स्पर्श - राजवंश
प्रस्तुत उपन्यास 'स्पर्श' राजवंश जी की कृति है। यह कहानी है एक लड़की दीपा की, जो परिस्थितियों से संघर्ष करती हुयी जीवन व्यतीत करती है। एक लड़की के जीवन संघर्ष की यह मार्मिक दास्तान है।
लोकप्रिय उपन्यास साहित्य की समृद्ध परम्परा में कुछ उपन्यास समय की धूल में लुप्तप्राय से हो गये। और जब जब उस धूल को हटाकर कुछ खोजने का प्रयास किया गया है तो कुछ अनमोल मोती हाथ लगे हैं।
मेरे इस समीक्षा ब्लॉग के अतिरिक्त, साहित्य संरक्षण ब्लॉग www.sahityadesh.blogspot.com पर ऐसे लेखकों और उपन्यास का वर्णन उपलब्ध है। गंगा ग्रंथागार- लखनऊ से प्रकाशित ऐसा ही एक उपन्यास मुझे मिला जो जासूसी उपन्यास साहित्य के आरम्भ के दौर का एक रोचक मर्डर मिस्ट्री युक्त उपन्यास है।
जयनारायण एक प्रतिष्ठित धनी व्यक्ति था। लेकिन उसे जान का खतरा था, इसलिए उसने अपने घर की पूर्ण सुरक्षा करवा रखी थी लेकिन एक रात वह घर के बाहर सड़क पर मृत पाया गया।
- जयनारायण कौन था?
- जयनारायण को किस से खतरा था?
- उसकी हत्या किसने की?
- वह सड़क पर मृत कैसे पाया गया?
आदि प्रश्नों के लिए आप पण्डित जगदीशकृष्ण जोशी जी का जासूसी उपन्यास 'प्रतिशोध' पढें।
कहानी मूर्ति चोर गिरोह की
बच्चे के दुश्मन
सपनों की दीवार- राजवंश
चारों ने एक दूसरी की ओर देखा। फिर कलाई की घड़ियां देखी। फिर निगाहें गेट की ओर उठ गई। उन निगाहों में एक बैचेनी थी। लेकिन फिर चारों नजरें निराश होकर गेट की ओर लौट आई।
राजेश अभी तक नहीं आया था। (प्रथम पृष्ठ)
उक्त दृश्य सामाजिक उपन्यासकार राजवंश द्वारा लिखे गये उपन्यास सपनों की दीवार का है।
मनुष्य अपने जीवन में बहुत से सपने देखता है और उन सपनों को वास्तविकता में बदलना भी चाहता है। कुछ लोग सपनों को वास्तविकता में बदलने के लिए सही रास्ता चुनते हैं और कुछ गलत रास्ता। यह कहानी उन लोगों की है जो अपने सपनों को सच करने के लिए गलत रास्ते पर चलते हैं।कजारिया नामक देश की एक खतरनाक संस्था है मैकाबर, जो विश्व के विभिन्न देशों से महत्वपूर्ण सूचनाएं चोरी करती हैं। विश्व पर अपना आधिपत्य स्थापित करने के लिए विभिन्न वैज्ञानिक शक्तियों का प्रयोग करती है।
इसी खतरनाक संस्था को खत्म करके के लिए विश्व के जासूस जा पहुंचते हैं कजारिया नामक देश।
मैकाबर सीरीज के तीन भाग है। प्रथम 'विकास और मैकाबर', द्वितीय 'विकास मैकाबर के देश में', और तृतीय/अंतिम भाग है 'मैकाबर का अंत।'
लोकप्रिय उपन्यास साहित्य में सुरेन्द्र मोहन पाठक जी को सर्वश्रेष्ठ मर्डर मिस्ट्री लेखक का पद प्राप्त है। उन्होंने सुनील और सुधीर सीरीज के मर्डर मिस्ट्री उपन्यास लिखे हैं।
