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Thursday, 31 October 2019

243. खतरे की घण्टी- ओमप्रकाश शर्मा

सावधान...बज रही है खतरे की घण्टी
खतरे की घण्टी- ओमप्रकाश शर्मा, जासूसी उपन्यास

242. किले की रानी- ओमप्रकाश शर्मा

वह खुशबू से गुलाम बनाती थी।
किले की रानी- ओमप्रकाश शर्मा

राजस्थान में, किंतु राजस्थान के प्रतीक रेगिस्तान से दूर सुंदर सुरम्य भूतपूर्व रियासत कांटिया के बारे में आपने अवश्य सुना होगा। उसी की तब की राजधानी और अब का रौनकदार शहर रूपपुर...। (पृष्ठ-06)
      तो यह कहानी है रूपपुर की। रूपपुर के किले की और किले की रानी की। रूपपुर रियासत के दो वारिस बचे हैं। बड़ा भाई सूरज सिंह और छोटा भाई चन्द्र सिंह।
दोनों राजकुमारों की माताएं अलग-अलग थी।....... इसके बावजूद दोनों भाईयों में खूब स्नेह था। (पृष्ठ-06)
सूरज सिंह की पत्नी का नाम है माधवी।
एक थी माधवी। सूरज सिंह की पत्नी। किले की रानी।
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किले की रानी- ओमप्रकाश शर्मा
बहुत ही सुंदर। चेहरे पर सौम्य भाव। आँखें मादक। परंतु कुल मिलाकर एक सभ्य और सुशील महिला का सा चित्र।
- यह इतनी शांत और इतनी सौम्य, इतनी सहज है कि कल्पना भी नहीं की जा सकती कि यह जादूगरनी हो सकती है।
जादूगरनी?
"हां...जादूगरनी ही तो। या जो शब्द आप इसके लिए प्रयोग करना चाहें। जिसकी मधुर सुवास से पुरूष इसके संसर्ग में आता है और धीरे मर जाता है।"
(पृष्ठ-17)
      यह कहानी मुख्यतः इन तीन पात्रों पर आधारित है लेकिन कुछ गौण पात्र जो की महत्वपूर्ण भूमिका में भी हैं उपन्यास के विकास में सहायक हैं।
      सभी एक दूसरे पर संदेश करते नजर आते हैं। चन्द्र सिंह का तो कहना है की माधवी से एक अजीब सी खुशबू आती है और वह गुलाम बना लेती है। जैसे माधवी ने मुझे वशीकृत कर रखा हो। मैं उसके सम्मोहन से केवल प्रातः दो घण्टे के लिए तब मुक्ति पाता हूँ जबकि वह स्नान आदि के लिए जाती है। (पृष्ठ-25)
     महल के अंदर कुछ षड्यंत्र रचे जाते हैं। कारण है धन। चन्द्र सिंह चमनगढ के खुफिया विभाग के चीफ गोपाली को इस रहस्य से पर्दा हटाने के लिए याद करता है। दूसरी तरफ एक मिशन के तहत जगन और बंदूक सिंह भी यहाँ पहुँच जाते हैं।
     उपन्यास मुख्यतः गोपाली सीरिज का ही है, फिर भी जगन और बंदूक सिंह सहायक के रूप में आते हैं यहाँ तक तो ठीक है लेकिन उपन्यास के अंत में जगत का अनावश्यक प्रवेश उपन्यास के पृष्ठ बढाने के अतिरिक्त कहीं तर्कसंगत नजर नहीं आता।
जगन और बंदूक सिंह प्रेमिकाएं मीनू और रीनू भी उपन्यास में बेमतलब की हैं और उनके साथ लंबे-लबे दृश्य भी बेमतलब के हैं।
उपन्यास की कहानी अच्छी है लेकिन अनावश्यक विस्तार और पात्र कहानी को खत्म करते नजर आते हैं।

उपन्यास में एक जगह बंदूक सिंह का हल्का सा परिचय दिया गया है। प्रान्तीय खुफिया विभाग का जासूस बंदूक सिंह सुपुत्र खंजर सिंह। (पृष्ठ-76)

राजतंत्र खत्म हो गया पर राजघराने अब भी कायम थे। यह उपन्यास ऐसे ही राजघराने की कहानी है। जहां दौलत के लिए षड्यंत्र रचे जाते हैं और परिवार के सदस्यों को मौत के घाट उतार दिया जाता है।
      धन और परिवार पर आधारित यह उपन्यास मध्य स्तर का कहा जा सकता है। कहीं-कहीं उपन्यास में बेवजह के संवाद और लंबे दृश्य उपन्यास को उबाऊ बनाते हैं। उपन्यास में कुछ पात्र भी बेवजह के हैं।
कहानी के तौर पर उपन्यास को एक बार पढा जा सकता है।
उपन्यास- किले की रानी
लेखक- ओमप्रकाश शर्मा
प्रकाशक- जनप्रिय लेखक कार्यालय, मेरठ
संपादक, प्रकाशक- महेन्द्र कुमार शर्मा

मूल्य- -5 ₹ (तात्कालिक)

उपन्यास का एक पृष्ठ

241. सुहाग की साँझ- ओमप्रकाश शर्मा

प्यार और नफरत की मार्मिक रचना। 
सुहाग की सांझ- जनप्रिय लेखक ओमप्रकाश शर्मा।
   
       
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मैंने ओमप्रकाश शर्मा जी के अधिकांश जासूसी उपन्यास पढे हैं। लेकिन अब निरंतर दो सामाजिक उपन्यास पढकर उनको और भी गहराई जा जाना है, हालांकि यह जानना अभी भी अधूरा ही है। लेकिन इतना अवश्य पता चला है की सामाजिक उपन्यासों के क्षेत्र में ऐसी मार्मिक रचनाएं कम ही देखने को मिलती हैं।
       'सांझ का सूरज' प्यार और प्यार में उपजी नफरत की एक ऐसी कहानी है जो आदि से अंत तक सम्मोहित सी करती चली जाती है।
       कहानी में कहीं समय का वर्णन तो नहीं मिलता फिर भी कहीं कहीं हल्का सा आभास है की कहानी सन् 1950-70 के मध्य की है।

