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Thursday, 31 December 2020

410. स्पर्श - राजवंश

एक मासूम लड़की की दर्द कहानी
स्पर्श - राजवंश
दीपा ने मुड़कर देखा, पहाड़ी के पीछे से चाँद निकल आया था। अँधकार अब उतना न था। नागिन की तरह बलखाती पगडण्डी अब साफ नजर आती थी। उजाले के कारण मन की घबराहट कुछ कम हुयी और उसके पाँव तेजी से अपनी मंजिल की ओर बढने लगे। 
    लोकप्रिय उपन्यास साहित्य में राजवंश एक चर्चित नाम रहा है। राजवंश का मूल नाम आरिफ माहरवी था। वे राजवंश नाम से सामाजिक उपन्यास लेखन करते थे। 
प्रस्तुत उपन्यास 'स्पर्श' राजवंश जी की कृति है। यह कहानी है एक लड़की दीपा की, जो परिस्थितियों से संघर्ष करती हुयी जीवन व्यतीत करती है। एक लड़की के जीवन संघर्ष की यह मार्मिक दास्तान है। 

Sunday, 27 December 2020

408. प्रतिशोध- जगदीशकृष्ण जोशी

पचास के दशक का जासूसी उपन्यास
प्रतिशोध- पण्डित जगदीशकृष्ण जोशी

लोकप्रिय उपन्यास साहित्य की समृद्ध परम्परा में कुछ उपन्यास समय की धूल में लुप्तप्राय से हो गये। और जब जब उस धूल को हटाकर कुछ खोजने का प्रयास किया गया है तो कुछ अनमोल मोती हाथ लगे हैं।
    मेरे इस समीक्षा ब्लॉग के अतिरिक्त, साहित्य संरक्षण ब्लॉग www.sahityadesh.blogspot.com पर ऐसे लेखकों और उपन्यास का वर्णन उपलब्ध है। 
गंगा ग्रंथागार- लखनऊ से प्रकाशित ऐसा ही एक उपन्यास मुझे मिला जो जासूसी उपन्यास साहित्य के आरम्भ के दौर का एक रोचक मर्डर मिस्ट्री युक्त उपन्यास है। 

    पण्डित जगदीशकृष्ण जोशी द्वारा लिखित 'प्रतिशोध' जो सन् 1949 में प्रकाशित हुआ था।

   जयनारायण एक प्रतिष्ठित धनी व्यक्ति था। लेकिन उसे जान का खतरा था, इसलिए उसने अपने घर की पूर्ण सुरक्षा करवा रखी थी लेकिन एक रात वह घर के बाहर सड़क पर मृत पाया गया।
- जयनारायण कौन था?
- जयनारायण को किस से खतरा था?
- उसकी हत्या किसने की?
- वह सड़क पर मृत कैसे पाया गया?

आदि प्रश्नों के लिए आप पण्डित जगदीशकृष्ण जोशी जी का जासूसी उपन्यास 'प्रतिशोध' पढें।

407. दूसरा चेहरा- एच. इकबाल

कहानी हत्या और ब्लैकमेलर की
दूसरा चेहरा- एच. इकबाल

यात्रा के दौरान मेरे बैग में दो-चार किताबें रहती ही हैं। जब समय मिलता है तो पढ लेता हूँ। विद्यालय में शीतकालीन अवकाश के दौरान घर जाते समय ट्रेन में एच. इकबाल नामक लेखक का उपन्यास पढा।
   लोकप्रिय साहित्य में बहुत लेखकों ने नाम कमाया है, कुछ प्रसिद्धि पा गये और कुछ गुमनाम हो गये।
  एच. इकबाल ऐसे ही लेखक रहे हैं, जिनका नाम अब कम ही सुनाई देता है। 
 उपन्यास कथानक-
  प्रस्तुत उपन्यास की कहानी टीकमगढ नामक शहर पर केन्द्रित है जहाँ कुछ दिनों से ब्लैकमेलिंग और कत्ल की घटनाएं हो रही हैं।
"...इस समय टीकमगढ़ की आधी आबादी उसके कारण तंग आ चुकी है।"
"कारण भी बताइये...।"
"कत्ल और ब्लैकमेलिंग।"
"अच्छा... ।"
"हां, पिछले सप्ताह में पूरे 15 कत्ल हो चुके हैं। और यह सब सुंदर लोगों के थे। यूं समझो कि अपराधी हर अच्छी सूरत वालों का दुश्मन है।" -
(पृष्ठ-45)

टीकमगढ एस.पी. माथुर जी के बुलाने पर विनोद और हमीद नामक जासूस इस समस्या का खात्मा करके टीकमगढ आते हैं।
     उपन्यास की कहानी एक अज्ञात ब्लैकमेलर पर आधारित है जिसने जनता को परेशान कर रखा है और एक समस्या कत्ल की है। शहर में सिलसिलेवार कत्ल हो रहे हैं। स्थानीय पुलिस के असफ़ल होने पर विनोद-हमीद इस समस्या का समाधान करते हैं।  

406. रंगरलियां- राजवंश

 कहानी मूर्ति चोर गिरोह की

रंगरलिया- राजवंश

लोकप्रिय उपन्यास साहित्य में सामाजिक उपन्यास लेखक की धाराएं एक नाम काफी चर्चित रहा और वह नाम है 'राजवंश'।   
मैंने इन दिनों राजवंश के दो उपन्यास पढे। एक 'सपनों‌ की दीवार' और दूसरा 'रंगरलियां'।
यहाँ हम 'रंगरलियां' उपन्यास के कथानक पर चर्चा करते हैं।
         उपन्यास की कहानी अशोक नामक एक शिक्षित, एथलेटिक्स और बेरोजगार युवक पर केन्द्रित है। जो मजबूरी में एक मूर्तिचोर गिरोह के संपर्क में आ जाता है और वहाँ आने पर उसे पता चलता है कि इसी गिरोह ने उसके भाई की जान ली थी।
   अपने भाई की हत्या का बदला लेने की चाह में अशोक की माँ और बहन की जान भी दांव पर लग जाती है।
  तब अशोक  महारानी जी के संपर्क में आता है। महारानी की एक कीमती मूर्ति चोरी हो गयी थी, जो कभी अशोक ने गिरोह में काम करते वक्त चोरी की थी। 
अशोक के भाई की हत्या क्यों हुयी?
- अशोक का भाई चोर क्यों बना?
- मूर्ति चोर गिरोहकार कौन था?
- अशोक ने मूर्ति क्यों चोरी की?
महारानी और अशोक परस्पर मिले तो क्या परिणाम आया?
- क्या अशोक अपने भाई की हत्या का बदला ले पाया?
- गिरोह अशोक को क्यों मारना चाहता था?
इन प्रश्नों के उत्तर राजवंश जी द्वारा रचित एक छोटे से उपन्यास 'रंगरलियां' में मिलेंगे। 

405. सपनों की दीवार- राजवंश

बच्चे के दुश्मन

सपनों‌ की दीवार- राजवंश

चारों ने एक दूसरी की ओर देखा। फिर कलाई की घड़ियां देखी। फिर निगाहें गेट की ओर उठ गई। उन निगाहों में एक बैचेनी थी। लेकिन फिर चारों‌ नजरें निराश होकर गेट की ओर लौट आई।
राजेश अभी तक नहीं आया था। (प्रथम पृष्ठ)

उक्त दृश्य सामाजिक उपन्यासकार राजवंश द्वारा लिखे गये उपन्यास सपनों की दीवार का है। 

सपनों की दीवार- राजवंश
   मनुष्य अपने जीवन में बहुत से सपने देखता है और उन सपनों को वास्तविकता में बदलना भी चाहता है। कुछ लोग सपनों को वास्तविकता में बदलने के लिए सही रास्ता चुनते हैं और कुछ गलत रास्ता। यह कहानी उन लोगों की है जो अपने सपनों को सच करने के लिए गलत रास्ते पर चलते हैं। 

Tuesday, 15 December 2020

404. जंक्शन बिलारा- अकरम इलाहाबादी

 मौत की गाड़ी...
जंक्शन बलारा- अकरम इलाहाबादी

बलारा जंक्शन
बलारा ढाई-तीन सौ छोटे बड़े मकानों का एक औसत दर्जे का कस्बा था। यहाँ कि आबादी किसानो, जमींदारों और मजदूरों और देहाती महाजनों पर निर्भर थी। 
    लेकिन इस छोटे से कस्बे की शांति को भंग करती थी एक ट्रेन। - बलारा जंक्शन से आधी रात के सन्नाटे में एक भयंकर मौत की रेल गुजरती थी। बिलकुल काली और भयानक जो कहां से आती और कहां जाती है किसी को नहीं मालूम स्टेशन मास्टर और स्टेशन का स्टाफ भी इस रात आठ बजे ही स्टेशन छोड़कर भाग जाते और स्टेशन से दूर दूर तक की सीमा में आदमी तो क्या जानवर तक दिखाई नहीं पड़ते। इस विचित्र रेल के बारे में यहाँ प्रसिद्ध था कि जो कोई उसे देख लेता है तुरंत मर जाता है। जब वह आने लगती है तो वातावरण में एक भयानक सी सीटी गूंजती है। सिग्नल अपने आप गिर जाता है, प्लेटफार्म की घण्टी अपने आप बजने लग जाती है। ...बलारा स्टेशन का मास्टर कहता है कि उसमे केवल एक बार इस गाड़ी को बंद कमरे की खिड़की से देखा था। पच्चीस वर्ष पहले की दुर्घटना में मरे हुये मुर्दे चलाते हैं। वह मुर्दा की रेल है। जिसके इंजन के सिर पर हैडलाइट की जगह मुर्दे की खोपड़ी दिखाई पड़ती है।

Tuesday, 8 December 2020

403. मैकाबर का अंत- वेदप्रकाश शर्मा

आखिर कौन है मैकाबर और कजारिया?
मैकाबर का अंत - वेदप्रकाश शर्मा
मैकाबर सीरीज का तृतीय/अंतिम भाग

कजारिया नामक देश की एक खतरनाक संस्था है मैकाबर, जो विश्व के विभिन्न देशों से महत्वपूर्ण सूचनाएं चोरी करती हैं। विश्व पर अपना आधिपत्य स्थापित करने के लिए विभिन्न वैज्ञानिक शक्तियों का प्रयोग करती है।
     इसी खतरनाक संस्था को खत्म करके के लिए विश्व के जासूस जा पहुंचते हैं कजारिया नामक देश।
मैकाबर सीरीज के तीन भाग है। प्रथम 'विकास और मैकाबर', द्वितीय 'विकास मैकाबर के देश में', और तृतीय/अंतिम भाग है 'मैकाबर का अंत।' 