होटल में खून पाठक जी द्वारा लिखा गया सुनील सीरीज का एक मर्डर मिस्ट्री उपन्यास है। सुनील चक्रवर्ती 'ब्लास्ट' नामक समाचार पत्र का एक खोजी पत्रकार है। जो पत्रकारिता के माध्यम से कुछ पुलिस केस भी हल करता है।
अब चर्चा करते हैं प्रस्तुत उपन्यास 'होटल में खून' की। जैसा की शीर्षक से ही स्पष्ट होता है कि एक होटल में खून होता है और उसी के अन्वेषण पर कथा का क्रमिक विकास होता है।
ढलती हुई रात के साथ होटल ‘ज्यूल बाक्स’ की रंगीनियां भी बढती जा रही थी । होटल का आर्केस्ट्रा वातावरण में पाश्चात्य संगीत की उत्तेजक धुनें प्रवाहित कर रहा था । जवान जोड़े एक दूसरे की बांहों में बांहें फंसाये संगीत की लय पर थिरक रहे थे । जो लोग नृत्य में रूचि नहीं रखते थे, वे डांस हाल के चारों ओर लगी मेजों पर बैठे अपने प्रिय पेय पदार्थों की चुस्कियां ले रहे थे। (उपन्यास अंश)
ऐसी चर्चा है की इस होटल में गुप्त रूप से अवैध जुआघर संचालित होता है।- सुनील को विश्वस्त सूत्रों से मालूम हुआ था कि ज्यूल बाक्स का मालिक माइक गुप्त रूप से एक जुआघर का संचालन कर रहा था।
इसी होटल में सुनील की आँखों के सामने एक कत्ल होता है लेकिन लेकिन सुनील के अतिरिक्त कोई और उस कत्ल की गवाही देने को तैयार नहीं। जब सुनील इस कत्ल के अपराधी तक पहुंचने की कोशिश करता है तो वह स्वयं एक खून के अपराध में मुजरिम बना दिया जाता है।
ऐसे अनेक प्रश्नों के उत्तर सुरेन्द्र मोहन पाठक जी द्वारा रचित उपन्यास 'होटल में खून' पढने पर मिलेंगे।
जहां गत वर्ष 2019 मैं मैंने सौ रचनाएँ पढी और उन पर समीक्षाएं प्रस्तुत की वहीं इस वर्ष 2020 में यह लक्ष्य 150 रचनाओं का है। जिस से मैं मात्र 10 कदम दूर हूँ। यह लक्ष्य दिसंबर 2020 तक पूर्ण जायेगा।
मेरे ब्लॉग के पाठकों का हार्दिक धन्यवाद मेरी समीक्षाओं को पढते हैं और उन पर अपने विचार व्यक्त करते हैं। हालांकि कुछ रचनाएँ पढने के बाद भी समयाभाव के कारण समीक्षा से वंचित रह जाती हैं।
अब चर्चा करते हैं सुरेन्द्र मोहन पाठक जी के उपन्यास 'बदसूरत चेहरे' पर।
शहर में इन दिनों कुछ रहस्यमय घटनाएं घटित होती हैं। एक रहस्यमय कत्ल और उस कत्ल के पश्चात शहर का कोई धनाढ्य व्यक्ति गायब हो जाता है।
पुलिस और प्रशासन घटनाओं से बहुत परेशान है और आमजन दहशत में है। लेकिन संयोग से एक कुबड़ा और एक लाश घटना का साक्षी 'ब्लास्ट' का रिपोर्टर सुनील चक्रवर्ती बन गया।
- यह रहस्यमयी कत्ल क्या थे?
- शहर से धनाढ्य व्यक्ति क्यों गायब हो जाते थे?
- कुबड़े व्यक्ति का रहस्य क्या था?
- क्या सुनील इस रहस्य को जान पाया?