भुटान की सीमा से लगे तेजपुर से लेकर असम की उत्तरी सीमा कमेंग तक सड़क बनाने का काम कहा जाता है की ग्यारह वर्षों से चल रहा है। (पृष्ठ- प्रथम)
       ये कहानी यहीं की है, सड़क विभाग के कार्मिक सहायक इंजिनियर सुरेश की है। आयु तीस वर्ष, रंग गोरा...आयु के अनुसार कुछ दुबला सा दिखाई देने वाला। कर्मठ और मितभाषी। (पृष्ठ-तृतीय)
      एक है बेला। जिसके जीवन में दुख के अतिरिक्त और कुछ भी नहीं। सामाजिक बंधन और प्रेम के बीच में वह भटक सी जाती है। वह स्वयं को एक असफलत नारी मानती है। - असफल स्त्री का प्रतीक किसी को देखना हो तो मुझे देखे। प्रेमी, पति और पिता के प्रति मैं वफादार रहना चाहती थी और किसी के प्रति भी नहीं रह पायी। (पृष्ठ---)
       दोनों के साथ अगर कुछ समान है तो वह है उनका दुर्भाग्य। जो दोनों को आखिर एक जगह एकत्र कर देता है। - दुर्भाग्य से बचने के लिए चाहे कितना तेज दौड़े परंतु वह सदा चार कदम आगे दौड़ता है। (पृष्ठ---)
        उपन्यास में कुछ और भी पात्र हैं और उनकी संक्षिप्त कहानियाँ वर्णित है‌। हर आदमी का अपना-अपना दुख है। कोई उस दुख से भागना चाहता है तो कोई उसके साथ जीवन बिताना चाहता है। लछिया जहां दुख से भागना चाहती है वहीं चर्च के फादर उस दुख के साथ जीना चाहते हैं।
        वहीं जीवनराम एक ऐसा पात्र है जो किसी के सुख दुख में स्वयं को समाहित कर लेता है।

'सुहाग की साँझ' उपन्यास एक ऐसी स्त्री की कहानी है जो अपने सामाजिक जिम्मेदारी और प्रेम के बीच में अटक गयी है। उसका दिल कहीं है और शरीर कहीं है। प्रेम और त्याग के मध्य उसका असमंजस उपन्यास में चित्रित है। उपन्यास का अंत करुणापूर्ण है।
लोकप्रिय उपन्यास साहित्य की अनमोल धरोहर है यह उपन्यास।
रोचक, पठनीय और संग्रहणीय।

उपन्यास- सुहाग की साँझ
लेखक-  ओमप्रकाश शर्मा जनप्रिय लेखक
प्रकाशक- जनप्रिय पब्लिकेशन
पृष्ठ- -      95

240. साँझ हुई घर आए- ओमप्रकाश शर्मा

प्यार और त्याग की मार्मिक कहानी।
सांझ हुई घर आए- जनप्रिय लेखक ओमप्रकाश शर्मा।

ओमप्रकाश शर्मा जी को जनप्रिय लेखक क्यों कहा जाता है? यह सहज सा प्रश्न पाठकों के मन में उठता होगा। जनप्रिय वह होता है जिसे जनता प्यार करती है। अब ओमप्रकाश शर्मा जी के नाम के साथ 'जनप्रिय लेखक' शब्द कैसे लगा यह अलग विषय हो सकता है, लेकिन इनका उपन्यास 'सांझ हुई घर आए' पढकर यह महसूस हुआ की ओमप्रकाश शर्मा जी वास्तव में जनप्रिय लेखक शब्द के हकदार हैं।
        'सांझ हुई घर आए' लोकप्रिय उपन्यास साहित्य का एकमात्र ऐसा उपन्यास है जो किसी राज्य स्तर या सरकारी स्तर पर पुरस्कृत हुआ हो। प्रस्तुत उपन्यास उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा पुरस्कृत है।
       प्रेम और त्याग को आधार बना कर लिखा गया उपन्यास पाठक के मन को अंदर तक झंकृत कर देता है। जहां प्रेम है वहाँ नाराजगी भी है। अपनापन भी है तो गुस्सा भी है। इन बातों को आधार बनाकर लिखा गया यह उपन्यास एक अमूल्य रचना बनकर उभरा है।
       अशोक एक सीधा-सादा लड़का है जो अपनी बहन बेला के साथ रहता है। अशोक की सहपाठी हेमा इन दोनों की मित्र है।
      अशोक जहां शांत स्वभाव का है वहीं हेमा हर बात पर तंज कसने वाली लड़की है। इस बात पर अक्सर दोनों में अनबन रहती है, लेकिन इन दोनों के बीच अशोक की बहन बेला भी है जो दोनों को पुनः मिला देती है।
      अशोक अंतर्मुखी है। हेमा के कहे कुछ शब्द उसकी जिंदगी को विरान कर देते हैं। अशोक गुस्से और नफरत में कुछ ऐसे कृत्य कर बैठता है जो उसके जीवन के न खत्म होने वाले जख्म बन जाते हैं। अब उसे इंतजार है तो मौत का। मैं एक बदकिस्मत इन्सान हूँ। बस, खामोश मौत का इंतजार कर रहा हूँ। (पृष्ठ-79)
      जिंदगी हेमा की भी आसान नहीं है। कुछ गलतफहमियां और परिस्थितियाँ उसे एक नये मोड़ पर ले जाती हैं लेकिन जो उसके जीवन में घटित हो गया वह भूल नहीं पाती। "दुनिया में सबसे दुखदाई बात यह है कि जो हो गया वह भूलाया नहीं जा सकता।"(पृष्ठ-107)
         अशोक, हेमा, बेला, विश्वनाथ और संतोष आदि के जीवन के इर्दगिर्द घूमती यह रचना सहृदय पाठक की भावनाओं छूने में सक्षम है।
       कम शब्दों में और उपन्यास के पात्र संतोष के शब्दों में उपन्यास का सार देख लीजिएगा- दुखी... जीवन में धन, व्यापार सभी कुछ विष के समान लगता है और फिर केवल बरबादी रह जाती है। (पृष्ठ-129)

        प्रेम, त्याग और आपसी मनमुटाव पर आधारित यह उपन्यास आँखें नम कर देने वाला एक मार्मिक उपन्यास है। 
सामाजिक उपन्यास प्रेमियों के लिए यह एक बहुत अच्छी रचना है। एक बार पढकर कुछ अलग आनंद लीजिएगा।
         'साँझ हुई घर आए' जनप्रिय लेखक ओमप्रकाश शर्मा जी का एक यादगार उपन्यास है। उपन्यास प्रेमियों के लिए अनमोल रचना। 
पठनीय और संग्रहणीय।