   अब हम यहाँ इसी अंतिम भाग पर चर्चा करते हैं। यह तृतीय भाग जासूस मित्रों (विजय-विकास, बागारोफ, ग्रिफित, माइक, फुचिंग) के मैकाबर में पहुंचने और फिर मैकाबर के शक्तिशाली सम्राज्य से टकराने की कथा है। कैसे जासूस मित्र 'मैकाबर का अंत' करते हैं। यह उपन्यास पढने पर ही पता चलता है।

Monday, 7 December 2020

402. विकास मैकाबर के देश में- वेदप्रकाश शर्मा

एक खतरनाक यात्रा
विकास मैकाबर के देश में
मैकाबर सीरीज का द्वितीय भाग

वेदप्रकाश शर्मा जी की 'मैकाबर' एक एक्शन सीरीज है, जिसके तीन भाग हैं। यहाँ इस सीरीज के द्वितीय भाग 'विकास मैकाबर के देश में' की चर्चा करते हैं।
    यह कहानी 'विकास और मैकाबर' उपन्यास का द्वितीय भाग है। प्रथम भाग में मैकाबर की दहशत  संपूर्ण विश्व पर छा जाती है और मैकाबर कुछ जासूसों को गायब कर देता है।
      शेष बचे जासूस मित्र मैकाबर नामक खतरनाक संस्था को खत्म करने की यात्रा पर निकलते हैं। प्रस्तुत उपन्यास उसी यात्रा पर आधारित है। 
इस उपन्यास को मुख्यतः चार भागों में बांट सकते हैं।
प्रथम - वायुमार्ग से यात्रा करने वाले जासूस
द्वितीय-  जलमार्ग से यात्रा करने वाले जासूस
तृतीय- विकास और चीनी जासूस फुचिंग की लडा़ई
चतुर्थ- कजारिया देश का वर्णन जिसमें मैकाबर संस्था का वर्णन, लार्बिटा, अलफांसे आदि।  

Sunday, 6 December 2020

401. विकास और मैकाबर- वेदप्रकाश शर्मा

एक खतरनाक संस्था से टकराव
विकास और मैकाबर- वेदप्रकाश शर्मा
मैकाबर सीरीज का प्रथम भाग
 वेदप्रकाश शर्मा जी की 'विजय- विकास' सीरीज में मैकाबर शृंखला के तीन उपन्यास हैं। 'विकास और मैकाबर', 'विकास मैकाबर के देश में',  और 'मैकाबर का अंत'।
     इस शृंखला के प्रथम उपन्यास 'विकास और मैकाबर' पर चर्चा करते हैं। 
   मैकाबर अपराधियों की एक खतरनाक संस्था है और जिनका आतंक विश्व में फैल रहा है। कजारिया नामक देश से संचालित यह संस्था भारत में भी अपनी दहशत फैलाती है।
     भारत के प्रसिद्ध वैज्ञानिक प्रोफेसर अरोड़ा के मूत्र को मैकाबर चुराना चाहता है और इस के लिए वह अंतरराष्ट्रीय अपराधी अलफांसे को हायर करते हैं।
विजय-विकास और भारतीय सिक्रेट सर्विस इस मूत्र चोरी को रोकना चाहती है।
- मैकाबर संस्था की वास्तिकता क्या है?
- वह भारतीय वैज्ञानिक का मूत्र क्यों चुराना चाहती है?
- क्या इस चोरी में अलफांसे सफल हो पाया?
- क्या विकास और उसके साथी इस चोरी को रोक पाये?
    यह सब जान ने के लिए आपको 'वेदप्रकाश शर्मा जी' का उपन्यास 'विकास और मैकाबर' पढना होगा।

Friday, 4 December 2020

400. होटल में खून- सुरेन्द्र मोहन पाठक

 तलाश एक कातिल की
होटल में खून- सुरेन्द्र मोहन पाठक
सुनील सीरीज-03


लोकप्रिय उपन्यास साहित्य में सुरेन्द्र मोहन पाठक जी को सर्वश्रेष्ठ मर्डर मिस्ट्री लेखक का पद प्राप्त है। उन्होंने सुनील और सुधीर सीरीज के मर्डर मिस्ट्री उपन्यास लिखे हैं।
      होटल में खून पाठक जी द्वारा लिखा गया सुनील सीरीज का एक मर्डर मिस्ट्री उपन्यास है। सुनील चक्रवर्ती 'ब्लास्ट' नामक समाचार पत्र का एक खोजी पत्रकार है। जो पत्रकारिता के माध्यम से कुछ पुलिस केस भी हल करता है।
     अब चर्चा करते हैं प्रस्तुत उपन्यास 'होटल में खून' की। जैसा की शीर्षक से ही स्पष्ट होता है कि एक होटल में खून होता है और उसी के अन्वेषण पर कथा का क्रमिक विकास होता है।
   ढलती हुई रात के साथ होटल ‘ज्यूल बाक्स’ की रंगीनियां भी बढती जा रही थी । होटल का आर्केस्ट्रा वातावरण में पाश्चात्य संगीत की उत्तेजक धुनें प्रवाहित कर रहा था । जवान जोड़े एक दूसरे की बांहों में बांहें फंसाये संगीत की लय पर थिरक रहे थे । जो लोग नृत्य में रूचि नहीं रखते थे, वे डांस हाल के चारों ओर लगी मेजों पर बैठे अपने प्रिय पेय पदार्थों की चुस्कियां ले रहे थे। (उपन्यास अंश)
    ऐसी चर्चा है की इस होटल में गुप्त रूप से अवैध जुआघर संचालित होता है।- सुनील को विश्वस्त सूत्रों से मालूम हुआ था कि ज्यूल बाक्स का मालिक माइक गुप्त रूप से एक जुआघर का संचालन कर रहा था।
     इसी होटल में सुनील की आँखों‌ के सामने एक कत्ल होता है लेकिन लेकिन सुनील के अतिरिक्त कोई और उस कत्ल की गवाही देने को तैयार नहीं। जब सुनील इस कत्ल के अपराधी तक पहुंचने की कोशिश करता है तो वह स्वयं एक खून के अपराध में मुजरिम बना दिया जाता है। 

होटल ज्यूल बाॅक्स में जुआघर चल रहा था?
- क्या सुनील उस जुआघर का पता लगा पाया?
- होटल में किसका खून हुआ?
- होटल में खून किसने और क्यों किया?
- क्या असली अपराधी पकड़ा गया?
- सुनील पर किसके कत्ल का आरोप लगा?

ऐसे अनेक प्रश्नों के उत्तर सुरेन्द्र मोहन पाठक जी द्वारा रचित उपन्यास 'होटल में खून' पढने पर मिलेंगे।

Tuesday, 1 December 2020

399. बदसूरत चेहरे- सुरेन्द्र मोहन पाठक

 कुबड़ों की दहशत
बदसूरत चेहरे- सुरेन्द्र मोहन पाठक, उपन्यास 
सुनील सीरीज-04

इस माह मेरे द्वारा पढे जाने वाला यह पांचवा उपन्यास है। और सुरेन्द्र मोहन पाठक जी का इस माह पढे जाने वाला यह चौथा उपन्यास है। और प्रस्तुत उपन्यास 'बदसूरत चेहरे' के साथ 'स्वामी विवेकानंद पुस्तकालय' ब्लॉग पर मेरे द्वारा पढी गयी चार सौ रचनाओं पर समीक्षक पूर्ण हो जायेगी।

जहां गत वर्ष 2019 मैं मैंने सौ रचनाएँ पढी और उन पर समीक्षाएं प्रस्तुत की वहीं इस वर्ष 2020 में यह लक्ष्य 150 रचनाओं का है। जिस से मैं मात्र 10 कदम दूर हूँ। यह लक्ष्य दिसंबर 2020 तक पूर्ण जायेगा।
   मेरे ब्लॉग के पाठकों का हार्दिक धन्यवाद मेरी समीक्षाओं को पढते हैं और उन पर अपने विचार व्यक्त करते हैं। हालांकि कुछ रचनाएँ पढने के बाद भी समयाभाव के कारण समीक्षा से वंचित रह जाती हैं।
   अब चर्चा करते हैं सुरेन्द्र मोहन पाठक जी के उपन्यास 'बदसूरत चेहरे' पर।
      शहर में इन दिनों कुछ रहस्यमय घटनाएं घटित होती हैं। एक रहस्यमय कत्ल और उस कत्ल के पश्चात शहर का कोई धनाढ्य व्यक्ति गायब हो जाता है।
     पुलिस और प्रशासन घटनाओं से बहुत परेशान है और आमजन दहशत में है। लेकिन संयोग से एक कुबड़ा और एक लाश घटना का साक्षी 'ब्लास्ट' का रिपोर्टर सुनील चक्रवर्ती बन गया।
यह रहस्यमयी कत्ल क्या थे?
- शहर से धनाढ्य व्यक्ति क्यों गायब हो जाते थे?
- कुबड़े व्यक्ति का रहस्य क्या था?
- क्या सुनील इस रहस्य को जान पाया?

