वरुणपुत्री- नरेन्द्र कोहली, उपन्यास
भारत कभी विश्व गुरु कहलाता था, लेकिन अब वह अपनी सभ्यता और संस्कृति से इतना विमुख हो गया है की उसे अपनी सभ्यता और संस्कृति की पहचान तक नहीं रही।
दूसरी तरफ मनुष्य विज्ञान के इतना समीप हो गया है की उसे विज्ञान के अतिरिक्त अन्य किसी सत्ता पर विश्वास नहीं रहा। इस ब्रह्माण्ड में बहुत कुछ ऐसा है जो मनुष्य और विज्ञान से परे है। हमारे लिए हमारा संसार बस इतना ही है जितना हमने पढा और विज्ञान ने हमें बताया है।
यह कहानी है विक्रम नामक एक युवक की। जो वरुणपुत्री के साथ समुद्र और द्वारका (श्री कृष्ण जी की जलमग्न नगरी) का भ्रमण करता है। वहाँ वरुणपुत्री उसे इतिहास और पौराणिक तथ्यों से अवगत करवाती है। कहानी का द्वितीय भाग विक्रम के परिवार से संबंधित है। उनके आचरण और परिणाम को चित्रित किया गया है।
इस उपन्यास ने मुझे विशेष कर प्रभावित किया है। इसका कारण है एक तो जलमग्न द्वारका का इतिहास, चित्रण और सरकारीवर्ग की उपेक्षा का विश्लेषण करना। एक मिट्टी का विस्तार होना- क्योंकि मैं जानती हूँ कि यह रेत कहाँ की है और यह भी जानती हूँ। कि यह स्थानीय रेत से युद्ध कर रही है। यदि यह क्रम चलता रहा तो स्थानीय रेत समाप्त हो जायेगी और यह रेत सारे सागर-तट पर फैल जायेगी।...”
“अपने आप रेत कैसे फैल जायेगी?" विक्रम चकित था।
यह विस्तार मात्र मिट्टी का ही नहीं सभ्यता, संस्कृति, भाषा- बोली, देश आदि किसी भी रूप में हो सकता है।
समय के अनुसार बहुत से शब्दों के और घटनाओं के अर्थ बदल जाते हैं। नरेन्द्र कोहली जी की यह विशेषता है की वे तथ्यों को कसौटी पर परख कर प्रस्तुत करते हैं। महाभारत और रामायण के संबंधित बहुत सी भ्रांतिया समाज में प्रचलित हैं। 'वरुणपुत्री' में महाभारत कालिन कुछ भ्रांतियों का निवारण किया गया है। जैसे एक भ्रांति है की अर्जुन ने एक नाग कन्या से शादी की थी। क्या यह संभव है कोई मनुष्य नागिन से शादी कर ले।
"आप कौरव्य के विषय में कुछ कह रही थीं।”
"वह नागों की एक जाति का राजा था। उसकी एक पुत्री थी उलूपी, जिसने अर्जुन से विवाह किया था।
“तो वह सर्प रूपी नागिन तो नहीं रही होगी, नहीं तो अर्जुन उससे विवाह कैसे कर लेता ? कोई मनुष्य किसी नागिन के साथ अपनी गृहस्थी कैसे बसा सकता है।”
“इतना ही नहीं। उनका एक पुत्र भी था।”
“तो वह नाग कहलाने वाली किसी जाति की स्त्री रही होगी; किन्तु होगी वह स्त्री ही।”
“सम्भव है।” वरुणपुत्री बोलीं,
वरुणपुत्री एक काल्पनिक उपन्यास है पर वह हमें बहुत कुछ सोचने के लिए विवश करती है, एक नया दृष्टिकोण प्रदान करती है, हमारी समझ को विकसित करती है, अपनी सभ्यता और संस्कृति पर गर्व करने के बहुत से तथ्य हमें प्रदान करती है।
नरेन्द्र कोहली जी की मुझे विशेषकर इसीलिए पसंद है की वे हमारी सभ्यता और संस्कृति को परिष्कृत कर पाठकों के समक्ष प्रस्तुत करते हैं। वर्तमान में बहुत से लेखक रामायण और महाभारत समय के पात्रों को इनता विकृत रूप दे रहे हैं जैसे उन्होंने कभी इन महाकाव्यों को पढा ही नहीं, वहीं नरेन्द्र कोहली जी इनके विपरीत महाकाव्यों को और भी परिष्कृत करते नजर आते हैं।