उपन्यास- सांझ हुई घर आए
लेखक-    ओमप्रकाश शर्मा
प्रकाशक- जनप्रिय पब्लिकेशन
पृष्ठ- -      176



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239. तूफान फिर आया-भाग-02 ओमप्रकाश शर्मा

महमूद ग़ज़नवी का सोमनाथ मंदिर पर आक्रमण
तूफान फिर आया-  ओमप्रकाश शर्मा जनप्रिय लेखक
जनप्रिय लेखक ओमप्रकाश शर्मा जी द्वारा लिखा गया एक बहुत ही अच्छा उपन्यास पढने को मिला। उपन्यास का की कथा ऐतिहासिक है, जिसे शर्मा जी ने अपनी कल्पना के रंग भर के उसे जीवंत रूप दे दिया है। लोकप्रिय उपन्यास साहित्य में यह उपन्यास मील का पत्थर है। महमूद गजनवी का भारत पर आक्रमण और फिर सोमनाथ मंदिर की लूट यह इतिहास लिखित है।
      महमूद ग़ज़नवी अफ़ग़ानिस्तान के गज़नी राज्य का राजा था जिसने धन की चाह में भारत पर 17 बार हमले किए, सन 1024 ईसवी में उसने लगभग 5 हज़ार साथियों के साथ सोमनाथ मंदिर पर आक्रमण किया, उस समय लगभग 25 हजा़र (यह संख्या कम ज्यादा हो सकती है) लोग मंदिर में पूजा करने आए हुए थे।
तूफान फिर आया- ओमप्रकाश शर्मा
जनप्रिय लेखक ओमप्रकाश जी द्वारा लिखित ऐतिहासिक उपन्यास 'तूफान फिर आया' गजनवी के सोमनाथ मंदिर पर आक्रमण से संबंधित है। यह उपन्यास 'गजनी का सुल्तान' का द्वितीय भाग है।
      सौराष्ट्र में राजाओं को पता चला की इस बार म्लेच्छ गजनवी पवित्र सोमनाथ की अपार सम्पदा लूटने आ रहा है। - अबकी बार तूफान आया है सौराष्ट्र में। म्लेच्छ ने लक्ष्य बनाया है देवाधिदेव सोमनाथ को।"(पृष्ठ-145) तो उन्होंने गजनवी के विरुद्ध मोर्चा तैयार किया।
        यह एक सत्य है की राजपूत मरने से नहीं डरता। उनके लिए युद्ध एक खेल की तरह है। लेकिन गजनवी जैसे लुटेरे के लिए युद्ध कूटनीति का काम है, बहादुरी का नहीं। भारतीय राजाओं के लिए यह युद्ध धर्मयुद्ध था, सोमनाथ को बचाना उनका कर्तव्य था। लेकिन महामंत्री जानते थे की युद्ध केवल युद्ध होता है और यही बात उन्होंने राजा और रानी को समझायी।
"महामंत्री, महाराज यहाँ धर्मयुद्ध करने आए हैं।"
"मैं आपकी भावनाओं का आदर करता हूँ महारानी....परंतु युद्ध केवल युद्ध होता है धर्मयुद्ध नहीं।"
(पृष्ठ-191)
       क्योंकि गजनवी एक लूटेरा है। वह एक हिंसक पशु है और पशु धर्मयुद्ध नहीं जानते। मंत्री मेहता ने कहा - "हम भारतीयों को इतना सभ्य नहीं बनना चाहिए था। जितना कि हम सब बन गए हैं। राजाओं की यही भूल रही कि उन्होंने प्रजा को यह नहीं बताया कि पशु से निपटने के लिए पशु बन जाना चाहिए....।" (पृष्ठ-146,47)
       उपन्यास में एक पात्र है अनहिलवाड़ का दुर्गपाल नामदेव। एक युद्धा है जो सुलतान को टक्कर देता है। नामदेव के कथन राजपूतों का प्रतिनिधित्व करते नजर आते हैं। "भूलते हो सुलतान! पत्थर मोम नहीं हुआ करते। पत्थर झुकते भी नहीं हैं। पत्थर सिर्फ टूटते हैं। पत्थर सिर्फ टूटना जानते हैं।" (पृष्ठ-180))
         उपन्यास का प्रमुख पात्र है गुप्तचर कमल। यह एक काल्पनिक पात्र है लेकिन यह यथार्थ के बहुत नजदीक है। जहां राजा युद्ध को धर्मयुद्ध कह कर लड़ते वहीं कमल का मानना है की युद्ध में कूटनीति आवश्यक है। वह युद्ध अंत नहीं चाहता वह तो गजनवी का अंत चाहता है ताकी भविष्य में गजनवी का तूफान फिर न आये।
"कौन अंत कर सकता है?"
"जब तक जियूंगा मैं यह प्रयत्न जारी रखूँगा।"
(पृष्ठ-186)
यही कमल अंत तक गजनवी को जिस तरह से मात देता नजर आता है वह उसकी बहादरी और बुद्धि का कमाल है। कमल का चातुर्य प्रशंसा के योग्य है। वह चाहे साधू कमलानंद के रूप, किले के पहरेदार के रूप में या छद्म युद्ध में। कमल एक गुप्तचर है और उसका व्यवहार उसी के अनुरूप है, वही उसकी ताकत है।
         सत्य घटना पर वह भी ऐतिहासिक घटना पर उपन्यास लिखना बहुत मुश्किल कार्य है। क्योंकि उपन्यास का समापन किस तरीके से किया जाये की घटना सत्य भी रहे और पाठक भी संतुष्ट हो। क्लाइमैक्स किसी भी उपन्यास का महत्वपूर्ण होता है। प्रस्तुत उपन्यास का समापन इस दृष्टि से महत्वपूर्ण है की पाठक को एक आत्मसंतुष्टि प्राप्त होती है वह भी सत्य के साथ कोई खिलवाड़ न करके।
       उपन्यास काल्पनिक है, ऐतिहासिक तथ्यों पर आधारित है, पर तथ्यों को कहीं गलत नहीं दिखाया गया। ऐतिहासिक  विषयों पर लिखा गया इतना रोचक उपन्यास मैंने इस सेे पहले नहीं पढा।  शर्मा जी को इस कार्य के लिए धन्यवाद।

