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Friday, 18 September 2020

378. आखरी मुजरिम- वेदप्रकाश कांबोज

पांच मुजरिमों की लूटकथा
आखरी मुजरिम- वेदप्रकाश कबोज


कहते हैं चोर चोरी करना छोड  सकता है लेकिन हेराफेरी नहीं। और जब चोर आर्थिक मुसीबत में हो तो वह कितनी भी कसमें खा ले अनंत वह अपने पुराने रास्ते पर लौट ही आता है।
वह उसकी मजबूरी हो सकती है या फिर आदत...

    वेदप्रकाश कांबोज जी का उपन्यास 'आखिरी मुजरिम' पढा। यह पांच ऐसे लोगों की कहानी है जो किसी न किसी रूप से अपराध से संबंध रखते हैं।

रामानंद-  विभिन्न अपराधों के सिलसिलें में दस साल की सजा काट कर जेल से छूटा था। लेकिन अब उसे अपनी बेटी की शादी के लिए रुपयों की बहुत आवश्यकता थी। दस साल की सजा और अपराधी का लेबल होने के कारण उसे कहीं से काम और रूपये मिलने की उम्मीद न थी। बस एक दोस्त था अब्बास जिससे कुछ उम्मीद की जा सकती थी।

     रामानंद और अब्बास आगे अजीम और दर्शन से मिले और एक प्लानिंग बनी -"नववर्ष की शुभकामनाएँ तो कल सुबह हम देंगे चन्द्रन ज्वैलर्स वालों को"    लेकिन कोई भी लूट और लूट के माल को पचाना इतना संभव कार्य नहीं है। कहीं न कहीं कुछ न कुछ ऐसा घटित हो ही जाता है जो प्लानिंग कर्ताओं के मस्तिष्क में नहीं आता। और वहीं से ही कथा/कहानी या उपन्यास में ट्विस्ट आरम्भ होता है। प्रस्तुत उपन्यास में भी एक-एक कर कुछ पात्र गायब होने लगते हैं और कुछ अज्ञात हत्याओं का जिम्मेदार भी 'पांच मित्रों' को मान लिया जाता है तो उपन्यास में रोमांच बढता जाता है।

     उपन्यास की कहानी मध्यम स्तर की है। धीरे-धीरे आगे बढती है और धीमा-धीमा रोमांच पैदा करती है। यह एक थ्रिलर कथा है, और अधिकांश घटनाएं पाठक के समक्ष पहली आ जाती हैं और उपन्यासों पात्रों के समक्ष बाद में इसलिए कुछ रोमांच कम भी हो जाता है। एक जिज्ञासा उपन्यास में बनी रहती है की अब आगे क्या होगा। यह जिज्ञासा आगे बढने और पढने के लिए प्रेरक का काम करती है।
     उपन्यास में कहीं कहीं अच्छा सस्पेंश भी है जो प्रभावित करता है। जैसे अंधे कुए की घटना। फिर भी उपन्यास की कहानी मनोरंजक से भरपूर है। जो पाठक को कहीं भी नीरस प्रतीत नहीं होगी।
  

    आखरी मुजरिम‌ में जो विशेष है वह है लूट के पश्चात पांचों मित्रों के साथ घटित खौफनाक घटनाएं और पल प्रतिपल बदलते हालात। 


पात्र परिचय
पांच दोस्त- रामानंद, अब्बास, अजीम, दर्शन और गोमती

शंकर लाल को पूरी तरह से भ्रष्ट पुलिस वालों‌ की श्रेणी में नहीं रखा जा सकता। वह अपनी डयूटी और फर्ज का पाबंद था। लेकिन थोड़ा कंजूस और मुफ्त का माल उडाना अपना पुलसिया हक समझता था।
  कुछ और भी महत्वपूर्ण पात्र उपन्यास में उपस्थित हैं जिनका आनंद उपन्यास पढकर ही लिया जा सकता है।

उपन्यास का एक रोचक कथन यहाँ प्रस्तुत है। यह कथन मुझे आकर्षक लगा, प्रथम दृष्टि में पाठक अजीम की तरह ही सोचता है।
"अब तुम झूठ बोल रहे हो।" उस व्यक्ति ने जेब से एक सिगार निकालते हुए कहा-"और तुम्हारा यह झूठ मुझे सिगार पीने पर मजबूर करेगा।"

     अजीम‌ की समझ में नहीं आया कि उसकी बात से सिगार पीने या ना पीने का क्या तालुक है?

एक और महत्वपूर्ण कथन देखें-
जुर्म‌ की दुनिया बाकी दुनिया से बिलकुल अलग होती है। यहाँ आदमी की सोच और अक्ल ज्यादा काम नहीं देती। यहाँ सब कुछ अवसर और संयोग पर ही निर्भर होता है। 

       जब कहीं लूट कथा पर आधारित उपन्यास की बात होती है तो दो बातें सहज ही दिमाग में सक्रिय हो उठती हैं। एक तो उपन्यास में लूट की प्लानिंग बनाना और दूसरा लूटेरों‌ में से किसी एक लूटेरे का धोखेबाज होना।
  बस राहत की बात यह है कि 'आखिरी मुजरिम' में ऐसा कुछ नहीं है। हालांकि लूट की योजना बनती है, वह सामान्य सा घटनाक्रम होता है क्योंकि लूट किसी बैंक, बख्तरबंद गाड़ी की तो करनी नहीं‌। एक ज्वैलर्स की दुकान लूटनी है तो उसके लिए भारी भरकम योजना की आवश्यकता महसूस नहीं होती।

पांच मुजरिमों की एक लूट की वारदात और उसके पश्चात उनके साथ बीते खौफनाक समय की यह कहानी आदि से अंत तक रोमांच से परिपूर्ण है।
    उपन्यास रोचक और पठनीय है।     
उपन्यास- आखरी मुजरिम
लेखक-    वेदप्रकाश कंबोज
प्रकाशक- जनप्रिय लेखक कार्यालय

4 comments:

  1. शानदार समीक्षा. ये उपन्यास अवश्य पढ़ना चाहूँगा. थ्रिलर उपन्यासों की खास बात ये रहती है की निर्धारित सीरिज से हटकर अलग कहानी पढ़ने का आनन्द आता है. उपन्यास का नाम भी दिलचस्पी जगाता है.

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  2. आपने सही बात कही कि चोरी वाले उपन्यासों में लगभग एक ही कहानी होती है। आपस में धोखा देना लूट के बाद । वेद सर ने कुछ अलग लिखा है जिसे एक बार जरूर पढ़ना चाहिए ।

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  3. रोचक। यह लेख उपन्यास के प्रति रुचि जागृत करता है। अहरु मिलता है तो इसे पढ़ने की कोशिश रहेगी।

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