अगर इन महाकाव्यों के समय को समझना है आगामी पीढी को कुछ सार्थक प्रदान करना है तो नरेन्द्र कोहली जी को अवश्य पढें।
मुझे कुछ विशेष लगा वह यहाँ प्रस्तुत है-द्वारका के ही समान संसार के और भी अनेक ऐतिहासिक नगर सागर में डूबे हुए हैं। दक्षिणी यूनान में सागर-तट पर एक ग्राम है पावलोपेत्री। उसके निकट ही समुद्र में पाँच मीटर नीचे पांच सहस्र वर्ष पुराना नगर पावलोपेत्री दिखाई पड़ता है। वह आज के नगरों के समान सुनियोजित ढंग से बना हुआ है। कई भवन दोमंज़िले भी हैं और उनमें बारह कमरों तक का निर्माण हुआ है।...जमाइका का पोर्ट रॉयल,...जापान के दि पिरामिड ऑफ़ युनागुनी।...चीन की लॉयन सिटी...पीरु में दि टेंपल अंडर लेक टिटिकाका...अर्जनटाइना का विला एपिक्यूटइन...मिश्र में क्लियोपैट्रा का महल।”
“नहीं। मैं नहीं जानता। हमें भूगोल में यह सब नहीं पढ़ाया जाता।”
“स्कूल में सब कुछ नहीं पढ़ाया जाता। वह तो पहली सीढ़ी है। उसके पश्चात् तो अपनी रुचि से अध्ययन किया जाता है। उसे ही स्वाध्याय कहते हैं। तुम्हारी रुचि हो तो तुम अब स्मरण कर लो।" वरुणपुत्री ने कहा, “जिन जलमग्न नगरों का अब तक पता लगा है, संसार में द्वारका समेत ऐसे नौ नगर हैं।...”
भारतीय सभ्यता और संस्कृति का रोचक और तथ्यात्मक ढंग से प्रस्तुत करती यह पुस्तक महत्वपूर्ण और पठनीय रचना है। इतिहास, पौराणिक, कल्पन और फैटेंसी का अद्भुत संगम इस रचना में प्रशंसनीय है।
इसमें जितना रोचक और सरल तरीके से हमारे गौरवशाली अतीत का वर्णन किया गया है ऐसा अन्यत्र दुर्लभ है।
उपन्यास- वरुणपुत्री
लेखक- नरेन्द्र कोहली
प्रकाशक-
फॉर्मेट- ebook
पृष्ठ- 100
एमेजन लिंक- वरुणपुत्री- नरेन्द्र कोहली
दूसरी तरफ मनुष्य विज्ञान के इतना समीप हो गया है की उसे विज्ञान के अतिरिक्त अन्य किसी सत्ता पर विश्वास नहीं रहा। इस ब्रह्माण्ड में बहुत कुछ ऐसा है जो मनुष्य और विज्ञान से परे है। हमारे लिए हमारा संसार बस इतना ही है जितना हमने पढा और विज्ञान ने हमें बताया है।
यह कहानी है विक्रम नामक एक युवक की। जो वरुणपुत्री के साथ समुद्र और द्वारका (श्री कृष्ण जी की जलमग्न नगरी) का भ्रमण करता है। वहाँ वरुणपुत्री उसे इतिहास और पौराणिक तथ्यों से अवगत करवाती है। कहानी का द्वितीय भाग विक्रम के परिवार से संबंधित है। उनके आचरण और परिणाम को चित्रित किया गया है।
इस उपन्यास ने मुझे विशेष कर प्रभावित किया है। इसका कारण है एक तो जलमग्न द्वारका का इतिहास, चित्रण और सरकारीवर्ग की उपेक्षा का विश्लेषण करना। एक मिट्टी का विस्तार होना- क्योंकि मैं जानती हूँ कि यह रेत कहाँ की है और यह भी जानती हूँ। कि यह स्थानीय रेत से युद्ध कर रही है। यदि यह क्रम चलता रहा तो स्थानीय रेत समाप्त हो जायेगी और यह रेत सारे सागर-तट पर फैल जायेगी।...”