       लोकप्रिय उपन्यास साहित्य में ऐतिहासिक विषयों पर लिखित उपन्यास नाममात्र के ही हैं। शर्मा जी इस विषय पर लिख कर लोकप्रिय उपन्यास साहित्य में ऐतिहासिक अध्याय पृष्ठों में जो श्रीवृद्धि की है वह अविस्मरणीय है।
        जहाँ इतिहास मात्र तथ्यों का संग्रह होता है वही उपन्यास इतिहास और कल्पना का वह मिश्रित होता है नीरस कथा में भी सरसता पैदा कर देता है। इस दृष्टि से प्रस्तुत उपन्यास खरा उतरता है। ऐतिहासिक और युद्धों का विवरण होते हुए भी उपन्यास में जो मानवीय दृष्टि दिखाई गयी है वह लेखक की प्रतिमा का परिणाम है।
‌ ‌उपन्यास मात्र पठनीय ही नहीं संग्रहणीय भी है।

उपन्यास- तूफान फिर आया
लेखक-   ओमप्रकाश शर्मा
प्रकाशक- पुष्पी पॉकेट इलाहाबाद


गजनी का सुलतान- ओमप्रकाश शर्मा  प्रथम भाग समीक्षा

238. गजनी का सुल्तान भाग-01- ओमप्रकाश शर्मा

गुप्तचर कमल का कारनामा
गजनी का सुल्तान- ओमप्रकाश शर्मा

भारत भूमि हमेशा ऐश्वर्यशाली रही है, वह चाहे धन-धान्य के रूप में हो या वीरों के रूप में। इस पावन धरा पर धन भी है तो वीर भी जन्म लेते हैं।
      जहां अच्छाई होती है वहां बुराई भी आ जाती है।‌भारतभूमि की अपार सम्पदा पर विदेश शासकों की हमेशा से कुदृष्टि रही है। भारत पर सर्वाधिक आक्रमण पश्चिम से होते। जिनमें गजनी के शासकों द्वारा भारत पर किये गये क्रुर आक्रमण भी हैं।
      ओमप्रकाश शर्मा जी द्वारा लिखित उपन्यास 'गजनी का सुलतान' और इसका द्वितीय भाग 'तूफान फिर आया' भारतीय वीरों की वीरता और महमूद गजनी की क्रूरता का चित्रण करते हैं।
      महमूद गजनवी की क्रूरता का चित्रण करते हुए लेखक ने लिखा है।  यह प्रलयवान आँधी जिस दिशा की ओर रुख करती गांव राख हो जाते, नगरों के वैभव नष्ट हो जाते। जो मनुष्य उस आँधी की भेंट चढ़ते उनकी लाशें गिद्धों का भोजन बनती, जो इस आंधी की लपेट में आ जाते वे दूर काकेशश तक जाकर गुलामों ले बाजार में बिकते, और जो दुर्भाग्यशाली यह दोनों गति न पाकर किसी प्रकार भाग निकलते वो निराश्रित होकर चाकरी करते, भीख माँगते और युवा स्त्रियाँ भूख न सह पाने के कारण वेश्याएं बन जाती। (पृष्ठ-03)

महमूद गजनवी ने भारत पर लगभग 17 बार आक्रमण किया था। वह भारत की अपार संपदा लूट कर ले गया। यह कहानी गजनवी के सोमनाथ मंदिर पर आक्रमण से कुछ पूर्व की है।
जब महमूद गजनवी ने भारत पर आक्रमण और सोमनाथ मंदिर की लूट का विचार बनाया तो कुछ भारतीय राजा उसका साथ देने को तैयार हो गये। ऐसे ही एक राजा का राजदूत गजनी में जाकर महमूद गजनवी से मिला।
     अब लगभग तय हो गया की गजनवी का भारत पर और वह भी सौराष्ट्र पर आक्रमण होगा तो राजपुताना, सिन्ध यहाँ तक की सौराष्ट्र तक के राजा इस विशाल आँधी से चिंतित रहते थे।(पृष्ठ-03)

     वहीं दूसरी तरफ सुरक्षा का भार भीमदेव के जिम्मे था। इस प्रलयकारी आँधी के झोंके राजपूताने और उसके विशाल रेगिस्तान को स्पर्श करके सौराष्ट्र की और न बढें संयोग से इसका दायित्व सौंपा था पाटणपति भीमदेव को। अनहिलवाड़ पाटण की गद्दी पर अब भीमदेव विराजते थे। (पृष्ठ...)
अनहिलवाड का श्रेष्ठ गुप्तचर कमल गजनी सत्य का पता लगाने जाता है। उपन्यास का अधिकांश भाग कमल के गजनी प्रवास पर ही आधारित है।
       लेखक महोदय ने कमल के गजनी आवागमन और प्रवास का जो चित्र उकेरा है वह जीवंत लगता है।
         इस कथा के साथ -साथ गजनी में साहित्यकार फिरदौसी का भी अच्छा वर्णन मिलता है। उपन्यास में फिरदौस और महमूद का जो वर्णन है वह एक सत्य घटना है।
        उपन्यास मुख्यतः कमल पर आधारित है जो अपने बुद्धिबल पर क्रूर सुल्तान के राज्य गजनी में रहकर किस तरह अपने गुप्तचर दायित्व का निर्वाह करता है। एक-एक शब्द और घटना का जिस तरह से उपन्यास में वर्णन किया गया है वह एक काल्पनिक कथा न होकर एक ऐतिहासिक रचना नजर आती है।
       मेरी दृष्टि में जनप्रिय लेखक ओमप्रकाश शर्मा जी की यह एक अनमोल रचना है। जो कल्पना और सत्य के मिश्रित एक यादगार रचना है।

        प्रस्तुत उपन्यास ओमप्रकाश शर्मा जी द्वारा लिखा गया एक अदभुत उपन्यास है। लोकप्रिय साहित्य के पाठक के लिए एक दुर्लभ मोती की तरह है।
गजनी का सुल्तान- ओमप्रकाश शर्मा
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उपन्यास- गजनी का सुल्तान
लेखक-   ओमप्रकाश शर्मा जनप्रिय लेखक
प्रकाशक- पुष्पी पॉकेट बुक्स, इलाहाबाद



