आखिर कौन था गद्दार
गद्दार- वेदप्रकाश कांबोज
विजय-अलफांसे सीरीज
सूरीमा हिन्द महासागर में एक छोटा सा देश है, जिसमें कुछ छोटे-बड़े टापू शामिल थे। सिंगापुर की तरह देश का नाम भी सूरीमा था और उसकी राजधानी का नाम भी सूरीमा था। देश में राजतंत्र था और उसके शासक का नाम सुलेमान था। देश की आबादी मुसलमान थी। थोड़े बहुत हिंदू थे और थोड़े से क्रिश्चन भी थे।
- वह गद्दार कौन था?
- शाह सुलेमान की जान क्यों लेना चाहता था?
- क्या विजय इस अभियान में सफल रहा?
अगर आप वेदप्रकाश काम्बोज जी के 'विजय-अलफांसे' सीरीज के उपन्यास पसंद करते हैं तो यह उपन्यास पढें और जाने एक गद्दार की सत्यता को। उपन्यास में तीन घटनाक्रम एक साथ चलते हैं। एक घटनाक्रम जहाँ रहस्य से लिपटा हुआ है, वहीं दो अन्य घटनाक्रम रोमांच और एक्शन से लबरेज हैं। लेकिन धीरे-धीरे सब घटनाक्रम स्वाभाविक गति से एक हो जाते हैं।
- एक घटनाक्रम है शाह सुलेमान का। जहाँ विजय सुलेमान की सुरक्षा का दायित्व लेने सुरीमा आता है।
- द्वितीय घटनाक्रम है अंतरराष्ट्रीय अपराधी अलफांसे और उसके मित्र का जो अवैध हथियारों का परिवहन करते हैं।
- तृतीय घटनाक्रम सबसे ज्यादा रोचक और रहस्यमयी है। यह है भारत से सुरीमा कांफ्रेंस में भाग लेने पहुंचे एक डॉक्टर प्रेम मेहता का।
"अगले हफ्ते दो सितंबर को सुल्तान की सालगिरह है....वह दिन सुल्तान की जिंदगी का आखिरी दिन होना चाहिए।"
"होगा और यकीनी तौर पर होगा।"-किसी अन्य व्यक्ति का स्वर सुनाई दिया-" जब मैंने इस काम को करने का बीड़ा उठ लिया है तो वह दिन सुल्तान की जिंदगी का आखिरी दिन ही होगा।"
अब विजय का काम है इस योजना को नाकाम करना और सुलेमान की जिंदगी को बचाना। एक घटनाक्रम के तहत अलफांसे भी सुरीमा की धरती पर पहुंच जाता है और बहुत ही खतरनाक लोगों और डॉक्टर ड्रैकूला के जाल में जा फंसता है।
डॉक्टर प्रेम मेहता सूरीमा में एक काॅंफ्रेसं ले अतिरिक्त एक कब्र पर फूल चढाने का काम करता है लेकिन वह लड़की उसे जिंदा मिलती है लेकिन वह स्वयं को कुछ और ही बताती है।
राजतंत्र को खत्म कर लोकतंत्र की स्थापना करने वाले संघर्षवीर भी अपने देश में व्याप्त भ्रष्टाचार और शाह सुलेमाम से परेशान हैं।
उपन्यास के कुछ पात्र बहुत ही खतरनाक हैं। हालांकि अलफांसे तो किसी से भी कम नहीं है। यही खतरनाक पात्र अलफांसे से टकराते हैं तो कहानी का आनंद बढ जाता है।
पहले अलफांसे को जान लें-
अंतरराष्ट्रीय अपराधी अलफांसे जिसे उसकी विशिष्ट सेवाओं के कारण संसार की कई देशों की सरकारों ने माफ कर दिया है और कई देशों में वह अब भी घोषित अपराधी है। अलफांसे ने आजतक कभी यह हिसाब रखने की कोशिश नहीं की कि वह कहां-कहां का घोषित अपराधी है। वह तो अपनी मन की मौज के मुताबिक आजाद हवा का के झोंके की तरह जहाँ मर्जी होती है...मजे से घूमता-फिरता है।
एक खतरनाक अपराधी का चित्रण देखें-
अलफांसे ने आश्चर्य के साथ देखा कि मोटरबोट में उसके सामने एक जंगली राक्षस जैसा भयानक आदमी खड़ा है। जिसके बदन से पानी टपक रहा था और हाथ में खतरनाक चौड़े फल वाला कुल्हाडा़ था।
उपन्यास का आरम्भ भी ऐसे खतरनाक घटनाक्रम से ही होता है। आरम्भ में ऐसे खतरनाक लोगों का रहस्य उलझा देता है।
अगर इन लोगों पर अलग से उपन्यास होता तो और भी रोचक बनता।
उपन्यास का एक और खतरनाक पात्र है ड्रैकूला। ड्रैकूला जो मौत से भी नहीं डरता। इस खतरनाक डॉक्टर ड्रैकूला से भी अलफांसे की टक्कर होती है।
ड्रैकूला कभी नहीं मरता...वह हमेशा जिंदा रहता है। मैं भी हमेशा जिंदा रहूंगा...जिंदगी और मौत की ताकत मेरी मुट्ठी में होगी।
उपन्यास में कुछ संवाद बहुत रोचक और दिलचस्प हैं। जहाँ यह संवाद हास्य बिखेरते हैं वहीं पात्रों के मनोभाव को भी व्यक्त करते हैं।
कुछ सुक्तियां तो जीवन दर्शन प्रतीत होती हैं।
"अरे! अभी कहां चल दिये...कम से कम दोस्ती का एक पैग तो साथ पीते जाओ।"-
"एक पैग तो दुश्मनों के साथ पिया जाता है...दोस्तों के साथ तो छक कर पी जाती है।"
"यह है होम मिनिस्टर मुनीर अहमद... हालांकि उन्होंने अभी तक कोई शेर नहीं मारा...मगर फिर भी हमने इन्हें शेर अफगन के खिताब से नवाज रखा है।"
"हर मालिक अपने नौकर का इस्तेमाल करता है और नौकर अपनी तरक्की के लालच में उसकी इच्छाएं पूरी करता जाता है।"
उपन्यास में राजतंत्र और लोकतंत्र के समर्थकों का संघर्ष है। कैसे एक राजा अपनी सत्ता के लिए खेल खेलता है और कैसे लोकतंत्र समर्थक स्वशासन के लिए संघर्ष करते हैं।
गद्दार एक रहस्य और एक्शन से परिपूर्ण उपन्यास है। उपन्यास की कहानी तेज रफ्तार है। उपन्यास आरम्भ में सस्पेंश वाला है लेकिन मध्य पश्चात सिर्फ थ्रिलर बन कर रह जाता है।
अगर आप एक्शन उपन्यास पसंद करते हैं तो यह उपन्यास आपको पसंद आयेगा।
उपन्यास- गद्दार
लेखक- वेदप्रकाश काम्बोज
प्रकाशक-
सन्-
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