Friday 27 September 2019

225. होटल चैलेंज- एम. इकराम फरीदी

एक डायन की खतरनाक कहानी।
एक सत्य घटना पर आधारित काल्पनिक उपन्यास।
          एम.इकराम फरीदी जी का नवीनतम उपन्यास 'चैलेंज होटल' पढने को मिला। जैसा की पाठकवर्ग को विदित है की फरीदी जी के प्रत्येक उपन्यास का कथानक हर बार नये विषय पर आधारित होता है। यह परम्परा इसी उपन्यास में भी जीवित है। मात्र जीवित ही नहीं बल्कि प्रथम उपन्यास में स्थापित पूर्व परम्परा का खण्डन भी यह उपन्यास करता नजर आता है।
           इस उपन्यास के साथ दो बातें और विशेष हैं। प्रथम तो यह की प्रस्तुत उपन्यास सत्य घटना से प्रेरित है और द्वितीय इसी उपन्यास के साथ फरीदी जी ने स्वयं का प्रकाशन संस्थान 'थ्रिल वर्ल्ड' आरम्भ कर दिया है। 'चैलेंज होटल' इस संस्थान की प्रथम सौगात है।

     अब कुछ चर्चा उपन्यास के विषय में भी कर ली जाये। वैसे मुझे यह उपन्यास अच्छा लगा।
यह कहानी है महाराष्ट्र के जलगांव जिले के चालीसगांव की। जहाँ लेखक महोदय सौलर प्लाट लगाने गये थे।

अक्टूबर 2017 में मैंने दिल्ली से चालीसगांव की जर्नी की थी क्योंकि मेरी नई सौलर साइट चालीसगांव में ही बैठ रही थी जो औरंगाबाद रोड़ पर दस किलोमीटर दूरी पर एक खतरनाक वन्य जीव वाले पहाड़ के नीचे समतल में थी। (पृष्ठ-24)
यहाँ एक छोटा सा गांव है चुरई। जिस की यह कहानी है।

महाराष्ट्र के जलगांव डिस्ट्रिक्ट में चालीसगांव नगर से दस किलोमीटर दूर खतरनाक वन्यजीवों वाली पहाड़ी, जो उस क्षेत्र में घाट के नाम से पुकारी जाती है। यहाँ एक छोटा सा गांव है चुरई।


बताया जाता है कि यहां वैम्पायर भी रहते हैं।
यानी खून पीने वाले पिशाच।
रक्तपिशाच।

        लेखक को यहाँ जो अनुभव मिले जो देखा और समझा उसे अपनी कल्पना शक्ति से नये रंग भर के एक रोचक और हाॅरर उपन्यास के रूप में पाठकों के समक्ष ले आये।
लेखक को यहाँ लेबर के ठहराने के लिए जो जगह मिली वो था एक लंबे समय से बंद होटल था। यही चैलेंज होटल इस कथा का मूलाधार है। वहीं उपन्यास के गांव में एक मर्डर होता है। ग्रामवासियों का कहना है यह डायन का काम है।
ऐसे केस हमारे यहाँ होते रहते हैं, यदाकदा.....कोई डायन किसी मर्द को रूप -जाल में फंसा लेती है और रात के सन्नाटे में कहीं ले जाकर खून पी जाती है। (पृष्ठ-59)

वहीं चैलेंज होटल में भी ऐसी भयानक घटनाएं घटती हैं की सभी सिहर उठते हैं। एक डायन का होना तो खतरनाक ही होगा।

"क्या तुमने खुद अपनी आँखों से डायन देखी है?"
बबलू तुरंत बोला-"हां साब देखी है, यहीं चैलेंज होटल में देखी है।"
......
"कैसी होती है?"
"बाल खुले हुए, चेहरा दिखाई देता है, चारों तरफ से बाल पड़े होते हैं, दांत बड़े-बड़े....।"
"वो खून पीती है। यहाँ गरदन पर हमला करती है....।"
(पृष्ठ-63)


तो यह किस्सा एक डायन का है। जो कभी घूंघरू बजाती है, कभी खूले बालों के साथ घूमती, कभी किसी का खून पी जाती है तो कभी किसी को प्रेमालाप के लिए आमंत्रित करती है।
तो आखिर वह डायन कौन थी?
क्या रहस्य था उसका?
जब भूत-प्रेतों पर विश्वास न करने वाले, वैज्ञानिक सोच रखने वाले लेखक एम.इकराम फरीदी का सामना इन घटनाओं से हुआ तो उनकी बुद्धि और वैज्ञानिक सोच दोनों स्थिर हो गये।
मेरी सारी फिलाॅसफी धरी की धरी रह गयी थी जैसे कोई रेत की दीवार भुरभुराकर गिर पड़ती है। मेरा दृढ निश्चय ऐअए ही भुरभुराकर गिर पड़ा।(पृष्ठ-87)
पोलो मैदान,माउंट आबू, राजस्थान