Saturday, 26 October 2019

237. शहजादी गुलबदन- ओमप्रकाश शर्मा

प्रेम और राजनीति पर आधारित एक रोमांचक कहानी
शहजादी गुलबदन- जनप्रिय लेखक ओमप्रकाश शर्मा

"शेखू बादशाहत चाहता है बीरबल...!"- सम्राट का स्वर बुझा सा था।
" जिद्दी बच्चा कुछ भी चाह सकता है....।"
"पर देना क्या चाहिए?"
"सबक ! सीख!!"
"लेकिन बेटा!" राजमाता के मातृत्व ने रोक लगायी-"खून-खराबा न हो बीरबल। मेरे शेखू को कुछ न हो जाये...।"

विद्यालय से दीपावली का अवकाश (20.10.2019- 03.11.2019) था। मेरे पास जनप्रिय लेखक ओमप्रकाश शर्मा जी के कुछ उपन्यास उपलब्ध थे। सोचा क्यों न शर्मा जी के उपलब्ध सभी उपन्यास पढ लिए जायें। तो एक के बाद उपन्यास पढता चला गया। हालांकि अधिकांश उपन्यास समय की बर्बादी साबित हुए। लेकिन प्रस्तुत उपन्यास ने बर्बाद समय के रोष को भूला दिया। हालांकि ओमप्रकाश शर्मा जी को पढने का यह क्रम जारी रहेगा, तब तक, जब तक मेरे पास उनके उपन्यास हैं।
        प्रस्तुत 'शहजादी गुलबदन' ऐतिहासिकता का आभास देते हुए भी एक काल्पनिक प्रेम कथा पर आधारित रोचक कथानक है।

Thursday, 24 October 2019

236. पत्रकार की हत्या- ओमप्रकाश शर्मा

तलाश एक हत्यारे की।
पत्रकार की हत्या- जनप्रिय लेखक ओमप्रकाश शर्मा 
जगत, जगन और बंदूक सिंह का कारनामा।
पत्रकार की हत्या नामक उपन्यास जनप्रिय लेखक ओमप्रकाश शर्मा जी द्वारा लिखा गया एक मर्डर मिस्ट्री कथानक है।
एक पत्रकार की हत्या और स्थानीय पुलिस की नाकामी के पश्चात खुफिया विभाग के तीन जासूसों द्वारा मामले की पुन: खोजबीन।
बात तो जनपद के शहर सुमेरपुर की है, परंतु इसकी गूंज प्रांत की विधान सभा तक पहुंच गई।
बात ही कुछ ऐसी थी।
सुमेरपुर जिले तक सीमित दैनिक पत्र था- आज का समाचार।................
........…..सचमुच ही वह आम जनता का अखबार था और किसानों, मजदूरों तथा दलित वर्ग के प्रति समर्पित था। 

Tuesday, 22 October 2019

225. सुल्तान नादिर खाँ- ओमप्रकाश शर्मा

औरतों के व्यापारी।
सुल्तान नादिर खाँ- जनप्रिय लेखक ओमप्रकाश शर्मा

सुंदरता कभी-कभी अभिशाप बन जाती है।
और यासमीन के लिए तो सुंदरता अभिशाप बन ही गई थी। यह चीनी युवती कुछ वर्ष पहले शंघाई की सुंदरी कहलाती थी।

           जनप्रिय लेखक ओमप्रकाश शर्मा जी का उपन्यास 'सुलतान नादिर खाँ' पढा। प्रथम दृष्टि में यह कोई ऐतिहासिक उपन्यास नजर आता है लेकिन यह न तो ऐतिहासिक उपन्यास है और न ही ऐतिहासिक पात्र है। यह पूर्णतः एक काल्पनिक और मनोरंजन की दृष्टि से लिखा गया रोचक उपन्यास है।


        यह कहानी है यासमीन नामक एक स्त्री की। जो अति सुंदर है और यही सुंदरता उसके लिए अभिशाप बन जाती है। शंघाई की यासमीन कुछ षडयंत्रों से बच कर चीन छोड़कर भारत आती है। यहाँ वह जासूस राजेश और जगत से टकराती है। अजीब थी वह सुंदरी। पहले राजेश की प्रतिद्वंदी थी और फिर राजेश से प्रणय निवेदन कर बैठी।* (पृष्ठ-04)
लेकिन यासमीन का दुर्भाग्य यहा भी उसका पीछा नहीं छोड़ता। रजतपुरी में से कुछ अनजान लोगों ने उसे अपहृत करके अचेत अवस्था में यान पर चढा दिया....(पृष्ठ-04)

एक था कासिम।
"तो तुम हो कासिम।"
"कोई ऐतराज?"
"औरतों के व्यापारी..... शैतान। सुना है भले घर की औरतें तुम्हारे डर से बाहर नहीं निकलती?"
(पृष्ठ-06)
कासिम स्वयं जे बारे में भी यही कहता है-
पहले में औरतों से घृणा करता था फिर औरतों का व्यापार करने लगा। (पृष्ठ-28)

234. खतरनाक आदमी- गुप्तदूत

रहस्यमयी हत्याओं का सिलसिला... 
खतरनाक आदमी- गुप्तदूत       
                    गुप्तदूत नामक जासूसी उपन्यासकार का पहली बार कोई उपन्यास पढने को मिला। जैसा की नाम से ही प्रतीत होता है ये छद्म लेखक रहे हैं। 'गुप्तदूत' 'नकाबपोश भेदी' 'मिस्टर' और 'अजगर' जैसे बहुत से छद्म लेखक हुए हैं। गुप्तदूत के उपन्यास 'स्टार पब्लिकेशन' के अंतर्गत 'गुप्तदूत सीरिज' श्रृंखला में प्रकाशित होते रहे हैं।          सूरज प्रकाश और युद्धवीर दो भाई थे। उनके पिता एक अनोखी वसीयत करके गये थे। वसीयत के अनुसार सूरज प्रकाश को तभी बारह लाख रूपये मिलेंगे जब उसकी पत्नी जीवित रहेगी। सूरज का यह दुर्भाग्य था की उसकी दो पत्नियों की मौत हो गयी। और अब तीसरी पत्नी की उसे चिंता थी क्योंकि चार दिन बाद वसीयत के अनुसार उसे रुपये मिलने थे और इन चार दिनो में सूरज को अपनी पत्नी की सुरक्षा करनी थी। सूरज अपनी पत्नी की सुरक्षा के लिए एक प्लान बनाता है, क्योंकि उसकी चिंता अपनी पत्नी की सुरक्षा की है- "क्या आपकी तीन पत्नियां हैं और आपको अपनी तीसरी पत्नी की सुरक्षा की ही चिंता है?" (पृष्ठ-07)

