जिंदगी के सैकण्ड चांस की कहानी।
सैकण्ड चांस, थ्रिलर उपन्यास, पठनीय, उत्तम।
वन शाॅट के पश्चात रवि पॉकेट से प्रकाशित होने वाल यह प्रस्तुत उपन्यास सैकण्ड चांस कंवल शर्मा का द्वितीय मौलिक उपन्यास है।इनका प्रस्तुत उपन्यास सैकण्ड चांस भी एक जबरदस्त उपन्यास है। यह एक ऐसे युवक की कहानी है जिसे प्रथम बार जीवन में बहुत बुरी तरह से धोखा मिलता है लेकिन जिंदगी उसे सैकण्ड चांस भी देती है। अब पठनीय यह भी है की वह युवक जिंदगी के सैकण्ड चांस में सफल हो पाया या फिर उसी तरह फिर फंस गया।
जब कोई खूबसूरत बला किसी को दौलतमंद बनाने के रास्ते उसे एक मामूली फोन काॅल के बदले पांच लाख का आॅफर दे तो कौन आदमी भला मना करेगा। लेकिन फिर जब वही फोन काॅल किसी र ईस जबर बिल्डर की इकलौती औलाद के अगवा किये जाने की साजिश का हिस्सा हो तो कोई मूढ, जङबुद्धि, अहमक या बेवकूफ ही इसमें हाथ डालेगा
और कैजाद पैलोंजी- भूतपूर्व पत्रकार और मौजूदा एक्स-जेलबर्ड में सारी खूबियां थी। (लेखक की कलम से)
कैजाद पैलोंजी जो की एक पत्रकार था लेकिन ईमानदरी के चलते एक जेल की सजा पा गया। जब जेल से छूट कर बाहर आया तो उसे एक आॅफर मिला। सिर्फ एक फोन काॅल करनी है और बदले में पांच करोङ रकम मिलेगी। अब कौन मूर्ख होगा जो पांच करोङ की दौलत को ठुकरा देगा।
बस यही एक फोन काॅल पत्रकार के गले की मुसीबत बन गयी। कैजांद पैलोंजी के गले एक लाश पङ गयी।
संवाद/ कथन
उपन्यास के जबरदस्त संवाद के लिए लेखक कंवल शर्मा को विशेष धन्यवाद देना चाहुंगा की उन्होंने जितना अच्छा उपन्यास लिखा है, उसकी कहानी है उतने ही अच्छे उपन्यास के संवाद हैं।
जहां संवाद कहानी को रोचक बनाते हैं वहीं पात्र के विचारों को और स्वयं पात्र को भी परिभाषित करते हैं।
- वेबकूफी और अक्लमंदी में केवल एक ये महीन फर्क होता है कि अक्लमंदी की एक हद होती है। (पृष्ठ-36)
- रिश्ते टूटने में अक्सर ये सबसे बङी वजह होती है कि बाज दफा लोग टूटना पसंद करते हैं, झुकना नहीं।"- (पृष्ठ- 38)
- पैसे वाला जहां अपनी कमाई में किसी को कोई हिस्सा देकर राजी नहीं, वहीं गरीब अपनी किस्मत को कोसने के अलावा अपने हाथ -पांव हिलाने को राजी नहीं । इस मुल्क में कोई संतुष्ट नहीं । यहाँ हर कोई परेशान है, हर कोई गर्म है। (पृष्ठ-40)
- शादीशुदा जिंदगी हवा में उङती उस पतंग की तरह होती है जिसे आसमान में और ऊंचा चढाने, उठाने के लिए उसकी डोर को अपनी ओर खींचना पङता है, उसे धक्का नहीं देना होता। (पृष्ठ-74)
- जब जहरीला सांप पकङना हो तो हाथ हमेशा अपने दुश्मन का इस्तेमाल करो। (पृष्ठ- 91)
- जीवन को दो ही शब्द नष्ट करते हैं- अहम और वहम। (पृष्ठ-123)
सैकण्ड चांस उन उपन्यासों में से ही जिन्हें आपने एक बार पढना आरम्भ कर दिया तो क्लाइमैक्स पढकर ही आप किताब को बंद करोगे।
कहानी है हि इतनी जबर्दस्त की पाठक स्वयं को भूल जाता है।
उपन्यासकार टाइगर का एक उपन्यास है आखिरी केस। यह उपन्यास पूर्णतः उसी उपन्यास पर आधारित है। पूरी कहानी वही है लेकिन लेखक ने इसमें कुछ अच्छे प्रयोग किये हैं जो इस उपन्यास को मूल उपन्यास से भी अच्छा बनाते हैं।
बात करें इसके क्लाइमैक्स की तो इसका क्लाइमैक्स आखिरी केस उपन्यास से बहुत ही अलग है। जहां आखिरी केस वकील मोनिका पण्डित पर आधारित है और वही उस केस को हल करती है वहीं सैकण्ड चांस में वकील की पूरी भूमिका ही गायब है।