“अपने आप रेत कैसे फैल जायेगी?" विक्रम चकित था।
यह विस्तार मात्र मिट्टी का ही नहीं सभ्यता, संस्कृति, भाषा- बोली, देश आदि किसी भी रूप में हो सकता है।
समय के अनुसार बहुत से शब्दों के और घटनाओं के अर्थ बदल जाते हैं। नरेन्द्र कोहली जी की यह विशेषता है की वे तथ्यों को कसौटी पर परख कर प्रस्तुत करते हैं। महाभारत और रामायण के संबंधित बहुत सी भ्रांतिया समाज में प्रचलित हैं। 'वरुणपुत्री' में महाभारत कालिन कुछ भ्रांतियों का निवारण किया गया है। जैसे एक भ्रांति है की अर्जुन ने एक नाग कन्या से शादी की थी। क्या यह संभव है कोई मनुष्य नागिन से शादी कर ले।
"आप कौरव्य के विषय में कुछ कह रही थीं।”
"वह नागों की एक जाति का राजा था। उसकी एक पुत्री थी उलूपी, जिसने अर्जुन से विवाह किया था।
“तो वह सर्प रूपी नागिन तो नहीं रही होगी, नहीं तो अर्जुन उससे विवाह कैसे कर लेता ? कोई मनुष्य किसी नागिन के साथ अपनी गृहस्थी कैसे बसा सकता है।”
“इतना ही नहीं। उनका एक पुत्र भी था।”
“तो वह नाग कहलाने वाली किसी जाति की स्त्री रही होगी; किन्तु होगी वह स्त्री ही।”
“सम्भव है।” वरुणपुत्री बोलीं,
वरुणपुत्री एक काल्पनिक उपन्यास है पर वह हमें बहुत कुछ सोचने के लिए विवश करती है, एक नया दृष्टिकोण प्रदान करती है, हमारी समझ को विकसित करती है, अपनी सभ्यता और संस्कृति पर गर्व करने के बहुत से तथ्य हमें प्रदान करती है।
नरेन्द्र कोहली जी की मुझे विशेषकर इसीलिए पसंद है की वे हमारी सभ्यता और संस्कृति को परिष्कृत कर पाठकों के समक्ष प्रस्तुत करते हैं। वर्तमान में बहुत से लेखक रामायण और महाभारत समय के पात्रों को इनता विकृत रूप दे रहे हैं जैसे उन्होंने कभी इन महाकाव्यों को पढा ही नहीं, वहीं नरेन्द्र कोहली जी इनके विपरीत महाकाव्यों को और भी परिष्कृत करते नजर आते हैं।
अगर इन महाकाव्यों के समय को समझना है आगामी पीढी को कुछ सार्थक प्रदान करना है तो नरेन्द्र कोहली जी को अवश्य पढें।
मुझे कुछ विशेष लगा वह यहाँ प्रस्तुत है-द्वारका के ही समान संसार के और भी अनेक ऐतिहासिक नगर सागर में डूबे हुए हैं। दक्षिणी यूनान में सागर-तट पर एक ग्राम है पावलोपेत्री। उसके निकट ही समुद्र में पाँच मीटर नीचे पांच सहस्र वर्ष पुराना नगर पावलोपेत्री दिखाई पड़ता है। वह आज के नगरों के समान सुनियोजित ढंग से बना हुआ है। कई भवन दोमंज़िले भी हैं और उनमें बारह कमरों तक का निर्माण हुआ है।...जमाइका का पोर्ट रॉयल,...जापान के दि पिरामिड ऑफ़ युनागुनी।...चीन की लॉयन सिटी...पीरु में दि टेंपल अंडर लेक टिटिकाका...अर्जनटाइना का विला एपिक्यूटइन...मिश्र में क्लियोपैट्रा का महल।”
“नहीं। मैं नहीं जानता। हमें भूगोल में यह सब नहीं पढ़ाया जाता।”
“स्कूल में सब कुछ नहीं पढ़ाया जाता। वह तो पहली सीढ़ी है। उसके पश्चात् तो अपनी रुचि से अध्ययन किया जाता है। उसे ही स्वाध्याय कहते हैं। तुम्हारी रुचि हो तो तुम अब स्मरण कर लो।" वरुणपुत्री ने कहा, “जिन जलमग्न नगरों का अब तक पता लगा है, संसार में द्वारका समेत ऐसे नौ नगर हैं।...”
भारतीय सभ्यता और संस्कृति का रोचक और तथ्यात्मक ढंग से प्रस्तुत करती यह पुस्तक महत्वपूर्ण और पठनीय रचना है। इतिहास, पौराणिक, कल्पन और फैटेंसी का अद्भुत संगम इस रचना में प्रशंसनीय है।
इसमें जितना रोचक और सरल तरीके से हमारे गौरवशाली अतीत का वर्णन किया गया है ऐसा अन्यत्र दुर्लभ है।
उपन्यास- वरुणपुत्री
लेखक- नरेन्द्र कोहली
प्रकाशक-
फॉर्मेट- ebook
पृष्ठ- 100
एमेजन लिंक- वरुणपुत्री- नरेन्द्र कोहली
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