उपन्यास के दो पात्र प्रभावित करने में सक्षम है। एक तो प्रेमा, दबंग प्रेमा और दूसरा इंस्पेक्टर गोरख पुर्णे। हालांकि दोनों मुँहफट्ट और दबंग हैं पर प्रेमा हर किसी पर भारी पड़ती है।
प्रेमा की उम्र पैंतालीस साल थी। गोल मुखड़ा था, लिपिस्टिक की मेहरबानी से हमेशा होंठ लाल रहते थे, अधिकांश बालों का जूड़ा बांध कर रखती थी। ब्लाऊज और घाघरा पहनती थी, बहुत छोटी सी चुनरी इधर-उधर कहीं पड़ी रहती थी। (पृष्ठ-28)
‌‌पुरुष वर्ग के प्रति प्रेमा के विचार देख लीजिएगा
अरे भई इन आदमियों को जितना सिर पर चढाओगे, उतना परेशान करेंगे, यह डण्डे के यार होते हैं...।(पृष्ठ-34)
चलो फिर प्रेमा और एस. आई. कुमावत के बीच का भी नोकझोक दृश्य देख लेते हैं।-
         कुमावत बोला पड़ा- "तूने हमे गालियां बकी, पुलिसियों को, साले किसी में हिम्मत नहीं है जो हमें गालियां दे सके।"
"ओय चोट्टी के आवाज नीच कर, इस वर्दी को यूं नुचवा लूंगी यूं- तू मेरी राजनीतिक पहुंच नहीं जानता है अभी, इस गांव की सरपंच बनने वाली हूँ।
(पृष्ठ-69)

लेखक अगर कोशिश करता तो इन दोनों पात्रों को और बढा सकता था, दोनों की नोकझोक आगे भी दिलचस्प हो सकती थी।

        लेखक की एक विशेषता यह भी है की वे किसी न किसी सामाजिक बुराई को अपने उपन्यास में उजागर करते रहते हैं। जो की कहानी का भाग न होने पर भी पठनीय होती है। प्रस्तुत उपन्यास में सट्टा बाजार के बारे में लिखा है।

       उपन्यास में शाब्दिक गलतियाँ काफी हैं। हालांकि यह प्रूफ रीडर की गलती मानी जाती है पर कहीं न कहीं पाठक भी इससे प्रभावित होता है।
एक जगह नाम 'गोरव पुर्णे' (पृष्ठ-44) और बाद में 'गोरख पुर्णे'। पूरे उपन्यास में दो जगह नाम आया है दोनों जगह अलग-अलग है।
साइट को साइड लिखा है।
कुछ और गलतियाँ
प्रेमा के पति राजन का कहीं वर्णन नहीं मिलता।
- मितराज को रात को एक लड़की नजर आयी। उसका कहीं को विशेष स्पष्टीकरण नहीं।
मितराज बोला-"मैं चैनल गेट के पास खड़े होकर बाहर को देख रहा था, तभी थोड़ी देर मुझे सफेद कपड़ों में एक लड़की नजर आई, उसके बाल खुले हुए थे...।"(पृष्ठ-210)

        एम. इकराम फरीदी जी का प्रथम उपन्यास जो की किशोरवर्ग का उपन्यास कहा जा सकता है। अंधविश्वास के विरुद्ध वैज्ञानिक चेतना का विकास करता है। वहीं प्रस्तुत उपन्यास शुद्ध रूप से एक हाॅरर उपन्यास है।

        अगर आप हाॅरर उपन्यास पढना पसंद करते हैं तो यह उपन्यास रोचक लगेगा। कहानी है, सस्पेंश है और अच्छे पात्र हैं।
       प्रस्तुत उपन्यास अपने अंदर बहुत सी घटनाओं को समेट हुए है। हम जिस समाज का एक भाग है उसी के अंदर बहुत कुछ अच्छा और बुरा घटित होता रहता है।‌लेकिन मानवता के नाते हमारा दायित्व यह बनता है की हम गलत के खिलाफ आवाज उठाकर अपने इंसान होने का परिचय दें । यह उपन्यास सिर्फ एक डायन होने या न होने का जिक्र भर नहीं है, बल्कि यह हमारे इंसान होने का वर्णन भी करती है।
आप चाहे उपन्यास मनोरंजन की दृष्टि से पढे पर उपन्यास की कुछ घटनाएं आपको अंदर तक कचोट जायेंगी।

उपन्यास में कुछ अलग है तो वह है लेखकीय- किसान अपना माल खुद बाजार में लाया है। लेखक के प्रकाशन संस्थान 'थ्रिल वर्ल्ड' की जानकारी है।
वहीं एक आर्टिकल स्वयं मेरा (गुरप्रीत सिंह) का है। शीर्षक- क्या लोकप्रिय साहित्य का दौर लौट रहा है? जिसमें वर्तमान लोकप्रिय जासूसी साहित्य के दिनों का वर्णन है।

उपन्यास- चैलेंज होटल- एक हाॅन्टेड पैलेस
लेखक- एम.इकराम फरीदी
प्रकाशन- थ्रिल वर्ल्ड
पृष्ठ- 256
मूल्य- 100₹
संस्करण- 15.09.2019(प्रथम संस्करण).  

उपन्यास में प्रकाशित मेरा आर्टिकल


3 comments:

  1. वाह, आपकी समीक्षा ने उपन्यास पढ़ने की जिज्ञासा जग दी

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  2. उपन्यास के प्रति उत्सुकता जगाता लेख। जल्द ही मंगवाकर पढ़ता हूँ।

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  3. उद्बुद्ध समीक्षा.
    बहुत बहुत बधाई.

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