Sunday, 27 August 2017

59. वन शाॅट - कंवल शर्मा

वन शाॅट- एक जासूस के बदले की कथा।

कंवल शर्मा अपने पहले उपन्यास वन शाॅट से ही चर्चा में आ गये थे। वन शाॅट की कहानी काफी रोचक व संस्पेंशपूर्ण है

कहानी-
         उपन्यास का नायक विनय रात्रा एक सरकारी जासूस है, जो अधिकतर देश से बाहर रहता है। विनय का इस दुनियां में उसके भाई रोहन रात्रा के अलावा और कोई भी रक्त संबंधी नहीं है।
  राजनगर निवासी रोहन रात्रा की एक रात नृशंस हत्या हो जाती है। अपने भाई की मौत का बदला लेने के लिए जब विनय रात्रा अपने सहयोगी मित्र राजेश के साथ राजनगर पहुंचता है तो उसका स्वागत उस पर एक हमले से होता है।
  राजनगर में पहले ही खतरनाक स्वागत के साथ ही कई और घटनाएं घटती हैं। विनय और राजेश जैसे- जैसे रोहन के हत्यारे की तलाश करते हैं तो उनके सामने कई मुसीबतें और कई रहस्यमयी बातें आती हैं।
- कभी रोहन रात्रा एक बदचलन, बेगैरत नजर आता है तो कभी वक्त का मारा इंसान।
- कभी उसकी कई प्रेमिकाएं सामने आती हैं तो कभी महिलाओं से धोखा खाया इंसान।
- कभी रोहन की मृत्यु हत्या नजर आती है तो कभी आत्महत्या ।
इस प्रकार की अनेक समस्याओं से जूझता हुआ जब विनय असली हत्यारे तक पहुंचता है तो पाठक भी अवाक रह जाता है।
- रोहन क्यों मारा गया?
- रोहन का हत्यारा कौन है?
- रोहन की हत्या या आत्महत्या का क्या चक्कर है?
- रोहन की प्रेमिकाओं का क्या किस्सा है?
- कौन था हत्यारा, क्यों हुयी रोहन की हत्या?
- मेयर का शहर पर कब्जा क्यों था?
- क्यों था सोये हुए लोगों का शहर?
ऐसे असंख्य प्रश्नों के उत्तर तो कंवल शर्मा का उपन्यास वन शाॅट ही दे सकता है।
संवाद-
     उपन्यास के संवाद की बात करें तो इस विषय में लेखक धन्यवाद के पात्र है की उनके संवाद बहुत अच्छे हैं और कहीं कहीं तो सूक्ति बन गये हैं।
जहां एक और संवाद कथा को आगे बढाने का काम करते हैं तो वहीं संवाद ही पाठक को कथा से बांधे भि रखते हैं।
लेकिन कंवल शर्मा की एक बङी गलती यह भी है की संवाद लंबे हैं और कहीं- कहीं तो हद से ज़्यादा लंबे हो गये।
कुछ अच्छे कथन और संवाद देखिए-

- पहला नियम- शांत रहो...और चीजों को समझने की कोशिश करो। (पृष्ठ 20)
- पांचवा नियम- ......पहला वार हमेशा स्टीक होना चाहिए। (पृष्ठ- 22)
परिस्थितियों के अनुसार व्यक्ति को कैसा व्यवहार करना चाहिए, इस प्रकार के कुल नौ नियम उपन्यास में है, लेकिन यह किसी मैनेजमेंट किताब का चैप्टर नहीं है।
- दौलत हमेशा ताकतवर होने का अहसास कराती है, लेकिन वही ताकत जब सर चढती है, तो दिमाग को भ्रष्ट कर देती है।"-(पृष्ठ 37)
- इश्क हाथ में थामें उस कांच के गिलास की तरह होता है, जिसे गर ढीला पकङा जाए, तो उसके छूट जाने का डर लेकिन उसे कस पकङा जाये तो उसके टूट जाने का खतरा। -(पृष्ठ -63)
- अक्लमंद काम करने से पहले सोचते हैं और बेवकूफ काम करने के बाद।- (पृष्ठ-190)
-“हम अपने दोस्त कभी नहीं खोते, हम उन्हें खोते है जिनके बारे में हमे ये मुगालता होता है कि वो हमारे दोस्त हैं” 
मेयर साहब - ये शहर हमारी जागीर है। यहाँ के लोग हमारे इशारे पर उठते-बैठते हैं।...ये उसकी दिल्ली नहीं है ये हमारा शहर है। ये राजनगर है, जिसके हम राजा हैं। -(पृष्ठ 213)

रोचक दृश्य -
उपन्यास क ई रोचक दृश्य है जो पाठक के लबों पर कभी मुस्कान तो कभी गुस्सा ला सकते हैं।
जैसे विनय और मेयर की मुलाकात।
एक अन्य दृश्य में विनय व राजेश द्वारा अपने पीछे लगे जुम्मन को चक्कर देने के लिए व्यर्थ घूमना बङा रोचक लगा।
लेखक के शब्दों में ही देख लीजिएगा।
और जुम्मन अपनी गाङी में उनके पीछे लगा इस बात पर सर धुन रहा था कि यूं एक जगह से दूसरी जगह बिना मतलब गाङी दौङाते रहने की आखिरकार वजह क्या है?

