Saturday, 18 April 2020

295. 11:59- मिथिलेश गुप्ता

 जंगल, जहाँ से लोग गायब हो जाते थे...
11:59, मिथिलेश गुप्ता, हाॅरर उपन्यास

मिथिलेश गुप्ता जी का द्वितीय हाॅरर उपन्यास किंडल पर पढा यह एक रोमांचक उपन्यास है।
इस उपन्यास 
की कहानी  शुरू होती है पांच दोस्तों से - रुद्र और टीना, मेरे क्लासमेट रोनित, संजना और मैं यानि अभिमन्यु सिंह। (पृष्ठ संख्या..)
अभिमन्यु की जन्मदिन की पार्टी थी, और पांचों दोस्त पार्टी के लिए अपने अंकल के फार्म हाउस जा रहे थे। समय था रात के 10:30, और उन्हें फार्म हाउस जाने के लिए एक खतरनाक जंगल पार करना था। - वह अमावस की एक मनहूस काली रात थी। चारों तरफ घुप्प अंधेरा फैला हुआ था। घुप्प अंधेरों के बीच हमारी कार एक वीरान सड़क पर तेज़ी से दौड़ रही थी। जहाँ दूर-दूर तक सिवाए हमारे अलावा और कोई नज़र नहीं आ रहा था।
          फिर इसी जंगल से आरम्भ होती हैं कुछ दिल दहला देने वाली खतरनाक घटनाएं। एक के बाद एक घटती उन घटनाओं को समझना ही मुश्किल हो जाता है की आखिर क्या सत्य है और क्या असत्य, क्या वो सब वास्तविक है या फिर कोई भ्रम। लेकिन.......कई बार कुछ घटनाएँ इस तरह से घटती है कि उस से बच पाना मुश्किल होता है। आज की घटना भी कुछ ऐसी ही कहावत को हकीक़त में बदलने जा रही थी।
आखिर वह हकीकत क्या थी?
आखिर जंगल में ऐसा क्या था?
क्या वो दोस्त जंगल के मायाजाल से बाहर निकल पाये?

यह एक ऐसा रहस्य है जो आप उपन्यास पढकर ही जान सकते हैं। 




भूत प्रेत और आत्माओं के विषय में मैंने बचपन से ही काफी कहानियाँ सुन रखी थी। मेरी दादी कहा करती थी कि हमारे आस-पास आत्माओं का जमावड़ा सा होता है, लेकिन उन्हें हम आसानी से नहीं देख सकते। वह कहती थीं- अमावस की रात अपने साथ एक ऐसा संसार लेकर आती है जिसे कुछ लोग आसानी से देख और महसूस भी कर लेते हैं। लेकिन उनमें से बहुत कम लोग ही जिंदा रह पाते हैं। वह शक्तियाँ, वह दुष्ट आत्मायें, अमावस की रातों में कई कुर्बानियाँ माँगती हैं। कहते हैं कई तांत्रिक इस रात को आत्माओं और उन पैरानॉर्मल विषयों पर गहन अध्ययन करने निकलते हैं। (उपन्यास अंश)
              यह भी अमावस्या की एक काली रात थी, खौफनाक रात, दिल को दहला देने वाला सन्नाटा और चारों तरफ तम का साम्राज्य था। जंगल के बीचो-बीच बनी वह सड़क और सड़क के बीच तेजी से दौड़ती अंधेरे में हमारी कार। कार में बैठे हम चार लोग, अब भी खामोश थे। संजना जो अभी गुमशुदा थी, टीना जो अब चुपचाप थी और रुद्र कुछ ऐसे सच का जिक्र कर रहा था जिसे रोनित और मैं चाहकर भी समझ नहीं पा रहे थे।
         तभी उन्हें लगा, कार के साथ कोई और भी चल रहा है। यह भ्रम धीरे-धीरे सन्देह में परिवर्तन हुआ और फिर उन्होंने एक ऐसा दृश्य देखा की वे दहल उठे- उसका आधा शरीर हवा में उड़ते हुए हमारे पीछे भाग रहा था। अंधेरे में सिर्फ उसकी परछाई और दो चमकती हुई आँखें नजर आ रही थीं। वह किसी भूखे भेड़िए की तरह बुला रही थी।