इन दहशत भरी घटनाओं को जानने के लिए सुरेन्द्र मोहन पाठक जी का सुनील सीरीज का उपन्यास 'बदसूरत चेहरे' पढें।
औरत का घर कहां है...शतरूपा- यादेवन्द्र शर्मा 'चन्द्र'
'शतरूपा' हिंदी व राजस्थानी के प्रख्यात लेखक यादवेन्द्र शर्मा 'चन्द्र' का ऐसा उपन्यास है जो पुरुष मानसिकता की दुर्बलताओं को व्यस्त करता है और नारी के संघर्ष और उत्थान को प्रकट करता है। आज नारी विमर्श के बारे में खूब हो-हल्ले हो रहे हैं। यह ऐसा उपन्यास है जो नये जीवन के आयामों के यथार्थ को प्रकट करता है। भाषा सरल और शिल्प शैली रोचक है। - प्रकाशक
शतरूपा उपन्यास स्त्री के दर्द को उकेरती एक मार्मिक रचना है। घर और समाज में विभिन्न दुष्कर परिस्थितियों में निर्वाह करती स्त्री को कई रूपों में जीना पड़ता है। और ऐसे ही एक घिनौने घर में जी रही थी शतरूपा।लालची सास और शकी मिजाज पति के साथ शतरूपा का जीवन बहुत ही कठिन था। इस दर्द को वह अपनी सखी बन्नो के पास व्यक्त करती है- जब मनुष्य बिना किसी अपराध के दंड भोगता है तब वह उसे पूर्व जन्म के पापों का फल ही मानता है, बन्नों, मेरा पति मुझे चरित्रहीन समझता है। (पृष्ठ-38)
एक अधूरी कहानी...
जहाँ तक मेरी जानकारी है हिन्दी में तिलिस्मी साहित्य का आरम्भ देवकीनन्दन खत्री जी के उपन्यासों से ही माना जाता है। इनके लिए तिलिस्म, रहस्य-रोमांच से परिपूर्ण उपन्यास हिन्दी पाठकों के मध्य बहुत प्रसिद्ध रहे हैं और आज भी इनकी मांग बनी हुयी है।
गुप्त गोदना- देवकीनंदन खत्री |
एक औरत की व्यथा...
सुरसतिया- विमल मित्र
सुरसतिया उपन्यास 'साप्ताहिक हिन्दुस्तान' के 22 फरवरी 1970 के अंक में प्रकाशित हुआ और प्रकाशन के साथ ही इसने भारी प्रतिक्रिया जगा दी।....मध्यप्रदेश सरकार ने पुस्तक जब्त कर ली। मध्य प्रदेश के रायपुर नगर में लेखक के पुलते जलाए गए। (पृष्ठ- प्रकाशक की ओर से)
आखिर सुरसतिया में ऐसा क्या था कि उस पर इतनी तीव्र और कटु प्रतिक्रियाएं आरम्भ हो गयी। उपन्यास के आरम्भ में कुछ पत्र भी प्रकाशित किये गये हैं जो उपन्यास के पक्ष और विपक्ष दोनों को दर्शाते हैं। जहाँ कुछ पाठकों ने इस उपन्यास की सराहना की है तो वहीं कुछ पाठकों ने उपन्यास को गलत ठहराया है। अब सही क्या है और गलत क्या है यह पाठक के दृष्टिकोण पर निर्भर करता है।
कगार और फिसलन- विमल मित्र |
समय परिवर्तन की कथामुझे याद है- विमल मित्र/बिमल मित्र
मुजरिम फरार है...
भगोड़ा अपराधी- वेदप्रकाश कांबोज
विजय सीरीज, थ्रिलर उपन्यास
अपराधी हमेशा कानून की पकड़ से दूर भागने की कोशिश करता है। वह जितनी संभव कोशिश होती है, अपने अपराध को छुपाने और फिर कानून की गिरफ्त से दूर होने की कोशिश में रहता है। लेकिन कानून के पहरेदार भी इस कोशिश में रहते हैं की अपराधी पकड़ा जाये और उसे अपराध की सजा मिले।
अपराध, अपराधी और कानून का यह खेल सतत चलता रहता है। अपराध होते रहते हैं और कानून मुजरिमों को पकड़ता रहता है। 'भगोड़ा अपराधी' भी इसी तरह का उपन्यास है। यह एक फरार मुजरिम की कहानी है जिसे कानून के रक्षक पकड़ने के लिए सघर्षरत हैं।
भगोड़ा अपराधी- वेदप्रकाश कांबोज |
पांच मुजरिमों की लूटकथा
आखरी मुजरिम- वेदप्रकाश कबोज
कहते हैं चोर चोरी करना छोड सकता है लेकिन हेराफेरी नहीं। और जब चोर आर्थिक मुसीबत में हो तो वह कितनी भी कसमें खा ले अनंत वह अपने पुराने रास्ते पर लौट ही आता है।
वह उसकी मजबूरी हो सकती है या फिर आदत...