अपने प्रयोग के तौर पर कंवल शर्मा कामयाब रहे हैं लेकिन लेखक कंवल शर्मा ने इस उपन्यास में कहीं भी टाइगर के उपन्यास आखिरी केस का वर्णन नहीं किया। यह नैतिक दृष्टि से पूर्णतः अनुचित है।
हालांकि दोनों उपन्यास ही पठनीय है और रोचक हैं।
आखिरी केस उपन्यास की समीक्षा यहाँ उपलब्ध है।
आखिरी केस - टाइगर
----------------
उपन्यास- सैकण्ड चांस
ISBN- 81-7789-494-3
लेखक- कंवल शर्मा
प्रकाशक- रवि पॉकेट बुक्स- मेरठ
पृष्ठ-317
मूल्य- 80₹
और कैजाद पैलोंजी- भूतपूर्व पत्रकार और मौजूदा एक्स-जेलबर्ड में सारी खूबियां थी। (लेखक की कलम से)
कैजाद पैलोंजी जो की एक पत्रकार था लेकिन ईमानदरी के चलते एक जेल की सजा पा गया। जब जेल से छूट कर बाहर आया तो उसे एक आॅफर मिला। सिर्फ एक फोन काॅल करनी है और बदले में पांच करोङ रकम मिलेगी। अब कौन मूर्ख होगा जो पांच करोङ की दौलत को ठुकरा देगा।
बस यही एक फोन काॅल पत्रकार के गले की मुसीबत बन गयी। कैजांद पैलोंजी के गले एक लाश पङ गयी।
संवाद/ कथन
उपन्यास के जबरदस्त संवाद के लिए लेखक कंवल शर्मा को विशेष धन्यवाद देना चाहुंगा की उन्होंने जितना अच्छा उपन्यास लिखा है, उसकी कहानी है उतने ही अच्छे उपन्यास के संवाद हैं।
जहां संवाद कहानी को रोचक बनाते हैं वहीं पात्र के विचारों को और स्वयं पात्र को भी परिभाषित करते हैं।
- वेबकूफी और अक्लमंदी में केवल एक ये महीन फर्क होता है कि अक्लमंदी की एक हद होती है। (पृष्ठ-36)
- रिश्ते टूटने में अक्सर ये सबसे बङी वजह होती है कि बाज दफा लोग टूटना पसंद करते हैं, झुकना नहीं।"- (पृष्ठ- 38)
- पैसे वाला जहां अपनी कमाई में किसी को कोई हिस्सा देकर राजी नहीं, वहीं गरीब अपनी किस्मत को कोसने के अलावा अपने हाथ -पांव हिलाने को राजी नहीं । इस मुल्क में कोई संतुष्ट नहीं । यहाँ हर कोई परेशान है, हर कोई गर्म है। (पृष्ठ-40)
- शादीशुदा जिंदगी हवा में उङती उस पतंग की तरह होती है जिसे आसमान में और ऊंचा चढाने, उठाने के लिए उसकी डोर को अपनी ओर खींचना पङता है, उसे धक्का नहीं देना होता। (पृष्ठ-74)
- जब जहरीला सांप पकङना हो तो हाथ हमेशा अपने दुश्मन का इस्तेमाल करो। (पृष्ठ- 91)
- जीवन को दो ही शब्द नष्ट करते हैं- अहम और वहम। (पृष्ठ-123)
सैकण्ड चांस उन उपन्यासों में से ही जिन्हें आपने एक बार पढना आरम्भ कर दिया तो क्लाइमैक्स पढकर ही आप किताब को बंद करोगे।
कहानी है हि इतनी जबर्दस्त की पाठक स्वयं को भूल जाता है।
उपन्यासकार टाइगर का एक उपन्यास है आखिरी केस। यह उपन्यास पूर्णतः उसी उपन्यास पर आधारित है। पूरी कहानी वही है लेकिन लेखक ने इसमें कुछ अच्छे प्रयोग किये हैं जो इस उपन्यास को मूल उपन्यास से भी अच्छा बनाते हैं।
बात करें इसके क्लाइमैक्स की तो इसका क्लाइमैक्स आखिरी केस उपन्यास से बहुत ही अलग है। जहां आखिरी केस वकील मोनिका पण्डित पर आधारित है और वही उस केस को हल करती है वहीं सैकण्ड चांस में वकील की पूरी भूमिका ही गायब है।
अपने प्रयोग के तौर पर कंवल शर्मा कामयाब रहे हैं लेकिन लेखक कंवल शर्मा ने इस उपन्यास में कहीं भी टाइगर के उपन्यास आखिरी केस का वर्णन नहीं किया। यह नैतिक दृष्टि से पूर्णतः अनुचित है।
हालांकि दोनों उपन्यास ही पठनीय है और रोचक हैं।
आखिरी केस उपन्यास की समीक्षा यहाँ उपलब्ध है।
आखिरी केस - टाइगर
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उपन्यास- सैकण्ड चांस
ISBN- 81-7789-494-3
लेखक- कंवल शर्मा
प्रकाशक- रवि पॉकेट बुक्स- मेरठ
पृष्ठ-317
मूल्य- 80₹
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