Wednesday, 29 January 2025

628. जगिया की वापसी - अन्नाराम 'सुदामा'

बाल शोषण की मार्मिक कहानी
जगिया की वापसी- अन्ना राम सुदामा

 बाल मजदूरी पर एक छोटे से बच्चे की एक मार्मिक कहानी है 'जगिया की वापसी' । कहानी पढते वक्त आप स्वयं को जगिया के दर्द के साथ जोड़ लेंगे। एक बच्चा किन कठिन परिस्थितियों में अपने परिवार के लिए काम करता है और कैसे लोग उसकी मासूमियत और परिश्रम का लाभ उठाते है ।

 राजस्थानी भाषा की सौंधी महक और परिवेश से सज्जित यह हिंदी में लिखित रचना आपको अवश्य पढनी चाहिए ।
'जगिया की वापसी'राजस्थान के एक क्षेत्र की है। जगिया एक गरीब परिवार का बालक है।‌ बाप शराबी है, बड़ा भाई बकरियाँ चराता है और मां किसी तरह घर को चलाती है। बीमार माँ के लिए दो वक्त की रोटी की व्यवस्था करना बहुत मुश्किल कार्य है लेकिन फिर भी वह घर परिवार को संभालती है । जब ज्यादा काम होता है तो वह जगिया को भी काम पर साथ लगा लेती है और जगिया का स्कूल जाना बंद हो जाता है। और कभी कभी जगिया महीना भर स्कूल नहीं जा पाता ।
     मास्टर जी की इच्छा है जगिया कुछ पढ जाये तो इसका जीवन संवर जाये पर परिवार की आर्थिक स्थितियों के चलते वह चाहकर भी कुछ नहीं कर पाते । वह जगिया की माँ को सिर्फ इतना ही कह पाते हैं जब भी समय मिले तो जगिया को स्कूल भेज दिया करो।
  मास्टर जी इच्छा है जगिया पढें क्योंकि वह जगिया की प्रतिभा को पहचानते हैं, क्योंकि वह जानते हैं अगर जगिया कुछ पढ जायेगा तो उसका जीवन संघर्ष कुछ कम हो जायेगा। जगिया की मां भी चाहती है जगिया पढे पर घर के हालात ही ऐसे हैं वह चाहकर भी जगिया को स्कूल नहीं भेज पा रही । घर में गरीबी ने डेरा जमा रखा है। जगिया का बड़ा भाई रेवड़ चराता है और बाप शराबी है। घर में एक जगिया की मां है जो जैसे-तैसे घर गृहस्थी को चला रही है पर वह भी अक्सर बीमार रहती है । और जब जगिया की मां बीमार होती है या जब घर-खेत पर ज्यादा काम होता है तब जगिया विद्यालय नहीं जा पाता।
दिन ऐसे ही निकल रहे हैं। एक दिन जगिया के शराबी और बीमार पिताजी को घर छोड़ने आया एक परिचित जगिया को एक कस्बे में एक चाय के होटल पर काम दिलवा देता है।
दूसरे दिन सुबह-सुबह ही जगिया कल्लू दादा के साथ .... पहन कस्बे को चल दिया। माँ उस जाते हुये को बाड़ पर से देख रही थी । स्वभाववश दो बून्दें उसकी आंखों से बाहर आईं। और उसके कपोलों पर ही कहीं ओझल हो गईं और ओझल हो गया जगिया भी, कहीं, पगडंडियाँ पार करता।
    यहीं से जगिया की जिंदगी के दिन बदल जाते हैं। होटल मालिक आरम्भ में तो जगिया को स्नेह से रखता है लेकिन धीरे-धीरे वह स्नेह शोषण में बदल जाता है। दिन-रात जगिया से काम लेना और खाने के नाम पर एक कप चाय और थोड़ा सा नमकीन।
  सर्दी के मौसम में ठिठुरते जगिया की हालत अत्यंत दयनीय हो जाती है लेकिन होटल मालिक को उस के स्वास्थ्य से कोई लेना देना नहीं है वह तो कम से कम मजदूरी में अधिक से अधिक काम लेना चाहता है। 
    यह लघु उपन्यास बाल मजदूरी और शोषण पर आधारित है। कुछ घरों की आर्थिक स्थितियां इतनी कमजोर होती हैं की वह चाहकर भी अपनी संतान को विद्यालय में नहीं भेज पाते और घर की आर्थिक स्तिथि के चलते काम पर भेज दिया जाता है । यहीं से ही शोषण आरम्भ होता है। शोषणकर्ता सिर्फ अपना स्वार्थ देखता है वह किसी की लाभ-हानि से मुक्त है।
जब जगिया ज्वर से तप्त होटल मालिक के घर ठहरता है तो उसके घर वाले भी उसे एक मुसीबत मानते हैं। जब तक जगिया घर और होटल का काम करता था तब तक तो वह प्रिय था और बीमार होते ही वह सबको खटकने लगा।
    वहीं जगिया के होटल के सामने वाले होटल पर काम करने वाले बालक को मालिक इस लिए पीट देते हैं कि वह खेलने लग जाता है।
     बच्चे की जो वास्तव में खेलने की उम्र है उस उम्र में उससे से एक व्यस्क जितना काम लेना और उस पर भी उसे पीटना मानवता को लज्जित करने वाला कार्य है।
   प्रस्तुत उपन्यास चाहे लघु है पर उसका संदेश विशाल है ।यह मानवता दृष्टिकोण, बाल शोषण आदि बातों को गंभीरता से उठाता है।
उपन्यास- जगिया की वापसी
लेखक-    अन्ना राम सुदामा
प्रकाशक- धरती प्रकाशन, बीकानेर
पृष्ठ-         102
वर्ष-         1989

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