         लेकिन इन चार दिनो में घर में एक के बाद एक सदस्य की रहस्यमय और अजीब तरीकों से हत्या होती चली जाती है।      जासूस संजय और इंस्पेक्टर प्यारे लाल भी बहुत कोशिश के पश्चात इन सिलसेलवार हत्याओं को रोक नहीं पाते। उपन्यास के आरम्भ के पृष्ठ पर दिये गये कुछ रोचक कथन देखिएगा जो उपन्यास के रहस्यपूर्ण घटनाओं की जानकारी प्रदान करते हैं।
1.  हाथ में रबर गुड्डा।    बदन पर झालरदार लिबास।    चेहरे पर दो रंगा झिल्लीदार नकाब।    ऐसा था खतरनाक आदमी।   लेकिन क्या वह सचमुच खतरनाक आदमी था? 
2. एक मिलन कक्ष था- आनंद महल।    वह ऐय्याशी का कमरा था।    उसमें चार जंजीरें थी।    उनमें युवतियां लटका दी जाती थी।
3. तहखाना क्या था, रहस्यों का भण्डार था।    उनमें मोमबतियां जलाई जाती थी।    नंगी युवती, नंगा युवक... तहखाने के गलियारों में घूमते रहते।                   
क्यों इसका रहस्य जानने के लिए विख्यात जासूसी उपन्यासकार गुप्तदूत का रोंगटे खड़े कर देने वाला.... उपन्यास 'खतरनाक आदमी' पढिये।
      उपन्यास में जो भी हत्याएं होती हैं वे बहुत अजीब तरीके से होती है। पता नहीं कातिल सीधे काम को अजीब और टेढे ढंग से क्यों करता है। कुछ अजीब से पात्र हैं‌ जो बिना कोई विशेष लाॅजिक के उपन्यास में भटकते रहते हैं।
       उपन्यास की कहानी और घटनाएं वास्तव में दिलचस्प और रहस्यमयी है लेकिन अंत में जाकर बहुत सी घटनाओं का आपस में तारतम्य नहीं बैठता। - जैसे संध्या का कत्ल होता हैं। जो की युद्धवीर की पत्नी है। लेकिन वह युद्धवीर को छोड़ कर किसी और के साथ चली जाती है वहीं अंत में दिखा दिया की संध्या पहले सूरज प्रकाश की पत्नी थी और फिर युद्धवीर की पत्नी बन गयी। तहखाने का रहस्य भी उपन्यास को अजीब बनाने के लिए किया गया लगता है। जादूनाथ अर्थात् रबर का गुड्डे वाला दृश्य पाठक के मन में सिहरन पैदा करता है। उसकी वर्णन शैली लेखक की काबलियत दर्शाती है। उपन्यास में बहुत प्रसंग हैं जिनका वर्णन यहाँ संभव नहीं। कुछ प्रसंग प्रशंसनीय है तो कुछ अनावश्यक है। शायद उपन्यास जगत में एक दौर था जब घटनाएं इतनी उलझनपूर्ण होती थी की पाठक समझ ही नहीं पाता था की वह क्या पढ रहा है।
       उपन्यास की कहानी रहस्य के आवरण से लिपटी मर्डर मिस्ट्री पर आधारित है। एक के बाद एक कत्ल और जासूस संजय और इंस्पेक्टर प्यारे लाल की तहकीकात के पश्चात असली अपराधी का पता चलता है। उपन्यास में पात्रों के नाम, शाब्दिक और तथ्यात्मक काफी गलतियाँ है जो कहानी को भ्रमित करती हैं।
प्रस्तुत उपन्यास मर्डर मिस्ट्री पर आधारित एक रोचक कथानक है। उपन्यास कुछ ज्यादा ही उलझा हुआ है, जो कथा प्रवाह को धीमा करता है। लेकिन अंत सुकून प्रदान करता है।
उपन्यास- खतरनाक आदमी लेखक- गुप्तदूत प्रकाशक- स्टार पब्लिकेशन,
आसफ अली रोड़, नई दिल्ली।
पृष्ठ- 118
प्रथम संस्करण- 1973

233. आग के बेटे- वेदप्रकाश शर्मा

वो आग में नहीं जलते थे।
आग के बेटे- वेदप्रकाश शर्मा

"विजय मुझे आग के बेटों का पत्र मिला है।"
"जरूर मिला होगा प्यारे।"
"विजय, प्लीज गंभीर हो जाओ।"
"गंभीर तो आज तक हमारा बाप भी नहीं हुआ प्यारे तुलाराशि।"
"विजय, उन्होंने इस बार व्यक्तिगत रूप से मुझे धमकी दी है, भयानक चैलेंज दिया है।"
"अबे प्यारे लाल, बको भी, क्या चैलेंज दिया है?"
"उन्होंने तुम्हारी भाभी का अपहरण करने की धमकी दी है।"
"क्या....रैना भाभी....?"- विजय चौंक उठा।
(पृष्ठ-...)
              स्वयं को जनकल्याणकारी कहने वाले आग के बेटे कौन थे, जिन्होंने पूरे शहर पर अपना आतंक जमा रखा था।
जानने के लिए पढें- वेदप्रकाश शर्मा जी का उपन्यास आग के बेटे
       राजनगर में 'आग के बेटे' कहे जाने वाले कुछ लूटपाट करते हैं। और आग के बेटे हैं कौन? आप भी पढ लीजिएगा
-उनके संपूर्ण जिस्म आग की लपटों में घिरे हुए थे। समस्त जिस्म से आग लपलपा रही थी। मानो किसी ने उनके जिस्मों पर पेट्रोल छिड़क कर आग लगा दी। (पृष्ठ-23)
               आग के बेटों पर किसी हथियार का कोई असर नहीं होता वे जनकल्याण के नाम पर लूट करके चले जाते हैं और प्रशासन असहाय सा देखता रह जाता है।
एक बार रघुनाथ को पत्र मिलता है की उनकी पत्नी, विकास की मम्मी रैना का अपहरण आगे के बेटे करेंगे।
रघुनाथ की अपील पर विजय इस केस को देखता है लेकिन आग के बेटों के सामने वह भी निरुपाय सा हो जाता है। लेकिन विजय तो आखिर विजय है और वह विजय ही प्राप्त करता है।
लेकिन स्वयं विजय भी बहुत से ऐसे प्रश्नों से जूझता है जो दिमाग को घूमा देते हैं।
1. पहला रहस्य वह लड़की जो बैंक मैनेजर के सामने धुआं बन गई।
2. आग के बेटे आग में क्यों नहीं जलते?
3. आग के बेटे सागर में कैसे लुप्त हो जाते हैं?
4. अधेड़ व्यक्ति कौन है?
5. सबसे बड़ा रहस्य विकास था।

