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Friday, 4 September 2020

373. मुँहतोड़ जवाब - वेदप्रकाश कांबोज

एक अज्ञात द्वीप पर विजय की दुश्मनों से टक्कर
जवाब मुँहतोड़- वेदप्रकाश कांबोज
विजय सीरीज


भारत भूमि से दूर एक अज्ञात द्वीप पर एक व्यक्ति के मरने की एक सामान्य सी घटना थी।‌ मृतक के भाई ने भी भी इसे मात्र आकस्मिक निधन की खबर मान कर दुख मना लिया। 
    लेकिन उस भाई के उस अज्ञात द्वीप से प्राप्त सामान ने ऐसा कहर बरसाया की की एक के बाद एक दुश्मन पैदा होते चले गये और उन दुश्मनों के लिए जासूस विजय तैयार था देने को -जवाब मुँहतोड। 
  लोकप्रिय साहित्य के सितारे वेदप्रकाश कांबोज जी ने विजय सीरीज को लेकर कई रोचक उपन्यासों की रचना की है। लोकप्रिय साहित्य की इस अमूल्य निधि को पढने का अवसर मुझे प्राप्त हुआ है, उसी का यहाँ वर्णन प्रस्तुत है।
मेरी हार्दिक इच्छा है की लोकप्रिय साहित्य को संरक्षित किया जाये। वह चाहे किसी भी रूप में हो। इसके लिए मेरा अल्प प्रयास भी www.sahityadesh.blogspot.com से जारी है।
   अब कुछ चर्चा उपन्यास 'जवाब मुँहतोड़' के विषय पर। 

      कहानी है वैज्ञानिक महेश मेहता और उसके भाई गणेश मेहता की। एक दिन महेश मेहता को खबर मिलती है- "...मैं आपको आपके भाई गणेश मेहता की मौत की बुरी खबर देने के लिए आया हूँ।"
"क्या गणेश मर गया?"- महेश मेहता ने एकदम चौंककर पूछा।
..............
" कब...कहां...और कैसे मर गया गणेश?"- फिर भी बेसाख्ता उसके मुँह से निकल गया।....
"हिन्द महासागर के एक अनाम टापू में।"

- गणेश की मौत कैसे हुयी?
- क्या यह एक सामान्य मौत थी?
- क्या गणेश वास्तव में मर गया या यह खबर असत्य थी?
- वह अनाम टापू कहां था?
- गणेश वहाँ क्या कर रहा था?

       उक्त प्रश्नों जैसे और भी प्रश्न हमारे मस्तिष्क में पैदा हो जाते हैं। इन प्रश्नों के शमन के लिए वेदप्रकाश कांबोज जी का रोचक उपन्यास 'जवाब मुँहतोड़' पढना होगा।
     मेरी इच्छा है  सितंबर 2020 में वेदप्रकाश कांबोज जी के उपन्यास पढने की। अगस्त 2020 में मैंने वेदप्रकाश कांबोज जी के पांच उपन्यास पढे थे, जो की मुझे रोचक लगे। आगे भी यह क्रम यथावत रहने की उम्मीद है।
      जब मेहश मेहता को अपने भाई की मृत्यु की सूचना मिलती है तो वह अपने भाई की आकस्मिक मौत पर अफसोस व्यक्त करता है। लेकिन बाद में उसे उस अज्ञात द्वीप से किसी सहृय पी. गुप्ता नामक व्यक्ति द्वारा भेजा गया गणेश मेहता का कुछ सामान प्राप्त होता है। जो की वैज्ञानिक महेश मेहता की दृष्टि में कोई महत्व का नहीं था। लेकिन कुछ अज्ञात व्यक्ति इस सामान को महेश मेहता से पाने के लिए अपनी जान तक गवा देते हैं। महेश मेहता के लिए यह आश्चर्य की बात थी की उसके भाई के सामान में ऐसा क्या था जो लोग उसे पाने के लिए मर जा रहे थे।
    इस रहस्य का पता तो तो उस द्वीप पर जाकर ही लगाया जा सकता था। -"मुझे लगता है किस सारे रहस्य को यहाँ बैठे बैठ नहीं सुलझाता जा सकता" विजय बोला-"इसका रहस्य धुर दक्षिण के उस कांदल द्वीप समूह में ही कहीं छुपा हुआ है। वहाँ जाकर ही खोजबीन करनी होगी।"
     जासूस विजय अपने एक परिचय के जहाज द्वारा महेश मेहता के साथ उस अज्ञात द्वीप को चल देता है जहाँ मौत का दूसरा नाम चंगेजी उनके इंतजार में बैठा था।
"मैं हूँ नादिर चंगेजी" उस व्यक्ति ने अत्यंत अंहकार युक्त स्वर में कहा -"वह नादिर चंगेजी जिसका नाम सुनकर बड़े-बड़ों का पेशाब निकल जाता है।"
  और वास्तव में चंगेजी का किरदार इतना खौफनाक है की लोग उसके सामान करने से ही डरते हैं।
लेकिन विजय को तो गणेश की मौत और उस सामान का रहस्य जानना ही था। वह तो जा टकराया शैतान चंगेजी से।
"यह चंगेजी कौन है?" विजय ने पूछा।
"बहुत ही खतरनाक किस्म का आदमी है। वह स्मगलिंग भी करता है और समुद्री खजाने की तलाश में भी रहता है...दरअसल वह एक ऐसा आदमी है जो दौलत हासिल करने के लिए हर अच्छा बुरा काम करने के लिए हर वक्त तैयार रहता है।