    इन दहशत भरी घटनाओं‌ को जानने के लिए सुरेन्द्र मोहन पाठक जी का सुनील सीरीज का उपन्यास 'बदसूरत चेहरे' पढें।
   

सुनील का मित्र है जुगल किशोर जिसे सब बंदर ही कहते हैं। लड़कियों और पार्टियों का शौकीन है जुगल किशोर।

Tuesday, 17 November 2020

398. सफेद चूहा- वेदप्रकाश शर्मा

कहानी चमगादड़ की
सफेद चूहा- वेदप्रकाश शर्मा
किस्सा अफ्रीका के जंगलों में मौजूद जाकिर नामक एक कबीले से शुरू हुआ गुरु। इस कबीले के लोग चमगादड़ के पुजारी हैं। जो चमगादड़ उनके पास था वह पुरातत्व दुनिया के लिए एक भेद है । अफ्रीकी सरकार ने संग्राम को उस चमगादड़ की खोज में लगाया था। जैकसन आदि पहले ही उस चमगादड़ के चक्कर में थी।
        वह एक चमगादड़ था जिसे हर कोई प्राप्त करना चाहता था। अफ्रीका से अमेरिका और भारत तक के लोग इस चमगादड़ के लिए संघर्ष कर रहे थे।
 
लोकप्रिय साहित्य में वेदप्रकाश शर्मा सस्पेंश के बादशाह माने जाते हैं‌। उनका एक विशाल पाठकवर्ग है। वेद जी का नाम लोकप्रिय साहित्य में सर्वाधिक लोकप्रिय लेखक के रूप में जाना जाता है।

Wednesday, 11 November 2020

397. साँप की बेटी- कर्नल रंजीत

कर्नल रंजीत की अजमेर यात्रा
साँप की बेटी- कर्नल रंजीत

धरती के सीने में छिपी एक रहस्यमयी बस्ती और उसमें होने वाले गैरकानूनी कारनामों के बाद भयानक हत्याओं और खौफनाक घटनाओं से भरपूर कर्नल रंजीत का सनसनीखेज जासूसी उपन्यास- 'सांप की बेटी' । इसे पढ़ना आरम्भ करते ही आप घटनाओं के रहस्यमय ताने-बाने में खो जाएंगे और उपन्यास को पूरा किए बिना चैन नहीं लेंगे। (उपन्यास आवरण पृष्ठ से)
    हिंदी लोकप्रिय उपन्यास साहित्य में कर्नल रंजीत का नाम शिखर पर रहा है। हालांकि यह भी एक रहस्य है कि कर्नल रंजीत नाम‌ के पीछे कौन था? लेकिन कर्नल रंजीत द्वारा सृजित पात्र मेजर बलवंत उपन्यास साहित्य में अत्यंत प्रसिद्ध रहा है। कभी हिंदी पॉकेट में चर्चित यह पात्र मनोज पॉकेट बुक्स के पास आ गया।
 मेजर बलवंत ने लॉ की परीक्षा प्रथम श्रेणी में पास की थी और विधि-विशेषज्ञ बनने की खुशी में उसने अपने सहकर्मियों को शिकार का निमन्त्रण दिया था। मेजर बलवंत अपने सहयोगी सोनिया, विनोद मल्होत्रा और अशोक के साथ राजस्थान के अजमेर जिले के नसीराबाद के जंगलों में शिकार खेलने आया था। लेकिन मौजमस्ती और शिकार का आनंद तब खत्म हो गया जब उन्हें जंगल में एक लाश मिली। उस लाश के पास एक बुजुर्ग व्यक्ति भी बेहोश अवस्था में मिला था।

Thursday, 5 November 2020

396. काॅनमैन- सुरेन्द्र मोहन पाठक

एक ठग पुरूष की कथा
काॅनमैन- सुरेन्द्र मोहन पाठक, 
मर्डर मिस्ट्री, सुनील सीरीज-122

 कियारा को whatasapp पर न्यूयॉर्क के एक नामचीन बैंक में वाईस प्रसिडेंट के पद पर कार्यरत आदित्य खन्ना का invite आता है। और फिर एक दिन वह कियारा को शादी के लिए राजी कर लेता है। लेकिन लौटते से पहले वह अपने नाम सारे गोल्ड बिस्किस्ट्स, जेवर, नकद डाॅलर और सिक्योरिटी बांड कन्साइनमेंट से भारत भेजता है, और डयूटी में कुछ कमी हो जाने से कियारा को अपनी जायदाद के बडे़ हिस्से से भरपाई करनी पड़ती है। लेकिन जब कस्टम्स से कन्साइनमेंट लेने पहुंचती है, तो उसके हाथ कुछ नहीं आता।     
   फिर छह महीने बाद पुलिस उसके दरवाजे पर आदित्य खन्ना के खून के सिलसिले में हाजिर हो जाती है। (अंतिम आवरण पृृृष्ठ से) 
  - आदित्य खन्ना कौन था?
-  कंसाइनमेंट का सामान कहां गायब हो गया?
-  छह महीने बाद आदित्य का खून किसने किया?
- कियारा का इस खून से क्या संबंध था?

जानने के लिए पढें मर्डर मिस्ट्री लेखन के बादशाह सुरेन्द्र मोहन पाठक जी का सुनील सीरीज का उपन्यास -काॅनमैन। 

Friday, 30 October 2020

395. साबरमती का संत- यशपाल जैन

राष्ट्रपिता गांधी जी की जीवन यात्रा 
साबरमती का संत- यशपाल जैन
2 अक्टूबर 1869 इस्वी को गाँधी जी का जन्म गुजरात के पोरबंदर नामक स्थान पर हुआ था। 02 अक्टूबर को गांधी जयंती मनाते हैं। तो मेरी हार्दिक इच्छा थी इस माह गांधी साहित्य को पढने की। मेरे विद्यालय पुस्तकालय में‌ गांधी साहित्य से संबंधित पुस्तकों की संख्या काफी है। मैंने दो पुस्तकों का चयन किया था पर पढ एक ही पाया।
     'साबरमती के संत' पुस्तक गाँधी जी के जीवन और विचारों का संक्षिप्त संकलन है, इस पुस्तक के लेखक हैं यशपाल जैन।
   इस पुस्तक के दो खण्ड हैं प्रथम खण्ड है जीवन झाँकी और द्वितीय खण्ड है में विचार, शिक्षा और आज के प्रश्न समाहित हैं।
   
हालांकि इस रचना में गाँधी जी के जीवन का संक्षिप्त वर्णन है फिर भी बहुत कुछ समेटा गया है। गाँधी जी के जीवन का आरंभ, दक्षिण अफ्रीका का संघर्ष, भारतीय राजनीति में प्रवेश, स्वतंत्रता संग्राम और मृत्यु तक।

Sunday, 25 October 2020

394. वापसी- यादवेन्द्र शर्मा 'चन्द्र'

एक औरत की व्यथा
वापसी/ हूं गोरी किण पीव री- यादवेन्द्र शर्मा 'चन्द्र'

 राजस्थानी साहित्य में यादवेन्द्र शर्मा 'चन्द्र' जी का अपना एक विशिष्ट स्थान है। उनकी रचनाओं में राजस्थानी भाषा की मिठास, लोक संस्कृति का चित्रण और सामाजिक समस्याओं का अनूठा चित्रण चित्रण मिलता है। 
     इन दिनों मैंने यादवेन्द्र शर्मा जी की तीन अनुवादित रचनाएं पढी हैं। 'मिनखखोरी'(राजस्थानी- जमारो) कहानी संग्रह और दो उपन्यास 'शतरूपा' और प्रस्तुत उपन्यास 'वापसी'(राजस्थानी- हूं गौरी किण पीव री)।
    यह तीनों रचनाएँ समाज में स्त्री की भूमिका और पुरूष के वर्चस्व को रेखांकित करती हैं।
    अब बात करते हैं 'वापसी' उपन्यास की, यह राजस्थानी भाषा के चर्चित उपन्यास 'हूं गौरी किण पीव री' का अनुवाद है। वैसे राजस्थानी और हिन्दी में विशेष अंतर नहीं है। इसलिए अनुवाद पढते समय वहीं आनंद आता है जो मूल कृति को पढते वक्त महसूस होता है। वैसे भी अनुवाद में हल्की सी आंचलिक शब्दावली प्रयुक्त है। 

Friday, 23 October 2020

393. शतरूपा- यादवेन्द्र शर्मा 'चन्द्र'

औरत का घर कहां है...
शतरूपा- यादेवन्द्र शर्मा 'चन्द्र'

'शतरूपा' हिंदी व राजस्थानी के प्रख्यात लेखक यादवेन्द्र शर्मा 'चन्द्र' का ऐसा उपन्यास है जो पुरुष मानसिकता की दुर्बलताओं को व्यस्त करता है और नारी के संघर्ष और उत्थान को प्रकट करता है। आज नारी विमर्श के बारे में खूब हो-हल्ले हो रहे हैं। यह ऐसा उपन्यास है जो नये जीवन के आयामों के यथार्थ को प्रकट करता है। भाषा सरल और शिल्प शैली रोचक है। - प्रकाशक
शतरूपा उपन्यास स्त्री के दर्द को उकेरती एक मार्मिक रचना है। घर और समाज में विभिन्न दुष्कर परिस्थितियों में निर्वाह करती स्त्री को कई रूपों में जीना पड़ता है।  और ऐसे ही एक घिनौने घर में जी रही थी शतरूपा। 

     लालची सास और शकी मिजाज पति के साथ शतरूपा का जीवन बहुत ही कठिन था। इस दर्द को वह अपनी सखी बन्नो के पास व्यक्त करती है- जब मनुष्य बिना किसी अपराध के दंड भोगता है तब वह उसे पूर्व जन्म के पापों का फल ही मानता है, बन्नों, मेरा पति मुझे चरित्रहीन समझता है। (पृष्ठ-38)

Tuesday, 20 October 2020

392. पागल कातिल- इंस्पेक्टर गिरीश

क्यों हुआ एक कातिल पागल?
पागल कातिल - इंस्पेक्टर गिरीश
इतनी देर में अटैची के ताले टूट गये। कांस्टेबलों ने ढक्कन हटाया और फिर वे दोनों हड़बड़ाकर पीछे हट गये । अटैची में एक नवजात शिशु का शव था। शव भी ऐसा कि बच्चे का सर अलग रखा हुआ था। छोटी छोटी मासूम आखें खुली रह गई थीं और निर्जीव हाथों की मुट्ठियाँ भी मिची हुई थीं। मेहता का समूचा अस्तित्व कपकपा गया, और उसने तुरन्त आदेश दिया...।
पागल कातिल - उपन्यास में से
उपन्यास साहित्य में एक समय ऐसा था जब Ghost लेखन में कैप्टन, मेजर, कर्नल जैसे नाम से लेखन हुआ था। इसी समय सस्पेंश पॉकेट सीरीज के अंतर्गत Ghost लेखक इंस्पेक्टर गिरीश पदार्पण हुआ।

Monday, 19 October 2020

391. ख्वाबो की मंजिल- अशोक जोरासिया

 ख्वाबों‌ की कहानियाँ- अशोक जोरासिया, कहानी संग्रह

लेखक का प्रथम गुण है उसकी संवेदनशीलता।  वह समाज में जो देखता और अनुभव करता  है वह उसे शब्दों के द्वारा समाज के समक्ष प्रस्तुत करता है। कहानी संग्रह 'ख्वाबों की मंजिल' के माध्यम से लेखक अशोक जोरासिया जी ने समाज में देखे और समझे अनुभवों को यहाँ प्रस्तुत किया है।
    कहानियाँ चाहे छोटी हैं पर संवेदना के स्तर पर विस्तृत हैं।
इस संग्रह में कुल सत्रह कहानियाँ हैं जो विभिन्न परिवेश को व्यक्त करती हैं। 