उपन्यास में दो पात्र विशेष रूप से ध्यान आकृष्ट करते हैं। एक तो अधेड़ आदमी और एक नकाबपोश। दोनों ही रहस्यमयी है और दोनों की कार्यप्रणाली हैरत में डालने वाली है।
आगे के बेटे हैं- जर्फीला, दर्बीला और गर्मीला जैसे कुछ पात्र तो वही आग का स्वामी भी उपस्थिति है।
विजय तो खैर उपन्यास का प्रमुख पात्र है ही साथ में विकास भी है। विकास के कारनामे देख कर तो विजय भी अचरज करता है।
प्रत्येक कदम पर उसे विकास एक नये रूप में नजर आता। रूप भी ऐसा जो रहस्यपूर्ण होता, हैरतअंगेज होता। आखिर ये लड़का बना किस मिट्टी का है?(पृष्ठ-67)

-आग के बेटे कौन है?
- जनकल्याण के नाम पर लूटपाट क्यों करते हैं?
- क्या रैना का अपहरण हो पाया?
- क्या रहस्य था आग के बेटों?
- अधेड़ आदमी और नकाबपोश कौन थे?
- विकास ने क्या कारनामे दिखाये?
- विजय को कैसे सफलता मिली

इन प्रश्नों के उत्तर तो उपन्यास पढकर ही मिल सकते हैं।
प्रस्तुत उपन्यास एक्शन और संस्पैंश से भरपूर है। हालांकि कथा का स्तर कुछ कमजोर है। लेकिन यह एक दौर विशेष का उपन्यास है उस समय ऐसे एक्शन उपन्यास ही चलते थे।
159 पृष्ठ का यह उपन्यास पढा जा सकता है कभी निराश तो नहीं करेगा लेकिन लंबे समय तक याद भी नहीं रहेगा।
एक्शन पाठकों और विजय-विकास के प्रशंसकों के लिए यह उपन्यास अच्छा हो सकता है।
                                      -   

उपन्यास- आग के बेटे
लेखक-    वेदप्रकाश शर्मा
पृष्ठ- -      159
प्रकाशक- राजा पॉकेट बुक्स

Thursday, 17 October 2019

232. सुकून- विक्रांत शुक्ला

 जिंदगी की तलाश में...
सुकून- विक्रांत शुक्ला, हाॅरर उपन्यास

तेज हवा के झोंके से दीवार पर टँगा कलैण्डर फड़फडा़या और उसने अपनी नजर आसमान से हटाकर आज की तारीख पर डाली, 13 अगस्त 1978, उसने तारीख पढी और एक झूठी हँसी हँसा। (पृष्ठ-03)
       'सुकून' उपन्यास की कहानी है सन् 1978 ई. की। दो दोस्त और दोनों की बैचेन जिंदगी। दोनों को तलाश है सुकून की। 
      मुझे हाॅरर कहानियाँ पसंद नहीं है। वह चाहे फिल्म हो या किताब। मुझे बिलकुल भी अच्छी नहीं लगती। लेकिन मेरा स्वभाव विक्रांत शुक्ला जी के उपन्यास 'सुकून' ने कुछ बदला है।
      श्री विकास नैनवाल जी के ब्लॉग पर सुकून उपन्यास की समीक्षा पढी थी। तभी से इस उपन्यास को पढने की इच्छा बलवती हुयी। और जब इस उपन्यास को पढने बैठा तो एक बैठक में ही पढ दिया। हाॅरर उपन्यास होकर भी मुझे बहुत अच्छी लगी।
देव स्थानीय प्रादेशिक फिल्मों का सफल अभिनेता है। लेकिन कुछ समय से उसके जीवन से 'सुकून' गायब है। उसके घर में अजीबोगरीब घटनाएं घटित होती हैं। उन घटनाओं ने देव को परेशान कर रखा है। 

Wednesday, 9 October 2019

231. रफ्तार- अनिल मोहन

साढे चार अरब के हीरों की डकैती।
रफ्तार- अनिल मोहन

आप‌ने कभी दौलत की रफ्तार देखी है? नहीं न! तो आइए, इस उपन्यास में देखते हैं दौलत की रफ्तार। दौलत जब रफ्तार पकड़ती है तो सब कुछ बर्बाद करती चली जाती है।

अनिल मोहन जी द्वारा लिखित और सूरज पॉकेट बुक्स द्वारा प्रकाशित उपन्यास 'रफ्तार' पढने को मिला।
आज से 18 वर्ष पहले का लिखा गया यह उपन्यास आज भी वैसा ही तरोताजा महसूस होता है। कहीं से भी यह अहसास नहीं होता की यह उपन्यास इतना पुराना भी है।

      उपन्यास देवराज चौहान सीरिज का है तो स्वाभाविक ही है की यह डकैती पर आधारित होगा। यह उपन्यास भी एक डकैती पर ही आधारित है। यह कोई छोटी डकैती नहीं है, यहाँ तो मामला साढे चार अरब रूपयों का है।
उपन्यास के आवरण पृष्ठ से एक झलक देखें।
बुरे वक्त की मार साढे चार अरब के हीरों को ले जाता जगमोहन, यू ही इत्तफाक से, खामखाह ही पुलिस वालों के फेर में जा फंसा और खड़ा हो गया झंझट, क्योंकि ...क्योंकि साढे चार अरब के हीरे गायब हो गये। कौन ले गया? हर कोई इस बात से परेशान था उपर से एक और नई मुसीबत खड़ी हो ग ई कि जो भी डकैती में शामिल था, कोई बारी बारी से उनके कत्ल करने लगा और उसकी वजह जिसी के समझ में नहीं आ रही थी।

