछ तथ्यों की समानता है। तीनों रोचक उपन्यास हैं।
- दूसरा चेहरा- अजिंक्य शर्मा
- माया मिली न राम- संतोष पाठक
- काली - नरेन्द्र नागपाल
उक्त दोनों उपन्यास की समीक्षा पढने के लिए उपन्यास नाम पर click करें।
उपन्यास के प्रति उत्सुकता जगाता आलेख... जल्द ही अजिंक्य शर्मा के इस शाहकार को पढ़ने की कोशिश रहेगी....
ReplyDeleteआभार गुरप्रीत भाई। उपन्यास आपको पसंद आया, ये जानकर अच्छा लगा। आपने बहुत ही अच्छी समीक्षा की है। उम्मीद है, आगामी उपन्यासों में भी आपकी और पाठकों की कसौटी पर खरा उतर सकूंगा।
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