Monday, 12 October 2020

390. भूतनाथ की संसार यात्रा- ओमप्रकाश शर्मा जनप्रिय

भूतनाथ प्रेमिका की तलाश में...
भूतनाथ की संसार यात्रा- जनप्रिय लेखक ओमप्रकाश शर्मा
आप भूतनाथ को जानते है?
  वही भूतनाथ जिसने उपन्यास साहित्य में अप्रतिम प्रसिद्धि प्राप्त की है। प्रसिद्ध उपन्यासकार देवकीनंदन खत्री जी का एक पात्र है-भूतनाथ। जिसके कारनामें 'चन्द्रकांता संतति' और 'भूतनाथ' जैसे चर्चित उपन्यासों में मिलते हैं। भूतनाथ एक ऐयार(जासूस) है। यह सब तो देवकीनंदन खत्री जी के उपन्यासों में है। हम यहाँ चर्चा कर रहे हैं जनप्रिय लेखक ओमप्रकाश शर्मा जी के पात्र भूतनाथ की।
    ध्यान रहे यह पात्र देवकीनंदन खत्री जी का ही है जिसे आगे जनप्रिय लेखक ओमप्रकाश शर्मा जी ने अपने विशेष ढंग से आगे बढाया है। खत्री जी के उपन्यासों में जहाँ भूतनाथ एक ऐयार है वहीं ओमप्रकाश शर्मा जी के उपन्यासों में भूतनाथ एक भूत है।
      यह ओमप्रकाश शर्मा जी की प्रतिभा है की उन्होंने कोई हाॅरर पात्र न बना कर भी मृत्यु भूतनाथ को एक हास्य व्यंग्य के रूप में 'भूतनाथ की संसार यात्रा' उपन्यास में प्रस्तुत किया है।
       'भूतनाथ की संसार यात्रा' में भूतनाथ और जासूस राजेश की जोड़ी को प्रस्तुत किया गया है।
अब चर्चा करते हैं प्रस्तुत उपन्यास की।
राजेश को भूतनाथ का निमंत्रण मिला तो राजेश भी उनके साथ जाने को तैयार हो गया।
जाना ही होगा।
जीवन का यह संयोग भी देखना होगा।
भूतनाथ के साथ संसार यात्रा। (पृष्ठ-07)

Thursday, 8 October 2020

389. गुप्त गोदना- देवकीनंदन खत्री

 एक अधूरी कहानी...

गुप्त गोदना- देवकीनंदन खत्री, उपन्यास

जहाँ तक मेरी जानकारी है हिन्दी में तिलिस्मी साहित्य का आरम्भ देवकीनन्दन खत्री जी के उपन्यासों से ही माना जाता है। इनके लिए तिलिस्म, रहस्य-रोमांच से परिपूर्ण उपन्यास हिन्दी पाठकों के मध्य बहुत प्रसिद्ध रहे हैं और आज भी इनकी मांग बनी हुयी है।

गुप्त गोदना- देवकीनंदन खत्री
    मेरे विद्यालय के पुस्तकालय में देवकीनंदन खत्री जी के कई उपन्यास उपलब्ध हैं, उन में से मैनें 'गुप्तगोदना' पढा, उसी पर हम चर्चा करते हैं।  

    यह एक अर्द्ध ऐतिहासिक रहस्य-रोमांच से परिपूर्ण उपन्यास है। इसमें एक तरफ जहाँ शाहजहाँ के पुत्रों के मध्य सत्ता संघर्ष का चित्रण है वही नायक उदय सिंह और उसके दोस्त रवि दत्त की बहादुरी की कहानी भी है।
     उपन्यास की कहानी मुख्यतः उदय सिंह पर ही केन्द्रित है, और साथ में उसके दोस्त रवि दत्त का चित्रण है।

उपन्यास का आरम्भ उदय सिंह और रवि दत्त से होता है। एक जंगल में दोनों बिछड़ जाते हैं और उदय सिंह अपने मित्र को तकाश करता है। तलाश के पश्चात उसे रवि दत्त एक पेड़ के नीचे बेहोश मिलता है। उदय सिंह जब रवि दत्त के लिए पानी लेकर लौटता है तो वहाँ रवि दत्त की जगह एक नवयौवना को पाता है।
   "सर और मुँह पर पानी पड़ने से ही इसकी बेहोशी जाती रहेगी" यह सोचकर उदय सिंह नदी की तरफ बढा जो वहाँ से लगभग दो सौ कदम दूर होगी। अपनी कमर से चादर खोलकर, खूब तर  किया  और तेजी के साथ चलता हुआ फिर उसी जगह पहुँचा जहां रवि दत्त बेहोश पड़ा हुआ था। बडे़ आश्चर्य की बात थी कि इस दफे उसने रविदत्त को उस पेड़ के नीचे न देखा उसके बदले में एक बहुत ही हसीन और नौजवान औरत पर नजर पड़ी जो रवि दत्त की जगह जमीन के ऊपर बेहोश पड़ी थी।(पृष्ठ-03)
वह औरत कौन थी?
- रवि दत्त कहां गायब हो गया?
- रवि दत्त बेहोश कैसे हुआ?
- उदय सिंह से औरत का क्या संबंध रहा?

ऐसे अनेक प्रश्नों के लिए देवकीनंदन खत्री जी का उपन्यास 'गुप्त गोदना' पढना होगा। 

388. सुरसतिया- विमल मित्र

एक औरत की व्यथा...
सुरसतिया- विमल मित्र


सुरसतिया उपन्यास 'साप्ताहिक हिन्दुस्तान' के 22 फरवरी 1970 के अंक में प्रकाशित हुआ और प्रकाशन के साथ ही इसने भारी प्रतिक्रिया जगा दी।....मध्यप्रदेश सरकार ने पुस्तक जब्त कर ली। मध्य प्रदेश के रायपुर नगर में लेखक के पुलते जलाए गए। (पृष्ठ- प्रकाशक की ओर से)
      आखिर सुरसतिया में ऐसा क्या था कि उस पर इतनी तीव्र और कटु प्रतिक्रियाएं आरम्भ हो गयी। उपन्यास के आरम्भ में कुछ पत्र भी प्रकाशित किये गये हैं जो उपन्यास के पक्ष और विपक्ष दोनों को दर्शाते हैं। जहाँ कुछ पाठकों ने इस उपन्यास की सराहना की है तो वहीं कुछ पाठकों ने उपन्यास को गलत ठहराया है।  अब सही क्या है और गलत क्या है यह पाठक के दृष्टिकोण पर निर्भर करता है।

  चलो, अब हम सुरसतिया पर चर्चा कर लेते हैं।
सुरसतिया एक महिला किरदार को मुख्य भुमिका में रख कर रचा गया एक महत्वपूर्ण उपन्यास है। भारतीय समाज में महिला की स्थिति, पुरूष का वर्चस्व और एक विद्रोही महिला के चरित्र को रोचक ढंग से उभारा गया है। 

387. कगार और फिसलन- विमल मित्र

मनुष्य जीवन की फिसलन
कगार और फिसलन- विमल मित्र

कभी कभी जिंदगी में अजीब घटनाएं घटित हो जाती हैं। मनुष्य देखता रह जाता है और घटना घटित हो जाती है। कभी मनुष्य मझधार में डूब जाता है और कभी कगार पर आकर फिसल जाता है। स्वयं मनुष्य को भी अहसान नहीं होता की वह जो कर रहा है वह सही है या गलत।
    इन दिनों विमल मित्र जी का उपन्यास 'कगार और फिसलन' पढा, जो जीवन में आने वाले कुछ घटनाओं का वर्णन करता है।
   उपन्यास 'कगार और फिसलन' में दो अलग-अलग कहानियाँ है। प्रथम कहानी को हम लंबी कहानी कह सकते हैं और द्वितीय को एक लघु उपन्यास कहा जा सकता है। दोनों में कुछ समानताएं अवश्य हैं और समापन भी एक जैसा है।  
कगार और फिसलन- विमल मित्र

Saturday, 3 October 2020

386. सुबह का भूला- विमल मित्र

एक राह से भटके युवक की कथा
सुबह का भूला- विमल मित्र/ बिमल मित्र

Friday, 2 October 2020

385. मुझे याद है- विमल मित्र

समय परिवर्तन की कथा
मुझे याद है- विमल मित्र/बिमल मित्र
समय परिवर्तनशील है। कब, कहां, कैसे बदल जाये कुछ कहा नहीं जा सकता। आज जो उच्च शिखर पर है वह कल को धरातल पर आ सकता है और आज जो धरातल पर वह उच्च शिखर पर विराजमान हो सकता है। यह क्रम सतत चलता रहता है।
      इसी परिवर्तन को आधार विमल मित्र जी ने उपन्यास लिखा है- मुझे याद है। 

Saturday, 26 September 2020

382. भगोड़ा अपराधी- वेदप्रकाश कांबोज

 मुजरिम फरार है...
भगोड़ा अपराधी- वेदप्रकाश कांबोज
विजय सीरीज, थ्रिलर उपन्यास

        अपराधी हमेशा कानून की पकड़ से दूर भागने की कोशिश करता है। वह जितनी संभव कोशिश होती है, अपने अपराध को छुपाने और फिर कानून की गिरफ्त से दूर होने की कोशिश में रहता है। लेकिन कानून के पहरेदार भी इस कोशिश में रहते हैं‌ की अपराधी पकड़ा जाये और उसे अपराध की सजा मिले।
    अपराध, अपराधी और कानून का यह खेल सतत चलता रहता है। अपराध होते रहते हैं और कानून मुजरिमों‌ को पकड़ता रहता है। 'भगोड़ा अपराधी' भी इसी तरह का उपन्यास है। यह एक फरार मुजरिम की कहानी है जिसे कानून के रक्षक पकड़ने के लिए सघर्षरत हैं।  
















