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Tuesday, 18 February 2025

622. मुरझाये फूल फिर खिले- ओमप्रकाश शर्मा

अंधविश्वास से टकराते एक युवक की कहानी
मुरझाये फूल फिर खिले- जनप्रिय लेखक ओमप्रकाश शर्मा

नई दिल्ली विश्व पुस्तक मेला- 2025 और यहाँ से खरीदी गयी किताबों में से दो किताबें जनप्रिय लेखक ओमप्रकाश शर्मा जी की हैं। एक 'पी कहां' और दूसरी 'मुरझाये फूल फिर खिले' । दोनों ही सामाजिक उपन्यास हैं, भावना प्रधान ।
'पी कहां' पढने के बाद 'मुरझाये फूल फिर खिले' पढना आरम्भ किया । यह उपन्यास अपने नाम को सार्थक करता हुआ एक भाव प्रधान उपन्यास है, जिसे पढते-पढते आँखें नम हो ही जाती हैं । समाज फैले अंधविश्वास को बहुत अच्छे से रेखांकित किया गया और उसका सामना भी जिस ढंग से किया गया है वह प्रशंसनीय है।


यह कहानी है डाॅक्टर सुधीर की, जिनका गांव लखनऊ के पास एक छोटा सा गांव है। लेकिन डाक्टर सुधीर ....में कार्य करते हैं।
इनका छोटा सा परिवार है । पिता की मृत्यु बहुत पहले हो गयी थी । बड़े भाई की शादी हुयी और कुछ दिनों बाद ही उनकी मृत्यु हो गयी । माँ ने बड़ी बहु को 'डायन' कहकर उसके भाई के साथ विदा कर दिया । एक लड़की है नयनतारा जिसकी शादी हो चुकी है और वह अपने ससुराल में खुश है। अब घर में दो सदस्य बचे हैं- डाक्टर सुधीर और उसकी माँ वासन्ती ।
     एक बार कानपुर रेलवे स्टेशन पर सुधीर को एक परिचित व्यक्ति मिल गये और बात-बात में विषय आ गया भाभी ।
जीवन बाबू ने कहा था इंसान चाहे बूढा क्यों न हो जाये..लेकिन भाभी शब्द सुनते ही पोपले चेहरे पर भी मुस्कान छा जाती है।
खूब रिश्ता है ।
उसकी भी तो एक भाभी थी । उसने उसका मुँह एक झलक तब देखा था जब वह अपने पिता के साथ सदा के लिए उसके घर से जा रही थी ।
भाई की मृत्यु सचमुच हृदय घातक घटना थी । परंतु इसमें भाभी का क्या दोष था ? (पृष्ठ-10-11)
           और आज पहली बात सुधीर के मन में भाभी के प्रति स्नेह जागा और वह जा पहुंचा भाभी के घर । 