वेदप्रकाश कांबोज जी का उपन्यास 'आखिरी मुजरिम' पढा। यह पांच ऐसे लोगों की कहानी है जो किसी न किसी रूप से अपराध से संबंध रखते हैं।
जब अपराधी की किस्मत बदलती है
मुकद्दर मुजरिम का- वेदप्रकाश कांबोज
मनुष्य की किस्मत कब, कैसा खेल खेल जाये कुछ कहा नहीं जा सकता। कभी अर्श से फर्श और कभी फर्श से अर्श पर ले जाती है।आखिर कौन था गद्दार
गद्दार- वेदप्रकाश कांबोज
विजय-अलफांसे सीरीज
सूरीमा हिन्द महासागर में एक छोटा सा देश है, जिसमें कुछ छोटे-बड़े टापू शामिल थे। सिंगापुर की तरह देश का नाम भी सूरीमा था और उसकी राजधानी का नाम भी सूरीमा था। देश में राजतंत्र था और उसके शासक का नाम सुलेमान था। देश की आबादी मुसलमान थी। थोड़े बहुत हिंदू थे और थोड़े से क्रिश्चन भी थे।
सन् 1993 मुंबई सीरियल बम ब्लास्ट पर आधारित
नायक- बसंत कश्यप, थ्रिलर
सन् 1993 में मुंबई में हुये सीरियल वार बम धमाके तो आपको पता ही होंगे। कहीं पढा होगा, देखा होगा या फिर इसके विषय में कहीं सुना होगा।
इन धमाकों में दो नाम चर्चा में रहे थे एक थे अंडरवर्ल्ड के डाॅन दाउद इब्राहिम और दूसरा नाम चर्चा में रहा वह था फिल्म स्टार संजय दत्त।
प्रस्तुत उपन्यास 'नायक' लेखक बसंत कश्यप जी ने मुंबई बम धमाकों को आधार बना कर लिखा है। सत्य और कल्पना का इतना अच्छा मिश्रण मिलता है की पाठक के सामने एक-एक दृश्य साकार हो उठता है। इनका एक और उपन्यास है 'घायल आबरू' वह अजमेर के ब्लैकमेलिंग काण्ड पर आधारित है।
्एक सत्य घटना पर आधारित उपन्यास
घायल आबरू- बसंत कश्यप, सस्पेंश थ्रिलर
हालांकि वह कठोर जमीन पर भाग रही थी, फिर भी उसे महसूस हो रहा था कि उसके पांव दलदल में धंसे जा रहे हैं। वह समूची ताकत के साथ जैसे पांवों को दलदल से खींचकर आगे बढती जा रही थी। उसके जिस्म के ऊपर जो वस्त्र थे वे तार तार हो चुके थे। लगभग नग्न हुये अपने जिस्म की हालत पर वह आँसू बहाती जा रही थी, भागते हुये जिसकी तरफ उसने गरदन घुमाई।
भेड़िये जैसे मानव अपने भयावह पंजे फैलाए उसके करीब होते जा रहे थे। उसे विश्वास हो गया कि वह अपने नग्न बदन को भेड़ियों जैसे मानवों के पंजे से नहीं बचा सकती। वे पंजे उसे किसी भी क्षण दबोचने जा रहे हैं।
यह दृश्य है बसंत कश्यप जी के उपन्यास 'घायल आबरू' का। घायल आबरू नामक उपन्यास अजमेर(राजस्थान) में घटित एक सत्य घटना पर आधारित रचना है।
श्री वेदप्रकाश शर्मा जी ने समाज की कुछ घटनाओं पर उपन्यास लिखे हैं। इसी क्रम में मुझे बसंत कश्यप जी के दो उपन्यास मिले जो वास्तविक घटनाओं पर आधारित हैं।
उपन्यास 'घायल आबरू' अजमेर(राजस्थान) में 'स्कूल-काॅलेज' की बच्चियों के साथ लंबे समय तक घटित होते रहे दुराचार पर आधारित है। वहीं इनका गौरी पॉकेट बुक्स से प्रकाशित द्वितीय उपन्यास 'नायक' सजय दत्त और मुंबई बम ब्लास्ट पर आधारित है। गौरी पॉकेट से प्रकाशित होने वाला इनका प्रथम उपन्यास 'घायल आबरू' है।