भगोड़ा अपराधी- वेदप्रकाश कांबोज
    वेदप्रकाश कांबोज जी लोकप्रिय साहित्य के वह ज्वलंत सितारे हैं जिनका प्रकाश अमिट है। इनकी कलम से निकले अमूल्य मोती लोकप्रिय जासूसी साहित्य की अमूल्य धरोहर हैं।
   वेदप्रकाश कांबोज जी द्वारा रचित उपन्यास 'भगोड़ा अपराधी' पढा, यह एक थ्रिलर उपन्यास है। यह जेल से फरार मुजरिम की कहानी है जिसे पकड़ने के लिए विजय-रघुनाथ दिन-रात एक कर देते हैं।
   सितंबर 2020 में मैंने वेदप्रकाश कांबोज जी के सतत दस उपन्यास पढे हैं। जिनके क्रमश नाम हैं- मुँहतोड़ जवाब, मैडम मौत, सात सितारे मौत के, गद्दार, मुकदर मुजरिम‌ का, आखरी मुजरिम, आसमानी आफत, शहर बनेगा कब्रिस्तान, फाॅरेस्ट आफिसर, भगोड़ा अपराधी।
    इनमें से कुछ थ्रिलर- एक्शन, मर्डर मिस्ट्री हैं तो कुछ विजय सीरीज के हैं।
  अब चर्चा करते हैं प्रस्तुत उपन्यास 'भगोड़ा अपराधी' की। यह विजय सीरीज का एक रोमांच श्रेणी का उपन्यास है। कहानी है फ्रेजर नामक एक खतरनाक अपराधी की।
  फ्रेजर एक अंतरराष्‍ट्रीय तस्कर था। मुख्य रूप से वह भारत में सोने की तस्करी करता था। विभिन्न देशों में विभिन्न नामों से उसकी कई फर्में थी। कई छद्म नाम थे उसके। (पृष्ठ-10)

Thursday, 24 September 2020

381. फाॅरेस्ट ऑफिसर- वेदप्रकाश कांबोज

जंगल के रक्षक की कहानी
फाॅरेस्ट ऑफिसर- वेदप्रकाश कांबोज, थ्रिलर उपन्यास

एक कर्तव्यनिष्ठ व्यक्ति को अपने जीवन में अपने कर्तव्य के निर्वाह पर बहुत से संकटों का सामना करना पड़ता है‌। उसके पास दो ही रास्ते होते हैं या तो वह अपने कर्तव्य पथ से हट जाये या फिर भ्रष्ट व्यक्तियों से टकरा जाये।

    वेदप्रकाश काम्बोज जी का प्रस्तुत उपन्यास 'फॉरेस्ट ऑफिसर' भी एक कर्तव्यनिष्ठ अधिकारी के कर्तव्य, सत्य और दृढता की कहानी है। उसे अपने जीवन में अपने दायित्व का उचित ढंग से निर्वाह करने के दौरान अनेक कष्टों का सामना करना पड़ा। 
       कहानी आरम्भ होती है केसरी से जो से जो नया फॉरेस्ट ऑफिसर बन कर ऐसी जगह पहुंचता है जहाँ कालिया नामक एक अपराधी जंगल से तस्करी करता है। यहाँ के पूर्व फॉरेस्ट ऑफिसर की हत्या कर दी जाती है। 

Tuesday, 22 September 2020

380. शहर बनेगा कब्रिस्तान- वेदप्रकाश कांबोज

जब मुंबई शहर पर छाये संकट के बादल
शहर बनेगा कब्रिस्तान- वेदप्रकाश काम्बोज


बम्बई के मुख्यमंत्री को सूचित किया जाता है कि इस शहर में हमने एक खतरनाक एटम बम रखा हुआ है, जो अब से छत्तीस घण्टे बाद यानि शनिवार रात के दस बजे फट जायेगा और दुनिया के नक्शे से इस खूबसूरत शहर को नेस्तानाबूद करके एक विशाल कब्रिस्तान में बदल देगा। (उपन्यास अंश)
           वे खतरनाक मुजरिम थे जो सन् 1993 के मुंबई सिरियल बम ब्लास्ट की तरह एक बार फिर मुंबई को दहला देना चाहते थे वे मुंबई को कब्रिस्तान बनाने की जिद्द पर थे।  उनकी खतरनाक साजिश के आगे सी.बी.आई. भी बेबस थी। उनका कोई सुराग न था और बम ब्लास्ट होने के 36 घण्टे पहले उन्होंने अपनी मांग मुख्यमंत्री के समक्ष रखी।
- वह खतरनाक मुजरिम कौन थे?
- आखिर उनकी योजना क्या थी?
- उस योजना के पीछे कौन था?
- क्या CBI उस योजना को नाकाम कर पायी? 
   वेदप्रकाश काम्बोज जी द्वारा लिखा गया 'शहर बनेगा कब्रिस्तान' एक थ्रिलर उपन्यास है।

Friday, 18 September 2020

379. आसमानी आफत- वेदप्रकाश कांबोज

अंतरराष्ट्रीय षड्यंत्र की कहानी
आसमानी आफत- वेदप्रकाश काम्बोज

विजय सीरीज

वह काठमांडू घूमने गया था लेकिन वहाँ वह एक ऐसे खतरनाक आदमी से टकरा बैठा और फिर उसके लिए खतरा पैदा हो गया और उसे लगा वह की वह आसमानी आफत मोल ले बैठा।
   जब वह इस आसमानी आफत से बचने की कोशिश करने लगा तो उस पर और भी ज्यादा खतरा मंडराने लगा और अनंत: उसने ने उस आसमानी आफत से टकराने की ठान ली।
काठमांडू की धरती पर खेला गया एक खतरनाक खूनी खेल है- आसमानी आफत।  
www.svnlibrary.blogspot.com

378. आखरी मुजरिम- वेदप्रकाश कांबोज

पांच मुजरिमों की लूटकथा
आखरी मुजरिम- वेदप्रकाश कबोज


कहते हैं चोर चोरी करना छोड  सकता है लेकिन हेराफेरी नहीं। और जब चोर आर्थिक मुसीबत में हो तो वह कितनी भी कसमें खा ले अनंत वह अपने पुराने रास्ते पर लौट ही आता है।
वह उसकी मजबूरी हो सकती है या फिर आदत...

    वेदप्रकाश कांबोज जी का उपन्यास 'आखिरी मुजरिम' पढा। यह पांच ऐसे लोगों की कहानी है जो किसी न किसी रूप से अपराध से संबंध रखते हैं।

रामानंद-  विभिन्न अपराधों के सिलसिलें में दस साल की सजा काट कर जेल से छूटा था। लेकिन अब उसे अपनी बेटी की शादी के लिए रुपयों की बहुत आवश्यकता थी। दस साल की सजा और अपराधी का लेबल होने के कारण उसे कहीं से काम और रूपये मिलने की उम्मीद न थी। बस एक दोस्त था अब्बास जिससे कुछ उम्मीद की जा सकती थी।

     रामानंद और अब्बास आगे अजीम और दर्शन से मिले और एक प्लानिंग बनी -"नववर्ष की शुभकामनाएँ तो कल सुबह हम देंगे चन्द्रन ज्वैलर्स वालों को"

Tuesday, 15 September 2020

377. मुकद्दर मुजरिम का- वेदप्रकाश कांबोज

 जब अपराधी की किस्मत बदलती है

मुकद्दर मुजरिम का- वेदप्रकाश कांबोज

  मनुष्य की किस्मत कब, कैसा खेल खेल जाये कुछ कहा नहीं जा सकता। कभी अर्श से फर्श और कभी फर्श से अर्श पर ले जाती है।
      ऐसा ही खेल खेला था किस्मत ने एक मुजरिम के साथ। इस खेल ने चाहे उस अपराधी को फर्श से अर्श पर बैठा दिया लेकिन उस सफलता के  पीछे का सच क्या था...
    इन दिनों में वेदप्रकाश कांबोज जी के उपन्यास पढ रहा हूँ। 2020 के सितंबर माह में कांबोज का मैंने यह पांचवां उपन्यास पढा है। मुझे यह उपन्यास रोचक लगा। 
     कहानी आरम्भ होती है महानगर शहर से। पत्रकार आलोक के पास बंगाली आर्टिस्ट की पत्नी आकर कहती है- "...मैं तुमसे हाथ जोड़कर विनती करती हूँ कि तुम उनकी खोज खबर लगाकर पता करो कि वे ठीकठाक तो हैं ना।"
         निताई घोष...गजब का कार्टूनिस्ट और चित्रकार था। किसी की भी लिखाई की नकल करने में तो ऐसा सिद्धहस्त था कि देखने वाले आश्चर्यचकित रह जाते थे।

   पर नित्यानंद घोष/ निताई बाबू शराब के अतिरिक्त और कुछ पसंद न करते थे। घर से निकले तो एक-दो माह तक वापस न आते थे। लेकिन इस बार उनकी पत्नी को आशंका हुयी।  इसलिए क्राइम रिपोर्टर आलोक निताई बाबू का पता लगाने निकल लिए शक्तिपुर। 

Saturday, 12 September 2020

376. गद्दार- वेदप्रकाश कांबोज

आखिर कौन था गद्दार
गद्दार- वेदप्रकाश कांबोज

विजय-अलफांसे सीरीज


सूरीमा हिन्द महासागर में एक छोटा सा देश है, जिसमें कुछ छोटे-बड़े टापू शामिल थे। सिंगापुर की तरह देश का नाम भी सूरीमा था और उसकी राजधानी का नाम भी सूरीमा था।  देश में राजतंत्र था और उसके शासक का नाम सुलेमान था। देश की आबादी मुसलमान थी। थोड़े बहुत हिंदू थे और थोड़े से क्रिश्चन भी थे। 

  सूरीमा में राजतत्र है और यहाँ के शासक हैं शाह सुलेमान। सुलेमान को लगता है की उसका कोई साथी गद्दार है जो उसकी जान का दुश्मन है। और अपनी सुरक्षा के लिए सुलेमान भारत से जासूस विजय जो अपनी सुरक्षा के लिए बुलाता है।
- वह गद्दार कौन था?
- शाह सुलेमान की जान क्यों लेना चाहता था?
- क्या विजय इस अभियान में सफल रहा?