230. सुंदरी को मरने दो- परशुराम शर्मा

द्वितीय विश्वयुद्ध पर आधारित उपन्यास।
सुंदरी को मरने दो- परशुराम शर्मा

परशु राम जी का एक उपन्यास 'सुंदरी को मरने दो' काफी समय से मेरे पास था। बस इस उपन्यास को पढने का समय ही नहीं मिल पाया। अब समय मिला तो इसे पढने बैठा दो दिन में पढकर समाप्त किया।
मुझे इस उपन्यास के शीर्षक ने बहुत आकृष्ट किया। 'सुंदरी को मरने दो' कितना रोचक शीर्षक है। बस यही शीर्षक इस उपन्यास का सबसे बड़ा आकर्षण है। यही आकर्षक मुझे उपन्यास पढने के लिए मजबूर कर गया।
"तुम्हारा नाम?"
"मैनुअल।"
"यह तुम्हारा ही नाम है?"
"नहीं... दुनियां में इस नाम के हजारों लाखों लोग होंगे...मैं इस नाम पर अपना दावा क्यों जाहिर करूं...।"
(पृष्ठ-5)

सुंदरी को मरने दो- परशुराम शर्मा
यह उपन्यास मैनुअल नामक एक व्यक्ति पर आधारित है। जिसके बहुत से रूप उस उपन्यास में उभरते हैं। वास्‍तव में यह उपन्यास न होकर मैनुअल के जीवन की कहानी मात्र है। उसके जीवन के विभिन्न रूप इस उपन्यास में पढने को मिलते हैं। और यह मैंनुअल कौन है?
"कभी मैं क्रांतिकारी था...कभी मैं आप्रेशन वेलिस पर था, तो कभी मैं सिसली के माफिया गुण्ड़ों का सफाया करने निकला और कभी मैंने पोम्पई के खण्डहरों में अपना छापा मार दल बनाया।"

229. कानून का बेटा- वेदप्रकाश शर्मा

केशव पण्डित बना कानून का बेटा।
कानून का बेटा- वेदप्रकाश शर्मा
केशव पण्डित सीरीज का द्वितीय उपन्यास

'कानून का बेटा' वेदप्रकाश शर्मा द्वारा लिखित बहुचर्चित उपन्यास 'केशव पण्डित' का द्वितीय भाग है। अगर आपने केशव पण्डित उपन्यास पढा है तो आपको पता ही होगा की केशव पण्डित के जीवन में क्या परिस्थितियाँ आयी और वह उन परिस्थितियों में कहां से कहां पहुंच गया।
केशव पण्डित उपन्यास की समीक्षा के लिए इस लिंक पर जायें- केशव पण्डित समीक्षा
    कानूूून का बेेेटा उपन्यास आरम्भ होता है केशव पण्डित के जीवन में घटित दुखपूर्ण घटनाओं के इक्कीस वर्ष पश्चात। तब,जब की केशव पण्डित बन चुका होता है 'कानून का बेटा'।
तो अब चर्चा करते हैं 'केशव पण्डित' उपन्यास के द्वितीय और अंतिम भाग 'कानून का बेटा' की।
शिक्षक मित्र श्यामसुंदर दास, सुरेश कुमार। नक्की झील माउंट आबू
इक्कीस साल बाद इलाहाबाद का बेटा 'कानून का बेटा' बनकर लौटा। (पृष्ठ-115) तो दुश्मनों में खलबली मच जाती है।
"यहां वह खुद को बेगुनाह ही तो साबित करने आया है?"
"कहता तो यही है मगर...।"
"मगर?"
"मुझे नहीं लगता कि वह सच बोल रहा है।"

आखिर वह कानून का ज्ञाता है। वह अपने दुश्मनों को इस तरह से खत्म करता है की स्वयं दुश्मन भी उसकी प्रशंसा करते हैं।

Tuesday, 8 October 2019

228. केशव पण्डित- वेदप्रकाश शर्मा

केशव पण्डित का पहला उपन्यास।
केशव पण्डित- वेदप्रकाश शर्मा

"क्या नाम है तुम्हारा?"
"केशव।"
"अदालत में पूरा नाम बताना चाहिए बेटे।"
"केशव पण्डित"
"उम्र"
"चौदह साल, दो महिने, पांच दिन।"
"पढते हो?"
"जी।"
"कहां?"
"नैनीताल कैम्ब्रिज स्कूल में।"
"क्लास?"
"टैंथ स्टैंडर्ड।"
"आजकल यहाँ, इलाहाबाद में क्या कर रहे हो?"
"यहाँ मेरा घर है। मम्मी-पापा और दीदी यहीं रहते हैं...।"
(पृष्ठ-05)

नक्की झील,माउंट आबू, राजस्थान
    यह दृश्य है वेदप्रकाश शर्मा के बहुचर्चित उपन्यास 'केशव पण्डित' का। केशव पण्डित वह उपन्यास और पात्र है जिसने लोकप्रिय जासूसी उपन्यास साहित्य की धारा को एक नया रास्ता दिखाया था। अपने समय में ब्लैक में बिकने वाला उपन्यास। यह स्वाभाविक जिज्ञासा भी उठती है की आखिर इस उपन्यास में ऐसा क्या था जो ब्लैक में बिका। आखिर इस पात्र में ऐसा क्या था जिसके नकल हर प्रकाशन ने की। जिसके नाम से बहुसंख्यक लेखक पैदा हो गये, असंख्य उपन्यास प्रकाशित हुये। आखिर क्या करिश्मा था केशव पण्डित में।
इसी जिज्ञासा का शमन करने के लिए मैं जब केशव पण्डित नामक उपन्यास पढने बैठा तो उसकी कहानी में उतरता चला गया, हालांकि यह उपन्यास किशोरावस्था में पढा था लेकिन जो आनंद और इसका महत्व अब समझ में आया वैसी समझ तब कहां थी।
            'केशव पण्डित' मात्र एक उपन्यास नहीं है। ये तो भारतीय कानून के उन विसंगतियों का वर्णन है जहां एक अपराधी सजा से बच सकता है और एक बेगुनाह फंस सकता है।