समाज में बहुत कुछ ऐसा घटित होता है जिसे इज्जत के नाम पर दबा दिया/ लिया जाता है। और इसी कमजोरी का फायदा उठाकर असामाजिक तत्व शोषण चक्र चलाते रहते हैं।
बात करें प्रस्तुत उपन्यास की। यह अजमेर शहर को केन्द्र में रख कर लिया गया है। शहर में 'पंचशूल' नाम से एक ऐसा संगठन सक्रिय है जो प्रतिष्ठित परिवारों की लड़कियों का शोषण करता है और ब्लैकमेल भी। इस पंचशूल के पीछे कुछ राजनैतिक और धार्मिक संगठन के कर्ताधर्ता भी सक्रिय होते हैं।
वहीं शहर में कुछ नशे के व्यापारी भी समाज और देश को खोखला करने में लगे हुये हैं। दूसरी तरफ पंचशूल के पांच शख्स अपने खिलाफ उठने वाली आवाज को हमेशा के लिए खामोश भी कर देते हैं।
इंस्पेक्टर विक्रम इस अपराध के खिलाफ सक्रिय होता है- समाज के प्रतिष्ठित लोगों की आबरू को अपने गंदे हाथों का खिलौना बनाकर खेलने वाले अपराधियों को तलाश कर रहूंगा।
लेकिन कहीं न कहीं कोई न कोई बुराई के खिलाफ खड़ा हो ही जाता है। यहाँ एक रहस्यमयी बिल्ली सामने आती है। एक ऐसी बिल्ली जिसने अपराधी वर्ग में दहशत फैला दी।
सलेकी गहरी सोच में डूबा नजर आने लगा।
ठीक तभी।
मेज पर रखा फोन घनघनाया।
सलेकी ने हाथ बढाकर रिसीवर उठाकर माऊथपीस पर कुछ कहना चाहा तो नहीं कह पाया।
दूसरी तरफ उसके बोलने से पहले स्वर उभरा- "म्याऊ...म्याऊ....।"
"ब...बिल्ली ...बिल्ली...।"- अपने कानों के पर्दे से टकराकर बिल्ली की आवाज सुनकर वह पागलों की भाँति चीखा- " बिल्ली है फोन पर।"
- पंचशूल का रहस्य क्या था?
- ब्लैकमेल के काले धंधे के पीछे कौन थे?
- इंस्पेक्टर विक्रम कहां तक कामयाब रहा?
- धर्म, राजनीति और काले धंधे का परस्पर क्या संबंध था?
- बिल्ली का रहस्य क्या था?
- बिल्ली के कारण दहशत क्यों थी?
-उपन्यास कितना सत्य और कितना काल्पनिक है?
यह सब जानने के लिए बंसत कश्यप जी का उपन्यास 'घायल आबरू' पढें।
उपन्यास आरम्भ से ही रोचक होता चला जाता है। आरम्भ जहाँ एक लड़की की मजबूरी से होता है, वहीं बाद में नशे पर कहानी घूमती है। उपन्यास में राजनीति का अच्छा चरित्र है, कैसे राजनेता अपने स्वार्थ के लिए एक दूसरे को बलि का बकरा बना देते हैं।
उपन्यास में ऐसे लोगों का बखूबी चित्रण मिलता है जो सफदेपोश होकर काले धंधे करते हैं।
मुझे उपन्यास में बिल्ली के दृश्य बहुत रोचक लगे। वे दृश्य उपन्यास में/ अपराधी वर्ग में दहशत पैदा करने में सक्षम है। हां लेखक ने सब तर्क संगत लिखा है। पाठक को संतुष्टि होगी। आप उपन्यास पढकर जान सकते हैं।
एक दृश्य देखें, अपराधियों में बिल्ली का कैसा खौफ है-
"म्याऊ...म्याऊ...।"
वे सभी बुरी तरह चौंके, इस बार बिल्ली की आवाज मेज के पीछे से नहीं आयी थी।
"बिल्ली उधर है।"- कोई चीखा- " रियाज बिल्ली तुम्हारे पीछे की तरफ है।"
अचानक...