   अगर आप वेदप्रकाश काम्बोज जी के 'विजय-अलफांसे' सीरीज के उपन्यास पसंद करते हैं तो यह उपन्यास पढें और जाने एक गद्दार की सत्यता को। 

Thursday, 10 September 2020

375. सात सितारे मौत के- वेदप्रकाश कांबोज


अंतरराष्ट्रीय अपराधी अलफांसे और माफिया डाॅन की टक्कर
सात सितारे मौत के- वेदप्रकाश कांबोज
अलफांसे सीरीज

एक मित्र की मदद के लिए अंतरराष्ट्रीय अपराधी ने डाॅन का काम करना स्वीकार कर लिया, लेकिन जब उस डाॅन ने अंतरराष्ट्रीय अपराधी को धोखा दिया तो....
     अगस्त 2020  में मैंने वेदप्रकाश कांबोज जी के पांच उपन्यास पढे और सितंबर माह में यह वेदप्रकाश कांबोज का तीसरा उपन्यास है, जो मैं पढ रहा हूँ। उम्मीद है इस माह यह सिलसिला यथावत चलता रहेगा  
   अब चर्चा करते हैं उपन्यास कथानक की। कहानी है अंतरराष्ट्रीय अपराधी अलफांसे और डाॅन सेवल की। अपने एक‌ मित्र ...की मदद के लिए अलफांसे सेवल के लिए एक लूट का अंजाम देता है लेकिन...सेवल और उसके आदमियों ने जो यह ऐन वक्त पर विश्वासघात किया उसे याद करके तो क्रोध के मारे उसका रोम रोम जलने लगा था।
    तब अलफांसे ने सेवल को तबाह कर देने की ठान ली थी। लेकिन सेवल भी कम न था... "...क्या विलक्षण दिमाग पाया है। अपने शिकारी को ऐसी परिस्थिति में फंसा देता था जहाँ निश्चित मौत के अतिरिक्त उन्हें कुछ न‌ मिले।"
लेकिन अलफांसे भी सीधी धमकी देता है-
"...अपने मालिक से कहना कि उसके सात सितारे मौत के उसके सिर के पर मंडराने लगे हैं। बचने के लिए इस धरती पर अगर कोई जगह नजर आती है तो वहाँ छुप कर अपनी जान बचाने की कोशिश करे।" 

Sunday, 6 September 2020

374. मैडम मौत- वेदप्रकाश कांबोज

जो सबको मौत देती है...
मैडम मौत- वेदप्रकाश कांबोज
थ्रिलर मर्डर मिस्ट्री, विजय सीरीज

आदमी का स्वार्थ उसे किस हद तक ले जाता है, इसका उदाहरण है वेदप्रकाश कांबोज द्वारा लिखित उपन्यास 'मैडम मौत'। उपन्यास चाहे मर्डर मिस्ट्री थ्रिलर घटनाक्रम पर आधारित है, पर यह कहानी तो हमारे समाज की ही है, उस समाज की जहाँ लोग स्वार्थ के लिए अपने परिवार, मित्र-बंधुओं तक से फरेब करते नजर आते हैं।
        सितंबर 2020 में वेदप्रकाश कांबोज जी का मैंने यह द्वितीय उपन्यास उपन्यास पढा है, इससे पूर्व इसी माह मैंने 'जवाब मुँह तोड़' पढा था जो की इसी उपन्यास की तरह 'विजय सीरीज' का मर्डर मिस्ट्री थ्रिलर उपन्यास है।
दोनों उपन्यास मुझे रोचक और दिलचस्प लगे।
अब चर्चा करते हैं उपन्यास 'मैडम‌ मौत' की।
        उपन्यास हरि नगर नामक एक काल्पनिक शहर पर आधारित है। जहाँ राजनीति में दो प्रतिद्वंद्वी है। एक है रामप्रकाश बग्गा और दूसरा है राजसिंह। जहाँ राज सिंह के साथ पत्रकार महादेव है वहीं रामप्रकाश बग्गा के हर कारनामे का साथी है उसका सेक्रेटरी चन्द्रनाथ।
        अपनी राजनैतिक महत्वाकांक्षा का विस्तार करते हुए रामप्रकाश ने अपने पुत्र कुलदीप बग्गा को राजनीति में उतारा लेकिन एक सभा के दौरान कुलदीप की हत्या हो जाती है और कुलदीप के हत्यारे की भी। 

Friday, 4 September 2020

373. मुँहतोड़ जवाब - वेदप्रकाश कांबोज

एक अज्ञात द्वीप पर विजय की दुश्मनों से टक्कर
जवाब मुँहतोड़- वेदप्रकाश कांबोज
विजय सीरीज


भारत भूमि से दूर एक अज्ञात द्वीप पर एक व्यक्ति के मरने की एक सामान्य सी घटना थी।‌ मृतक के भाई ने भी भी इसे मात्र आकस्मिक निधन की खबर मान कर दुख मना लिया। 
    लेकिन उस भाई के उस अज्ञात द्वीप से प्राप्त सामान ने ऐसा कहर बरसाया की की एक के बाद एक दुश्मन पैदा होते चले गये और उन दुश्मनों के लिए जासूस विजय तैयार था देने को -जवाब मुँहतोड। 
  लोकप्रिय साहित्य के सितारे वेदप्रकाश कांबोज जी ने विजय सीरीज को लेकर कई रोचक उपन्यासों की रचना की है। लोकप्रिय साहित्य की इस अमूल्य निधि को पढने का अवसर मुझे प्राप्त हुआ है, उसी का यहाँ वर्णन प्रस्तुत है।
मेरी हार्दिक इच्छा है की लोकप्रिय साहित्य को संरक्षित किया जाये। वह चाहे किसी भी रूप में हो। इसके लिए मेरा अल्प प्रयास भी www.sahityadesh.blogspot.com से जारी है।
   अब कुछ चर्चा उपन्यास 'जवाब मुँहतोड़' के विषय पर। 

Monday, 31 August 2020

372. बिजली के खंभों जैसे लोग- सूर्यनाथ सिंह

एक रोचक बाल रचना
बिजली के खंभों जैसे लोग - सूर्यनाथ सिंह

वह जून का महिना था। अमेरिका में वसंत का मौसम था। शनिवार का दिन। शाम के सात बजे थे।...
अमेरिका के केनेडी स्पेस सेंटर के वैज्ञानिक लगातार सुपर कम्प्यूटर के परदे पर नजरें गडा़ए हुये थे। इक्कीस दिन तक चक्कर काटने के बाद डिस्कवरी अंतरिक्ष यान धरती पर उतरने वाला था..... 

     यह कहानी गुरु नामक एक छोटे से बच्चे की। जिनका नाम है एस. सुंदरस्वामी। डिस्कवरी के चालक दल की अगुआई भारतीय मूल के वैज्ञानिक एस. सुंदरस्वामी ने की थी।
       यह कहानी अंतरिक्ष विज्ञान पर आधारित है। अंतरिक्ष यान डिस्कवरी तो सकुशल लौट आया पर वह अपने साथ कुछ ऐसा लेकर लौटा जिसका किसी भी पता नहीं था। और उसी का परिणाम यह निकला की सुंदरस्वामी का बच्चा गुरू एक अतिआधुनिक तकनीक 'फ्लक्स' माध्यम से गायब हो गया।
         गुरु की आँखें खुली तो उसने खुद को चार-पांच लंबे चौडे़ए लोगों से घिरा पाया। उसने गर्दन उठाकर देखा। इतने लंबे आदमी उसने कभी नहीं देखे थे। कहीं किसी किताब में भी नहीं पढा। उनकी लंबाई बिजली के खंभों जितनी रही होगी। (पृष्ठ-16)
- गुरु गायब कैसे हुआ?
- 'फ्लक्स' तकनीक क्या है?
- गुरु को कैसे खोजा गया?
- अन्य ग्रह का पृथ्वी से क्या संबंध है?
- अन्य ग्रह के लोग पृथ्वी ग्रह के संपर्क में जैसे आये?
उक्त प्रश्नों को जानने के लिए यह बाल रचना पढनी होगी।

Sunday, 30 August 2020

371. खूनी गद्दार- आनंद सागर

कत्ल की कहानी...
खूनी गद्दार- आनंद सागर
डायरेक्टर नीलकान्त भरूचा की फिल्म 'आग और आँसू' के क्लाइमैक्स सीन की शूटिंग में चौथी बार भी 'कट' की आवाज आने पर स्टुडियो में उपस्थित सभी व्यक्ति परेशानी अनुभव करने लगे थे।
     प्रस्तुत दृश्य है अप्रैल 1966 में जासूसी चक्कर पत्रिका में प्रकाशित आनंद सागर जी के उपन्यास 'खूनी गद्दार'। आनंद सागर जी उपन्यास साहित्य में जासूसी उपन्यासकार के रूप चर्चित रहे हैं। 
     उपन्यास का कथानक आरम्भ होता है एक फिल्म की शूटिंग से जहाँ अभिनेता दीपक की तबीयत बिगड़ने से मृत्यु हो जाती है। अभिनेता दीपक अपने मित्र खलनायक प्रकाश के साथ शूटिंग कर रहा था।
  भरूचा रंगीन मियां को एक तरफ ले जाकर बोला-तुमने सुना रंगीन...दीपक को पायजन दिया गया।"
"हाँ, हाँ, सुना। तभी तो डाक्टर कहता है कि पुलिस को बुला लो।" (पृष्ठ-07)
    वहीं अभिनेत्री नैना के पिता ने पुलिस में रिपोर्ट दर्ज करवायी की उसकी पुत्री नैना गायब है और उसे प्रकाश पर शक है। मेरा संदेह प्रकाश बत्रा नामक विलेन पर है जिसने अपनी दुश्मनी निकालने को मेरी बेटी का कहीं भगवा दिया है और या मार डाला है। (पृष्ठ-20)
दीपक की मौत के पीछे क्या रहस्य था?
-  अभिनेत्री नैना कहां गायब हुयी?
-  प्रकाश बत्रा की दोनों घटनाओं में क्या भूमिका थी?
- इन दोनो घटनाओं की सत्यता क्या थी?
  इसी सत्यता का पता लगाने के लिए मैदान में आये जासूस जासूस कंचन और ठक्कर और इंस्पेक्टर फैयाज। 