जैसे जैनेंद्र के उपन्यास 'त्यागपत्र' का प्रमोद अपनी भुआ के पास जाता है।

लेखक महोदय ने यहाँ सुधीर की भाभी जमना का चित्र प्रस्तुत किया है अत्यंत दारुण है । दो भाईयों की एकमात्र बहन की जो दुर्दशा इस घर में होती है वह पाठक को रुलाने के लिए पर्याप्त है । सिर्फ रुलाने तक ही नहीं पाठक उस स्थिति पर विचार भी करता है और गिरते मानव मूल्यों पर चिंतन भी ।
        सुधीर की नजर से भी भाभी जमना की दुर्दशा छिपी न रह सकी और वह अपने साथ भाभी जमना को अपने गांव-घर ले आता है। उस घर में जहां उसकी माँ वासन्ति जमना को बड़े पुत्र की भक्षक समझती है।
          सुधीर का उद्देश्य है भाभी जमना को उसका हक औरमान सम्मान मिले और वासन्ति बहु जमना को घर में रखना नहीं चाहती ।
और फिर संघर्ष आरम्भ होता है एक माँ और पुत्र में  । नये और पुराने विचारों में। विज्ञान और अंधविश्वास में । और इस संघर्ष में कौन विजयी होता है और कैसे ?
लेखक महोदय ने इस उपन्यास और भी कुछ विषयों को उठाया है ।
प्रतिभा पलायन-
प्रतिभा प्लायन आज की एक विकट समस्या है विशेषकर गांवों में । गांव का व्यक्ति नौकरी मिलते है सबसे पहले गांव क ही त्याग करता है। इस विषय को उपन्यास में बहुत ही रोचक ढंग से दर्शया गया है।
'पंचायत जुड़े तो एक बात रक्खे पंचों के मुकाबिल। हम ऐलान करी कि गाँव का कोई आदमी अपनी औलाद को डॉक्टर न बनाए।'
- 'क्यों ?' चौक कर सुधीर ने पूछा।
- 'गाँव कम्पनी को घाटा रहिन।'
- 'लेकिन क्यों...?'
-'अरे बचवा... गाँव के बिटवा डॉक्टरी पास करें तो हमें उम्मीद रहिन कि गाँव के बीमारों का इलाज करेंगे। पर ई ना हुई... बच्चा लोग डॉक्टरी करके जाते हैं कलकतवा, लखनऊ... कानपुरवा...।'
- 'क्यों ?' चौक कर सुधीर ने पूछा।
- 'गाँव कम्पनी को घाटा रहिन।'
- 'लेकिन क्यों...?'
-'अरे बचवा... गाँव के बिटवा डॉक्टरी पास करें तो हमें उम्मीद रहिन कि गाँव के बीमारों का इलाज करेंगे। पर ई ना हुई... बच्चा लोग डॉक्टरी करके जाते हैं कलकतवा, लखनऊ... कानपुरवा...।'
जीवन का निर्णय-
शादी जीवन का एक अनिवार्य अंग है जिस पर कभी खुल कर चर्चा ही नहीं होती ।अधिकांश घरों में परिवार की इच्छा से रिश्ते तय होते न की लड़के-लड़की की इच्छा- सहमति से ।
- हमें चाहिए कि हम बुजुर्गों को सम्मान दें । परंतु कर्ता-धर्ता बुजुर्ग क्यों हों ?
अंधविश्वास -
उपन्यास का मुख्य विषय भी इसी से जुड़ा हुआ है। सुधीर की माँ अंधविश्वास ने चलते अपनी बहु को पतिहंता मानती है ।
(हालांकि यह उपन्यास 90 के दशक का है लेकिन बहुत सी बातें आज भी प्रासंगिक हैं।)
        उपन्यास में प्रकाशन वर्ष 2024 दिया गया है, इस उपन्यास का प्रथम प्रकाशन वर्ष का कहीं कोई वर्णन नहीं है । अगर प्रथम प्रकाशन वर्ष का उल्लेख होता तो कहानी के परिवेश को आत्मसात करना आसान होता है ।
प्रस्तुत उपन्यास तात्कालिक समय को बहुत अच्छे से दर्शाता है । भारतीय समाज में व्याप्त गहरे अंधविश्वास को व्यक्त करता है । हमारे समाज में लोग रोग के वैज्ञानिक कारण न जान कर उसे दैवीय शाप मान लेते हैं। और जिसके परिणाम अत्यंत दुखद होते हैं।
समाज को आज भी डॉक्टर सुधीर जैसे क्रांतिकारी कदम उठाने वाले व्यक्तियों को आवश्यकता है जो समाज को नया राह दिखाते हैं।
उपन्यास मात्र पठनीय ही नहीं बल्कि विचारणीय भी है।
उपन्यास -  मुरझाये फूल फिर खिले
लेखक-     ओमप्रकाश शर्मा- जनप्रिय लेखक
प्रकाशक-  नीलम जासूस कार्यालय, दिल्ली
प्रकाशन-   2024
पृष्ठ-         122
मूल्य-       200 ₹
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