         पांच दोस्त और एक खतरनाक जंगल का रास्ता। एक ऐसा जंगल किसके बारे में पहले भी बहुत कहानियाँ चर्चित हैं।
"कुछ सालों पहले संग्राम सिंह और उसकी फैमिली ऐसे ही इन्हीं जंगलों में गायब हो गई थी। उनके साथ क्या हुआ, किसी को कुछ पता नहीं चला।" रोनित ने हकलाते हुए कहा।
तो क्या पांचों दोस्त इस घटना से बच सके?
आखिर क्या था उस जंगल में ऐसा?
लोग जंगल के रास्ते से गायब कैसे हो जाते थे?

        ‌'11:59' एक पूर्णतः हाॅरर कथानक है।‌ समय को बांध देने वाला रोचक कथानक है जो पाठक का भरपूर मनोरंजन करने में सक्षम है। 


उपन्यास की पंच लाइन है -'दहशत का अगला पडाव' यह अगला पडाव पूर्व उपन्यास से आगे का एक कदम है।
       अगर आपने 'वो भयानक रात' उपन्यास पढा है तो आपको इस उपन्यास से तारतम्य स्थापित करने में सहजता होगी। क्योंकि वही जंगल है और वही घटनाएं है। बस अगर कुछ बदला है तो पात्र और रोमांच।
         एक तरह से '11:59' को हम 'वो भयानक रात का सिक्वल' कह सकते हैं। मेरे विचार से ऐसा प्रयोग स्वयं लेखक द्वारा स्वयं के उपन्यास पर प्रथम बार देखने को मिला है। 


       इस उपन्यास में एक विशेष बात लगी वह है सस्पेंश। कुछ जगह सस्पेंश का इस हिसाब से विस्तृत किया गया है की पाठक पृष्ठ बदलने को मजबूर हो जाता है, हालांकि वह कहीं कहीं अखरता भी है लेकिन एक जिज्ञासा भी बनी रहती है की आखिर हुआ क्या?
जब टीना और रुद्र एक घटना का वर्णन करते हैं तो बाकी मित्र जिस तरह से जिज्ञासा दर्शाते हैं उससे कहीं ज्यादा जिज्ञासा पाठक के मन में होती है कि आखिर वहाँ हुआ क्या?

समय चक्र-
अगर आपने मिथिलेश गुप्ता जी का उपन्यास 'वो भयानक रात' पढा है तो आपको पता होगा की समय चक्र क्या है। प्रस्तुत उपन्यास का समय '11:59' भी आपको रोचकता और डर के उसी समय चक्र के चक्कर में ला पटकेगा जहां से आपका बाहर निकला मुश्किल हो जायेगा।

'11:59' हाॅरर होने के साथ -साथ इतना सस्पेंश क्रियेट करती है की पाठक एक सांस में ही उपन्यास पढने को बैचेन हो जाता है।
पृष्ठ दर पृष्ठ घटने वाली रोम रोम में सनसनी पैदा करनी घटनाएं उपन्यास को बहुत रोचक बनाती हैं। हां, इसका अंत थोड़ा पाठक को विलग लग सकता है।
अगर आप हाॅरर साहित्य पढने में रूचि रखते हैं तो 'वो भयानक रात' उपन्यास के साथ इसे पढें।

उपन्यास- 11:59
लेखक- ‌‌‌ मिथिलेश गुप्ता
प्रकाशक- सूरज पॉकेट बुक्स
पृष्ठ-
मूल्य-
किंडल लिंक-11:59 - मिथिलेश गुप्ता

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