Friday, 28 August 2020

370. प्रतिशोध- सुरेश चौधरी

चम्बल के डाकू की कहानी
प्रतिशोध- सुरेश चौधरी
       हालातों ने चंदन सिंह को बेरहम डाकू तो बना दिया पर जब उसके अपने खून से उसका सामना हुआ तो जैसे उसके अंदर का इंसान फिर से जी उठा और....(आवरण पेेेज से)
          सुरेश चौधरी उभरते हुए लेखक हैं। अब तक उनके तीन उपन्यास प्रकाशित हो चुके हैं। 'खाली आंचल', 'एहसास' और तृतीय उपन्यास है 'प्रतिशोध'। मेरठ निवासी सुरेश चौधरी जी पेशे से वकील हैं।
       मनुष्य अपने जीवन में कुछ जाने-अनजाने में अमानवीय कृत्य कर बैठता है और उसका परिणाम भी उसे भुगतना पड़ता है। ऐसा ही कुछ अपने जीवन में जमींदार भैरो सिंह ने किया और उसी राह पर चंदन सिंह भी चला। जब समय ने अपना प्रतिशोध लिया तो दोनों की जिंदगी में वह बवण्डर उठा जो उनका सब कुछ तबाह कर गया। 
        अब उपन्यास के कथानक पर कुछ चर्चा हो जाये। भैरों सिंह जमींदार थे और सरजू उनका एक खास कारिंदा था। सरजू का पुत्र था चन्दू और जमींदार की पुत्री थी बेला।
वक्त ने चंदू को जमींदार भैरों सिंह का वह रूप दिया दिया जिसकी वह कल्पना भी नहीं कर सकता था। भैरों सिंह के आतंक और पुलिस के भ्रष्टाचार ने चंदू को डाकू चंदन सिंह बना दिया‌। "चंदन सिंह नाम है हमार... ।" (पृष्ठ-67)
      अब डाकू चंदन सिंह जीवन का एक ही मकसद था भैरों सिंह से प्रतिशोध लेना। "...आज के मकसद में हमारी जिंदगी भी चली जाये...तो कौनू बात नाही...लेकिन हम चाहत हैं...कि ऊ ससुरे जमींदार को पता लगी जाये कि प्रतिशोध एइसा होत है...।" (पृष्ठ-64)
       प्रतिशोध की राह पर निकला चंदन सिंह सही औत गलत की पहचान भी भूल गया। प्रतिशोध की आग मे उसे अंधा बना दिया लेकिन जब उसकी आँख खुली तो उसका अपना खून उसके सामने दीवार बन कर खडा़ था।
- चंदन सिंह की भैरों सिंह से क्या दुश्मनी थी?
- चंदन सिंह ने कैसे प्रतिशोध लिया?
- चंदन सिंह के सामने दीवार बन कर कौन खड़ा था।
- चंदन सिंह और भैरों सिंह की दुश्मनी क्या रंग लायी?
आदि प्रश्नों के उत्तर के लिए सुरेश चौधरी का उपन्यास प्रतिशोध पढना होगा। 

Monday, 24 August 2020

369. शालीमार- हसन अलमास

मौत की अंगूठी
शालीमार- हसन अलमास
The vulture is a patient Bird का हिन्दी अनुवाद

वह एक मौत की अंगूठी। जिसने भी उसे पाना चाहा, वह मौत के मुँह में समा गया। सदियों से वह अपने चाहने/पाने वालों को मौत की नींद सुलाती आयी है, और फिर भी उस अंगूठी को चाहने/ पाने की संख्या में कोई भी कमी नहीं आयी। हर कोई उस अंगूठी को पाना चाहता है।
         रवि पॉकेट बुक्स से अगस्त 2020 में जेम्स हेडली चेइज के उपन्यास 'The Valture is a patient Bird' का हिन्दी अनुवाद शालीमार शीर्षक से प्रकाशित हुआ है। यह अनुवाद दिल्ली निवासी हसन अलमास साहब ने किया है। यह मात्र शाब्दिक अनुवाद नहीं है, यह शब्दों के साथ-साथ भावों का भी सार्थक अनुवाद है। अगर किसी कहानी का मात्र शब्द अनुवाद किया जाये तो वह कोई अच्छी पठनीय रचना नहीं बन पाती। अनुवाद में भाव, रस आदि का भी आनुपातिक प्रस्तुतीकरण आवश्यक है, इस दृष्टि से यह कृति सही है और अनुवाद महोदय के परिश्रम को दर्शाती है। 
Lower Kodra dam- Mount Abu
          मिस्टर आर्मो शालिक एक एजेंट था जो रुपयों के किए कुछ कानूनी और गैर कानूनी कार्य करता है। -
"...मेरे काम में मेरा पाला दौलतमंद बिगडैलों, काइयां बिजनेसमैनों और अरब के कुछ शहजादों से पड़ता है।" शालिक नर जवाब देते हुए कहा-"और वो मेरे क्लाइंट इसलिए हैं‌ कि मैं उनके कई नामुमकिन समझे जाते काम करता हूँ। "(पृष्ठ-53)
           इस बार उसके पास काम है एक बेहद खतरनाक अंगूठी को प्राप्त करना। जो की अफ्रीका के जंगलों में एक बेहद खतरनाक व्यक्ति के बेहद सुरक्षित म्यूजियम में हैं। इस काम के लिए आर्मो शालिक एक टीम तैयार करता है।
गैरी एडवर्ड्स- हेलिकाॅप्टर पायलट और कार हैंडलिंग का जानकार है।
कैनेडी जौन्स- अफ्रीका के जंगलों का जानकार।
मिस्टर ल्यू फेनल- एक्सपर्ट तिजोरी तोड़।

गे डेस्मंड- ट्रोज हाॅर्स, खतरनाक हसीना।
"... आज यहाँ मैंने आप लोगों को जिस आप्रेशन के तहत इकट्ठा किया है, उसका इकलौता मकसद है।"- शालिक शांत स्वर में बोला-" उस तारीखी अंगूठी को हासिल करना।"(पृष्ठ-41)
- उस अंगूठी में विशेष क्या है?
- वह मौत की अंगूठी क्यों कहलाती है?
- क्या, शालिक की योजना कामयाब रही?
- उस सुरक्षित म्यूजियम से अंगूठी चोरी हो पायी?
- अफ्रीका के खतरनाक जंगलों में कैसे गुजरे ?

इस सब प्रश्नों और घटनाओं को जानने के लिए हसन अलमास द्वारा अनुवादित 'शालीमार' उपन्यास पढना होगा।

Friday, 21 August 2020

368. टोपाज- कंवल शर्मा

टोपाज का एक रोमांचक सफर
टोपाज- कंवल शर्मा

रवि पॉकेट बुक्स मेरठ से मैंने तीन उपन्यास मंगवाये थे। कंवल शर्मा जी का 'टोपाज', सुरेन्द्र चौधरी जी का 'प्रतिशोध' और जेम्स हेडली चेईज का अनुवादित 'शालीमार'(अनुवाद - हसन अलमास)।
      सर्वप्रथम हम 'टोपाज' पर चर्चा करते हैं वैसे भी मुझे कंवल शर्मा जी के उपन्यास का इंतजार रहता है।
टोपाज शीर्षक देखते ही मन में ख्याल आता है टोपाज नाम क्यों? 
          मेरे प्रस्तुत उपन्यास का नाम टोपाज है और इसके प्रकाश में आते ही मुझसे सबसे पहले यही सवाल हुआ कि ऐसा नाम रखने की वजह क्या है?
मेरा ईमानदाराना जवाब है कि कोई वजह नहीं।
(लेखकीय से, पृष्ठ-18)
       हालांकि ऐसी बात नहीं है, क्योंकि टोपाज तो आखिर टोपाज ही है। वैसे एक बात कहूँ‌ मुझे तो आज से पहले यही पता था की टोपाज नाम से एक सेविंग ब्लेड आता है।
तो अब चले टोपाज की यात्रा पर...
       अगर इंसान का बच्चा विपरीत हालात में जा फंसे तो उसे उनके आगे मजबूर होकर सरेण्डर नहीं कर देना चाहिये बल्कि कमर सीधी कर उन हालात का सामना करना चाहिये। (पृष्ठ-26)
ऐसा ही था वह- अट्ठाईस साल के लंबे गठीले और मजबूत बदन वाला नौजवान पीताम्बर सचदेवानी.......हरियाणा की करनाल जेल से हाल में रिहा हुआ था।
    और एक था पीताम्बर का दोस्त- जग्गी- जिसका असली नाम जगदेव खाकड़ा था और जिसे उसके असली नाम से शायद ही कोई जानता था.....वो कोई पच्चीस साल का नौजवान था जो अपने पैदा होनर से लेकर आज तक केवल एक पेशे, जयरामपेशे, में था। (पृष्ठ-29)
       और एक से दो और दो से चार का कारवां बनता गया।- "तुम्हारे पास एक टीम है जिसका हर मेम्बर अपनी किस्म के फन में‌ माहिर है।"बेनिवाल बोला-" तुम्हारे पास प्लान आउट करने की काबिलियत है, इनके पास उस प्लान पर अमल करते हुए उसे कामयाब कर दिखाने का जज्बा है।"(पृष्ठ-192)
और कामयाब करना था एक प्लान को और प्लान क्या था-  

367. नायक - बसंत कश्यप

सन् 1993 मुंबई सीरियल बम ब्लास्ट पर आधारित
नायक- बसंत कश्यप, थ्रिलर

   
सन् 1993 में मुंबई में हुये सीरियल वार बम धमाके तो आपको पता ही होंगे। कहीं पढा होगा, देखा होगा या फिर इसके विषय में कहीं सुना होगा।
    इन धमाकों में दो नाम चर्चा में रहे थे एक थे अंडरवर्ल्ड के डाॅन दाउद इब्राहिम और दूसरा नाम चर्चा में रहा वह था फिल्म स्टार संजय दत्त।
          प्रस्तुत उपन्यास 'नायक' लेखक बसंत कश्यप जी ने मुंबई बम धमाकों को आधार बना कर लिखा है। सत्य और कल्पना का इतना अच्छा मिश्रण मिलता है की पाठक के सामने एक-एक दृश्य साकार हो उठता है। इनका एक और उपन्यास है 'घायल आबरू' वह अजमेर के ब्लैकमेलिंग काण्ड पर आधारित है। 

कहानी का आरम्भ मुंबई दंगों से होता है। जहाँ अल्पसंख्यकों और बहुसंख्यको के मध्य दंगे होते हैं। इसका कारण है अयोध्या की बाबरी मस्जिद का ढहना। मुंबई में अल्पसंख्यक लोग 'देव-दल' और उसके प्रमुख बल्लू वागले को को दंगों का आरोपी मानते हैं।
साम्प्रदायिकता की आग में झुलसते उस शहर की सड़क पर एक भी आदमी दूर दूर तक नजर नहीं आ रहा था।  (पृष्ठ-07) 