उसके हलक से चीख उबल गयी। उसके चेहरे पर पंजा टकराया था। सुईयों की नोक की भांति पंजे के नाखून उसके चेहरे को चीरते चले गये।
उपन्यास में पुलिस की कार्य प्रणाली पर भी सवाल उठते हैं। और ऐसा देखा भी गया है की अपराध होते रहते हैं और पुलिस बेखबर रहती है। यहाँ भी पुलिस दोनों तरह के अपराधियों तक पहुंचने में नाकाम रहती है।
-बड़े अफसोस की बात है कि पुलिस अपराधियों तक नहीं पहुँच पा रही है जबकि अपराधियों को एक एक कर रहस्यमयी मौत का शिकार बनाया जा रहा है। काली बिल्ली और जहरीला पंजा जिंदाबाद के नारे शहर की दीवारों पर नजर आने लगे हैं। शहर का माहौल पुलिस की खिल्ली उड़ा रहा है। जबकि पुलिस यह तक नहीं जानती हत्यारा आखिर कौन हो सकता है।
उपन्यास में कुछ एक्शन दृश्य भी हैं, जो काफी रोमांच पैदा करते हैं। हालांकि उपन्यास में रोमांच और सस्पेंश के लिए और काफी जगह है।
एक दृश्य देखें इंस्पेक्टर विक्रम की फाईट का-
विक्रम ने देखा साया दूसरी बार चाकू घोपने जा रहा था कि विक्रम ने अपने जिस्म को झुकाई देकर चाकू के वार से बचा लिया। अपने ही झोंके में चाकू वाला कोठरी के लकड़ी वाले दरवाजे से टकराया। उसके हाथ का चाकू लकड़ी के दरवाजे में धंस गया था।
ठीक इसी वक्त ।
विक्रम की टांंग लाठी की भांति घूमकर चाकू वाले की पीठ से टकराई। चाकूबाज के हाथ का चाकू लकड़ी के दरवाजे में फंसा रह गया।
हमारे समाज में लड़कियों को बहुत कमजोर बना दिया जाता है। अगर हम लड़कियों में हिम्मत और ताकत के भाव भरें तो वे वैसा ही महसूस करेंगी। इस पर उपन्यास की एक पात्र का कथन देखें- लड़की कमजोर होती है यह बात पूरी दुनिया जानती है। लेकिन दुनिया यह भी जानती है कि लड़की कितनी कमजोर होती है वक्त पड़ने पर उतनी बहादुर और मजबूत भी हुआ करती है।
एक बार आप गूगल पर सर्च कर लीजिएगा और फिर उपन्यास को पढे तो आपको पता चलेगा की उपन्यास कितना वास्तविकता के समीप है। लेखक महोदय धन्यवाद के पात्र हैं जो उन्होंने एक घटना को उपन्यास का रूप दिया। हालांकि यह एक थ्रिलर उपन्यास है इसलिए स्वाभाविक है समापन अलग और बहुत अलग होगा। क्योंकि वास्तविक घटनाओं का समापन होना कठिन होता है और जब बीच में न्यायालय (?) आ जाये तो कठिन शब्द असंभव में परिवर्तित हो जाता है तब एक लेखक ही होता है जो उस घटना को अपनी कल्पना शक्ति से एक मुकाम तक पहुंचाता है।
उपन्यास में बहुत कुछ रहस्य के पीछे छुपा हुआ है वह तो उपन्यास पढने पर ही जाना जा सकता है।
एक वास्तविक घटना पर आधारित 'घायल आबरू' उपन्यास हमारे समाज की एक ऐसी तस्वीर प्रस्तुत करता है जो सभ्य समाज को नीची नजर करने के लिए मजबूर कर देता है।
यह उपन्यास पढना चाहिये और समाज में बच्चियों को इतना सशक्त बनाये की वे कठिन से कठिन परिस्थितियों का हिम्मत से सामना कर पातें।
धन्यवाद।
उपन्यास - घायल आबरू
लेखक- बसंत कश्यप
प्रकाशक- गौरी पॉकेट बुक्स
बिल्ली पर आधारित कुछ रोचक उपन्यास
काली बिल्ली वाला- कैप्टन देवेश