कमियां-
उपन्यास में कुछ कमियां भी हैं जो उपन्यास/पाठक को नजर तो आती हैं लेकिन वे उपन्यास की कहानी को प्रभावित नहीं करती।
- अनावश्यक कथा-
उपन्यास के प्रारंभ में कहानी के नायक विनय रात्रा की भूमिका में लगभग पचास पृष्ठ भर दिये गये और उन पचास पृष्ठों में जो कहानी है उसका मूल कथानक से  संबंध नहीं।
- लंबे संवाद-
उपन्यास के संवाद लंबे ही नहीं अति लंबे हैं। पता नहीं लेखक ने ऐसा क्यों किया है। किसी- किसी पात्र से तो संवाद बीस- पच्चीस पृष्ठ भी खींच दिये।
तब तो हद ही हो गयी जब छोटे-छोटे पात्र से अनावश्यक वार्तालाप दिखा कर भी दस पृष्ठ खर्च करने में लेखक हिचकिचाया नहीं।
शाब्दिक गलतियां-
उपन्यास में एक दो जगह शाब्दिक गलतियां है लेकिन वह कोई विशेष नहीं है।
- सेल फोन वापसी अपनी कोट की ऊपरली जेब में डाल लिया। -(पृष्ठ 84)
- जुम्मन का गाल उपङ गया।-(पृष्ठ-252)
ऊपरली और उपङना में ग्रामयत्व दोष है।
- विनय ने आगे बढकर उसको अपनी बाहों में ले लिया और उनके सर को अपने कंधे पर रख उनकी कमर को सहलाने लगा।
यहाँ कमर सहलाने की बजाय थपथपाने लगा शब्द ज्यादा उचित था।
- इंस्पेक्टर ताशी ने जब लाश बरामद की तो रोहन रात्रा की जेब से मोबाइल क्यों नहीं निकाला।
- राजनगर प्रवेश पर विनय पर हमला होता है, आखिर हमलावर को विनय आगमन  खबर कैसे लगी?
लेखन ने कई जगह उर्दू के शब्दों का इस्तेमाल किया है जो की वर्तमान में प्रासंगिक भी नहीं है।
जैसे प्रधानमंत्री को वजीरे आजम लिखना।
लेखक पर एक बङा आरोप लगा और वह है  भाषा शैली को लेकर। इनकी भाषा शैली पर मिस्ट्री राइटर सुरेन्द्र मोहन पाठक का प्रभाव स्पष्ट दृष्टिगोचर होता है। हालांकि एक ही लेखक को पढते रहने से ऐसा होना स्वाभाविक है, लेकिन अगर लेखक ने ऐसा जानबूझकर किया है तो मेरे विचार से लेखन ने अपनी प्रतिभा का हनन किया है। हालांकि यह लेखक का प्रथम उपन्यास इसलिए  मात्र एक उपन्यास पढकर किसी के प्रति गलत धारना नहीं बनानी चाहिए।
लेखक ने उपन्यास को खूब लंबा खींच दिया लेकिन प्रकाशन महोदय ने छोटे शब्दों का प्रयोग कर लगभग चार पृष्ठों के उपन्यास को 318 पृष्ठों में समेट दिया।
      
अगर समग्र दृष्टिकोण से देखा जाये और नाम मात्र की गलतियों को नजर अंदाज किया जाये तो उपन्यास बहुत रोचक है। उपन्यास की रोचकता का अंदाज इसी बात से भी लगाया जा सकता है की लंबे- लंबे संवाद भी पाठक को निराश नहीं करेंगे।
  उपन्यास का समापन भी पाठक को चौंकाने वाला है।
उपन्यास पढने योग्य है पाठक को निराश नहीं करेगा।

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उपन्यास - वन शाॅट ( मर्डर मिस्ट्री)
ISBN 81-7789-484-6
लेखक - कंवल शर्मा
प्रकाशक- रवि पॉकेट बुक्स- मेरठ
पृष्ठ- 318
मूल्य- 80₹

संपर्क-
कंवल शर्मा
Email- kanwal.k.sharma@gmail.com

4 comments:

  1. ये उपन्यास पढ़ना था लेकिन कभी हासिल ही नहीं हुआ। कँवल जी का सेकंड चांस मेरे पास पड़ा है। उपन्यास के ऊपर अपने अच्छा लेख लिखा है।

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  2. धन्यवाद विकास नैनवाल जी‌

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  3. बहुत अच्छी और विस्तृत समीक्षा लिखी है आपने गुरप्रीत जी!

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  4. बहुत अच्छी और विस्तृत समीक्षा लिखी है आपने गुरप्रीत जी!

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