Thursday, 9 April 2020

290. आपका रसिया- ओमप्रकाश राय 'यायावर'

काव्या- किसलय की प्रेम कहानी
आपका रसिया- ओमप्रकाश राय 'यायावर'

'CORONA-19 वायरस' के चलते कुछ लेखक और प्रकाशक वर्ग ने पाठकों को विभिन्न प्लेटफॉर्म पर नि:शुल्क पुस्तकें उपलब्ध करवायी ताकी पाठकवर्ग आराम से घर भी बैठा रहे और साथ में उसका मनोरंजन भी होता रहे। इस प्रयास के लिए धन्यवाद।

    ओमप्रकाश राय 'यायावर' ने भी अपनी सद्यप्रकाशित उपन्यास 'आपका रसिया' की PDF पाठकवर्ग के लिए उपलब्ध करवायी।
'आपका रसिया' एक प्रेम कथा है, जो मार्मिकता और भावुकता के सागर में पाठक को डूबने पर विवश करती नजर आती है। लेकिन इस सागर की विशालता के कारण पाठक इस सागर में तैरता- तैरता उकता भी जाता है।
     यह कहानी है किसलय और काव्या की जो पहली बार एक ट्रेन में मिलते हैं। फिर फेसबुक पर मिलते हैं और फिर प्रत्यक्ष मिलते हैं और यह धीरे-धीरे मिलना कब प्यार में बदल जाता है पता ही नहीं चलता। और प्यार का अर्थ है त्याग और समर्पण।
कहानी जब प्यार की है तो यह है प्यार की परिभाषाएं और प्यार के किसलय- काव्या के संवाद भी पढने को मिलेंगे।
जहाँ कारण हो वहाँ भला प्यार कैसा, प्यार तो अकारण होता है, प्यार तो अकाल और असमय होता है, असंस्कृत होता है, अभय होता है- अलक्ष्य, असीम, अनंत:, अधीर, अदृश्य, अजर, नि:शब्द, निर्बंध, निर्वाध, निराकार, युगसृष्टा और लज्जा रहित होता है

काव्या- प्यार करना चाहिए या नहीं
किसलय- इसमें करने जैसी कोई बात नहीं होती, यह तो अलौकिक तत्व है, जो अपने आप प्रकट हो जाता है।....

उपन्यास पृष्ठ


         कहानी में तड़प है,भावनाएं हैं और आँसू है लेकिन साथ-साथ एक मुस्कान भी है। लेकिन यह मुस्कान आरम्भ में है और अंत में यही मुस्कान आँसूओं में बदल जाती है।

कहानी में कहीं कोई घुमाव नहीं है और इसी कारण रोचकता नहीं है और जब कहानी रोचक नहीं होती तो वह नीरसता पैदा करती है।
        उपन्यास समापन की तरफ बढते-बढते कुछ टविस्ट पैदा करता है और यही ट्विस्ट एक कसक के साथ उपन्यास के समापन होने की घोषणा करते हैं।

उपन्यास के पात्र
किसलय- कथा नायक
काव्या- कथा नायिका
पूजा- काव्या की सहेली

उपन्यास में कुछ नयी अवधारणा भी मिलेंगी जो बहुत कुछ सोचने को विवश करती हैं। लेखक के यहाँ विचार प्रशंसनीय है और विचारणीय है।
- यह कटु सत्य है की सभी व्यक्ति माँ-बाप बनने की नैतिक योग्यता नहीं रखते, बावजूद ऐसे‌ लोग शादी से परहेज नहीं करते । (पृष्ठ-121)

- रिश्ते वही मजबूत होते हैं, जिनकी डोर स्वार्थ से बुनी गयी हो क्योंकि निस्वार्थ रिश्ते बहुत कठोर होते हैं, जो मुड़ना नहीं, टूटना जानते हैं।


भाषा शैली और संवाद-

           किसी भी उपन्यास की भाषा शैली और उसके संवाद पात्र और कथानक के बारे में बहुत कुछ कह जाते हैं। जहां एक तरफ संवाद कथा को आगे बढाने का प्रयास करते हैं वहीं पात्रों के मनोभावों को भी चित्रित करते हैं।
ओमप्रकाश राय 'यायावर' जी की भाषा पर जो पकड़ है वह प्रशंसनीय है। वर्तमान कथा लेखकों में ये इस मामले श्रेष्ठ नजर आते हैं। यह आवश्यक भी है, क्योंकि पाठक शुद्ध भाषा पढकर ही शुद्ध भाषा सीखता है, आजकल जो 'नयी हिन्दी" के नाम पर लिख रहे हैं उससे ये पूर्णतः विलग है। खैर 'नयी हिन्दी' तो....'नई' है......
उदाहरण
किसलय- भावनाएं बड़ी बुरी चीज होती है, यह इंसान को बहुत कमजोर बनाती हैं।
काव्या - सच है कि भावनाएं इंसान को कमजोर बनाती हैं, पर सच्चाई तो ये भी है कि भावनाएं न हो, तो इंसान कहां इंसान है?

- दोस्त किसी जादूगर, ज्योतिष, भविष्यवक्ता और मनोवैज्ञानिक से कम नहीं होते, वह तो दोस्त की हर नब्ज को ठीक से समझ जाता है।

- इंसान की भावनाओं और जज्बातों से खेलना आग से भी खेलने से ज्यादा खतरनाक होता है....

काव्या- किसलय का फेसबुक संवाद
उपन्यास का कथानक आपको कहीं न कहीं जयशंकर प्रसाद की याद अवश्य दिलाये क्योंकि इस उपन्यास के पात्र भी वैसे ही हैं बस परिवेश आधुनिक है। और उपन्यास का अंत तो ठीक प्रसाद जी के उपन्यासों की तरह और प्रसाद जी के नाम के अनुरूप ही है।
बस पाठक एक बैचेनी के साथ सोचता रह जाता , पाठक उपन्यास का अंतिम पृष्ठ पढने के बाद एक कसक के साथ उपन्यास को बंद करता है।

शीर्षक-
उपन्यास का शीर्षक बहुत हल्का सा प्रतीत होता है‌। जहाँ लेखक एक तरफ प्रेम की उत्कृष्टता दर्शाना चाहता है वहीं उपन्यास का शीर्षक उसके अनुकूल नहीं लगता। चलो फिर यू कह लो.....नाम में क्या रखा है।
वैसे नाम में बहुत कुछ रखा होता है....हा...हा...हा...

       उपन्यास का आरम्भ अच्छा और समापन मार्मिक है लेकिन मध्य भाग बहुत ज्यादा नीरस है। एक तो उपन्यास में मात्र तीन पात्र हैं और उसमें भी 80% दो ही पात्र आप में बात करते हैं। पहले अध्याय में परस्पर बात, दूसरे... तीसरे... चौथे.... पांचवे..... और आगे....भाई आगे भी यही है। लेखक को इससे बचना चाहिए था। क्योंकि जब मात्र दो पात्रों की चर्चा होगी तो कहानी में कोई अतिरिक्त रोमांच पैदा न होगा।
उपन्यास को आप बस पढ सकते हो। अगर आपको प्रेम कथाएं पसंद है तो आप एक बार तो पढ सकते हो।

उपन्यास- आपका रसिया
लेखक- ओमप्रकाश राय यायावर
प्रकाशक- रश्मि प्रकाशन, इलाहाबाद
पृष्ठ- 136





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