   फिर जासूस विजय और चंगेजी की टक्कर में जो कहर बरसा वह तो खैर उपन्यास पढकर ही जाना जा सकता है।
    समुद्र पर आधारित यह कथानक रोचक तो है ही साथ-साथ में समुद्री जीव के प्रति संवेदना भी जगाता है। उपन्यास की कहानी महेश की मौत और उसके कार्य के इर्द-गिर्द घूमती है लेकिन जब विजय और उसके साथी समुद्र की यात्रा पर निकलते हैं तो उस अज्ञात द्वीप पर उनके साथ एक से एक खतरनाक घटनाएं घटित होती है जो उन्हें यह सोचने पर विवश करती हैं की महेश की मौत के पीछे कोई विशेष रहस्य है।
  

उपन्यास में एक व्हेल का वर्णन रोचक है। अतिबुद्धिमान पाठक को हो सकता है व्हेल का किरदार तर्क संगत न लगे। लेकिन पाठक यह भी याद रखें कि वह 'सत्यकथा' नहीं पढ रहा। वह तो लोकप्रिय साहित्य की एक काल्पनिक रचना पढ रहा है जहाँ उपन्यास नायक सर्वेसर्वा होता है। इसलिए व्हेल के किरदार को अतिरिक्त रोचकता के साथ पढें तो उपन्यास अच्छा लगेगा।
    उपन्यास में चंगेजी का किरदार इतना क्रूर व्यक्ति का है की उससे नफ़रत हो ही जाती है। विशेष कर जब पाठक चंगेजी का पी. गुप्ता के साथ अत्याचार को पढता है।
   जासूस विजय एक मस्तमौला औत हरवक्त खुश रहने वाला किरदार है। वैसे तो विजय भारतीय सीक्रेट सर्विस का जासूस है लेकिन वह प्राइवेट जासूस का कार्य भी करता है।  

अपने मसखरेपन के चलते वह लोगों क नजर में एक सामान्य व्यक्ति बन जाता है।
विजय की आदतें आप भी देखें-
"जय शिव शंभु...दिखा दे जलवा, उडा दे तंबू।" विमान में अपनी सीट पर बैठे विजय ने उसके उडान भरते ही बड़ी श्रद्धा के साथ हाथ जोड़कर नारा लगाया।
   वैसे विजय अपनी झकझकियों‌ के कारण भी जाना जाता है।
-दिये जुर्म के किले तोड़
हम हैं  विजय गुरू बेजोड़
मुजरिम कर ले कोई सवाल
अपना जवाब है मुँह तोड़।।

  खल पात्र चंगेजी का किरदार एक क्रूर व्यक्ति के रूपें दिखाया गया है। विशेष कर जब वह स्त्रीवर्ग पर अत्याचार करता है तो उसे पढकर चंगेजी के प्रति घृणा पैदा हो जाती है।
      प्रस्तुत उपन्यास एक मर्डर मिस्ट्री से आरम्भ होकर समुद्र कर रहस्यों से गुजरता हुआ, दुश्मनों को सबक सिखाता हुआ और मित्रों के कार्यों को सम्पन्न करता हुआ रोचक और रहस्य की यात्रा को पूर्ण करता है।
उपन्यास- जवाब मुँहतोड़
लेखक-    वेदप्रकाश कांबोज
प्रकाशक- राधा पॉकेट बुक्स, मेरठ


"आपका अनुमान एक दम सही निकला मिस्टर विजय"- महेश मेहता ने उत्साह से लबरेज स्वर में कहा,-"वो पिण्डियां जिन्हे में साधारण से मैगानीज नोड्यूल्स समझ रहा था वैसी साधारण पिण्डियां नहीं थी। जिनका की पहले परीक्षण किया जा चुका था।"

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