महमूद ग़ज़नवी का सोमनाथ मंदिर पर आक्रमण
तूफान फिर आया- ओमप्रकाश शर्मा जनप्रिय लेखक
जनप्रिय लेखक ओमप्रकाश शर्मा जी द्वारा लिखा गया एक बहुत ही अच्छा उपन्यास पढने को मिला। उपन्यास का की कथा ऐतिहासिक है, जिसे शर्मा जी ने अपनी कल्पना के रंग भर के उसे जीवंत रूप दे दिया है। लोकप्रिय उपन्यास साहित्य में यह उपन्यास मील का पत्थर है। महमूद गजनवी का भारत पर आक्रमण और फिर सोमनाथ मंदिर की लूट यह इतिहास लिखित है।
महमूद ग़ज़नवी अफ़ग़ानिस्तान के गज़नी राज्य का राजा था जिसने धन की चाह में भारत पर 17 बार हमले किए, सन 1024 ईसवी में उसने लगभग 5 हज़ार साथियों के साथ सोमनाथ मंदिर पर आक्रमण किया, उस समय लगभग 25 हजा़र (यह संख्या कम ज्यादा हो सकती है) लोग मंदिर में पूजा करने आए हुए थे।
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तूफान फिर आया- ओमप्रकाश शर्मा |
जनप्रिय लेखक ओमप्रकाश जी द्वारा लिखित ऐतिहासिक उपन्यास 'तूफान फिर आया' गजनवी के सोमनाथ मंदिर पर आक्रमण से संबंधित है। यह उपन्यास 'गजनी का सुल्तान' का द्वितीय भाग है।
सौराष्ट्र में राजाओं को पता चला की इस बार म्लेच्छ गजनवी पवित्र सोमनाथ की अपार सम्पदा लूटने आ रहा है। -
अबकी बार तूफान आया है सौराष्ट्र में। म्लेच्छ ने लक्ष्य बनाया है देवाधिदेव सोमनाथ को।"(पृष्ठ-145) तो उन्होंने गजनवी के विरुद्ध मोर्चा तैयार किया।
यह एक सत्य है की राजपूत मरने से नहीं डरता। उनके लिए युद्ध एक खेल की तरह है। लेकिन गजनवी जैसे लुटेरे के लिए युद्ध कूटनीति का काम है, बहादुरी का नहीं। भारतीय राजाओं के लिए यह युद्ध धर्मयुद्ध था, सोमनाथ को बचाना उनका कर्तव्य था। लेकिन महामंत्री जानते थे की युद्ध केवल युद्ध होता है और यही बात उन्होंने राजा और रानी को समझायी।
"महामंत्री, महाराज यहाँ धर्मयुद्ध करने आए हैं।"
"मैं आपकी भावनाओं का आदर करता हूँ महारानी....परंतु युद्ध केवल युद्ध होता है धर्मयुद्ध नहीं।" (पृष्ठ-191)
क्योंकि गजनवी एक लूटेरा है। वह एक हिंसक पशु है और पशु धर्मयुद्ध नहीं जानते। मंत्री मेहता ने कहा -
"हम भारतीयों को इतना सभ्य नहीं बनना चाहिए था। जितना कि हम सब बन गए हैं। राजाओं की यही भूल रही कि उन्होंने प्रजा को यह नहीं बताया कि पशु से निपटने के लिए पशु बन जाना चाहिए....।" (पृष्ठ-146,47)
उपन्यास में एक पात्र है अनहिलवाड़ का दुर्गपाल नामदेव। एक युद्धा है जो सुलतान को टक्कर देता है। नामदेव के कथन राजपूतों का प्रतिनिधित्व करते नजर आते हैं।
"भूलते हो सुलतान! पत्थर मोम नहीं हुआ करते। पत्थर झुकते भी नहीं हैं। पत्थर सिर्फ टूटते हैं। पत्थर सिर्फ टूटना जानते हैं।" (पृष्ठ-180))
उपन्यास का प्रमुख पात्र है गुप्तचर कमल। यह एक काल्पनिक पात्र है लेकिन यह यथार्थ के बहुत नजदीक है। जहां राजा युद्ध को धर्मयुद्ध कह कर लड़ते वहीं कमल का मानना है की युद्ध में कूटनीति आवश्यक है। वह युद्ध अंत नहीं चाहता वह तो गजनवी का अंत चाहता है ताकी भविष्य में गजनवी का तूफान फिर न आये।
"कौन अंत कर सकता है?"
"जब तक जियूंगा मैं यह प्रयत्न जारी रखूँगा।" (पृष्ठ-186)
यही कमल अंत तक गजनवी को जिस तरह से मात देता नजर आता है वह उसकी बहादरी और बुद्धि का कमाल है। कमल का चातुर्य प्रशंसा के योग्य है। वह चाहे साधू कमलानंद के रूप, किले के पहरेदार के रूप में या छद्म युद्ध में। कमल एक गुप्तचर है और उसका व्यवहार उसी के अनुरूप है, वही उसकी ताकत है।
सत्य घटना पर वह भी ऐतिहासिक घटना पर उपन्यास लिखना बहुत मुश्किल कार्य है। क्योंकि उपन्यास का समापन किस तरीके से किया जाये की घटना सत्य भी रहे और पाठक भी संतुष्ट हो। क्लाइमैक्स किसी भी उपन्यास का महत्वपूर्ण होता है। प्रस्तुत उपन्यास का समापन इस दृष्टि से महत्वपूर्ण है की पाठक को एक आत्मसंतुष्टि प्राप्त होती है वह भी सत्य के साथ कोई खिलवाड़ न करके।
उपन्यास काल्पनिक है, ऐतिहासिक तथ्यों पर आधारित है, पर तथ्यों को कहीं गलत नहीं दिखाया गया। ऐतिहासिक विषयों पर लिखा गया इतना रोचक उपन्यास मैंने इस सेे पहले नहीं पढा। शर्मा जी को इस कार्य के लिए धन्यवाद।
लोकप्रिय उपन्यास साहित्य में ऐतिहासिक विषयों पर लिखित उपन्यास नाममात्र के ही हैं। शर्मा जी इस विषय पर लिख कर लोकप्रिय उपन्यास साहित्य में ऐतिहासिक अध्याय पृष्ठों में जो श्रीवृद्धि की है वह अविस्मरणीय है।
जहाँ इतिहास मात्र तथ्यों का संग्रह होता है वही उपन्यास इतिहास और कल्पना का वह मिश्रित होता है नीरस कथा में भी सरसता पैदा कर देता है। इस दृष्टि से प्रस्तुत उपन्यास खरा उतरता है। ऐतिहासिक और युद्धों का विवरण होते हुए भी उपन्यास में जो मानवीय दृष्टि दिखाई गयी है वह लेखक की प्रतिमा का परिणाम है।
उपन्यास मात्र पठनीय ही नहीं संग्रहणीय भी है।
उपन्यास- तूफान फिर आया
लेखक- ओमप्रकाश शर्मा
प्रकाशक- पुष्पी पॉकेट इलाहाबाद
गजनी का सुलतान- ओमप्रकाश शर्मा प्रथम भाग समीक्षा