Tuesday, 11 August 2020

366. घायल आबरू- बसंत कश्यप

 ्एक सत्य घटना पर आधारित उपन्यास

घायल आबरू- बसंत कश्यप, सस्पेंश थ्रिलर

हालांकि वह कठोर जमीन पर भाग रही थी, फिर भी उसे महसूस हो रहा था कि उसके पांव दलदल में धंसे जा रहे हैं। वह समूची ताकत के साथ जैसे पांवों को दलदल से खींचकर आगे बढती जा रही थी। उसके जिस्म के ऊपर जो वस्त्र थे वे तार तार हो चुके थे। लगभग नग्न हुये अपने जिस्म की हालत पर वह आँसू बहाती जा रही थी, भागते हुये जिसकी तरफ उसने गरदन घुमाई।
         भेड़िये जैसे मानव अपने भयावह पंजे फैलाए उसके करीब होते जा रहे थे। उसे विश्वास हो गया कि वह अपने नग्न बदन को भेड़ियों जैसे मानवों के पंजे से नहीं बचा सकती। वे पंजे उसे किसी भी क्षण दबोचने जा रहे हैं।

        यह दृश्य है बसंत कश्यप जी के उपन्यास 'घायल आबरू' का। घायल आबरू नामक उपन्यास अजमेर(राजस्थान) में घटित एक सत्य घटना पर आधारित रचना है।  

   वास्तविक घटनाओं पर उपन्यास लिखना बहुत मुश्किल काम होता है। जब एक क्राइम थ्रिलर लेखक वास्तविक घटना पर उपन्यास की रचना करता है तो उसे तात्कालीन परिस्थितियों के साथ-साथ पाठकवर्ग का भी ध्यान रखना है और कहानी को एक अंजाम तक पहुंचाना होता है। वास्तविक जीवन में चाहे वह घटना न्यायालय में न्याय की उम्मीद से दम तोड़ती नजर आये लेकिन लेखक को उस घटना के पात्रों को न्याय दिलाना ही होता है, अन्यथा कहानी अधूरी रह जाती हैऔर पाठक भी असंतुष्ट नजर आते हैं।

     श्री वेदप्रकाश शर्मा जी ने समाज की कुछ घटनाओं पर उपन्यास लिखे हैं‌। इसी क्रम में मुझे बसंत कश्यप जी के दो उपन्यास मिले जो वास्तविक घटनाओं पर आधारित हैं।
      उपन्यास 'घायल आबरू' अजमेर(राजस्थान) में 'स्कूल-काॅलेज' की बच्चियों के साथ लंबे समय तक घटित होते रहे दुराचार पर आधारित है। वहीं इनका गौरी पॉकेट बुक्स से प्रकाशित द्वितीय उपन्यास 'नायक' सजय दत्त और मुंबई बम ब्लास्ट पर आधारित है। गौरी पॉकेट से प्रकाशित होने वाला इनका प्रथम उपन्यास 'घायल आबरू' है।

        समाज में बहुत कुछ ऐसा घटित होता है जिसे इज्जत के नाम पर दबा दिया/ लिया जाता है। और इसी कमजोरी का फायदा उठाकर असामाजिक तत्व शोषण चक्र चलाते रहते हैं। 

       बात करें प्रस्तुत उपन्यास की। यह अजमेर शहर को केन्द्र में रख कर लिया गया है। शहर में 'पंचशूल' नाम से एक ऐसा संगठन सक्रिय है जो प्रतिष्ठित परिवारों की लड़कियों का शोषण करता है और ब्लैकमेल भी। इस पंचशूल के पीछे कुछ राजनैतिक और धार्मिक संगठन के कर्ताधर्ता भी सक्रिय होते हैं।
      वहीं शहर में कुछ नशे के व्यापारी भी समाज और देश को खोखला करने में लगे हुये हैं‌। दूसरी तरफ पंचशूल के पांच शख्स अपने खिलाफ उठने वाली आवाज को हमेशा के लिए खामोश भी कर देते हैं।
      इंस्पेक्टर विक्रम इस अपराध के खिलाफ सक्रिय होता है- समाज के प्रतिष्ठित लोगों की आबरू को अपने गंदे हाथों का खिलौना बनाकर खेलने वाले अपराधियों को तलाश कर रहूंगा।
      लेकिन कहीं न कहीं कोई न कोई बुराई के खिलाफ खड़ा हो ही जाता है। यहाँ एक रहस्यमयी बिल्ली सामने आती है। एक ऐसी बिल्ली जिसने अपराधी वर्ग में दहशत फैला दी।
सलेकी गहरी सोच में डूबा नजर आने लगा।
ठीक तभी।
मेज पर रखा फोन घनघनाया।
सलेकी ने हाथ बढाकर रिसीवर उठाकर माऊथपीस पर कुछ कहना चाहा तो नहीं कह पाया।
दूसरी तरफ उसके बोलने से पहले स्वर उभरा- "म्याऊ...म्याऊ....।"
"ब...बिल्ली ...बिल्ली...।"- अपने कानों के पर्दे से टकराकर बिल्ली की आवाज सुनकर वह पागलों की भाँति चीखा- " बिल्ली है फोन पर।"

- पंचशूल का रहस्य क्या था?
- ब्लैकमेल के काले धंधे के पीछे कौन थे?
- इंस्पेक्टर विक्रम कहां तक कामयाब रहा?
- धर्म, राजनीति और काले धंधे का परस्पर क्या संबंध था?
- बिल्ली का रहस्य क्या था?
- बिल्ली के कारण दहशत क्यों थी?
-उपन्यास कितना सत्य और कितना काल्पनिक है?
यह सब जानने के लिए बंसत कश्यप जी का उपन्यास 'घायल आबरू' पढें।

       उपन्यास आरम्भ से ही रोचक होता चला जाता है। आरम्भ जहाँ एक लड़की की मजबूरी से होता है, वहीं बाद में नशे पर कहानी घूमती है। उपन्यास में राजनीति का अच्छा चरित्र है, कैसे राजनेता अपने स्वार्थ के लिए एक दूसरे को बलि का बकरा बना देते हैं।
       उपन्यास में ऐसे लोगों का बखूबी चित्रण मिलता है जो सफदेपोश होकर काले धंधे करते हैं।
मुझे उपन्यास में बिल्ली के दृश्य बहुत रोचक लगे। वे दृश्य उपन्यास में/ अपराधी वर्ग में दहशत पैदा करने में सक्षम है। हां लेखक ने सब तर्क संगत लिखा है। पाठक को संतुष्टि होगी। आप उपन्यास पढकर जान सकते हैं।
एक दृश्य देखें, अपराधियों में बिल्ली का कैसा खौफ है-
"म्याऊ...म्याऊ...।"
वे सभी बुरी तरह चौंके, इस बार बिल्ली की आवाज मेज के पीछे से नहीं आयी थी।
"बिल्ली उधर है।"- कोई चीखा- " रियाज बिल्ली तुम्हारे पीछे की तरफ है।"
अचानक...
उसके हलक से चीख उबल गयी। उसके चेहरे पर पंजा टकराया था। सुईयों की नोक की भांति पंजे के नाखून उसके चेहरे को चीरते चले गये।

       उपन्यास में पुलिस की कार्य प्रणाली पर भी सवाल उठते हैं। और ऐसा देखा भी गया है की अपराध होते रहते हैं और पुलिस बेखबर रहती है। यहाँ भी पुलिस दोनों तरह के अपराधियों तक पहुंचने में नाकाम रहती है।
-बड़े अफसोस की बात है कि पुलिस अपराधियों तक नहीं पहुँच पा रही है जबकि अपराधियों को एक एक कर रहस्यमयी मौत का शिकार बनाया जा रहा है। काली बिल्ली और जहरीला पंजा जिंदाबाद के नारे शहर की दीवारों पर नजर आने लगे हैं। शहर का माहौल पुलिस की खिल्ली उड़ा रहा है। जबकि पुलिस यह तक नहीं जानती हत्यारा आखिर कौन हो सकता है।

      उपन्यास में कुछ एक्शन दृश्य भी हैं, जो काफी रोमांच पैदा करते हैं। हालांकि उपन्यास में रोमांच और सस्पेंश के लिए और काफी जगह है।
एक दृश्य देखें इंस्पेक्टर विक्रम की फाईट का-
विक्रम ने देखा साया दूसरी बार चाकू घोपने जा रहा था कि विक्रम ने अपने जिस्म को झुकाई देकर चाकू के वार से बचा लिया। अपने ही झोंके में चाकू वाला कोठरी के लकड़ी वाले दरवाजे से टकराया। उसके हाथ का चाकू लकड़ी के दरवाजे में धंस गया था।
ठीक इसी वक्त ।
विक्रम की टांंग लाठी की भांति घूमकर चाकू वाले की पीठ से टकराई। चाकूबाज के हाथ का चाकू लकड़ी के दरवाजे में फंसा रह गया।


       हमारे समाज में लड़कियों को बहुत कमजोर बना दिया जाता है। अगर हम लड़कियों में हिम्मत और ताकत के भाव भरें तो वे वैसा ही महसूस करेंगी। इस पर उपन्यास की एक पात्र का कथन देखें-    लड़की कमजोर होती है यह बात पूरी दुनिया जानती है। लेकिन दुनिया यह भी जानती है कि लड़की कितनी कमजोर होती है वक्त पड़ने पर उतनी बहादुर और मजबूत भी हुआ करती है।
        एक बार आप गूगल पर सर्च कर लीजिएगा और फिर उपन्यास को पढे तो आपको पता चलेगा की उपन्यास कितना वास्तविकता के समीप है। लेखक महोदय धन्यवाद के पात्र हैं जो उन्होंने एक घटना को उपन्यास का रूप दिया। हालांकि यह एक थ्रिलर उपन्यास है इसलिए स्वाभाविक है समापन अलग और बहुत अलग होगा। क्योंकि वास्तविक घटनाओं का समापन होना कठिन होता है और जब बीच में न्यायालय (?) आ जाये तो कठिन शब्द असंभव में परिवर्तित हो जाता है तब एक लेखक ही होता है जो उस घटना को अपनी कल्पना शक्ति से एक मुकाम तक पहुंचाता है।

       उपन्यास में बहुत कुछ रहस्य के पीछे छुपा हुआ है वह तो उपन्यास पढने पर ही जाना जा सकता है।
      एक वास्तविक घटना पर आधारित 'घायल आबरू' उपन्यास हमारे समाज की एक ऐसी तस्वीर प्रस्तुत करता है जो सभ्य समाज को नीची नजर करने के लिए मजबूर कर देता है।
यह उपन्यास पढना चाहिये और समाज में बच्चियों को इतना सशक्त बनाये की वे कठिन से कठिन परिस्थितियों का हिम्मत से सामना कर पातें।
धन्यवाद।
उपन्यास - घायल आबरू
लेखक-    बसंत कश्यप
प्रकाशक- गौरी पॉकेट बुक्स 

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काली आंखों वाली बिल्ली- चन्द्रेश